रविवार, 7 जून 2020

अंधेरे में हाथ मारना

कोरोना वायरस के संक्रमण से दुनिया को जो परेशानियां हुई हैं, उसके लिए बेशक एक नए वायरस का आना और उसका तेजी से फैलते जाना एक प्रमुख कारण रहा है। अब तक इसका कोई इलाज नहीं ढूंढा जा सका है और इससे दुनिया में भय का माहौल बना हुआ है। बहरहाल, इस भय और भ्रम को बढ़ाने में विशेषज्ञों और राजनेताओं के अपने भ्रम ने भी कोई कम भूमिका नहीं निभाई है।  

कई राजनेताओं को नई महामारी में अपने लिए वोटों के ध्रुवीकरण की संभावना नजर आई। तो उन्होंने अपने समर्थकों के जरिए जानबूझ कर गलतफहमियां फैलाईं। विशेषज्ञ चीजों को समझने में लगे रहे हैं, लेकिन कयास लगाने के क्रम में उन्होंने भी लोगों को दिग्भ्रमित किया है। इसका ताजा मामला दुनिया की दो प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल्स- द लांसेट और न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन (एनईजेएम) में प्रकाशित दो विवादित अध्ययन हैं। इन अध्ययनों के लेखकों ने कोविड-19 पर अपना अनुसंधान वापस ले लिया है।

अपने आकलन में उन्होंने एक निजी कंपनी से लिए गए जिस डेटा का इस्तेमाल किया, उसकी सच्चाई को प्रमाणित नहीं कर पाने के बाद उन्होंने यह दावा वापस लिया। दोनों अध्ययनों में लेखक रहे अमेरिका के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के मंदीप मेहरा समेत अन्य वैज्ञानिकों ने अब कहा है कि उनकी टीम के सदस्यों को अनुसंधान के लिए अंदरूनी डेटा तक पहुंच नहीं दी गई। दोनों अध्ययनों में अमेरिका के इलिनोइस में स्थित निजी कंपनी सर्जीस्फीयर कॉरपोरेशन से लिए डेटा को आधार बनाया गया था। उस कंपनी के सीईओ सपन देसाई और मेहरा दोनों अनुसंधान पत्रों में लेखक रहे हैं।

द लांसेट का अध्ययन 22 मई को प्रकाशित हुआ था, जिसमें दावा किया गया कि छह महाद्वीपों से अस्पताल में भर्ती 96,000 कोविड-19 मरीजों के डेटा का निष्कर्ष है कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और क्लोरोक्वीन के सेवन से मौत के मामले बढ़ गए। इसकी वजह से दिल की धड़कन में परिवर्तन होने जैसे मामले देखे गए। इससे पहले ‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ में एक मई को प्रकाशित अध्ययन में कहा गया था कि कोविड-19 के कारण अस्पताल में भर्ती मरीजों में मौत का जोखिम पहले से मौजूद हृदय की किसी बीमारी से जुड़ा हुआ है। इसके आधार पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने कोरोना के इलाज संबंधी परीक्षण में इन दवाओं के इस्तेमाल पर रोक लगा दी। अब चूंकि वो अध्ययन वापस ले लिए गए हैं तो इन दवाओं को लेकर परीक्षण फिर शुरू हुए हैं। मगर इस बीच उठे अनेक सवाल अब भी अनुत्तरित लगते हैं।


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