सोमवार, 9 जुलाई 2018

सच में बलात्कार रोकने हैं.............

बलात्कारी पैदा क्यों और कैसे होता है? बलात्कार रोकने हैं तो पहले लड़कों के लैंगिक शोषण पर चुप्पी तोड़िए
पुरुषत्व और मर्दवाद की स्थापना के चलते लड़कों के लैंगिक शोषण को महत्वहीन विषय माना गया है. यदि कोई यह शिकायत करता है तो उसे अपमान झेलना पड़ता है और कमज़ोर माना जाता है.


भारत के किसी भी राज्य के अख़बार खोलिए; एक ख़बर मिलेगी- 8 महीने, 4 साल, 5 साल, 8 साल, 13 साल की लकड़ी या 35 साल, 70 साल महिला के साथ बलात्कार; फिर एक ख़बर मिलेगी बलात्कार की घटनाओं के विरोध में मोमबत्ती लेकर प्रदर्शन.

राजनीतिक दल वक्तव्य देते हैं कि लड़कियों का भड़कीला पहनावा बलात्कार का कारण हैं, ये किस हद तक मूर्ख लोग हैं, जो यह मानते हैं कि आठ महीने या चार साल की बच्ची के किस तरह के पहनावे से बलात्कार का आधार बनेगा; अब मीडिया को रस आने लगा है बलात्कारी और बलात्कार पीड़ित के धर्म में; ताकि शोषण और नए शोषण का हथियार बन सके; फिर एक ख़बर आने लगी कि भीड़ की मांग पर सरकार सख़्त और बलात्कारी को फांसी मिलेगी!

आप जानते हैं कि बलात्कारी को फांसी दिए जाने पर सरकार और समाज का बड़ा हिस्सा एकमत क्यों है! इसलिए क्योंकि बलात्कारी को मार देने से यह किसी को कभी पता नहीं चल पाएगा कि पितृसत्त्तामक समाज और बाज़ारवादी सरकारों ने उसे बलात्कार करने के लिए तैयार किया था.

घटना 01: मध्य प्रदेश में एक लड़के, जिसका नाम कीर्ति (परिवर्तित नाम) और उम्र 13 साल थी. उसके पिता पर्यटन के क्षेत्र में काम करते थे. वे अपने घर में एक अतिथि गृह (होम स्टे) भी चलाते थे. कीर्ति भी अपने पिता के काम में सहयोग करता था.

इसके लिए कीर्ति पर्यटकों को घुमाने का काम करता था. इसी काम के दौरान पर्यटकों द्वारा उसका लैंगिक शोषण किया गया. वह इसके बारे में किसी को बता न सके, इसीलिए उसका अपहरण किया गया, पुनः लैंगिक शोषण करके उसकी हत्या कर दी गई.

घटना 02: 15 साल के तौहीद (परिवर्तित नाम) की मां की मृत्यु हो चुकी है. उसके पिता भिक्षावृत्ति करके अपनी ज़रूरतें पूरी करने का काम करते थे. तौहीद को भी इन परिस्थितियों में ढाबे पर काम करना पड़ता था. वहां उसके साथ नियमित रूप से कोई न कोई आदमी लैंगिक शोषण करता था.

तीन पुरुष उसे समय-समय पर अपने साथ अलग-अलग जगह पर ले जाते और उसके साथ लैंगिक शोषण करते. यह घटनाक्रम कई महीनों तक चलता रहा. आख़िर तौहीद ने इस घटना की पुलिस रिपोर्ट दर्ज करवाई.

तीनों आरोपियों के खिलाफ़ पोक्सो क़ानून के तहत मामला दर्ज किया गया और उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. अब बच्चे और उसके पिता पर दबाव बनाया जाने लगा, उन्हें धमकियां दी जाने लगीं.

बेहद गरीब परिवार का मुखिया यानी तौहीद का पिता इस दबाव को झेल नहीं पाए और उसे अकेला छोड़ कर कहीं चले गए. बच्चे के ऊपर लगातार दबाव बना हुआ था. अब वह अकेला था.

