जगजाहिर- विशेष रिपोर्ट: भाजपा में आस्था रखने वालों की छंटनी और मन-मुताबिक बोलने के प्रशिक्षण के बावजूद 12 फ्लैगशिप योजनाओं के लाभार्थियों के मन की बात सुनने की हिम्मत नहीं जुटा पाई राजस्थान सरकार. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने चुनिंदा लोगों के वीडियो दिखाकर निभाई रस्म.
इस कार्यक्रम में केंद्र और राज्य सरकार की 12 फ्लैगशिप योजनाओं के लाभार्थियों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से रूबरू होना था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. कार्यक्रम में मोदी ने तो लच्छेदार भाषण दिया मगर राजस्थान के 33 ज़िलों से आए लगभग 2.5 लाख लाभार्थियों में से एक को भी अपने मन की बात कहने का मौका नहीं मिला.
कार्यक्रम में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने संवाद के नाम पर 12 लाभार्थियों की वीडियो रिकॉर्डिंग ज़रूर सुनवाई, जिसमें उन्होंने अलग-अलग योजनाओं से मिले लाभ का बखान किया. इन 12 लोगों को प्रधानमंत्री के साथ मंच पर फोटो खिंचवाने का मौका ज़रूर मिला.
‘संवाद’ के नाम पर हुए इस ‘स्वांग’ में प्रधानमंत्री की भी बराबर भागीदारी रही. उन्होंने मंच पाए आए 12 लाभार्थियों तक से बातचीत करना मुनासिब नहीं समझा. ये लोग कतार से मंच पर चढ़े और फोटो खिंचवाकर नीचे उतर गए. यह सब बमुश्किल एक-डेढ़ मिनट में हो गया.
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में इस कार्यक्रम की तारीफों के जमकर पुल बांधे. उन्होंने कहा, ‘जिस तरह का कार्यक्रम जयपुर में आयोजित किया गया है वह सराहनीय है. लाभार्थियों को सुनना अद्भुत है. कुछ लोग ऐसे हैं जो कभी भी अच्छे काम की सराहना नहीं करते, लेकिन सभी को लाभार्थियों की खुशी यहां देखनी चाहिए.’
ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि सरकार को लाभार्थियों को प्रधानमंत्री का भाषण सुनने के लिए ही जयपुर बुलाना था तो इस कार्यक्रम का नाम ‘जनसंवाद’ क्यों रखा. असल में इस आयोजन में पहले संवाद ही होना था, लेकिन मुखालफत के खौफ की वजह से इसमें बदलाव करना पड़ा.
23 जून को जब राजस्थान के मुख्य सचिव डीबी गुप्ता ने कार्यक्रम में लाभार्थियों को बुलाने की योजना बनाने के लिए ज़िला कलेक्टरों के साथ बैठक की तो कई अधिकारियों ने यह आशंका जताई कि यदि लाभार्थियों के साथ प्रधानमंत्री ने सवाल-जवाब किए तो सरकार के लिए असहज स्थिति उत्पन्न हो सकती है.
इस बैठक में यह बात भी सामने आई कि भीड़ सरकार के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी भी कर सकती है. इससे बचने के लिए कार्यक्रम में सिर्फ़ भाजपा की विचाराधारा में आस्था रखने वाले लोगों को बुलाने की तरकीब निकाली गई. शनिवार को जो अभ्यर्थी जयपुर पहुंचे उनके नाम भाजपा के विधायक, सांसद और पदाधिकारियों ने ही छांटे थे.
किसी प्रकार की असहज स्थिति से बचने के लिए सरकार ने प्रत्येक ज़िले से हर योजना के दो लाभार्थियों बोलने की ट्रेनिंग दी. बाकायदा स्क्रिप्ट तैयार कर उन्हें डॉयलॉग रटाए. जिन 12 लाभार्थियों को प्रधानमंत्री के साथ संवाद के लिए चुना उन्हें जयपुर में विशेष रूप से दो दिन की ट्रेनिंग दी.
यही नहीं, लाभार्थी कोई हंगामा या नारेबाज़ी न कर दें, इस डर से भाजपा के विधायकों को अपने क्षेत्र से लोगों के साथ बैठने के लिए पाबंद किया. इतने इंतज़ामों के बाद भी सरकार के मन से हंगामा होने का डर नहीं निकला. कार्यक्रम में लाभार्थियों और प्रधानमंत्री के बीच में कोई संवाद नहीं हो पाया.
कार्यक्रम में मुखालफत का खौफ सरकार पर किस हद तक हावी रहा इसका अंदाज़ा सभा स्थल पर काले रंग की सभी चीज़ों के निषेध से लगाया जा सकता है. काले कपड़े पहने किसी भी व्यक्ति को कार्यक्रम में प्रवेश नहीं मिला. सुरक्षाकर्मियों ने लोगों से काली बनियान और मोजे तक उतरवा लिए. काली पगड़ी पहने एक सिख लाभार्थी को तो अंदर जाने के लिए ऊपर भाजपा का दुपट्टा लपेटना पड़ा.
लाभार्थी बोलते तो होती फजीहत?
जगजाहिर लाभार्थियों से बात की. इस दौरान कई लोगों ने जिस तरह से तेवर दिखाए उससे साफ हो गया कि यदि सरकार इन्हें प्रधानमंत्री के साथ संवाद करने का मौका देती तो फजीहत होना तय थी.
बारां ज़िले के रामलाल और हेमराज मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान के लाभार्थी हैं. सरकार की ओर से इन्हें सिंचाई के लिए पाइप खरीदने का पैसा मिला, लेकिन ये दोनों लोग लहसुन और चना की उपज का सही दाम नहीं मिलने की वजह से परेशान हैं. इन्हें ग्राम विकास अधिकारी ने यह कहकर जयपुर चलने के लिए तैयार किया कि वहां प्रधानमंत्री उनकी समस्या को सुनेंगे और उनका समाधान करेंगे.
रामलाल कहते हैं, ‘मुझे स्वावलंबन योजना में पाइप खरीदने के लिए सरकार से 10 हज़ार की सब्सिडी मिली, लेकिन लहसुन में ही इस बार 80 हज़ार का घाटा हो गया. मैंने पंजीकरण करवा लिया पर सरकारी केंद्र पर बेचने का नंबर नहीं आया. विकास अधिकारी ने कहा कि मोदी जी को बताओगे तो लहसुन बिक जाएगा.’
वहीं, हेमराज कहते हैं, ‘मुझे स्वावलंबन योजना में तालाब खोदने के लिए 8 हज़ार की सब्सिडी मिली. मगर लहसुन और चना की फसल 70 हज़ार का नुकसान दे गई. मैं कई बार सरकारी केंद्र गया पर माल नहीं बिका. विकास अधिकारी ने कहा था कि जयपुर में मोदी जी टोकन देंगे. मैं इसी वजह से आया हूं.’
इसी ज़िले के अटरू कस्बे के रहने वाले मोहन लाल की हकीकत तो और भी चौंकाने वाली है. सरकारी रिकॉर्ड में वे जल स्वावलंबन अभियान के लाभार्थी हैं, लेकिन वे इस योजना से किसी भी प्रकार का लाभ मिलने से इनकार करते हैं.
वे कहते हैं, ‘मुझे सरकार की किसी योजना में आज तक एक फूटी कौड़ी नहीं मिली. फॉर्म लेकर जाता हूं तो अफसर फेंक देते हैं. पैसे मांगते हैं. मैं यह बात मोदी जी को बताऊंगा.’
इसी ज़िले के किशनगंज के रहने वाले भवानी शंकर नागर की पीड़ा भी कुछ ऐसी है. यह स्थिति तो बारां ज़िले के लाभार्थियों की है, जहां से मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सांसद रही हैं और वर्तमान में उनके पुत्र दुष्यंत सिंह यहां से सांसद हैं. उनके प्रभाव क्षेत्र की हालात ऐसे हैं तो बाकियों के कैसे होंगे इसका अनुमान लगाया जा सकता है.
भीड़ जुटाने में गड़बड़झाला
कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए राजस्थान की समूची सरकारी मशीनरी पिछले 15 दिन से पसीना बहा रही थी, लेकिन ढाई लाख की भीड़ जुटाने में गड़बड़झाला सामने आया है. ‘द वायर’ ने जब बारां ज़िले से जयपुर पहुंची एक बस की पड़ताल की तो 22 में 4 लाभार्थी फ़र्ज़ी निकले.
लाभार्थियों को लाने और वापस ले जाने में प्रयुक्त बसों को भुगतान करने का आदेश पत्र.
लाभार्थियों को लाने और वापस ले जाने में प्रयुक्त बसों को भुगतान करने का आदेश पत्र.
किशनगंज से जयपुर पहुंचे चतुर्भुज ड्राइवर हैं, लेकिन इन दिनों बेरोज़गार हैं. ग्राम विकास अधिकारी उनका खाने-पीने और जयपुर घुमाने का लालच देकर कार्यक्रम में ले आए.
वे कहते हैं, ‘मैं तो ड्राइवर हूं. पुरानी नौकरी छूट गई. नई मिल नहीं रही. साहब ने कहा कि जयपुर चलो. फ्री में खाना-पीना और घूमने को मिलेगा. इसलिए मैं आ गया.’
यहीं के रहने वाले किसान नाथूलाल कार्यक्रम के लिए तय की गई 12 योजनाओं में से किसी में भी लाभार्थी नहीं हैं. इन्हें भी ग्राम विकास अधिकारी खाने-पीने और जयपुर घुमाने का लालच देकर कार्यक्रम में ले आए.
वे कहते हैं, ‘मुझे साहब ने बताया कि भीड़-भड़क्का करने के लिए भी लोग चाहिए. खाना-पीना और घूमना फ्री में मिलेगा, जयपुर चलो. उनकी बात मानकर मैं आ गया.’
इसी बस में गाड़ीधरा गांव के गोपीचंद भी मिले. इनके पास भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना के लाभार्थी का कार्ड था, लेकिन इन्होंने इस योजना से कोई भी लाभ लेने से इनकार किया.
वे कहते हैं, ‘मैं पिछले 20 साल से बीमार ही नहीं हुआ. मुझे तो साहब ने बुलाया और कहा जयपुर चल तुझे भामाशाह कार्ड से दो हज़ार रुपये दिलवा दूंगा.’
बस में मौजूद कंवर लाल और दौलत राम ने भी यही दोहराया. बस में विकास अधिकारी जयकिशन मीणा लोगों के यह बोलते ही सकपका गए. उन्होंने कहा, ‘साहब ये मेरी बस के नहीं है. दूसरी बस के हैं. उसमें जगह नहीं थी इसलिए जबरदस्ती यहां बैठ गए.’
सवारियों की लिस्ट मांगने पर वे नीचे उतरकर बोले, ‘साहब छोड़ो ना, सरकारी नौकरी में अफसरों का हुक्म तो बजाना ही पड़ता है.’
कार्यक्रम स्थल पर भी यह गड़बड़झाला देखने को मिला. पहले बताया गया था कि जनसंवाद केवल 12 सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों के लिए हैं. इसमें प्रवेश उन्हें ही मिलेगा जिनके गले में लाभार्थी होने का पहचान पत्र और योजना से संबंधित पट्टा होगा, लेकिन कार्यक्रम स्थल पर भरपूर मात्रा में भाजपा कार्यकर्ता और पदाधिकारी बिना इसके दिखे.
सरकारी कार्यक्रम में चुनावी आगाज
‘प्रधानमंत्री लाभार्थी जनसंवाद’ कार्यक्रम सरकारी था. लोगों के आने-जाने, खाने व रुकने का पूरा ख़र्च सरकार ने उठाया. लाभार्थियों को जयपुर तक लाने व वापस ले जाने के लिए 5579 बसों को 7.22 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया. एक अनुमान के मुताबिक इस कार्यक्रम में सरकार के लगभग 50 करोड़ रुपये ख़र्च हुए.
भीड़ जुटाने का काम भी सरकारी तंत्र ने किया. मुख्य सचिव डीबी गुप्ता ने बाकायदा ज़िला कलेक्टरों को लाभार्थियों को टारगेट दिया. इसे पूरा करने के लिए कलेक्टरों ने अधिकारियों और कर्मचारियों की टीमें गठित कीं. इन्होंने घर-घर जाकर लोगों को कार्यक्रम में जाने के लिए तैयार किया.
यानी कार्यक्रम था तो सरकारी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इसके मंच को इस साल के आख़िर में होने वाले विधानसभा चुनाव के प्रचार अभियान का आगाज करने के लिए किया. दोनों ने अपने भाषण में कांग्रेस पर जमकर प्रहार किए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘कुछ लोग अब कांग्रेस को बेल-गाड़ी कहने लगे हैं, क्योंकि पार्टी के कई नेता ज़मानत पर हैं. चार साल पहले कांग्रेस के नेताओं के नाम पर पत्थर जड़ने की होड़ मची हुई थी जबकि वसुंधरा जी काम कर रही हैं. उन्हें पिछली सरकार से खज़ाना ख़ाली मिला फिर भी उन्होंने विकास के एजेंडे पर काम किया. आपको तय करना है कि यह काम आगे भी कैसे जारी रहे.’
वहीं, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने कहा, ‘कांग्रेस ने 70 साल तक कुछ नहीं किया. सिर्फ देश और प्रदेश को लूटा. हमने न सिर्फ अच्छी योजनाएं बनायीं, बल्कि उन्हें सफलतापूर्वक लागू भी किया. सभी लाभार्थियों के खाते तक पूरा पैसा बिना किसी लीकेज के पहुंच रहा है. आगे भी टीम राजस्थान मिलकर काम करेगी. हम नए राजस्थान का निर्माण करेंगे.’
कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने चुनावों को ध्यान में रखते हुए 2100 करोड़ रुपये की योजनाओं का शिलान्यास भी किया. हालांकि इनमें से ज़्यादातर पहले से चल रही योजनाओं का ही विस्तार है.
पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के महासचिव अशोक गहलोत कार्यक्रम को पूरी तरह फ्लॉप बताया. उन्होंने कहा, ‘कार्यक्रम प्रधानमंत्री से सीधे संवाद के लिए आयोजित किया गया था, लेकिन संवाद तो हुआ ही नहीं. सभा में पहले से प्रायोजित क्लीपिंग्स का प्रेज़ेंटेशन दिया गया. क्या इसे संवाद कहा जाएगा? ये क्लीपिंग्स तो बिना करोड़ों रुपये बहाए प्रधानमंत्री को पेन ड्राइव के ज़रिये वैसे ही दिल्ली भेजी जा सकती थी.’
गहलोत ने राज्य सरकार पर कार्यक्रम के लिए सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, ‘15 दिन तक पूरे प्रदेश में प्रशासन ठप रहा. गरीब जनता अपने कामों के लिए सरकारी विभागों में मारी-मारी फिरती रही. कलेक्टर से लेकर पटवारी तक सभी भीड़ जुटाने के कार्य में जुटे रहे. सरकारी खज़ाने को पानी की तरह बहाया. लोगों को लोभ-लालच देकर जयपुर बुलाया.’
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने भी गहलोत के सुर में सुर मिलाया. उन्होंने कहा, ‘लाभार्थियों से संवाद के नाम पर आयोजित सरकारी कार्यक्रम में भाजपा संगठन हर मोर्चे पर सक्रिय रहा. सत्तारूढ़ दल ने जमकर सरकारी पैसे का दुरुपयोग किया और जनता की गाढ़ी कमाई को पानी की तरह बहा दिया. पूरा कार्यक्रम भाजपा के खोए आधार को संबल प्रदान के लिए आयोजित किया गया.
इस कार्यक्रम में केंद्र और राज्य सरकार की 12 फ्लैगशिप योजनाओं के लाभार्थियों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से रूबरू होना था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. कार्यक्रम में मोदी ने तो लच्छेदार भाषण दिया मगर राजस्थान के 33 ज़िलों से आए लगभग 2.5 लाख लाभार्थियों में से एक को भी अपने मन की बात कहने का मौका नहीं मिला.
कार्यक्रम में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने संवाद के नाम पर 12 लाभार्थियों की वीडियो रिकॉर्डिंग ज़रूर सुनवाई, जिसमें उन्होंने अलग-अलग योजनाओं से मिले लाभ का बखान किया. इन 12 लोगों को प्रधानमंत्री के साथ मंच पर फोटो खिंचवाने का मौका ज़रूर मिला.
‘संवाद’ के नाम पर हुए इस ‘स्वांग’ में प्रधानमंत्री की भी बराबर भागीदारी रही. उन्होंने मंच पाए आए 12 लाभार्थियों तक से बातचीत करना मुनासिब नहीं समझा. ये लोग कतार से मंच पर चढ़े और फोटो खिंचवाकर नीचे उतर गए. यह सब बमुश्किल एक-डेढ़ मिनट में हो गया.
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में इस कार्यक्रम की तारीफों के जमकर पुल बांधे. उन्होंने कहा, ‘जिस तरह का कार्यक्रम जयपुर में आयोजित किया गया है वह सराहनीय है. लाभार्थियों को सुनना अद्भुत है. कुछ लोग ऐसे हैं जो कभी भी अच्छे काम की सराहना नहीं करते, लेकिन सभी को लाभार्थियों की खुशी यहां देखनी चाहिए.’
ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि सरकार को लाभार्थियों को प्रधानमंत्री का भाषण सुनने के लिए ही जयपुर बुलाना था तो इस कार्यक्रम का नाम ‘जनसंवाद’ क्यों रखा. असल में इस आयोजन में पहले संवाद ही होना था, लेकिन मुखालफत के खौफ की वजह से इसमें बदलाव करना पड़ा.
23 जून को जब राजस्थान के मुख्य सचिव डीबी गुप्ता ने कार्यक्रम में लाभार्थियों को बुलाने की योजना बनाने के लिए ज़िला कलेक्टरों के साथ बैठक की तो कई अधिकारियों ने यह आशंका जताई कि यदि लाभार्थियों के साथ प्रधानमंत्री ने सवाल-जवाब किए तो सरकार के लिए असहज स्थिति उत्पन्न हो सकती है.
इस बैठक में यह बात भी सामने आई कि भीड़ सरकार के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी भी कर सकती है. इससे बचने के लिए कार्यक्रम में सिर्फ़ भाजपा की विचाराधारा में आस्था रखने वाले लोगों को बुलाने की तरकीब निकाली गई. शनिवार को जो अभ्यर्थी जयपुर पहुंचे उनके नाम भाजपा के विधायक, सांसद और पदाधिकारियों ने ही छांटे थे.
किसी प्रकार की असहज स्थिति से बचने के लिए सरकार ने प्रत्येक ज़िले से हर योजना के दो लाभार्थियों बोलने की ट्रेनिंग दी. बाकायदा स्क्रिप्ट तैयार कर उन्हें डॉयलॉग रटाए. जिन 12 लाभार्थियों को प्रधानमंत्री के साथ संवाद के लिए चुना उन्हें जयपुर में विशेष रूप से दो दिन की ट्रेनिंग दी.
