ऐसा कमाल सिर्फ भारत में ही हो सकता है कि समूचा देश जिस समय कोरोना वायरस के संकट से लड़ने में जुटा हुआ है उस समय भारत सरकार के केंद्रीय मंत्रियों की राजनीतिक रैलियां हो रही हैं, चुनाव प्रचार हो रहा है, वोट मांगे जा रहे हैं और विपक्षी पार्टियों पर हमले हो रहे हैं। भारत में अमेरिका और ब्राजील के बाद सबसे ज्यादा तेजी से संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। भारत दुनिया का छठा सबसे अधिक संक्रमित देश है और आंकड़ों से लग रहा है कि एक-दो दिन में ही भारत दो और देशों के पीछे छोड़ कर चौथे स्थान पर पहुंच जाएगा। ऐसे भयावह संकट के समय में सरकार ने आर्थिकी बचाने और अपना खजाना भरने के लिए देश में लॉकडाउन हटाया है। जाहिर है कि यह मजबूरी का फैसला है, जिसमें यह उम्मीद की जा रही थी कि सिर्फ जरूरी काम होंगे। तभी केंद्र सरकार ने भी सारी योजनाएं रोक दी हैं और कहा है कि सिर्फ कोरोना वायरस से लड़ने के लिए घोषित पैकेज से जुड़ी योजनाओं पर ही काम होगा।
तभी सवाल है कि ऐसे समय में राजनीतिक रैलियों की क्या जरूरत है? क्या इन रैलियों से कोरोना वायरस के संक्रमण से लड़ने में मदद मिल रही है? या अगर ये वर्चुअल रैलियां नहीं होंगी तो भारत की कोरोना से लड़ाई कमजोर हो जाएगी? आखिर किस मकसद से इतनी बड़ी संख्या में वर्चुअल रैलियां की जा रही हैं, जिन पर करोड़ों रुपए खर्च होने का अनुमान लगाया जा रहा है? केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बिहार, ओड़िशा और पश्चिम बंगाल में ऐसी वर्चुअल रैली कर चुके हैं। इसमें उन्होंने बिहार में दो-तिहाई सीट जीतने का दावा किया और पश्चिम बंगाल में कहा कि सोनार बंगाल बनाने के लिए चुनाव जीतना चाहते हैं। ऐसा लग रहा है कि अगर भाजपा की चुनावी जीत का दावा नहीं किया जाता तो उन राज्यों में कोरोना की लड़ाई पूरी नहीं होती!
मजेदार बात यह है कि जिस मंच से गृह मंत्री विपक्ष पर हमले कर रहे हैं, भाजपा की भारी-भरकम चुनावी जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं, भाजपा सरकार की उपलब्धियां बता रहे हैं, उसी मंच से और उसी सांस में यह भी कह रहे हैं कि इस रैली का चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है? रत्ती भर भी लेना-देना नहीं है! सोचें, बूथवार ढंग से पार्टी के कार्यकर्ताओं को इकट्ठा किया जा रहा है, हर बूथ पर एलईडी स्क्रीन लगाए जा रहे हैं, पार्टी के सारे स्थानीय नेता अपने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से लोगों से इस वर्चुअल रैली में हिस्सा लेने की अपील कर रहे हैं, रैली में राजनीतिक भाषण हो रहे हैं और फिर कहा जा रहा है कि इसका राजनीति या चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है! या तो भाषण देने वाले नेता खुद को बहुत होशियार समझ रहे हैं या उन्होंने जनता को निरा बेवकूफ समझ रखा है।
दूसरी मजेदार बात इन रैलियों की यह है कि गृह मंत्री ने कहा कि कोरोना वायरस से लड़ने में सभी राज्य सरकारें बहुत अच्छा काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के साथ मिल कर सभी राज्यों की सरकारों ने कोरोना को हराने के लिए पूरी मेहनत की है। सोचें, जब राज्य सरकारें इस समय की सबसे बड़ी आपदा यानी कोरोना वायरस से निपटने की लड़ाई ठीक तरीके से लड़ रही हैं और केंद्र सरकार के साथ सहयोग भी कर रही हैं तो फिर ऐसे समय में उनकी आलोचना करने का क्या मतलब है? कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी समझ से कोरोना वायरस से लड़ाई में सहयोग देने के लिए ही मशहूर अर्थशास्त्रियों रघुराम राजन और अभिजीत बनर्जी से बातचीत की और उनकी राय लोगों के सामने रखी। इस बात के लिए गृह मंत्री ने अपनी वर्चुअल रैली में उनकी आलोचना कर दी।
तीसरी मजेदार बात यह है कि सबसे ज्यादा भाजपा के नेता ही इस मंत्र का पाठ कर रहे हैं कि ‘यह समय राजनीति करने का नहीं है’। राहुल गांधी सड़क पर पैदल चल रहे मजदूरों से मिलने निकल गए तो भाजपा नेताओं के हिसाब से वह राजनीति हो गई, प्रियंका गांधी वाड्रा ने मजदूरों को ले जाने के लिए बस देने की घोषणा कर दी तो वह राजनीति हो गई, किसी ने चीन की सीमा में घुसपैठ का मामला उठा दिया तो वह राजनीति हो गई, किसी ने किसानों को राहत देने की बात कर दी तो वह भी राजनीति हो गई पर बिहार में करोड़ों रुपए के खर्च से राज्य के 72 हजार बूथों पर एलईडी स्क्रीन लगा कर लाखों लोगों को ऑनलाइन भाषण देना राजनीति नहीं है! वह देश की सेवा है! यह भी कम हैरान करने वाली बात नहीं है कि देश की सेवा का यह महती काम चुनावी जीत का दावा किए बगैर या बिना लालू प्रसाद, तेजस्वी यादव और राहुल गांधी की आलोचना किए नहीं होता है।
बहरहाल, कोरोना वायरस की इस आपदा के बीच 75 वर्चुअल रैलियां होने वाली हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह वर्चुअल रैली करेंगे तो कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी भी दिल्ली में रैली करने वाली हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा बिहार में रैली करेंगे। खबर है कि वर्चुअल रैली के जरिए ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बिहार की जनता को संबोधित करने वाले हैं और इस तरह वे भी बिहार चुनाव का बिगुल फूंकने वाले हैं। अभी बिहार को छोड़ कर कहीं तत्काल चुनाव नहीं होने वाले हैं। बिहार में भी चुनाव अक्टूबर-नवंबर के तय समय पर होगा या नहीं यह तय नहीं है। चुनाव होते हैं तो पार्टियों के नेताओं का प्रचार समझ में आता है। तब आचार संहिता के तहत बंध कर सारे नेता एक तरह से भाषण करते हैं। उस समय वे पार्टी विशेष के नेता होते हैं। पर अभी कोई आचार संहिता नहीं लागू है और इसलिए भाषणों में किसी बात की कोई पाबंदी नहीं है। तभी केंद्रीय मंत्रियों का रैली करना और भाषण देना अटपटा और मान्य परंपराओं के संगत नहीं दिख रहा है। वे केंद्रीय मंत्री के रूप में भाषण दे रहे हैं और विपक्षी पार्टियों और विपक्ष की सरकारों की आलोचना कर रहे हैं। यह तो वैसे भी लोकतांत्रिक परंपरा में ठीक नहीं है और कोरोना वायरस के संकट के समय तो बिल्कुल ही नहीं होना चाहिए। लोगों को सावधानी बरतने की सलाह देने वाली सरकार खुद ही लोगों को लापरवाह बनाने वाले काम कर रही है।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें