मंगलवार, 9 जून 2020

गांव, गरीब के लिए समग्र नीति की जरूरत

कोरोना वायरस के बढ़ते संकट के बीच केंद्र सरकार को स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ-साथ गांव और गरीबों के बारे में एक समग्र नीति बनानी चाहिए। मौजूदा समय में इस तरह की नीति या योजना की उतनी ही जरूरत है, जितनी स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार की। पिछले तीन महीने के दौरान देश ने देखा है कि कोरोना वायरस का संकट रोकने के लिए किए गए उपायों ने गरीबों और वंचितों के लिए कितनी मुसीबतें पैदा की हैं। अचानक किए गए लॉकडाउन की वजह से जितनी संख्या में लोगों ने पलायन शुरू किया और जिस तरह सड़कों पर मौतें हुईं वह एक नजीर है। सरकार को आगे कोई भी नीति बनाते हुए इसे ध्यान में रखना होगा कि जो वर्ग शहरों और महानगरों से निकला और सड़कों पर पैदल चल कर या किसी भी साधन से गांव पहुंचा उसका संकट खत्म नहीं हुआ है। उसका असल संकट तो अब शुरू हुआ है। 

तभी गांव और गरीब दोनों को ध्यान में रखते हुए समग्रता से, सुविचारित नीति बननी चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि कोरोना के मरीजों को बचाने के लिए सरकार की बनाई नीतियां दूसरे लाखों लोगों का जीवन संकट में डाल दे। वैसे दूसरे लाखों लोगों का जीवन पहले से संकट में पड़ गया है। रोजगार और काम धंधे ठप्प होने से लाखों लोग आर्थिक मुश्किल में फंसे है, जिन्हें अपना जीवन चलाने का रास्ता नहीं सूझ रहा है। वे बीमार नहीं हैं पर बेकार हैं, बेरोजगार हैं। उन्हें कोरोना नहीं हुआ है पर खाने-पीने का संकट है। उनके बारे में सरकारों को प्रमुखता से विचार करना होगा।

सरकार और विपक्ष दोनों की ओर से ऐसे समूहों के लिए महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना यानी मनरेगा को रामबाण इलाज माना जा रहा है। पर यह कई उपायों में से एक उपाय है। अकेले इससे लाखों-करोड़ों लोगों का जीवन नहीं बचाया जा सकता है। कांग्रेस पार्टी के नेता इस योजना के लिए अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। याद दिला रहे हैं कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना को यूपीए सरकार की विफलता का स्मारक बताया था और कैसे आज इसी योजना के जरिए करोड़ों लोगों का जीवन बचाया जा रहा है। ध्यान रहे केंद्र सरकार ने मनरेगा का बजट बढ़ाया है। बजट में आवंटित 61 हजार करोड़ रुपए से ऊपर 40 हजार करोड़ रुपए का और प्रावधान किया गया है। यानी सरकार इस योजना पर चालू वित्त वर्ष में एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करने वाली है। कांग्रेस के नेता मनरेगा में काम के दिन बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि दो सौ दिन काम दिया जाए। पर सवाल है कि मनरेगा के मजदूरों से क्या काम कराया जाए?

मनरेगा के तहत कामकाज का स्कोप काफी सीमित है। मोटे तौर पर यह नियम है कि मशीन से होने वाले काम मजदूरों से नहीं कराए जाते हैं। इस वजह से स्कोप काफी सीमित हो जाता है। दूसरे देश के कई हिस्सों में मॉनसून शुरू हो गया है और अगले कुछ दिनों में पूरे देश में बारिश का मौसम शुरू हो जाएगा। बारिश के मौसम में मनरेगा के तहत या मशीन से भी काम कराने की संभावना बहुत कम हो जाती है। कृषि कार्य को छोड़ कर दूसरे ज्यादातर काम स्थगित हो जाते हैं। सरकारें मिट्टी की कटाई, नाले-नहरों की सफाई, नदियों के गाद निकालने जैसे कई काम मनरेगा के मजदूरों से करा सकती है पर वह मॉनसून में संभव नहीं है। इसके लिए अब इंतजार करना होगा। इसी तरह कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए लागू नियमों के मुताबिक 65 साल या उससे ज्यादा उम्र के लोग बाहर नहीं निकल सकते हैं। सो, इस उम्र के जो लोग मरनेगा के तहत छोटी-छोटी या कम मेहनत वाली मजदूरी कर सकते थे, उनके पास घर में बंद रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

तभी अब सवाल है कि शहरों, महानगरों से निकल कर गांवों, कस्बों में पहुंचे लाखों लोगों या वहां पहले से रह रहे गरीब व वंचितों का जीवन कैसे चलेगा? मॉनसून के अगले-तीन चार महीने, जिन लोगों को मनरेगा से भी काम नहीं मिलना है, उनके लिए सरकार क्या करे? सरकार मनरेगा के तहत कामकाज का स्कोप बदल सकती है। कुछ ऐसे काम खोजे जा सकते हैं, जो मॉनसून के समय भी कराए जा सकते हों। कुछ कृषि कार्यों को भी इसके दायरे में लाकर कुछ लोगों को रोजगार मुहैया कराया जा सकता है। हालांकि भारत में खेती ज्यादातर निजी उद्यम है पर इसमें भी सरकार कुछ उपाय खोज सकती है। अगर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को समझते हुए समग्रता से नीति बनाई गई तो मनरेगा के फंड का भी बेहतर इस्तेमाल संभव है।

इसके साथ ही सरकार को गांव और शहर दोनों जगह के गरीब व वंचितों के लिए मॉनसून के अगले तीन-चार महीनों राशन की पर्याप्त व्यवस्था करे। सरकार ने इस दिशा में कुछ अच्छी पहल की है। जैसे तीन महीने तक मुफ्त राशन बांटने की घोषणा हुई है और जानकारों का कहना है कि थोड़ी बहुत गड़बड़ी के साथ यह जरूरतमंद लोगों तक पहुंच रहा है। सरकार ने एक देश, एक राशन कार्ड की भी घोषणा की है और बिना राशन कार्ड वाले लोगों को भी तीन महीने तक मुफ्त राशन देने का ऐलान किया है। मुफ्त राशन देने का पहला ऐलान मार्च में हुआ था, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत। इसकी अवधि जून में यानी इसी महीने खत्म हो जाएगी। सरकार को इसे आगे तीन महीने के लिए और बढ़ा देना चाहिए। ध्यान रहे सरकार के पास अनाज की कमी नहीं है। उसके भंडार भरे हुए हैं और अब भी जोर-शोर से खरीद चल रही है। खबर आई है कि मध्य प्रदेश ने अनाज खरीद के मामले में पंजाब को भी पीछे छोड़ कर नया रिकार्ड बनाया है। सो, अनाज के रिकार्ड भंडार से लेकर इस अनाज को जरूरतमंदों तक पहुंचाने की पुख्ता व्यवस्था बनानी होगी।

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