बुधवार, 17 जून 2020

राजनीतिक नेतृत्व की चुप्पी खतरनाक

चीन पिछले 45 दिन से पूर्वी लद्दाख के चार सेक्टरों में घुसपैठ किए हुए है। गालवान घाटी, डेमचक, पैंगोंग झील और दौलत बेग ओल्डी में तनाव बना हुआ है और भारत का राजनीतिक नेतृत्व लगभग पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए है। ले-देकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बोलते हैं पर उनका बयान भी इसी बात पर फोकस होता है कि दोनों देशों के बीच वार्ता हो रही है और दोनों देश बातचीत के जरिए विवाद को सुलझाने पर सहमत हैं। वे इससे ज्यादा बोल भी नहीं सकते हैं क्योंकि सामरिक मामले में यह कूटनीतिक लाइन सरकार ने तय की है। आखिर छह जून को हुई लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की वार्ता के बाद सेना ने विदेश मंत्रालय को ब्रीफ किया और विदेश मंत्रालय ने मीडिया की ब्रीफिंग की। इससे जाहिर होता है कि सरकार ने सीमा पर सामरिक टकराव और स्पष्ट सैन्य मुद्दे को कूटनीतिक मुद्दा बना दिया है। यह राजनीतिक नेतृत्व की घनघोर विफलता है। 

नरेंद्र मोदी ने दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद जब पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर को सीधे कैबिनेट मंत्री बना कर विदेश मंत्रालय का जिम्मा दिया तो लग रहा था कि अब भारत की कूटनीतिक प्रो-एक्टिव होगी। पर अफसोस की बात है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का विदेश मंत्री बनने के बाद भी जयशंकर सरकारी बाबू वाला अपना चोला नहीं उतार सके। वे अब भी विदेश सचिव के अवतार में है। तभी भारत का विदेश मंत्रालय चीन के साथ टकराव के मामले में छायावादी अंदाज में प्रतिक्रिया दे रहा है, जबकि चीन की सेना और विदेश मंत्रालय दोनों दो टूक प्रोपेगेंडा कर रहे हैं।

 जयशंकर को भारत के विदेश मंत्री की तरह बरताव करना होगा, विदेश सचिव के रूप में नहीं। उन्होंने पिछले 45 दिन में 75 से ज्यादा ट्विट किए हैं पर एक भी ट्विट चीन के मामले में नहीं है। एक विदेश सचिव के लिए तो ठीक है कि वह इस संवेदनशील मसले पर चुप रहे पर विदेश मंत्री ऐसा कैसे कर सकता है। यहीं स्थिति प्रधानमंत्री की है। उन्होंने पिछले 45 दिन में कई जगह भाषण दिया, राष्ट्र को संबोधित किया, मन की बात की, सैकड़ों ट्विट किए पर चीन के मामले में चुप्पी धारण किए रहे। अगर सरकार के रणनीतिकार और सलाहकार इसे बहुत बड़ी कूटनीति समझ रहे हैं तो यह हास्यास्पद है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें