भारत को चीन के साथ अपनी लड़ाई ऐसा लग रहा है कि अब अकेले की लड़नी होगी। अमेरिका मदद करने नहीं आ रहा है। रूस की मदद भारत पहले ही गंवा चुका है। सोचें, यह कूटनीति की कैसी विफलता है। अमेरिका के विरोध के बावजूद भारत ने रूस से मिसाइल रोधी प्रणाली एस-400 खरीदने का फैसला किया और वह रूस इस संकट के समय चीन के साथ अपनी दोस्ती दिखा रहा है। रूस के साथ हुए सौदे से अमेरिका नाराज जरूर था पर ऐसा लग रहा था कि चीन के प्रति जैसा पूरे संसार की सोच बनी है उसमें वह भारत की मदद करेगा। पर ऐसा लग रहा है कि वह या तो चुप्पी साधे रहेगा या पंचायत की बात करेगा। ऐसा नहीं होगा कि वह चीन को दबाने में भारत की मदद करेगा। इसका पहला संकेत 15 मई की रात के बाद ही मिलने लगा था। 15 मई की रात को चीन के सैनिकों के साथ भारतीय सेना की झड़प हुई। भारत के 20 जवानों के मारे जाने की खबर आई लेकिन इस पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप या उनके विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कुछ नहीं कहा। हैती, घाना, प्यूर्टो रिको जैसे देशों के सीमा विवाद में अमेरिकी विदेश मंत्री बयान देते रहते हैं पर भारत और चीन के बीच हुई हिंसक झड़प को लेकर वे मुंह में दही जमा कर बैठ गए। अमेरिका की ओर से व्हाइट हाउस के एक निचले दर्जे के अधिकारी ने बयान दिया और कहा कि अमेरिका नजर रखे हुए है और चाहता है कि दोनों देश शांतिपूर्ण तरीके से अपना मसला निपटाएं। सोचें, अमेरिका थोड़े दिन पहले तक भारत को उकसा रहा था और अब शांति की बात कर रहा है।
असल में यह बदलाव अनायास नहीं है। ऐसा लग रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति चुनाव तक चीन के साथ पंगा टालने का फैसला किया है। तभी दोनों देशों के बीच विमानों की उड़ान को लेकर समझौता हो गया। दोनों देशों ने तय किया है कि हर हफ्ते चार उड़ानें अमेरिका से चीन जाएंगी और चार उड़ाने चीन से अमेरिका। इसके अलावा विवाद के एक बड़े मुद्दे पर ट्रंप ने कदम पीछे खींच लिए हैं। ट्रंप प्रशासन ने चीन की संचार कंपनी हुआवे पर से पाबंदी हटा ली है और अमेरिकी कंपनियों को हुआवे के साथ मिल कर 5जी का नेटवर्क बनाने की इजाजत दे दी है। यह बहुत बड़ा बदलाव है।
इस बात को जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन के खुलासे से जोड़ देते हैं तो तस्वीर और साफ हो जाती है। बोल्टन ने खुलासा किया है कि ट्रंप ने दोबारा राष्ट्रपति बनने के लिए चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग से मदद मांगी है। बोल्टन ने अपनी आने वाली किताब ‘द रूम व्हेयर इट हैपेंडः अ व्हाइट हाउस मेमायर’ में लिखा है कि ट्रंप ने अपने सहयोगियों को चीन के हाथों बेच दिया, ट्रंप ने शी को चीन के इतिहास का सबसे महान नेता बताया और दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने के लिए शी की मदद मांगी। इसमें सहयोगियों को चीन के हाथों बेचने वाली बात भारत को खास तौर से नुकसान पहुंचाने वाली है।

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