इसका उसके व्यवहार और व्यक्तित्व पर गहरा नकारात्मक असर पड़ा. इन अवस्थाओं में उसने भी तीन साल की लड़की के साथ बलात्कार कर दिया. इस घटना की वजह से तौहीद अब जेल में है.

घटना 03: छह साल का छोटू (परिवर्तित नाम) 12 साल की अपनी बहन अपनी बहन गुड़िया (परिवर्तित नाम) के साथ भोपाल के साकेत नगर में संयुक्त परिवार (अपनी बहन, मम्मी, पापा, चाचा, चाची) के साथ रहता है.

छोटू 5 वर्ष का था जब पहली बार उसका बलात्कार हुआ था. परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण छोटू और उसकी बहन दोनों स्कूल भी नहीं जाते हैं. चाची का घर में दबदबा है, जिसके कारण उनकी मां की बात कोई नहीं सुनता.

चाची ही इन दोनों बच्चों को खाने-पीने या ख़र्चे के लिए कुछ पैसा देती थीं जिससे ये दोनों बच्चे भी चाची की बात को तवज्जो देते थे. इन बच्चों के पिता स्कूल बस चलाते हैं. और मां घर पर ही रहती है.

चाची का सघन परिचय पड़ोस में रहने वाले कुछ लड़कों के साथ है. ये लड़के चाची को यूं ही कुछ आर्थिक मदद करते रहे हैं. जिसके एवज में वह छोटू और गुड़िया को उन लड़कों के घर खेलने के लिए भेज दिया करती थी.


वो लड़के छोटू के सामने ही उसकी बहन के साथ अश्लील हरकत किया करते थे, उसके कपड़े उतरना और उसको तरह-तरह से छूते थे. वह बच्ची यह बात बोल नहीं पाती थी क्योंकि उसे पता था कि चाची की बात मानना ज़रूरी है. जिस दिन गुड़िया उन लड़कों के यहां नहीं जाती, उस दिन चाची छोटू को अकेले ही वहां भेज देती.

वे लड़के छोटू के साथ भी वही सब व्यवहार करते थे. छोटू के साथ लैंगिक प्रवेशन हमला भी होता था. इसका छोटू पर बहुत गहरा असर पड़ा. किसी तरह से यह बात बच्चों के पिता को पता चली और मामला बाल कल्याण समिति के पास गया.

समिति चाची और उन युवकों के ख़िलाफ़ पोक्सो क़ानून का मामला दर्ज करवाना चाहती थी, पर चूंकि परिवार की सदस्य पर कार्यवाही होना थी, इसलिए रिपोर्ट वापस ले ली गई.

यह प्रकरण साबित करता है कि बच्चों के साथ भारतीय परिवारों में लैंगिक शोषण होता है, यह बात जानकारी में आने के बाद भी परिवार ‘बच्चों के पक्ष और हित’ में निर्णय नहीं लेता है. उनके अपने हित और वीभत्स स्वार्थ सर्वोपरि होते हैं.

एक क्षण को भी यह विचार नहीं किया जाता कि छोटू और गुड़िया के व्यक्तित्व पर इसका क्या असर पड़ेगा और उनकी नज़र में परिवार, रिश्तों और समाज के मूल्यों का किस तरह का चित्र बनेगा?

घटना 04: विराट, महेंद्र, इरफ़ान, रिज़वान (परिवर्तित नाम); जिनकी उम्र 11 से 15 साल के बीच है, ये सभी आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों से संबंध रखते हैं. ये सभी गैराज में काम करते हैं.

आर्थिक स्थिति कमज़ोर होने के कारण कुछ लोगों ने इन्हें आर्थिक लालच देकर लैंगिक शोषण करना शुरू किया. अपनी बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने के लिए वे लैंगिक शोषण को स्वीकार करते गए. एक समय के बाद ये सभी लड़के यौनिक व्यवहार के आदी हो गए.

इसका असर यह हुआ कि अपनी शारीरिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए इन्होने अपने समूह के एक लड़के की छोटी बहन का लैंगिक शोषण करना शुरू कर दिया. इन सभी बच्चों को यह मज़ेदार खेल लग रहा था. जब कभी इन्हें घर में इस खेल के लिए मौका नहीं मिलता, तब बच्चे खेलने या लकड़ी इकट्ठा करने के बहाने से जंगल जाकर इस काम को अंजाम देने लगे.

जब बच्ची इस दर्द को सहन नहीं कर पायी तब उसने यह बात ज़ाहिर कर दी. यह क्षेत्र में काम करने वाली एक सामाजिक कार्यकर्ता तक पहुंची. जांच और बातचीत पर पता चला कि उसके शरीर पर गहरे घाव हुए हैं और उसके साथ जबरिया शारीरिक संबंध बनाए गए हैं. यह बात उनके परिजनों के संज्ञान में लाई गई. यह मामला क़ानून के किताब में नहीं आया क्योंकि शोषण परिवार के सदस्य ने ही किया था और परिवार को बदनामी का डर था.

घटना पांच: रहीम और फईम (परिवर्तित नाम) बेसहारा बच्चे थे. ये दोनों अपने-अपने रिश्तेदारों के यहां रहते थे. जहां इन बच्चों ने दोस्तों के साथ मिलकर इंटरनेट पर पोर्न वेबसाइट पर वीडियो इत्यादि देखे.

कुछ कारणों से वहां से भागने के बाद ये दोनों बच्चे भोपाल के एक संरक्षण गृह पहुंचे. वहां इन दोनों की पहली बार मुलाक़ात हुई. यहां भी उन्होंने स्थानीय गृह के कर्मचारी अजय के साथ अश्लील फ़िल्में देखी. वहां से पुनः उन्हें एक अन्य संरक्षण गृह भेज दिया गया. जहां उनका यह व्यवहार जारी रहा. इसके बाद उन दोनों ने उसी गृह में 17 साल की मानसिक दिव्यांग बच्ची के साथ बलात्कार किया. इन्हें जहां-जहां भी रखा गया, वहां इन्होंने किसी न किसी अन्य बच्चे के साथ लैंगिक शोषण किया.



घटना छह: लुधियाना में 14 साल का मुकेश (परिवर्तित नाम) ट्यूशन पढ़ने के लिए 31 वर्षीय आराधना (परिवर्तित नाम) के यहां जाता था. वह उनके मकान मालिक की बेटी थी. आराधना ने आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले मुकेश को अपने साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए दबाव डाला और प्रेरित किया.

इसके बाद समय-समय पर वह अपनी अनुचित मांग को पूरा करने के लिए उसे धमकाती. आराधना ने मुकेश के साथ अपने संबंधों का वीडियो भी बना लिया था, जिसे दिखा कर वह उसे शिकायत करके फंसा देने की बात कर ज़्यादा डराने लगी.

मुकेश इस कारण से बहुत तनाव में रहने लगा और आख़िर में उसने इसके बारे में अपने पिता को पूरी बात बताई. जिन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई. अनुराधा के ख़िलाफ़ पोक्सो क़ानून के अंतर्गत मामला दर्ज कर लिया गया. यह एक बहुत बड़ा सच है कि महिलाएं भी बच्चों, ख़ास तौर पर लड़कों का लैंगिक शोषण करती हैं.

भारतीय परिवार व्यवस्था में लैंगिक शोषण के दो रूप हैं…

पहला, पुरुष को सामाजिक व्यवस्था के तहत स्त्रियों पर लैंगिक नियंत्रण का अधिकार प्राप्त है. इसमें महिलाओं के लैंगिक शोषण की भी अनुमति है.

दूसरा, सामाजिक व्यवस्था में लैंगिक सत्ता की सीमाएं तय हैं, मसलन स्त्री-पुरुष के रिश्तों में इसे मान्यता मिली हुई है, किन्तु रिश्तों के बाहर कुछ नियंत्रण हैं. ऐसे लैंगिक संबंधों को अनैतिक मान जाता है किन्तु इसे आपराधिक कृत्य नहीं माना जाता है.

ऐसे में अनैतिक संबंध रखे जाते हैं, किन्तु उन्हें छिपाया जाता है. इसका सबसे विकृत रूप है बच्चों का लैंगिक शोषण. इसे अनैतिक कृत्य माना जाता है, क़ानूनी अपराध नहीं.

इसलिए इसके छिपाए रखने की भरसक कोशिशें की जाती हैं. लैंगिक शोषण के इस सच को स्वीकार करने का मतलब है कि राष्ट्र की समाज और धर्म आधारित व्यवस्था के खोखला होने की बात को स्वीकार करना; यह मान लेना कि आधुनिक विकास की प्रक्रिया में हमने समाज को इस हद तक अनैतिक बना लिया है कि हर दो में से एक लड़का लैंगिक शोषण का शिकार होने लगा है.

वर्ष 2007 में भारत सरकार के महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा बच्चों के शोषण पर कराए गए एक बड़े अध्ययन से पता चला कि भारत में 53.22 प्रतिशत बच्चों के साथ किसी न किसी तरह का लैंगिक शोषण हुआ है.

चौंकाने वाला निष्कर्ष यह था कि जिन बच्चों ने अपने साथ लैंगिक शोषण को स्वीकार किया उनमें से 53 प्रतिशत लड़के थे. दिल्ली, बिहार, केरल, राजस्थान, उत्तर प्रदेश में लड़कियों से ज़्यादा लैंगिक शोषण लड़कों का होना पाया गया, परन्तु वर्ष 2014 से 2016 के बीच भारत में 18,502 लड़कों से बलात्कार मामले संज्ञान में आए और दर्ज हुए. सच तो यह है कि इससे कई गुना अधिक लड़कों के साथ घटी घटनाएं गलियों, परिवारों, धार्मिक स्थानों, खेल के मैदानों में खुले आम बिखरी पड़ी हुई हैं;

यह अध्ययन बताता है कि कुछ गहरे तक जड़ें जमा कर बैठे भयों ने भारतीय परिवारों को लड़कियों और उनके कौमार्य को सुरक्षित रखने के लिए तैयार किया है. इसके लिए समाज ने कई तरह के सामाजिक और सांकृतिक व्यवहार रचे हैं.



इससे पता चलता है कि लड़कियां असुरक्षित हैं, हालांकि इसके बारे में खुलकर बात नहीं होती है. यह भी सच है कि लड़कियों की सुरक्षा के लिए ताने-बाने बनाए गए हैं और उनका विस्तार लड़कों की सुरक्षा के लिए नहीं किया गया है. अब इस अध्ययन (स्टडी आॅन चाइल्ड एब्यूज़: इंडिया 2007) और अन्य अध्ययनों से ये स्पष्ट प्रमाण मिल रहे हैं कि लड़के भी उसी हद तक असुरक्षित हैं.

लड़कों का लैंगिक शोषण क्यों?
लड़कों के लैंगिक शोषण से संबंधित अध्ययन बता रहे हैं कि लैंगिक व्यवहार और दुर्व्यवहार के संदर्भ में समलैंगिक, उभयलिंगी, तीसरा लिंग पर ज़्यादा चर्चा और बहस हुई है. लैंगिक (जेंडर) के परिप्रेक्ष्य में पुरुषत्व और मर्दवाद की स्थापना के चलते लड़कों के लैंगिक शोषण को महत्वहीन विषय माना गया.

यदि कोई यह शिकायत करता है, तो उसे अपमान झेलना होगा और उसे कमज़ोर माना जाएगा. अब ताकत का एक पर्यायवाची है महंगे शौक पालना और विलासिता पर अधिकतम व्यय कर पाना; बदलते उपभोक्ता व्यवहार के चलते, ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अब लड़के लैंगिक शोषण के लिए उपलब्ध भी माने जाने लगे हैं.

बदहाली में पलायन, खेती, पानी और आजीविका के साधनों पर छाए संकट के कारण भी लड़के इस तरह के शोषण को चुपचाप स्वीकार करने के लिए मजबूर हैं. अब इस सच से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि कथित धार्मिक गुरुओं और उनके केंद्रों में लड़कों के लैंगिक शोषण की भरी-पूरी व्यवस्था काम कर रही है.

अब जबकि लड़कियों के साथ होने वाले बलात्कारों और बुरे बर्तावों के मामले खुल कर सामने आने लगे है, ऐसे में शोषणकर्ताओं के लिए लड़के आसान शिकार बन गए हैं.

जिस तेज़ी से नशे की प्रवर्ति बढ़ रही है और उस पर सरकार उदासीन है, इससे भी लड़कों के लैंगिक शोषण को बढ़ावा मिलता है. भीख मांगने से लेकर कचरा बीनने वाले और घरों में काम करने वाले बच्चों तक लैंगिक शोषण की व्यवस्था काम कर रही है.

यह बहुत चुभने वाला सच है कि परिवार के भीतर बेटे, भाई, भतीजे सरीखे अलंकृत रिश्तों में भी बलात्कार मौजूद है. लड़कों के साथ बलात्कार के प्रमाण सीधे सामने जो नहीं आते हैं. समाज में लड़कों के कौमार्य के मानक, लैंगिक गरिमा और विवाह की संभावनाएं यौन शोषण से जोड़े नहीं गए हैं, इसलिए भी लड़कों का लैंगिक शोषण चर्चा का विषय नहीं माना गया है.

हमें यह समझना होगा कि इंटरनेट और नई सूचना तकनीक ने बच्चों के लैंगिक शोषण को नया मुकाम प्रदान किया है पर सरकारें इसके असर को रोक पाने में लगभग नाकाम साबित हो रही हैं.

भारत में भेदभावकारी क़ानून व्यवस्था- लड़कों के लैंगिक शोषण के मामले में हमारी कानूनी और न्यायिक व्यवस्था भी असंवेदनशील रही है. भारतीय दंड संहिता की धारा 354 में ‘लज्जा भंग’ करने यानी लैंगिक रूप में अपमानित किए जाने की व्याख्या की गई है; इसे केवल महिलाओं के संदर्भ में ही परिभाषित किया गया है, लड़कों या पुरुषों का इसमें कोई स्पष्ट संदर्भ नहीं है.

इसी तरह में सबसे अहम् धारा 375 में ‘बलात्कार’ के अपराध की व्याख्या है और इसमें जो छह बिंदु शामिल हैं, वे सभी केवल महिलाओं से संबंधित हैं. इन दोनों ही धाराओं में पुरुष या लड़का ‘आरोपी या अपराधी’ के रूप में शामिल है.



इसके बाद धारा 377 का संदर्भ महत्वपूर्ण हो जाता है. यह प्रावधान ‘समलैंगिक संबंधों’ को अप्राकृतिक कृत्य के रूप में परिभाषित करता है. अतः लड़कों के साथ होने वाले बलात्कार को इसी धारा में दर्ज किया जाता है, बशर्ते घटना सामने आए!

हमारी न्याय व्यवस्था यह समझ ही नहीं पायी है कि पितृसत्तात्मक व्यवस्था का चरित्र लड़कों के चरित्र और उनके व्यक्तित्व को गढता है. एक तरफ तो स्त्री पर शासन करने के तर्कों और तरीकों के माध्यम से उन्हें बलात्कार करने के लिए तैयार किया जाता है; तो दूसरी तरफ ख़ुद का शोषण होने पर चुप रहना, आंखों को नम न करना, हमेशा हर परिस्थिति में कड़क और मज़बूत बने रहना सिखाया जाता है.

लैंगिक शोषण सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था में तप कर एक तरह का मूल चरित्र बन जाता है, जब यह विकसित हो जाता है, तब शोषण करने वाला यह नहीं देखता कि जिसका वह शोषण कर रहा है वह स्त्री है या पुरुष, परिचित है या अपरिचित, अपनी संतान है या दूसरे की संतान.

