ऐसा लग रहा है कि भारत में केंद्र और राज्यों की सरकारें पहले दिन से किसी न किसी तरह से कोरोना वायरस की जांच रोकने का प्रयास कर रही हैं। हर प्रेस कांफ्रेंस में आईसीएमआर के नुमाइंदे का यहीं कहना रहा है कि ‘हमारे पास जांच की क्षमता है पर हम करेंगे नहीं क्योंकि इसकी जरूरत नहीं है’। अब यह बात समझ में नहीं आने वाली है कि जब सारी दुनिया कोरोना वायरस से लड़ने का सबसे अहम उपाय जांच को मान रही है तो हम क्षमता होने के बावजूद ज्यादा जांच क्यों नहीं करेंगे। और चंकि आईसीएमआर ऐसा कह देती है इसलिए राज्यों को भी कम जांच करने का बहाना मिल जाता है। सो, किसी न किसी तरीके से जांच की संख्या को सीमित रखा गया है ताकि संक्रमितों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं बढ़ने पाए।
यहीं तकनीक निजी लैब्स में कोरोना की जांच को लेकर आजमाई जा रही है। देश भर के निजी अस्पताल इस बात से परेशान हैं कि उनको जांच करने की मंजूरी तो दे दी गई पर दूसरे तरह से उनके हाथ बांध दिए गए। सारे देश में कोरोना से जुड़ी हर बात के लिए सीधे केंद्र सरकार निर्देश जारी कर रही है पर इस मामले में केंद्र ने चुप्पी साध ली। पहले निजी लैब्स में जांच की इजाजत दी और उसके बाद गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में डाल दी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अभी तक केंद्र ने कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं किया है। आईसीएमआर ने निजी लैब्स में जांच की दर साढ़े चार हजार रुपए तय की तो उधर कर्नाटक सरकार ने कहा कि जांच के साढ़े 22 सौ रुपए से ज्यादा नहीं मिलेंगे। इससे निजी लैब्स अलग परेशान हुए हैं। भुगतान का संकट अलग है। निजी लैब्स को टेस्ट किट आदि के लिए अग्रिम भुगतान करना पड़ रहा है, जबकि उनका भुगतान बाद में होना है। ऐसे में जो छोटे लैब्स हैं उनके लिए बहुत मुश्किल हो रही है। तभी बुधवार तक कुल जांच में निजी लैब्स की हिस्सा 17 फीसदी ही था।

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