यही नहीं, लाभार्थी कोई हंगामा या नारेबाज़ी न कर दें, इस डर से भाजपा के विधायकों को अपने क्षेत्र से लोगों के साथ बैठने के लिए पाबंद किया. इतने इंतज़ामों के बाद भी सरकार के मन से हंगामा होने का डर नहीं निकला. कार्यक्रम में लाभार्थियों और प्रधानमंत्री के बीच में कोई संवाद नहीं हो पाया.
कार्यक्रम में मुखालफत का खौफ सरकार पर किस हद तक हावी रहा इसका अंदाज़ा सभा स्थल पर काले रंग की सभी चीज़ों के निषेध से लगाया जा सकता है. काले कपड़े पहने किसी भी व्यक्ति को कार्यक्रम में प्रवेश नहीं मिला. सुरक्षाकर्मियों ने लोगों से काली बनियान और मोजे तक उतरवा लिए. काली पगड़ी पहने एक सिख लाभार्थी को तो अंदर जाने के लिए ऊपर भाजपा का दुपट्टा लपेटना पड़ा.
लाभार्थी बोलते तो होती फजीहत?
जगजाहिर लाभार्थियों से बात की. इस दौरान कई लोगों ने जिस तरह से तेवर दिखाए उससे साफ हो गया कि यदि सरकार इन्हें प्रधानमंत्री के साथ संवाद करने का मौका देती तो फजीहत होना तय थी.
बारां ज़िले के रामलाल और हेमराज मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान के लाभार्थी हैं. सरकार की ओर से इन्हें सिंचाई के लिए पाइप खरीदने का पैसा मिला, लेकिन ये दोनों लोग लहसुन और चना की उपज का सही दाम नहीं मिलने की वजह से परेशान हैं. इन्हें ग्राम विकास अधिकारी ने यह कहकर जयपुर चलने के लिए तैयार किया कि वहां प्रधानमंत्री उनकी समस्या को सुनेंगे और उनका समाधान करेंगे.
रामलाल कहते हैं, ‘मुझे स्वावलंबन योजना में पाइप खरीदने के लिए सरकार से 10 हज़ार की सब्सिडी मिली, लेकिन लहसुन में ही इस बार 80 हज़ार का घाटा हो गया. मैंने पंजीकरण करवा लिया पर सरकारी केंद्र पर बेचने का नंबर नहीं आया. विकास अधिकारी ने कहा कि मोदी जी को बताओगे तो लहसुन बिक जाएगा.’
वहीं, हेमराज कहते हैं, ‘मुझे स्वावलंबन योजना में तालाब खोदने के लिए 8 हज़ार की सब्सिडी मिली. मगर लहसुन और चना की फसल 70 हज़ार का नुकसान दे गई. मैं कई बार सरकारी केंद्र गया पर माल नहीं बिका. विकास अधिकारी ने कहा था कि जयपुर में मोदी जी टोकन देंगे. मैं इसी वजह से आया हूं.’
इसी ज़िले के अटरू कस्बे के रहने वाले मोहन लाल की हकीकत तो और भी चौंकाने वाली है. सरकारी रिकॉर्ड में वे जल स्वावलंबन अभियान के लाभार्थी हैं, लेकिन वे इस योजना से किसी भी प्रकार का लाभ मिलने से इनकार करते हैं.
वे कहते हैं, ‘मुझे सरकार की किसी योजना में आज तक एक फूटी कौड़ी नहीं मिली. फॉर्म लेकर जाता हूं तो अफसर फेंक देते हैं. पैसे मांगते हैं. मैं यह बात मोदी जी को बताऊंगा.’
इसी ज़िले के किशनगंज के रहने वाले भवानी शंकर नागर की पीड़ा भी कुछ ऐसी है. यह स्थिति तो बारां ज़िले के लाभार्थियों की है, जहां से मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सांसद रही हैं और वर्तमान में उनके पुत्र दुष्यंत सिंह यहां से सांसद हैं. उनके प्रभाव क्षेत्र की हालात ऐसे हैं तो बाकियों के कैसे होंगे इसका अनुमान लगाया जा सकता है.
भीड़ जुटाने में गड़बड़झाला
कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए राजस्थान की समूची सरकारी मशीनरी पिछले 15 दिन से पसीना बहा रही थी, लेकिन ढाई लाख की भीड़ जुटाने में गड़बड़झाला सामने आया है. ‘द वायर’ ने जब बारां ज़िले से जयपुर पहुंची एक बस की पड़ताल की तो 22 में 4 लाभार्थी फ़र्ज़ी निकले.
लाभार्थियों को लाने और वापस ले जाने में प्रयुक्त बसों को भुगतान करने का आदेश पत्र.
लाभार्थियों को लाने और वापस ले जाने में प्रयुक्त बसों को भुगतान करने का आदेश पत्र.
किशनगंज से जयपुर पहुंचे चतुर्भुज ड्राइवर हैं, लेकिन इन दिनों बेरोज़गार हैं. ग्राम विकास अधिकारी उनका खाने-पीने और जयपुर घुमाने का लालच देकर कार्यक्रम में ले आए.
वे कहते हैं, ‘मैं तो ड्राइवर हूं. पुरानी नौकरी छूट गई. नई मिल नहीं रही. साहब ने कहा कि जयपुर चलो. फ्री में खाना-पीना और घूमने को मिलेगा. इसलिए मैं आ गया.’
यहीं के रहने वाले किसान नाथूलाल कार्यक्रम के लिए तय की गई 12 योजनाओं में से किसी में भी लाभार्थी नहीं हैं. इन्हें भी ग्राम विकास अधिकारी खाने-पीने और जयपुर घुमाने का लालच देकर कार्यक्रम में ले आए.
वे कहते हैं, ‘मुझे साहब ने बताया कि भीड़-भड़क्का करने के लिए भी लोग चाहिए. खाना-पीना और घूमना फ्री में मिलेगा, जयपुर चलो. उनकी बात मानकर मैं आ गया.’
इसी बस में गाड़ीधरा गांव के गोपीचंद भी मिले. इनके पास भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना के लाभार्थी का कार्ड था, लेकिन इन्होंने इस योजना से कोई भी लाभ लेने से इनकार किया.
वे कहते हैं, ‘मैं पिछले 20 साल से बीमार ही नहीं हुआ. मुझे तो साहब ने बुलाया और कहा जयपुर चल तुझे भामाशाह कार्ड से दो हज़ार रुपये दिलवा दूंगा.’
बस में मौजूद कंवर लाल और दौलत राम ने भी यही दोहराया. बस में विकास अधिकारी जयकिशन मीणा लोगों के यह बोलते ही सकपका गए. उन्होंने कहा, ‘साहब ये मेरी बस के नहीं है. दूसरी बस के हैं. उसमें जगह नहीं थी इसलिए जबरदस्ती यहां बैठ गए.’
सवारियों की लिस्ट मांगने पर वे नीचे उतरकर बोले, ‘साहब छोड़ो ना, सरकारी नौकरी में अफसरों का हुक्म तो बजाना ही पड़ता है.’
कार्यक्रम स्थल पर भी यह गड़बड़झाला देखने को मिला. पहले बताया गया था कि जनसंवाद केवल 12 सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों के लिए हैं. इसमें प्रवेश उन्हें ही मिलेगा जिनके गले में लाभार्थी होने का पहचान पत्र और योजना से संबंधित पट्टा होगा, लेकिन कार्यक्रम स्थल पर भरपूर मात्रा में भाजपा कार्यकर्ता और पदाधिकारी बिना इसके दिखे.
सरकारी कार्यक्रम में चुनावी आगाज
‘प्रधानमंत्री लाभार्थी जनसंवाद’ कार्यक्रम सरकारी था. लोगों के आने-जाने, खाने व रुकने का पूरा ख़र्च सरकार ने उठाया. लाभार्थियों को जयपुर तक लाने व वापस ले जाने के लिए 5579 बसों को 7.22 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया. एक अनुमान के मुताबिक इस कार्यक्रम में सरकार के लगभग 50 करोड़ रुपये ख़र्च हुए.
