मंगलवार, 30 जून 2020

अनलॉक 2: बंद रहेंगे शिक्षण संस्थान, मेट्रो-सिनेमाघर, घरेलू उड़ानों-ट्रेन सेवाओं का होगा विस्तार

केंद्र सरकार ने बीते सोमवार रात ‘अनलॉक-2’ के लिए दिशा-निर्देश जारी किए और कहा कि शैक्षणिक संस्थान, मेट्रो रेल सेवाएं, सिनेमाघर तथा जिम अभी बंद रहेंगे।

दिशा-निर्देशों में कहा गया कि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय यात्री उड़ानें (वंदे भारत मिशन के तहत), जो अभी सीमित रूप में जारी हैं, का चरणबद्ध तरीके से विस्तार किया जाएगा।

गृह मंत्रालय ने कहा कि नए दिशा-निर्देश एक जुलाई से प्रभावी होंगे और चरणबद्ध रूप से गतिविधियां दोबारा शुरू करने की प्रक्रिया विस्तारित कर दी गई है।

कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से लागू लॉकडाउन में ढील देने के क्रम में पूर्व में ‘अनलॉक-1’ के तहत कुछ ढील दी गई थीं और अब सरकार ने ‘अनलॉक-2’ की घोषणा की है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ‘अनलॉक-2’ के तहत व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए जो 30 जून को ‘अनलॉक-1’ के पूरा होने के बाद एक जुलाई से लागू होंगे।


केंद्रीय गृह मंत्रालय के सचिव अजय भल्ला द्वारा हस्ताक्षरित नए दिशा-निर्देशों के अनुसार जारी किए गए दिशा-निर्देश राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से मिले फीडबैक तथा संबंधित केंद्रीय मंत्रियों और विभागों के साथ गहन विचार-विमर्श पर आधारित हैं।

आवश्यक गतिविधियों को छोड़कर रात्रिकालीन कर्फ्यू रात 10 बजे से सुबह पांच बजे तक जारी रहेगा।

नए दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि मेट्रो रेल, सिनेमाघर, जिम, स्विमिंग पूल, मनोरंजन पार्क, थिएटर, बार, ऑडिटोरियम, असेंबली हॉल और ऐसे अन्य स्थल भी अभी बंद रहेंगे।

इसी तरह सामाजिक, राजनीतिक, खेल, मनोरंजन, शिक्षण, सांस्कृतिक, धार्मिक कार्यक्रम और अन्य बड़े कार्यक्रमों को अभी मंजूरी नहीं मिलेगी।

गृह मंत्रालय ने कहा कि इन्हें खोलने की तारीख स्थिति के आकलन के बाद अलग से तय की जाएगी। इसने कहा, ‘निषिद्ध क्षेत्रों में 31 जुलाई तक लॉकडाउन का कड़ा क्रियान्वयन जारी रहेगा।’

कोविड-19 के प्रसार को रोकने के मद्देनजर राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों पर विचार करने के बाद इन क्षेत्रों का चिह्नीकरण सावधानी से करने की आवश्यकता है।’

दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि निषिद्ध क्षेत्रों के भीतर केवल आवश्यक गतिविधियों को अनुमति होगी।

रात्रिकालीन कर्फ्यू में और ढील दी गई है, जो कि औद्योगिक इकाइयों में विभिन्न पालियों में काम करने वालों, राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों पर लोगों तथा सामान के आवागमन, माल उतारने-चढ़ाने, बसों, ट्रेनों और विमानों से उतरने के बाद अपने गंतव्यों की ओर जाने वाले लोगों को राहत देगी।

दुकानों में उनके क्षेत्र के आधार पर एक बार में पांच से अधिक लोग हो सकते हैं। हालांकि उन्हें उचित भौतिक दूरी रखनी होगी।

केंद्र और राज्य सरकारों के प्रशिक्षण संस्थानों को 15 जुलाई से काम करने की अनुमति होगी। इस संबंध में केंद्र सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय एक मानक संचालन प्रक्रिया जारी करेगा।

