सोमवार, 15 जून 2020

ऑनलाइन पढ़ाई में ये जोखिम

भारत में कोरोना महामारी बढ़ती जा रही है। ऐसे में स्कूल निकट भविष्य में खुल पाएंगे, इसकी संभावना घटती जा रही है। ऐसे में संभावना यह है कि ऑनलाइन पढ़ाई का चलन जारी रहेगा, जो लॉकडाउन के दौरान प्रचलन में आया। ऑललाइन पढ़ाई से समाज में गैर-बराबरी बढ़ने जैसी चिंताएं पहले ही काफी जताई गई हैं। 

 यह हकीकत है कि देश में ज्यादातर आबादी के पास आज भी फास्ट वाईफाई से संचालित इंटरनेट कनेक्शन, स्मार्ट फोन या लैपटॉप उपलब्ध नहीं हैं। बहरहाल, जिनके पास ये उपलब्ध हैं, उनके घरों के बच्चों के लिए भी ऑनलाइन पढ़ाई में जोखिम कम नहीं हैं।

 बाल कल्याण के क्षेत्र में काम करने वाले संगठन चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) के हाल में दिल्ली में किए गए सर्वे में सामने आया कि लॉकडाउन के दौरान कम से कम सवा 9 फीसदी बच्चों ने साइबर बुलिंगा का अनुभव किया। लेकिन उनमें से आधे बच्चों ने कभी इसके बारे में माताप-पिता या किसी बड़े को नहीं बताया।

 इसी सर्वे में ये भी सामने आया कि बच्चे जितना ज्यादा वक्त ऑनलाइन बिताते हैं, उतना ही ज्यादा उन पर साइबर बुलिंग जैसी प्रवृत्तियों का खतरा रहता है। सर्वे में पाया गया कि 13 से 18 साल की उम्र के जो बच्चे दिन में तीन घंटे से ज्यादा इंटरनेट का इस्तेमाल करते थे, उनमें बुलिंग जैसी घटनाओं का सामना करने वालों की संख्या 22 फीसदी थी। 

वहीं चार घंटे इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों में यह संख्या छह फीसदी से बढ़कर 28 फीसदी तक थी। इस स्टडी से एक और डराने वाला आंकड़ा निकल कर आया। सर्वे में शामिल बच्चों में 10 में से चार लड़कों ने अपनी मॉर्फ्ड यानी बदली तस्वीर या वीडियो देखी। इनमें से आधे बच्चों ने कभी पुलिस में इस बात की शिकायत नहीं की। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि आज बच्चे जिस तरह टेक्नोलॉजी से भरे माहौल में बड़े हो रहे हैं, वैसा माहौल उनके माता-पिता ने अपने बचपन में नहीं देखा था।

 इसलिए ऑनलाइन सही आदतें क्या हैं, क्या शेयर करना चाहिए क्या नहीं, लोगों से क्या और कैसे बात करनी चाहिए, किन वेबसाइट्स पर जाना चाहिए और किन पर नहीं, पोस्ट करते वक्त सही भाषा का इस्तेमाल जैसे कई टॉपिक्स पर माता-पिता से बच्चों की बात नहीं होती। जबकि साइबर बुलिंग जैसे खतरों से सिर्फ मतापा-पिता ही बचा सकते हैं। जो साफ है कि ऑनलाइन पढ़ाई आगे बढ़ती है, तो अभिभावकों को ये विशेष जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेनी होगी।

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