बुधवार, 24 जून 2020

राज्यसभा में गणित बदलने का मतलब

राज्यसभा के ताजा चुनावों के बाद संसद के उच्च सदन कि गणित बदल गया है। छह साल में पहली बार भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के सांसदों की संख्या तीन अंकों में पहुंची है। हालांकि बहुमत अब भी बहुत दूर है पर भाजपा और एनडीए दोनों की ताकत बढ़ी है। भाजपा के लिए राज्यसभा में ताकत बढ़ाना कितना अहम है उसे इस बात से समझा जा सकता है कि उसने कांग्रेस, टीडीपी, समाजवादी पार्टी जैसी कई पार्टियों के राज्यसभा सांसदों से इस्तीफा करा कर उनको अपने साथ जोड़ा है। इस बार के चुनाव में भी भाजपा ने सारे उपाय करके मध्य प्रदेश, गुजरात और मणिपुर में सीटें बचाईं या अतिरिक्त सीट हासिल की।

अब राज्यसभा में भाजपा की अपनी 84 सीटें हो गई हैं। यह मुख्य विपक्ष कांग्रेस की सीटों से दोगुनी से ज्यादा संख्या है। लंबे समय के बाद पक्ष और विपक्ष के बीच सीटों का इतना बड़ा अंतर आया है। इस साल के अंत तक यह अंतर और ज्यादा हो जाएगा। नवंबर में उत्तर प्रदेश की दस सीटों और उत्तराखंड की एक सीट का चुनाव होना है। इन 11 सीटों में से भाजपा को दस सीटें मिलेंगी। उसके चार राज्यसभा सांसद रिपीट होंगे। इसका मतलब है कि उसे छह सीटों का फायदा होगा और उसकी संख्या 90 से ऊपर चली जाएगी। उसके बाद भाजपा का प्रयास अपनी संख्या को एक सौ से ऊपर ले जाने का होगा। 

वैसे तो जब एनडीए की राज्यसभा में इतनी ताकत भी नहीं थी तब भी उसने कश्मीर का विधेयक पास कराया और नागरिकता कानून में भी संशोधन करा लिया। कांग्रेस और कुछ अन्य पार्टियों को छोड़ कर ज्यादातर पार्टियां और नेता हमेशा भाजपा के बनाए इस नैरेटिव के जाल में फंस जाते हैं कि उसकी सरकार जो कर रही है वह देशभक्ति है और इसका विरोध करना गद्दारी कहलाएगा। कश्मीर के विशेष राज्य के दर्ज को बदलने और राज्य के बंटवारे के मामले में भी यहीं हुआ और नागरिकता के मसले पर भी यहीं हुआ। पार्टियों ने आगे बढ़ कर सरकार के प्रस्ताव का समर्थन किया।

अब सरकार को अर्थव्यवस्था से जुड़े कई बदलाव करने हैं। सरकार ने आपदा को अवसर बनाते हुए श्रम कानूनों से लेकर कृषि कानून, आवश्यक वस्तु कानून सहित कई बदलाव किए हैं। इनके अध्यादेश जारी हो चुके हैं और अगले सत्र में इन्हें कानून बनाना है। इन आर्थिक मसलों पर सरकार का विरोध हो सकता है। लेकिन उससे पहले ही सरकार ने अपनी ताकत इतनी बढ़ा ली कि अब कांग्रेस, कम्युनिस्ट और कुछ समाजवादी विचारधारा की पार्टियों के विरोध का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। यहां तक तो ठीक है। इसके बाद माना जा रहा है कि एनडीए की बढ़ी हुई ताकत संविधान के कुछ अन्य प्रावधानों को बदलने के काम आ सकती है। जैसे समान नागरिक संहिता का विधेयक लाने की चर्चा काफी समय से है और जनसंख्या नियंत्रण के कानून की भी चर्चा चल रही है।

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