गृह मंत्रालय ने कहा कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के साथ गहन विचार-विमर्श के बाद यह तय किया गया है कि स्कूल, कॉलेज और कोचिंग संस्थान अभी 31 जुलाई तक बंद रहेंगे।

राज्य और केंद्र शासित प्रदेश स्थिति के आकलन के आधार पर निषिद्ध क्षेत्रों के बाहर कुछ गतिविधियों को प्रतिबंधित कर सकते हैं या आवश्यक होने पर ऐसे प्रतिबंध लगा सकते हैं।

एक राज्य से दूसरे राज्य में लोगों और माल के आवागमन पर कोई रोक नहीं होगी और इसके लिए अलग से अनुमति या ई-पास की आवश्यकता नहीं होगी। कोविड-19 प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय दिशा-निर्देश देश भर में जारी रहेंगे।

दुकानों में ग्राहकों को एक-दूसरे से पर्याप्त भौतिक दूरी रखनी होगी। गृह मंत्रालय राष्ट्रीय निर्देशों के प्रभावी क्रियान्वयन की निगरानी करेगा।

इसके अलावा 65 साल से अधिक आयु के लोगों, किन्हीं बीमारियों से पीड़ित लोगों, गर्भवती महिलाओं, 10 साल से कम उम्र के बच्चों को किसी बेहद जरूरी काम और स्वास्थ्य उद्देश्यों को छोड़कर, घरों में ही रहने की सलाह दी गई है।

गृह मंत्रालय ने कहा कि आरोग्य सेतु ऐप को बढ़ावा दिया जाएगा।

यात्रियों और श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का आवागमन, देश से बाहर फंसे भारतीय नागरिकों का आवागमन, विशिष्ट लोगों की विदेश यात्रा, विदेशी नागरिकों को निकालना, समुद्री उद्देश्य कार्य एसओपी के अनुसार जारी रहेंगे।

किसी शादी में अतिथियों की संख्या 50 से ज्यादा नहीं होगी। वहीं, अंतिम संस्कार के कार्यकम में 20 से अधिक लोग शामिल नहीं होने चाहिए. सार्वजनिक स्थलों पर थूकना दंडनीय रहेगा।

गृह मंत्रालय ने कहा कि सार्वजनिक स्थलों पर शराब, गुटखा-पान, तंबाकू सेवन निषिद्ध रहेगा। इसने कहा कि जहां तक संभव हो, कर्मचारियों को घर से काम करने दिया जाना चाहिए।

क्या टिकटॉक समेत अन्य चीनी कंपनियों ने पीएम केयर्स फंड में डोनेशन दिया है?

लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीनी सैनिकों के साथ तनावपूर्ण स्थिति के बीच भारत सरकार ने  टिकटॉक, यूसी ब्राउजर समेत 59 चीनी मोबाइल ऐप पर प्रतिबंध लगा दिया है। केंद्र के इस फैसले का राजनीतिक गलियारों में कुछ लोगों ने स्वागत किया है तो कुछ ने इस पर सवाल भी उठाए हैं।

एक बड़ा आरोप ये है कि कोरोना महामारी से लड़ने के लिए बनाए गए पीएम केयर्स फंड में कई चीनी कंपनियों ने अनुदान दिया है और लोग अब सवाल कर रहे हैं कि क्या भारत सरकार इस पैसे को वापस करेगी।

इससे पहले भाजपा ने आरोप लगाया था कि राजीव गांधी फाउंडेशन (आरजीएफ) को चीनी सरकार से साल 2005-06 में डोनेशन प्राप्त हुए थे। इसे लेकर जवाबी हमला करते हुए कांग्रेस ने कहा कि पीएम केयर्स फंड ने कई चाइनीज कंपनियों से अनुदान प्राप्त किए हैं।

हालांकि आरजीएफ द्वारा प्राप्त किए गए अनुदान से संबंध में सार्वजनिक दस्तावेज उपलब्ध हैं, जो कि दर्शाता है कि फाउंडेशन ने रिसर्च स्टडीज के लिए बीजिंग समेत अन्य सरकारों से फंड प्राप्त किया है।

