शायद नहीं! यदि समझा होता तो भारत में भी वह होता जो दुनिया के देश कर रहे हैं। बाकी देशों ने जाना हुआ है कि इस वायरस से तभी बचा जा सकता है जब आबादी में अधिक से अधिक टेस्टिंग हो। क्यों टेस्टिंग? ताकि पता पड़े कि आबादी में कितने संक्रमित हैं? किस रफ्तार में एक से दूसरे व्यक्ति को संक्रमणहो रहा है? किस इलाके, किस प्रदेश में अधिक संक्रमण है और किसमें कम? गरीब में ज्यादा संक्रमण है या अमीर में? पुरूष में अधिक या महिलाओं में? बूढ़ों में ज्यादा या नौजवानों में? आप कह सकते हैं इस सबका जवाब बाकी देशों के अनुभव, आंकड़ों से आया हुआ है। इस कारण सब कुछ जानते है, तय है। ऐसा नहीं मानना चाहिए। इसलिए कि दुनिया में हर दिन नए तथ्य, नए आंकड़े, वायरस की नई-नई चौंकाने वाली प्रवृत्तियों की खबर आ रही है। कल ही अमेरिका में कोविड-19 के कुल आंकड़ों में यह नया नतीजा सुनने को मिला कि काले लोगों के बाद वायरस से बीमार होने वाले आबादी समूह में एशियाई लोग नंबर दो पर हैं। यहीं सिंगापुर से खबर थी कि वहां कोविड-19 पर काबू पाने के बाद वायरस के दुबारा केस आए तो वजह बाहरी मजूदरों (डॉरमेटरी, गरीब-घनी बसावट वाली आबादी) में वायरस का फैलाव है। वहां यह आबादी बांग्लादेश, दक्षिण भारत के लोगों की है। ऐसे ही दक्षिण कोरिया और अमेरिका दोनों जगह से नया डाटा है, जिस अनुसार वायरस के पॉजिटिव मरीजों के ठीक होने के बाद वापिस उनके वायरसग्रस्त हो जाने के मामले बन रहे है।
अपने अनुसार भारत के लिए सर्वाधिक बड़ी, प्रमुख, समझने, जानने वाली बात यह है कि कोविड-19 का वायरस इंसिडीअस याकि महाधूर्त व घातक है। अमेरिकी राष्ट्रपति की सीडीसी डायरेक्टर रेडफील्ड, डब्ल्यूएचओ, डॉ. फौची, चीन-जापान-अमेरिका के तमाम आंकड़ों की रिसर्च से प्रमाणित हुआ है कि यह वायरस उन लोगों से भी दूसरे को संक्रमित हो सकता है, जो एसिम्प्टमैटिक याकि लक्षणरहित हैं। मतलब न खांसी, न छींक, न बुखार पुरी तरह स्वस्थ लगने वाला व्यक्ति इस वायरस को लिए हुए हो सकता है और उससे चुपचाप दूसरे को संक्रमण हो रहा होगा। अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीजेज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन डायरेक्टर रार्बट रेडफील्ड के अनुसार कोरोना से संक्रमित 25 प्रतिशत लोग न लक्षण लिए होते हैं और न बीमार होते हैं फिर भी दूसरों को संक्रमित कर सकते हैं। मतलब वायरस शरीर में बैठा-पहुंचा हुआ है और वह एसिम्प्टमैटिक याकि लक्षणरहित है लेकिन दूसरों में वायरस फैलाने वाला मौन हत्यारा हो सकता है। तभी बिल गेट्स ने एक मेडिकल पत्रिका के अपने लेख में लिखा – एसिम्प्टमैटिक ट्रांसमिशन की हकीकत का अर्थ है कि दुनिया में फैलाव रोक सकना वैसे संभव ही नहीं है, जैसे पिछले वायरसों याकि सार्स (SARS) आदि को रोका जा सका था। क्योंकि पिछले वायरस तो सिम्प्टमैटिक, लक्षणात्मक, रोगकारी लोगों से ट्रांसमिट हुए थे।
इस हकीकत का पहला प्रमाण चीन में फरवरी में ही मिल गया था। वुहान में 20 साल की महिला से परिवार के पांच सदस्यों को कोरोना वायरस ट्रांसफर हुआ लेकिन वह महिला खुद कभी बीमार नहीं हुई। डब्ल्यूएचओ के अनुसार चीन में 75 प्रतिशत लोग जो पहले लक्षणरहित याकि एसिम्प्टमैटिक मिले थे उनमें बाद में सिंपटम, लक्षण डेवलप हुए। तभी पूरी दुनिया में माना जा रहा है कि कोरोना वायरस अभी तक की संक्रमण बीमारियों में सर्वाधिक धूर्त और घातक है। अब यदि ऐसा है तो क्या भारत गलती नहीं कर रहा है, जो लक्षण को आधार बना कर सर्वे-स्क्रीनिंग की एप्रोच से, लक्षण देख, लक्षण वाले संक्रमित लोगों को खोज कर, इलाके-बस्ती को अलग-थलग याकि हॉटस्पॉट बना कर, पॉजिटिव मरीज को क्वरैंटाइन में रखने की रणनीति में वायरस को रोक डालने की गलतफहमी में है? केवल लक्षण वालों की ही टेस्टींग करना, उन्ही पर फोकस तो बहुत घातक होगा।
फिर समझें कि कोविड-19 क्या है? पहली बात यह धूर्त, चालबाज, इंसिडीअस, मौन हत्यारा वायरस है। यह व्यक्ति से व्यक्ति पिछले तमाम वायरसों के मुकाबले सर्वाधिक तेज रफ्तार फैलता है। फैलता उनसे भी है जो खुद बीमार नहीं हैं, लक्षण नहीं लिए हुए हैं लेकिन उनके शरीर में घुसा-दबा हुआ है। ऐसे मौन वायरसधारी लोगों के टेस्ट से भी मालूम नहीं होगा कि वे पॉजिटिव हैं या नहीं। संभव है टेस्ट के सप्ताह, दस दिन बाद लक्षणसहित वह पॉजिटिव मरीज बने। आंकड़ों के आधार पर वैज्ञानिकों का बताना है कि ऐसे वायरसधारी एसिम्प्टमैटिक, लक्षणरहित लोग लगातार दूसरों को वायरस ट्रांसफर करते रह सकते हैं और यह काम उनके सिम्प्टमैटिक बनने याकि लक्षण दिखलाने से 48 घंटे पहले अधिकतम हो सकता है! मेडिकल विशेषज्ञों के अनुसार प्रीसिम्प्टमैटिक लोग सर्वाधिक बड़ी संख्या में वायरस को बड़ी मात्रा में निकालते याकि फैलाते हैं। लक्षण से पहले की स्टेज में व्यक्ति से वायरस बहुत ज्यादा ट्रांसमिट होता है। ध्यान रहे लक्षण प्रकट होने का काम औसत पांच दिन लेता है। एक और भयावह बात बच्चे भी एसिम्प्टमैटिक, लक्षणरहित वायरस संक्रमित करने वाले वाहक हो सकते हैं। पिट्सबर्ग मेडिकल सेंटर में बाल संक्रमण के विशेषज्ञ जॉन विलियम के अनुसार बच्चों में एसिम्प्टमैटिक इंफेक्शन आम है। 10-30 प्रतिशत मामले हो सकते हैं। जबकि माना जाता रहा है कि कोरोना से बच्चे सबसे कम बीमार हुए हैं।
सो, चीन से निर्यातित कोरोना वायरस की प्रकृति सचमुच बहुत धूर्त और भयावह है। क्या भारत में यह सब हम समझ रहे हैं? नहीं। लेकिन दुनिया ने समझा है। याकि अमेरिका, ब्रिटेन, स्पेन, इटली, जर्मनी, सिंगापुर, ताईवान आदि सभी देशों ने इसे समझा है। तभी इनकी एप्रोच है कि सिम्प्टमैटिक या एसिम्प्टमैटिक सबके टेस्ट करो। अस्पताल में आए मरीज को नहीं, बल्कि आम आबादी के बीच टेस्ट करो। लोगों को टेस्ट कराने की सुविधा सुलभ हो और आबादी के अनुपात में प्रति हजार या प्रति दस लाख लोगों के अनुपात में टेस्ट करके असलियत लगातार जानी जाती रहे कि संक्रमण कितना फैल गया है, किस रफ्तार में फैल रहा है और तगड़े मेडिकल बंदोबस्तों के साथ उसे दबाने, खत्म करने का काम किस रफ्तार में चल रहा है। वायरस की रफ्तार, टेस्ट की रफ्तार और इलाज की रफ्तार में संतुलन बना कर महामारी को रोकना तमाम देशों की बेसिक एप्रोच है। इस तथ्य को नोट करके रखें कि जिन देशों में वायरस के खिलाफ सर्वाधिक गंभीर लड़ाई हो रही है उनमें मरीजों की बढ़ती संख्या पर रोक, कर्व घटने के बावजूद जर्मनी की सरकार हो या सिंगापुर की या न्यूयॉर्क का गवर्नर कोई यह नहीं कह रहा है कि हम, हमारा राज्य या हमारे जिले कोरोना मुक्त हो गए। दुनिया के चार देश दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, ताईवान और जर्मनी वायरस को काबू में रखने की वाहवाही लिए हुए हैं लेकिन जर्मनी की मर्केल ने परसों आर्थिकी को खोलने की घोषणा करते हुए भी कहा कि सघन टेस्टिंग लगातार होती रहेगी। न्यूयॉर्क और अमेरिका के तमाम गवर्नर वैक्सीन आने तक स्थायी टेस्टिंग व्यवस्था बनवाने में दिन-रात एक किए हुए हैं। इनमें से किसी देश में यह नहीं हुआ जो सर्वे याकि स्क्रीनिंग से यह जानने में समय बरबाद नहीं किया कि आपके घर में कोई खांसी, बुखार, सांस की तकलीफ, लक्षण लिए हुए मरीज तो नहीं है!
जबकि भारत में अभी भी यहीं हो रहा है। जाहिर है भारत ने कोरोना को वैसे नहीं समझा है, जैसे दुनिया ने समझा हुआ है।

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