इसके बाद किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 75 के मुताबिक ‘कोई भी व्यक्ति ऐसा कृत्य, हमला, परित्याग, उत्पीड़न या उपेक्षा करेगा, जिससे किसी भी बच्चे को अनावश्यक मानसिक और शारीरिक कष्ट होने की संभावना हो, उसे तीन साल के कारावास या एक लाख रुपसे के जुर्माने या दोनों से दंडित किया जा सकेगा.’

सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान हुए हैं लैंगिक अपराधों से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम, 2012 (पोक्सो) के तहत. इस क़ानून में सभी लिंगों के 18 वर्ष तक के बच्चों को लैंगिक शोषण के संदर्भ को लक्ष्य में रखा.

इस क़ानून की धारा तीन के अनुसार, ‘जब कोई व्यक्ति अपना लिंग किसी भी सीमा तक किसी बच्चे की योनी, मुंह, मूत्रमार्ग या गुदा में प्रवेश करता है या बच्चे से या उसके साथ किसी अन्य व्यक्ति से ऐसा करवाता है या लिंग के अलावा किसी अन्य अंग से भी ऐसा करता या करवाता है और बच्चे के लिंग, योनी या मूत्रमार्ग पर अपना मुंह लगता है या ऐसे व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा बच्चे से ऐसा करवाता है; इसे लैंगिक प्रवेशन हमला माना जाएगा.’

इस परिभाषा को पढ़ना और स्वीकार करना ही समाज के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण काम है.

पोक्सो क़ानून के आने से पहले तक क़ानूनी व्यवस्था में यह पक्ष इतनी स्पष्टता के साथ परिभाषित नहीं था. हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि पोक्सो क़ानून आने के बाद भी लड़कों के साथ बलात्कार जैसे गंभीर पहलू पर समाज और क़ानून व्यवस्था में सक्रिय कार्यवाही का अभाव है.

एक तरफ तो आर्थिक ताना-बाना बच्चों को औपचारिक रूप से लैंगिक शोषण की व्यवस्था में धकेल रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ लड़कों के लिए मनौवैज्ञानिक परामर्श और संरक्षण के अभाव में वे ख़ुद अपने साथ हुए लैंगिक शोषण को आधार बना कर स्वयं बलात्कारी बनने की दिशा में बढ़ जा रहे हैं.

समाज के भीतर हर स्तर पर जड़ें जमाए हुए लैंगिक शोषण के व्यवहार से नज़रें छिपाई जा रही हैं, तब स्वाभाविक है कि हम समाज में बलात्कार की घटनाओं को और बढ़ने के लिए खुला मैदान दे रहे हैं.

जब एक लड़का ख़ुद यह देखता है कि उसके साथ हुए लैंगिक शोषण पर उसके स्कूल, परिवार, समुदाय, पुलिस और न्यायपालिका ने कार्यवाही नहीं की, तब वह स्वयं इस तरह के व्यवहार के लिए तैयार होने लगता है.

वह देखता है कि स्कूल में जब उसमें अपनी किसी सहपाठी को परेशान किया या उत्पीड़न किया, तब भी कोई कार्यवाही नहीं हुई. जब उसने किसी स्त्री के साथ छेड़खानी की, तब भी कोई कुछ नहीं बोला. तब वह मान लेता है कि अब वह बलात्कार करने के लिए भी आज़ाद है और तब हमें संकट नज़र आता है.

वास्तव में हम चरणबद्ध तरीके से लड़कों का लैंगिक शोषण करके, उन्हें लैंगिक शोषण स्वीकार करवाकर, किसी और का लैंगिक शोषण करने के लिए तैयार और प्रशिक्षित करते हैं.

इसके बाद अपने अपराध छिपाने के लिए समाज और सरकार हाथ मिल लेते हैं और ‘अपराधी के लिए फांसी’ की मांग करने लगते हैं. वास्तव में अपराधी तो पितृ सत्तात्मक समाज और राज्य व्यवस्था है. यदि सच में हमें बलात्कार रोकना हैं, तो सबसे पहले यह जानना, समझना होगा कि बलात्कारी पैदा क्यों और कैसे होता है? 

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