लेकिन पीएम केयर्स फंड को लेकर अभी पूरी तरह ये स्पष्ट नहीं है कि कौन-कौन सी कंपनियां इसमें अनुदान दे रही हैं और ट्रस्ट ने अभी तक प्राप्त डोनेशन की सूची भी सार्वजनिक नहीं की है।

इसकी प्रमुख वजह ये है कि पीएम केयर्स फंड की कार्यप्रणाली बहुत अपारदर्शी है और इसे आरटीआई एक्ट के दायरे से भी बाहर कर दिया गया, जिसके कारण लोगों को पता नहीं चल पा रहा है कि वाकई ये फंड किस तरह से काम कर रहा है, कौन इसमें डोनेशन दे रहा है, इसमें प्राप्त राशि को किन-किन कार्यों में खर्च किया जा रहा है।

क्या पीएम केयर्स फंड ने चीनी कंपनियों से चंदा प्राप्त किया है?

मीडिया रिपोर्ट्स और कंपनी के बयानों का अध्ययन करने से पता चलता है कि कम से कम पांच चीनी कंपनियों ने कहा है कि उन्होंने पीएम केयर्स फंड में दान दिया है या देंगे।

  भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित मोबाइल ऐप टिकटॉक ने पीएम केयर्स फंड में 30 करोड़ का अनुदान दिया है. भाजपा समर्थकों, यहां तक कि केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले, ने मांग की थी कि इस सोशल मीडिया और वीडियो-शेयरिंग ऐप पर बैन लगाया जाए। 


चीनी नेटवर्किंग और टेलीकॉम कंपनी हुआवे  ने भी फंड में सात करोड़ रुपये देने को कहा था। पूर्व में ऐसी कई रिपोर्ट्स आई हैं जो ये दर्शाती हैं कि हुआवे चीन की पिपुल्स लिबरेशन आर्मी से सीधी तौर पर जुड़ी हुई है।

इसके अलावा चीनी मोबाइल फोन कंपनी शाओमी, जिसने हाल ही में ये बताया है कि वह वह भारत में फोन बनाती है, ने कहा कि इसने पीएम केयर्स फंड और देश भर के विभिन्न मुख्यमंत्री राहत कोषों को 10 करोड़ रुपये दान दिए थे।

दो अन्य चीनी मोबाइल फोन ब्रांड (ओप्पो और वनप्लस), जो कि एक ही कंपनी के हैं, ने भी मोदी के पीएम केयर्स फंड में एक-एक करोड़ रुपये का दान दिया है।

 तीन प्रसिद्ध भारतीय कंपनियां, जिसमें बहुत ज्यादा चीनी निवेश नहीं है, ने भी फंड में दान दिया है।



पिछले कुछ महीनों में भारत सरकार ने भारत में चीनी निवेशों पर कड़ी निगरानी रखने के लिए एफडीआई प्रतिबंधों को कड़ा कर दिया है। विशेष रूप से उन स्रोतों पर प्रतिबंध लगाया है जिसके जरिये पेटीएम या ओला निवेश प्राप्त करते हैं।

ये अुनदान कब प्राप्त हुए थे? क्या इन्हें स्वीकार कर लिया गया है?

पीएम केयर्स फंड में अनुदान देने की ज्यादातर घोषणाएं अप्रैल 2020 में की गई थीं। इसके कुछ ही हफ्तों बाद चीन और भारत के बीच गतिरोध की स्थिति उत्पन्न होने की खबरें आई थीं। पांच मई को गश्त के दौरान भारत और चीन के बीच लद्दाख के पैंगॉन्ग झील के उत्तरी किनारे पर झड़प हुई थी।

हालांकि इसके पहले भी कोरोना वायरस महामारी को लेकर चीन के खिलाफ भावनाएं भड़क रही थीं और वायरस के लिए उसे जिम्मेदार ठहराया जा रहा था। भारत में भाजपा के ऑनलाइन मीडिया के माध्यम से इसका प्रचार भी किया जा रहा था।

पीएम केयर्स फंड में ऑटोमैटिक डोनेशन स्वीकार करने की व्यवस्था हो सकती है। कई बार इसके कारण शर्मिंदगी भी झेलनी पड़ती है, जैसा कि एक बार भाजपा को चंदा देनी वाली कंपनी की ‘आतंकी संबंधों’ को लेकर जांच हुई थी।

हालांकि इसे लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय को ही निर्णय लेना है कि चीनी कंपनियों द्वारा प्राप्त किए गए पैसे को वापस लौटाया जाएगा या नहीं।

इस बहस से एक महत्वपूर्ण सवाल ये भी उठता है कि क्या राजीव गांधी फाउंडेशन की तरह पीएम केयर्स फंड भी सभी दानकर्ताओं की सूची सार्वजनिक करेगा? यदि ऐसा होता है तो पारदर्शिता की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

भाजपा में बाहरी नेताओं की मुश्किल

भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की राजनीति में वैसे तो बहुत फर्क है। पर एक फर्क बहुत खास है। वह फर्क ये है कि न तो भाजपा से निकल कर कोई नेता सफल होता है और न बाहर से आकर भाजपा में शामिल होने वाला कोई नेता सफल होता है, जबकि कांग्रेस में इसका उलटा होता है। कांग्रेस में बाहर से आकर भी नेता सफल हो जाते हैं और कांग्रेस से बाहर निकल कर तो नेताओं के सफल होने की अनेक मिसालें हैं। शरद पवार से लेकर ममता बनर्जी और जगन मोहन रेड्डी तक के उदाहरण दिए जा सकते हैं। 

चूंकि पिछले कुछ समय से देश की राजनीति में भाजपा का ऐसा विस्तार हुआ है कि हर पार्टी के लोग खुद चल कर भाजपा में शामिल हो रहे हैं। जैसे पहाड़ों से निकल कर सारी नदियां अंततः समुद्र में मिलती हैं वैसे ही कांग्रेस से निकल कर अंततः सारे नेता सीधे या घूम-फिर कर भाजपा में जा रहे हैं। पर भाजपा में उनके लिए बहुत सीमित अवसर होते हैं। चुनाव के समय पाला बदलने वालों को तो विधानसभा या लोकसभा की टिकट मिल जाती है, उनमें से कुछ मंत्री भी बन जाते हैं। पर उसके आगे जाने का स्कोप नहीं होता है। मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष आदि बाहरी नेताओं को नहीं बनाया जाता है। राज्यसभा या विधान परिषद की सीटें भी कम ही लोगों को मिलती हैं।

जैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राज्यसभा की सीट ले ली और हो सकता है कि केंद्र में मंत्री भी बन जाएं। पर कई दूसरे नेता उनकी तरह भाग्यशाली नहीं निकले। ओड़िशा में बैजयंत जय पांडा सत्तारूढ़ बीजू जनता दल को छोड़ कर आए पर अभी तक राज्यसभा मिलने के इंतजार में बैठे हैं। पश्चिम बंगाल में मुकुल राय सरकार चला रही तृणमूल कांग्रेस से निकल कर भाजपा में गए और अभी तक राज्यसभा के लिए हाथ पसारे बैठे हैं। हिमंता बिस्वा सरमा ने भी मान लिया है कि उनको प्रदेश की राजनीति में जितनी जगह मिल गई है उससे ज्यादा नहीं मिलने वाली है। इसलिए वे भी सांसद बन कर केंद्र में मंत्री बनने की जुगाड़ में लगे हैं।

