शुक्रवार, 19 जून 2020

अर्थव्यवस्था में सुधार का भ्रम


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 जून को 21 राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उपराज्यपालों से वीडियो कांफ्रेंस के जरिए बात करते हुए कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में ‘ग्रीन शूट’ दिखने लगा है यानी अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने लगी है। उन्होंने अपनी बात के समर्थन में कुछ आंकड़े दिए। जैसे उन्होंने कहा कि इस साल खरीफ की फसल की खरीद 12-13 फीसदी ज्यादा हुई है। ऑटोमोबाइल सेक्टर में दोपहिया वाहनों की बिक्री लॉकडाउन से पहले की स्थिति के 70 फीसदी के बराबर हो गई है। खुदरा कारोबार में डिजिटल भुगतान भी लॉकडाउन के पहले की स्थिति में पहुंच गया है।

इन सब आंकडों के आधार पर प्रधानमंत्री ने आर्थिकी में सुधार का दावा किया। पर यह एक किस्म का भ्रम है। अगर प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों का या देश के लोगों को हौसला बढ़ाने के लिए इन आंकडों की जानकारी दी तो अलग बात है, लेकिन अगर सरकार सचमुच समझ रही है कि कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच उसके लॉकडाउन हटा देने से आर्थिकी पटरी पर लौट रही है तो यह भ्रम है।

इसकी असलियत को समझने के लिए सबसे पहले तो यह समझना होगा कि लॉकडाउन शुरू होने से पहले की क्या स्थिति थी? लॉकडाउन शुरू होने के बाद एक हफ्ते बाद पिछला वित्त वर्ष खत्म हुआ था। वित्त वर्ष 2019-20 के आखिरी महीने के आखिरी हफ्ते में लॉकडाउन लागू हुआ था। अभी लॉकडाउन के मध्य में उस तिमाही का आर्थिक आंकड़ा आया तो पता चला कि जनवरी से मार्च की तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 3.1 फीसदी रही और उस पूरे साल की जीडीपी की वृद्धि दर 4.2 फीसदी रही। जनवरी से मार्च की तिमाही से पहले लगातार छह तिमाहियों में विकास दर में गिरावट हुई। जब नरेंद्र मोदी की सरकार सत्ता में आई थी तब देश की विकास दर आठ फीसदी से ऊपर थी। दो साल बाद तक यह स्थिति बनी रही पर नोटबंदी के फैसले के बाद आर्थिक विकास दर गिरने लगी और उसके बाद गिरती ही गई। वह गिर कर 3.1 फीसदी पर आ गई। अप्रैल से जून की जीडीपी का आंकड़ा अगले महीने आएगा, जिसका और नीचे जाना तय है।

सो, अगर प्रधानमंत्री बार बार यह मिसाल दे रहे हैं कि लॉकडाउन से पहले की स्थिति की ओर बढ़ रहे हैं यह भी कोई खुश होने की बात नहीं है। हां, अगर सरकार 3.1 फीसदी विकास दर को न्यू नॉर्मल मान रही है तब बात अलग है और अगर सरकार यह सोचती है कि इसी दर से विकास होता रहा तब भी ठीक है तो वह भी चिंता की बात है। भारत जैसे देश के लिए तीन-चार फीसदी की विकास दर का कोई मतलब नहीं है। अगर प्रधानमंत्री के इस लक्ष्य पर ही विचार करें कि भारत को अगले पांच साल में पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना है तब भी उसके लिए अगले पांच साल भारत को दस फीसदी से ज्यादा की विकास दर से बढ़ना होगा, जो किसी हाल में अभी संभव नहीं लग रहा है। अभी तो दुनिया भर की एजेंसियों ने भारत की विकास दर शून्य या उससे भी नीचे निगेटिव में जाने का अनुमान जाहिर किया है। भारत सरकार के अपने मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रह्मण्यम ने कहा हुआ है कि 2021 के वित्त वर्ष में विकास दर दो फीसदी रहेगी।

प्रधानमंत्री ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों से यह भी कहा कि अनलॉक-एक के दो हफ्ते हो गए हैं और अब उन्हें अनलॉक-दो के लिए तैयार रहना है। यह बड़ी हैरानी की बात है कि प्रधानमंत्री और सभी राज्यों के मुख्यमंत्री सचमुच इसकी तैयारी कर रहे हैं। वे इस बात को मान चुके हैं कि कोरोना वायरस के साथ रहते हुए सब कुछ खोल देना है। वे इस भ्रम में हैं कि सब कुछ खोल देने से विकास दर फिर से पटरी पर लौट आएगी, जबकि हकीकत यह है कि अनलॉक-एक से कहीं भी बाजारों में रौनक नहीं लौटी है। दिल्ली जैसे शहर में संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए कारोबारी संगठनों ने खुद ही दुकानें नहीं खोलने का फैसला किया है। ज्यादातर बड़े बाजार बंद हैं और जहां दुकानें खुली हैं वहां कामधंधा जीरो है। दुकानों से ग्राहक नदारद हैं और इसका कारण यह है कि सरकार ने कोरोन वायरस से निपटने की योजना के तहत जो प्रोत्साहन पैकेज घोषित किया उसमें सरकार का सारा ध्यान सप्लाई साइड पर रहा। उसने डिमांड साइड का ध्यान नहीं दिया, मांग बढ़ाने का कोई भी उपाय नहीं किया गया। लोगों के हाथ में रुपया नहीं पहुंचा और इसका नतीजा यह है कि अभी महीनों, बरसों तक बाजार में मांग नहीं लौटने वाली है।

इस बात को समझ कर ही दुनिया भर की रेटिंग एजेंसियों ने भारत की रेटिंग बदली है। भारत की रेटिंग लगभग जंक के पास पहुंच गई है। इस स्थिति का संकेत रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर ने पिछले दिनों दिया, जब उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था की हालत उम्मीद से ज्यादा खराब है और इसे ठीक होने में बहुत समय लगेगा। यहीं हकीकत है, बाकी भ्रम है। फसल की खरीद या दोपहिए की बिक्री या डिजिटल पेमेंट की बातें यह तात्कालिक स्थितियों को ही दिखाती है। लोगों ने बैंकों से नकदी निकाल कर घरों में रख लिया है और चूंकि दुकानें काफी समय तक बंद रहीं तो लोगों ने ई-कॉमर्स की सुविधाओं का ज्यादा लाभ उठाया, जिससे डिजिटल पेमेंट में बढ़ोतरी हो गई। इसके अलावा इन बातों का कोई मतलब नहीं है। कुल मिला कर देश की अर्थव्यवस्था मनरेगा की मजदूरी और सरकार की ओर से बांटे जा रहे राशन के सहारे चलनी है। इसलिए अभी ‘ग्रीन शूट’ का मतलब सिर्फ इतना है कि लोग जी-खा रहे हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें