कोरोना वायरस से लड़ाई में केंद्र सरकार को मेडिकल उपकरण मंगा कर राज्यों तक पहुंचाने के अलावा एक अहम काम राज्यों को आर्थिक मदद देने का था। उस बारे में केंद्र ने अभी तक कोई फैसला नहीं किया है। सोमवार को प्रधानमंत्री की मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बैठक में इस बारे में कई राज्यों ने अपनी बात रखी। इससे पहले वाली बैठक में भी कांग्रेस और दूसरे विपक्षी राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने पैकेज की मांग की थी। पर राज्यों के लिए आर्थिक पैकेज को लेकर सरकार कुछ नहीं कह रही है। यह कम हैरानी की बात नहीं है कि एक लाख 70 हजार करोड़ रुपए का गरीब कल्याण पैकेज घोषित करने के करीब एक महीने बाद तक सरकार ने कोई दूसरा पैकेज घोषित नहीं किया है।
लगातार इस बात की मांग हो रही है कि सरकार राज्यों के लिए आर्थिक पैकेज की घोषणा करे। लघु व मझोले उद्योगों के लिए राहत की घोषणा करे। उद्योगों व कारोबारियों के लिए पैकेज का ऐलान करे। पर सरकार का एक ही जवाब है कि इस पर विचार हो रहा है। कुल मिला कर सरकार अभी मामले को टाले रखने के मूड में दिख रही है। इसका एक कारण तो यह समझ में आता है कि सरकार आर्थिक गतिविधियों को थोड़ा बहुत पटरी पर लौटने देने का इंतजार कर रही है। सरकार को नीति आयोग, आईसीएमआर और इस तरह की कुछ और संस्थाओं की ओर से दी गई आधी अधूरी सलाहों पर लगता है कि भरोसा है और वह इंतजार कर रही है कि कोरोना का मामला थम जाएगा और कामकाज शुरू हो जाएंगे तो फिर किसी तरह के खास पैकेज की जरूरत नहीं पड़ेगी। वैसे भी अगर राज्योंने अच्छा काम कर दिया तो उनको श्रेय मिलेगा, जो राजनीतिक रूप से नुकसानदेह हो सकता है। इसलिए राज्यों के लिए पैकेज का मामला टल रहा है।

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