केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के पांचवें चरण को अनलॉक-एक नाम दिया है। कहा जा रहा है कि जिस तरह से चार चरण में लॉकडाउन रहा उसी तरह तीन चरण में इसे खत्म किया जाएगा। लॉकडाउन का पहला चरण सबसे सख्त था और दूसरे चरण से छूट मिलने लगी थी उसी तरह अनलॉक के पहले चरण में कुछ कम छूट मिलेगी और तीसरे चरण तक जाते जाते सब कुछ खुल जाएगा। यह सबको पता है और अब मीडिया में खबर भी आने लगी है कि लॉकडाउन के पहले चरण की घोषणा से पहले कोई विचार-विमर्श नहीं हुआ था और न कोई खास तैयारी की गई थी। तभी सवाल है कि क्या अनलॉक-एक के पहले कुछ तैयारी हुई है, कोई विचार-विमर्श हुआ है या इसे भी अचानक घोषित कर दिया गया है?
ऐसा लग रहा है कि लॉकडाउन खत्म करने की शुरुआत भी सरकार ने उसी तरह से की है जिस तरह से लॉकडाउन लागू किया था। फर्क सिर्फ इतना है कि लागू करने के समय देश के 130 करोड़ लोगों को सिर्फ चार घंटे का समय दिया गया था और लॉकडाउन हटाने के लिए आठ दिन का समय दिया गया है। काश, यह आठ दिन पहले दिया गया होता तो कई चीजें बदली हुई होतीं। लाखों-करोड़ों मजदूरों और गरीबों ने जो कष्ट झेला है उन्हें वह नहीं झेलना पड़ता। बहरहाल, इस फर्क के अलावा दोनों फैसलों में कोई ज्यादा अंतर नहीं दिख रहा है।
लॉकडाउन के चौथे चरण तक आते आते सरकार ने अनेक चीजों में छूट दे डाली थी। ट्रेनें चलने लगीं थीं और यहां तक कि विमान सेवा भी शुरू हो गई थी। दोनों जगह सोशल डिस्टेंसिंग के सामान्य नियम का भी पालन नहीं किया जा रहा है।
दो गज दूरी की जरूरत के हिसाब से कोई सीट खाली नहीं छोड़ी जा रही है। इसके अलावा गैर जरूरी सामानों की दुकानें भी खुल गई थीं और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म से भी गैर जरूरी सामानों की आपूर्ति शुरू हो गई थी। सो, कह सकते हैं कि अनलॉक-एक आखिरी चरण यानी चौथे चरण के लॉकडाउन का ही विस्तार है। इसमें एक फर्क यह है कि राज्यों की सीमा खोल दी गई है और राज्यों के अंदर बिना पास-परमिट के आने जाने की इजाजत दे दी गई है। इसके अलावा बाकी सारी चीजें वैसी ही हैं, जैसे लॉकडाउन के चौथे चरण में थीं। आठ जून से शॉपिंग मॉल्स, रेस्तरां वगैरह भी खुल जाएंगे।
अब सवाल है कि क्या सरकार इसके लिए पूरी तरह से तैयार है। सारी चीजें खुलने और सारी सेवाएं चालू होने के बाद संक्रमण की संख्या बढ़ने पर जिस किस्म की मेडिकल तैयारी की जरूरत है क्या सरकारों के पास वह है। इसे इस तथ्य की रोशनी में देखने की जरूरत है कि भारत में एक लाख 90 हजार से ज्यादा जो मामले हैं इसमें 90 हजार के करीब मामले चौथे चरण के लॉकडाउन के पीरियड के हैं। यानी 18 से 31 मई के बीच 90 हजार के करीब मामसे आए, जब सरकार ने सबसे ज्यादा छूट वाला लॉकडाउन लागू किया। एक आंकड़ा यह भी है कि करीब डेढ़ लाख मामले सिर्फ मई के महीने में आए हैं। उससे पहले दो महीने में सिर्फ 40 हजार के करीब मामले आए थे, जो एक महीने में तीन गुने से ज्यादा हो गए। अगर संक्रमण बढ़ने की यहीं रफ्तार रही तो जून के अंत में संक्रमितों की पांच लाख या उससे ज्यादा होगी। अगर इनमें से 20 फीसदी लोगों को भी मेडिकल केयर की जरूरत पड़ी तो क्या होगा।
तभी यह हैरानी की बात है कि सरकार ने ऐसे समय में ताला खोलने का फैसला किया है, जब देश में सबसे तेजी से मामले बढ़ रहे हैं। यह भी हकीकत है कि दुनिया में बड़ी आबादी वाले सिर्फ सात देशों ने टोटल लॉकडाउन किया था। उनमें से भारत इकलौता देश है, जहां लॉकडाउन के बावजूद संक्रमण के मामले बढ़ते गए हैं। बाकी देशों में अब संक्रमण के मामले घट रहे हैं और इसलिए वे अपने यहां लॉकडाउन हटा रहे हैं। पर भारत में संक्रमण बढ़ रहा है। हर दिन औसतन आठ हजार से ज्यादा केसेज अभी आ रहे हैं। और इसलिए यह संभव नहीं लग रहा है कि सरकार इतने सारे संक्रमितों की कांटैक्ट ट्रेसिंग कर पाएगी। हर दिन आने वाले आठ हजार या उससे ज्यादा संक्रमितों के संपर्क में आए सारे लोगों की ट्रेसिंग और उनकी जांच, क्वरैंटाइन या इलाज की व्यवस्था मुश्किल है।
इसी से जुड़ा दूसरा संकट यह है कि भारत में कम्युनिटी ट्रांसमिशन फैलने का खतरा आ गया है। इसका कारण यह है कि संक्रमितों की संख्या ज्यादा बढ़ने के बाद से उनके संक्रमण के सोर्स का पता लगाना मुश्किल है और वे कितने लोगों के संपर्क में आए यह भी पता लगाना मुश्किल है। लाखों मजदूर पैदल चल कर या ट्रेनों, बसों, ट्रकों में भर कर गए हैं। उन सबकी जांच भी मुश्किल है। अब जबकि मॉल्स, रेस्तरां के साथ साथ सभी राज्यों की सीमा खुल रही है और सारे निजी व सरकारी दफ्तर खुल रहे हैं तो यह संक्रमण और तेज होगा और कांटैक्ट ट्रेसिंग व सोर्स का पता लगाना उतना ही मुश्किल होता जाएगा। उसके बाद निश्चित रूप से संक्रमण बढ़ने की दर और तेज होगी। इससे संकट बढ़ेगा, पैनिक बढ़ेगा और मेडिकल सुविधाएं उसी अनुपात में कम होती जाएंगी।

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