अब चाइनीज ऐप्स डिलीट करने से आगे बढ़ने का समय आ गया है क्योंकि अब चीन के साथ असली विवाद और कुछ हद तक असली लड़ाई शुरू हो गई है। इसलिए अब आर्थिक मोर्चे पर भी असली लड़ाई शुरू करनी होगी। अभी तक तो आधी अधूरी अपीलों से लोग चाइनीज ऐप्स डिलीट करने या चाइनीज सामानों का बहिष्कार करने के उपाय सोच रहे थे। भारत सरकार ने भी आधे अधूरे तरीके से चीन छोड़ने वाली कंपनियों को भारत लाने के उपाय करने या चीन से आने वाले निवेश को नियंत्रित करने का उपाय किया था। पर अब इसे भी ज्यादा गंभीरता के साथ करना होगा। आर्थिक मोर्चे पर चीन के साथ लड़ाई के दो पहूल हैं। पहला तो यह है कि चीन की बिगड़ती साख की वजह से जो कंपनियां वहां से अपना कारोबार समेट रही हैं उन्हें भारत आने के लिए स्थितियां अनुकूल बनाना और दूसरे चीन से निवेश को कम करते हुए पूरी तरह से बंद करना।
इसमें संदेह नहीं है कि भारत को बुनियादी ढांचे के विकास के लिए बड़े विदेशी निवेश की जरूरत है पर वह निवेश भारत अपने सम्मान या संप्रभुता की कीमत पर नहीं हासिल करेगा। यह नहीं हो सकता है कि चीन एक तरफ भारतीय सैनिकों को मारता रहे और दूसरी ओर भारत में निवेश भी करता रहे। चीन से निवेश रोकने या उसका निवेश लौटाने की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के गृह राज्य गुजरात से करनी होगी। गौरतलब है कि चीन ने गुजरात में ऑटोमोबाइल सेक्टर से लेकर स्टील सेक्टर में बड़ा निवेश किया है या बडे निवेश का वादा किया। अगर सरकार यह हिम्मत करती है कि वह चीन के निवेश को ना करे तभी वह देश के आम नागरिकों को चीनी सामानों का बहिष्कार करने के लिए प्रेरित कर सकती है। जहां तक चीन से कंपनियों के कारोबार समेटने का सवाल है तो अभी ज्यादातर कंपनियां वियतनाम, फिलीपींस आदि देशों में जा रही हैं। उसके लिए भारत को देश की नौकरशाही से लेकर लालफीताशाही को बढ़ावा देने वाले कानूनों को बदलना होगा।

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