बुधवार, 24 जून 2020

सरकारी योजनाओं की ऑडिट जरूरी

छह साल पहले नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने पहले कार्यकाल के पांच साल में दर्जनों योजनाओं की शुरुआत की। भाजपा के नेताओं ने कई बार बड़े गर्व से बताया कि प्रधानंमत्री ने 90 के करीब नई योजनाओं की शुरुआत की है। इनमें से ज्यादातर योजनाएं पहले कार्यकाल के पहले या दूसरे साल में ही शुरू हो गई थीं। इसका मतलब है कि उनके पांच या छह साल हो गए हैं। सो, इन सारी योजनाओं की स्वतंत्र रूप से ऑडिट की जानी चाहिए और लोगों के सामने यह सचाई आनी चाहिए कि इनसे क्या हासिल हुआ है। ये योजनाएं कितनी सफल हुईं, इनसे कितने लोग लाभान्वित हुए और इन पर कितना खर्च हुआ।

इसकी जरूरत इस वजह से लग रही है कि एक तो इन योजनाओं के पांच साल से ज्यादा हो गए हैं इसलिए इनकी सफलता-विफलता का आकलन होना चाहिए। दूसरे, पिछले काफी समय से इन योजनाओं की चर्चा नहीं हो रही है इसलिए भी जरूरी है कि इनकी खोज खबर ली जाए और तीसरे, हाल में एक योजना की ऑडिट हुई है, जिसके चौंकाने वाले नतीजे आए हैं। पिछले दिनों भारत सरकार ने खुद ही सांसद आदर्श ग्राम योजना की ऑडिट कराई। एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी की अध्यक्षता में एक लंबी चौड़ी टीम बनाई गई थी, जिसने 120 गांवों में जाकर मुआयना किया और वहां के लोगों से बात करके एक रिपोर्ट बनाई है, जिसके मुताबिक सांसद आदर्श ग्राम योजना लगभग पूरी तरह से फेल हो गई है।

भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय ने पांचवें कॉमन रिव्यू मिशन के तहत इस योजना की जांच कराई। इसकी टीम ने आठ राज्यों के 21 जिलों में जाकर 120 गांवों का आकलन किया। इसके अध्ययन की रिपोर्ट कहती है कि पिछले पांच साल के समय में इन गांवों की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि अगर यह योजना इसी रूप में चलती रही तो इससे कुछ हासिल नहीं होगा। इसके मुताबिक ज्यादातर सांसदों ने सांसद आदर्श ग्राम योजना को आगे बढ़ाने में रूचि नहीं ली। उन्होंने सांसद निधि का पैसा इससे जुड़ी योजनाओं पर खर्च नहीं किया।

सोचें, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना की शुरुआत की थी और उन्होंने खुद भी एक गांव गोद लिया था। इसके बावजूद किसी सांसद ने आदर्श गांव बनाने में दिलचस्पी नहीं ली। इस बात को लेकर हैरानी इसलिए भी है कि सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के अपने लोकसभा में 303 सांसद हैं और राज्यसभा में भी उसके सांसदों की संख्या कांग्रेस से दोगुनी हो गई है। पिछली लोकसभा में भी भाजपा के 284 सांसद थे। प्रधानमंत्री की अपील के बावजूद भाजपा के सांसदों ने भी आदर्श ग्राम योजना को आगे नहीं बढ़ाया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिन योजनाओं में सांसदों या जन प्रतिनिधियों को नहीं जोड़ा गया और जिन्हें लेकर पार्टी अनुशासन या पार्टी नेतृत्व की चिंता नहीं है उनका क्या हस्र हुआ होगा।

जिस तरह पांच साल बीत जाने के बाद भी आदर्श ग्राम विकसित नहीं हुए उसी तरह स्मार्ट सिटी की परियोजना भी अटकी दिख रही है। केंद्र सरकार ने एक सौ स्मार्ट सिटी बनाने का ऐलान किया था। इसकी पड़ताल होनी चाहिए कि पांच साल में कितने शहर स्मार्ट बने हैं, स्मार्ट सिटी के नाते उनमें क्या नई सुविधाएं विकसित की गई हैं, जो उन्हें दूसरे शहरों से अलग करती हैं और उन पर कितना खर्च हुआ है।  इस योजना की ऑडिट हो तो निश्चित रूप से इसकी भी स्थिति आदर्श ग्राम योजना की ही तरह पता चलेगी। तभी पिछले कुछ समय से स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की चर्चा लगभग पूरी तरह से बंद हो गई है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वच्छता मिशन, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना, डिजिटल इंडिया, स्टैंड अप इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, मेक इन इंडिया, प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री ग्राम आवास योजना, डिजीलॉकर, सुकन्या समृद्धि एकाउंट, अटल पेंशन योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा, प्रधानमंत्री कौशल विकास, सॉयल हेल्थ कार्ड योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, मिशन इंद्रधनुष, सागरमाला, हेरिटेज सिटी योजना, सेतु भारतम, बचत लैंप, उन्नत भारत अभियान आदि कुछ ऐसे नाम हैं, जिनके बारे में तब खूब चर्चा हुई थी, जब इन्हें लांच किया गया था। इसके अलावा भी 50 से ज्यादा और योजनाओं की घोषणा की गई थी परंतु उनके बारे में अब चर्चा नहीं होती है।

सरकार को चाहिए कि इन तमाम योजनाओं की ऑडिट कराए। मिसाल के तौर पर सरकार के कौशल विकास योजना को लिया जा सकता है। कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से बड़ी संख्या में मजदूर देश के अलग अलग हिस्सों से अपने अपने राज्य में लौटे हैं। राज्य सरकारें उनके कौशल की सूची बना रही है और उस हिसाब से उनके लिए काम की व्यवस्था करने की तैयारी हो रही है। केंद्र सरकार की कौशल विकास योजना इस काम आ सकती है। पर इस बारे में सुनने को नहीं मिल रहा है। इसकी पड़ताल हो तो पता चलेगा कि यह योजना कितनी कारगर हुई है और आगे इसका क्या भविष्य है।

इसी तरह बीमा या बैंक खातों या मुद्रा योजना जैसी योजनाओं की भी जांच-पड़ताल होनी चाहिए। मुद्रा योजना के तहत कितने लोगों ने क्या काम किया और कितने लोग अब भी कर्ज की किश्तें चुका रहे हैं और कितने लोग पैसे डकार कर गायब हो गए, इसका पता लगाया जाना चाहिए। ध्यान रहे कुछ समय पहले इस बारे में खबरें आई थीं कि इस योजना के तहत जारी किया गया बहुत सारा कर्ज एनपीए हो गया है। जिस तरह से भारत सरकार सदियों से या दशकों से बने ऐसे कानूनों को खत्म कर रही है, जो बेकार हो गए हैं या जिनकी उपयोगिता नहीं है तो उसी तरह सरकार को ऐसी योजनाओं की पड़ताल करनी चाहिए, जिनसे आम लोगों को फायदा नहीं हो रहा है या जिन पर पैसे ज्यादा खर्च हुए हैं और लोगों को लाभ कम हुआ है। इस तरह की योजनाओं की पहचान करके उन्हें बंद कर देना चाहिए।

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