वैसे यह तथ्य है कि नरेंद्र मोदी की सरकार में भाजपा कोटे से एक भी ऐसा मंत्री नहीं है, जो दूसरी पार्टी से आया हो। कांग्रेस छोड़ कर गए जगदंबिका पाल भाजपा की टिकट से जीत रहे हैं पर मंत्री बनने की आस पूरी नहीं हुई है, जबकि कांग्रेस की सरकार में शंकर सिंह वाघेला से लेकर बेनी प्रसाद वर्मा और श्रीकांत जेना तक कई ऐसे नेता मंत्री बने, जो दूसरी पार्टियों से कांग्रेस में गए थे। दूसरी ओर कांग्रेस में बाहर से आए नेता को कुछ भी बनाया जा सकता है। जैसे शिव सेना से आए संजय निरूपम मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष हो गए थे। जेडीएस से कांग्रेस में गए सिद्धरमैया कर्नाटक के मुख्यमंत्री हो गए थे और अभी नेता विपक्ष हैं। झारखंड विकास मोर्चा छोड़ने के तुरंत बाद अजय कुमार को कांग्रेस ने झारखंड का अध्यक्ष बना दिया था और अब वे फिर पार्टी छोड़ कर भी जा चुके। राजद से कांग्रेस में गए अखिलेश सिंह राज्यसभा सासंद हैं और लोकसभा चुनाव के समय बिहार में चुनाव अभियान समिति के प्रमुख थे।

बिहार चुनाव तक मुफ्त अनाज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीब परिवारों को मुफ्त राशन देने की योजना को नवंबर तक बढ़ाने का ऐलान किया है। मंगलवार को शाम चार बजे राष्ट्र के नाम संबोधन में उन्होंने इसका ऐलान किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि दिवाली-छठ तक गरीब परिवारों के हर सदस्य को हर महीने पांच किलो मुफ्त अनाज मिलता रहेगा। पांच किलो गेहूं या चावल के साथ साथ हर सदस्य को एक किलो चना भी मुफ्त मिलता रहेगा। यह योजना 30 जून को खत्म होने वाली थी। उसे प्रधानमंत्री ने नवंबर तक बढ़ाने का ऐलान किया है। गौरतलब है कि बिहार में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। इससे यह भी जाहिर हुआ है कि सरकार भी महामारी में पूरे साल फंसे रहने की सोच में है।

प्रधानमंत्री के राष्ट्र के नाम संबोधन से पहले कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे। लेकिन प्रधानमंत्री ने न तो कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बारे में कुछ कहा, न लॉकडाउन के बारे में कुछ कहा और न चीन के बारे में बोले। उन्होंने मुख्य रूप से दो बातें कहीं। पहली अहम बात यह कि गरीबों और मजदूरों को हर महीने मिलने वाले मुफ्त अनाज की योजना नवंबर तक चलेगी और दूसरी, उन्होंने लोगों को अनलॉक के दूसरे चरण में ज्यादा ऐहतियात बरतने की सलाह दी।

प्रधानमंत्री ने अपने 17 मिनट के भाषण में कहा- हमने फैसला लिया है कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना का विस्तार अब दिवाली और छठ पूजा तक यानी नवंबर महीने के आखिर तक कर दिया जाएगा। इसका मतलब है कि 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देने वाली योजना अगले पांच महीने भी लागू रहेगी। इस योजना को बढ़ाने से सरकार को 90 हजार करोड़ से ज्यादा खर्च करने होंगे।

प्रधानमंत्री ने आगे अनलॉक होता देश और बदलते मौसम को लेकर ऐहतियात बरतने को कहा। उन्होंने कहा- जब सर्दी-जुकाम बढ़ता है, तब हमें ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है, पर अब हम ज्यादा लापरवाह होते जा रहे हैं। मास्क, गमछा, फेसकवर और सोशल डिस्टेंसिंग जरूरी है। प्रधानमंत्री मोदी ने भाषण के अंत में किसानों और देश के ईमानदार करदाताओं की तारीफ कीष उन्होंने कहा कि इतने बड़े देश में हर गरीब के घर चूल्हा जलता रहे, यह केवल मेहनती किसानों और ईमानदार टैक्स पेयर्स की वजह से संभव हो पाया।

कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए लागू हुए लॉकडाउन के दौरान गरीब कल्याण योजना घोषित करने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इसके तहत पौने दो लाख करोड़ का पैकेज दिया गया। प्रधानमंत्री ने बताया कि तीन महीने में 20 करोड़ जन धन खातों में 31 हजार करोड़ रुपए जमा करवाए गए हैं। इसी तरह नौ करोड़ से ज्यादा किसानों के बैंक खातों में 18 हजार करोड़ रुपए जमा हुए हैं। प्रधानमंत्री ने एक देश, एक राशन कार्ड योजना का भी जिक्र किया।

