पिछले कुछ समय- खासकर पिछले एक महीने में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) को लेकर कई विवाद उठे हैं। अब इस मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री और संयुक्त राष्ट्र में लंबे सय तक भारत के प्रतिनिधि रह चुके शशि थरूर ने एक अहम बात कही है।
उनका कहना है कि अगर आज डब्लूएचओ की भूमिका सीमित हो गई है, तो ये सीमाएं उन्हीं देशों ने लगाई हैं, जो आज उसकी आलोचना कर रहे हैं। फिलहाल यह भी सच है कि दुनिया भर की सरकारें कोरोना महामारी से निपटने के लिए डब्लूएचओ से मदद ले रही हैं। संयुक्त राष्ट्र की यह एजेंसी वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए सुझाव दे रही है, वैज्ञानिकों का डेटा जमा कर रही है और जहां विशेषज्ञों की जरूरत है, उन्हें मुहैया करा रही है।
मगर अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने डब्लूएचओ का चंदा रोकने का एलान कर दिया है। उन्होंने डब्लूएचओ पर चीन का पक्ष लेने और महामारी को ‘बेहद बुरी तरह से संभालने’ का आरोप लगाया है। जापान में भी इस संस्था पर निशाने साधे गए हैँ। वजह शायद आज की भू-राजनीतिक स्थितियां हैं। पिछले जनवरी के अंत में डब्लूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस एधानोम घेब्रेयसस ने बीजिंग में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की थी और संक्रमण को रोकने के लिए चीन के प्रयासों की सराहना की थी। तभी से वे और डब्लूएचओ कुछ देशों और विशेषज्ञों के निशाने पर आ गया।
आधार इस बात को बनाया गया कि चीनी अधिकारी कोरोना के बारे में जानकारी देने वालों पर अफवाहें फैलाने के आरोप में कार्रवाई कर रहे थे, और इस बात की डब्लूएचओ ने उपेक्षा की। जबकि कई जानकार मानते हैं कि डब्लूएचओ को शायद डर था कि अगर वह चीन को किसी भी रूप में चुनौती देता है, तो चीन संवाद बन कर सकता है। उस हाल में चीन अंतरराष्ट्रीय समुदाय से जरूरी जानकारी साझा करना बंद कर देता या फिर डब्लूएचओ के रिसर्चरों को देश में ही नहीं आने देता।
बहरहाल, इससे कई देशों को मौका मिल गया। डब्लूएचओ की शुरुआत 1948 में हुई। इसे दो तरह से धन मिलता है। पहला, एजेंसी का हिस्सा बनने के लिए हर सदस्य को एक रकम चुकानी पड़ती है। यह रकम सदस्य देश की आबादी और उसकी विकास दर पर निर्भर करती है। दूसरा है चंदा। यह धन सम़ृद्ध देशों की सरकारें भी देती हैं और चैरिटी संस्थान भी। यही रकम अब अमेरिका ने रोक दी है।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें