देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ । बचपन में देश के विभाजन की बुरी खबरों को सुनकर उनका अनुमान भी नहीं लगा पाता था। इस संबंध में अनेक फिल्में देखी तो पता चला कि उस दौरान हिंसा से सबसे बड़ा नरसंहार हुआ था जिसमें दोनों विश्व युद्धों के दौरान मारे गए लोगों से भी ज्यादा लोग मारे गए। तब देखता था कि किस तरह भारत में व पाकिस्तान से विस्थापित रातोंरात अपना घर संपर्क छोड कर परिवार के साथ दूसरे देश के लिए चलना शुरू हुए थे।अब जब टीवी चैनलों पर लोगों को अपने परिवारों के साथ पैदल ही देश के विभिन्न हिस्सो जैसे दिल्ली, राजस्थान, पंजाब आदि से अपने घरो के लिए सपरिवार पैदल चलते देखता हूं तो विभाजन के वक्त लोगों की आवाजाही का अनुमान लगता है। तब की तकलीफे समझ आती है।।
देख रहा हूं कि लोग सिर पर एक बोरी में खाना पकाने का सामान लेकर पैदल ही घरों की ओर चल पड़े हैं। वे नंगे पैर गोद में बच्चा लिए पत्नी के साथ चलते जा रहे हैं। न तो उन्होंने कुछ दिनों से खाना खाया है और ना ही कुछ और। छोटे बच्चों को कोई दवाई तक तो दूर वे दूध तक के लिए मोहताज है। अनेक लोग कह रहे हैं कि भूखे रहकर मरने से घर जाकर मरने के सिवाए उनके पास कोई और विकल्प नहीं है।मैं समझ नहीं पा रहा हूं, आश्चर्य हो रहा है कि सरकार ने इस बात की कल्पना ही नहीं की। अनुमान ही नहीं लगाया कि लोग कैसे व्यवहार करेंगे। बिना सोचे, बिना अनुमान लगाए ही लोगों की आवाजाही पर अचानक रोक लगा दी कि जहां वे अभी दिहाड़ी मजदूर की तरह रह रहे है उन्हें बिना किराया अपने घरों में कौन रखेगा? और बिना रोजगार के वे अपने लोगों का पेट कैसे भरेंगे? आम जनता की इतनी ज्यादा दुर्गति होगी इसकी शायद किसी ने कभी कल्पना भी नहीं की थी। आज किसी से सुना कि सरकार ने दिल्ली की सोचकर वहां से जाने वाले लोगों के पलायन पर रोक लगाई।
हम बिना तैयारी के प्रतिबंध लगा रहे हैं। किसी ने यह नहीं सोचा कि जिन लोगों को सड़को व राजमार्ग पर रोका जाएगा तो उन्हें कहां टिकाया जाएगा। जिस देश में हर शहर में पर्याप्त वेंटीलेटर तक न हो वहां इतनी बड़ी तादाद में लोगों को जबरन क्वारंटाइन करने की बात कही जाए यह बात गले नहीं उतरती है। मुझ यह सब देखकर डर व फिक्र इस बात की हो रही है कि इतनी बड़ी तादाद में ये लोग सड़कों पर अपना जीवन केसे बिता रहे होंगे।जरा इस बात की कल्पना कीजिए कि जब हर सुबह पूरे परिवार को शौचालय जाने की जरूरत महसूस होती है तब वे लोग क्या करेंगे, कहां जाएंगे। इस प्राकृतिक जरूरत को कोई रोक नहीं सकता है। यह तय है कि वे लोग सड़कों के किनारे ही मल त्याग करेंगे और उससे भी बड़ी समस्या उसके बाद सफाई करने की है। यहां तो वे लोग अपने शरीर को साफ नहीं करेंगे अथवा अगर कुछ कि सोचे तो अपने हाथ कैसे धोएंगे?
जिस देश की राजधानी तक में खाना बनाने के लिए पीने योग्य पानी लेने के लिए लोग शाम को खड़े होकर घंटों टैंकर के इंतजार में लाइन में लगते हो वहां उन्हें सड़को के किनारे पीना तो दूर रहा हाथ धोने तक के लिए पानी कैसे मिल जाएगा। वैसे भी जिस देश को आजादी के सात दशको बाद भी सरकार यह शिक्षा देने वाले विज्ञापन देती हो कि लोगों शौच जाने के बाद हाथ घोए वहां इन हालात में किस स्तर पर लोग खुद को ही गदंगी का शिकार बना रहे होंगे। कई दशक पहले एक बार किसान नेता टिकैत ने दिल्ली के बोट क्लब पर प्रदर्शन करने के बाद अपने जाट समर्थको के साथ डेरा डाल दिया था। खाना तो उनका गावों से आ जाता था मगर सुबह खुद को शौच पर इतनी गदंगी फैलाते कि उसकी बदबू के कारण साथ में स्थित उद्योग भवन,कृषि भवन आदि के दफ्तरो में उसकी गदंगी के कारण कामकाज ही ठप्प हो गया व फिर राजेश पायलट व पुलिस कमिश्नर ने साथ मिलकर उन्हें वहां से आधी रात भगाने की तैयारी की।
कोरोना के सामने जब सरकार बार-बार- साबुन से हाथ धोने को कह रही हो तो पूरे देश में लाखों परिवार स़डकों पर, झुग्गियों में किस स्तर की गदंगी व महामारी फैलाएगे इसकी सहज कल्पना की जा सकती है।टीवी व सोशल मीडिया पर सरकार से सहायता हासिल करने के लिए फोन नंबर आ रहे हैं। मगर सच्चाई कुछ और ही है। तमाम मामलो में देखा गया है कि कुछ सरकारी सहायता के तहत चंद लोगों को ही खाना वे दूसरे सामान के पैकेट बांट दिए जाते हैं व फिर उन लाभार्थियो के बयानो को टीवी पर दिखाकर वाहवाही लूट ली जाती है। न कहीं दावो के मुताबिक घर तक सब्जियां व दवाएं पहुंचाने के व्यवस्था की जा रही है और न ही कहीं लोगों को भरपेट खाना मिल पा रहा है।
यह खाना भी किन हालात में बन रहा है किसी ने इसकी तस्वीरे भेजी है जोकि बुरी तरह से डरा देती हैं। हालांकि अनेक जगहो पर पुलिस वालों व गुरुद्वारो के लोगों को खाना बांटते देखा। पूरा देश व जनता किस हालत व अभाव से गुजर रही है इसकी कल्पना ही बेहद दुख देने वाली है। हालात तो इतने खराब है कि बाजारों में आटा, चावल तक की कमी हो गई है अगर आप किसी की मदद भी करना चाहे तो पर्याप्त मात्रा में आटे व चावल के थैले नहीं मिल रहे हैं। वैसे किसी की मजबूरी का फायदा उठाना हमारी पुरानी आदत रही है। हर आपदा उसको प्रदान करने वाले के लिए गजब की राहत लेकर आती है जबकि आम आदमी तड़पता रह जाता है।

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