भीड़ जुटाने का काम भी सरकारी तंत्र ने किया. मुख्य सचिव डीबी गुप्ता ने बाकायदा ज़िला कलेक्टरों को लाभार्थियों को टारगेट दिया. इसे पूरा करने के लिए कलेक्टरों ने अधिकारियों और कर्मचारियों की टीमें गठित कीं. इन्होंने घर-घर जाकर लोगों को कार्यक्रम में जाने के लिए तैयार किया.
यानी कार्यक्रम था तो सरकारी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इसके मंच को इस साल के आख़िर में होने वाले विधानसभा चुनाव के प्रचार अभियान का आगाज करने के लिए किया. दोनों ने अपने भाषण में कांग्रेस पर जमकर प्रहार किए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘कुछ लोग अब कांग्रेस को बेल-गाड़ी कहने लगे हैं, क्योंकि पार्टी के कई नेता ज़मानत पर हैं. चार साल पहले कांग्रेस के नेताओं के नाम पर पत्थर जड़ने की होड़ मची हुई थी जबकि वसुंधरा जी काम कर रही हैं. उन्हें पिछली सरकार से खज़ाना ख़ाली मिला फिर भी उन्होंने विकास के एजेंडे पर काम किया. आपको तय करना है कि यह काम आगे भी कैसे जारी रहे.’
वहीं, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने कहा, ‘कांग्रेस ने 70 साल तक कुछ नहीं किया. सिर्फ देश और प्रदेश को लूटा. हमने न सिर्फ अच्छी योजनाएं बनायीं, बल्कि उन्हें सफलतापूर्वक लागू भी किया. सभी लाभार्थियों के खाते तक पूरा पैसा बिना किसी लीकेज के पहुंच रहा है. आगे भी टीम राजस्थान मिलकर काम करेगी. हम नए राजस्थान का निर्माण करेंगे.’
कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने चुनावों को ध्यान में रखते हुए 2100 करोड़ रुपये की योजनाओं का शिलान्यास भी किया. हालांकि इनमें से ज़्यादातर पहले से चल रही योजनाओं का ही विस्तार है.
पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के महासचिव अशोक गहलोत कार्यक्रम को पूरी तरह फ्लॉप बताया. उन्होंने कहा, ‘कार्यक्रम प्रधानमंत्री से सीधे संवाद के लिए आयोजित किया गया था, लेकिन संवाद तो हुआ ही नहीं. सभा में पहले से प्रायोजित क्लीपिंग्स का प्रेज़ेंटेशन दिया गया. क्या इसे संवाद कहा जाएगा? ये क्लीपिंग्स तो बिना करोड़ों रुपये बहाए प्रधानमंत्री को पेन ड्राइव के ज़रिये वैसे ही दिल्ली भेजी जा सकती थी.’
गहलोत ने राज्य सरकार पर कार्यक्रम के लिए सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, ‘15 दिन तक पूरे प्रदेश में प्रशासन ठप रहा. गरीब जनता अपने कामों के लिए सरकारी विभागों में मारी-मारी फिरती रही. कलेक्टर से लेकर पटवारी तक सभी भीड़ जुटाने के कार्य में जुटे रहे. सरकारी खज़ाने को पानी की तरह बहाया. लोगों को लोभ-लालच देकर जयपुर बुलाया.’
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने भी गहलोत के सुर में सुर मिलाया. उन्होंने कहा, ‘लाभार्थियों से संवाद के नाम पर आयोजित सरकारी कार्यक्रम में भाजपा संगठन हर मोर्चे पर सक्रिय रहा. सत्तारूढ़ दल ने जमकर सरकारी पैसे का दुरुपयोग किया और जनता की गाढ़ी कमाई को पानी की तरह बहा दिया. पूरा कार्यक्रम भाजपा के खोए आधार को संबल प्रदान के लिए आयोजित किया गया.

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