प्रधानमंत्री मोदी के बाद सीएम गहलोत की बड़ी घोषणा

जयपुर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी  के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत  ने एक महत्वपूर्ण घोषणा की है। उन्होंने ऐलान करते हुए कहा है कि बीपीएल और स्टेट बीपीएल अंत्योदय परिवारों को अब 1 रुपए किलो गेहूं  मिलेगा। केंद्र सरकार अभी इन वर्गों को 2 रुपए प्रति किलो में 5 किलो गेहूं दे रही है। इसमें 1 रुपए प्रति किलो की सब्सिडी  राज्य सरकार देगी। सीएम अशोक गहलोत ने प्रदेश के सभी सांसदों से अपील करते हुए कहा कि सभी सांसद केंद्र से एमएसपी पर खरीद सीमा बढ़ाने की मांग करें। एमएसपी पर खरीद उत्पादन की 25 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत किया जाए।

जानकारी के मुताबिक, सीएम अशोक गहलोत ने बीपीएल, स्टेट बीपीएल और अंत्योदय परिवारों को जुलाई से 1 रुपए किलो में गेहूं देने की घोषणा की है। कोरोना समीक्षा बैठक में सीएम ने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से खाद्य सुरक्षा योजना में कवर हो रहे परिवारों को मुफ्त में पांच किलो अनाज उपलब्ध करवाया जा रहा है। इसके अलावा बीपीएल, स्टेट बीपीएल और अन्त्योदय श्रेणी के लोगों को केन्द्र की ओर से 2 रुपए प्रति किलो मिलने वाला 5 किलो गेहूं पर जुलाई से राज्य सरकार द्वारा 1 रुपए की सब्सिडी दी जाएगी। अब बीपीएल और अंत्योदय परिवारों को इसी महीने से एक रुपए किलो गेहूं मिल जाएगा।

25 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत किया जाए

सीएम अशोक गहलोत ने प्रदेश के सभी सांसदों से अपील करते हुए कहा कि किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य मिले। इसके लिए वे केन्द्र सरकार से मांग करें कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की सीमा को कृषि उत्पादन के 25 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत किया जाए। फिलहाल कुल उत्पादन का 25 फीसदी ही एमएसपी पर खरीदने से किसान को बाकी बची हुई फसल को बाजार में सस्ती दरों पर बेचना पड़ता है।

इस साल रिकॉर्ड 22 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद

खाद्य व नागरिक आपूर्ति सचिव सिद्धार्थ महाजन ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान आई परेशानियों के बावजूद राज्य सरकार ने इस साल रिकॉर्ड 22 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद समर्थन मूल्य पर की है। इसमें 16 लाख मीट्रिक टन एफसीआई, 5 लाख मीट्रिक टन राजफैड एवं तिलम संघ के माध्यम से जबकि एक लाख मीट्रिक टन नैफेड के माध्यम से खरीद की गई है। 

 कोरोना जागरूकता अभियान

कोराना जागरूकता अभियान को लेकर सीएम अशोक गहलोत बुधवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग करेंगे। वीडियो कॉन्फ्रेसिंग में सभी मंत्री, प्रभारी सचिव, कलक्टर, एसपी, एसडीएम, सीएमएचओ और पीआरओ के साथ उपखण्ड व तहसील स्तर के अन्य अधिकारी भी शामिल होंगे। वीसी में 7 जुलाई तक चलने वाले कोरोना जागरूकता अभियान की समीक्षा होगी। कोरोना जागरूकता अभियान को और धारदार बनाने पर भी चर्चा होगी।

पीएम मोदी की घोषणा पर रामविलास पासवान ने कहा, राज्य अतिरिक्त अनाज लेना शुरू करें

केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने  कहा कि प्रधानमंत्री ने देश के 80 करोड़ गरीबों को नवंबर तक मुफ्त अनाज बांटने का ऐलान करके एक ऐतिहासिक फैसला किया है। मैं राज्य सरकारों से अपील करता हूं कि वे जल्दी से जल्दी जो अतिरिक्त अनाज का आवंटन करने का फैसला प्रधानमंत्री ने किया है उसे लिफ्ट करना शुरू करें।

पासवान ने कहा कि फूड कारपोरेशन ऑफ इंडिया के गोदामों में अनाज का पर्याप्त स्टॉक है। राज्य सरकारें अपने-अपने  कोटे का मुफ्त अनाज फूड कारपोरेशन ऑफ इंडिया के गोदामों से उठाकर गरीबों में बाटने का काम शुरू कर सकती हैं।

गौरतलब है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि 'हमारे यहां वर्षा ऋतु के दौरान कृषि क्षेत्र में ही मुख्य तौर पर ज्यादा काम होते हैं। सावन महीने के शुरू होते ही त्योहार शुरू हो जाते हैं। त्योहारों का यह समय जरूरत भी बढ़ता है और खर्च भी बढ़ाता है। हमने अब फैसला किया है कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना का विस्तार अब दिवाली और छठ पूजा यानी नवंबर महीन के आखिरी तक कर दिया जाएगा।

उन्होंने कहा कि 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देने वाली ये योजना अब जुलाई, अगस्त, सितंबर, अक्टूबर और नवंबर में भी लागू रहेगी। सरकार द्वारा इन पांच महीनों के दौरान 80 करोड़ लोगों को सरकार द्वारा 5 किलो गेंहू या 5 किलो चावल मुफ्त दिया जाएगा। इसके अलावा प्रत्येक परिवार को एक किलो चना भी मुफ्त दिया जाएगा। इस योजना में 90 हजार करोड़ रुपए खर्च होगा। अगर इसमें पिछले तीन महीनों को खर्च भी जोड़ दें तो ये 1.50 लाख करोड़ रुपये हो जाता है।'

तीन महीनों में गरीबों के जनधन खातों में 31 हजार करोड़ रु. जमा कराए गए : पीएम मोदी

 कोरोनासंकट  संकट और सीमा पर चीन के साथ तनातनी के बीच आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  ने राष्ट्र को संबोधित किया।  अपने संबोधन की शुरुआत में प्रधानमंत्री ने देशवासियों को कहा कोरोना वैश्विक महामारी के खिलाफ लड़ते लड़ते अब हम अनलॉक टू में प्रवेश कर रहे हैं।  इसके साथ ही हम उस मौसम में भी प्रवेश कर रहे हैं।  जिसमें सर्दी जुकाम खांसी बुखार आदि बढ़ जाते हैं।  मेरी आप सबसे प्रार्थना है कि ऐसे समय में अपना ध्यान रखें।  अगर हम कोरोना से होने वाली मौतों की तुलना करें तो हम संभली हुई स्थिति में है।  समय पर हुए लॉकडाउन और अन्य फैसलों ने भारत में लाखों लोगों का जीवन बचाया है।  लेकिन हम यह भी देख रहे हैं।  कि जब से देश में अनलॉक वन हुआ है व्यक्तिगत और सामजिक तौर पर लापरवाही बढ़ती ही चली गई है।  पहले हम मास्क को लेकर दो गज की दूरी को लेकर बीस सेकंड दिन में कई बार हाथ धोने को लेकर बहुत सतर्क  थे लेकिन आज जब हमें ज्यादा सतर्कता की जरूरत है तो लापरवाही बढ़ना चिंता का कारण है। 

पीएम मोदी ने कहा, 'साथियों लॉकडाउन खोलने पर बहुत नियमों का पालन करना था।  देश के नागरिकों को उसी तरह की सतर्कता दिखाने की जरूरत है।  विशेषकर कन्टेनमेंट जोंन पर हमें बहुत ध्यान देना होगा।जो भी लोग नियमों का पालन नहीं कर रहे, हमें उन्हें टोकना होगा,  रोकना होगा और समझाना भी होगा। 

आपने देखा होगा कि एक देश के पीएम पर 13 हजार रु. का जुर्माना इसलिए लग गया क्योंकि वो सार्वजनिक स्थल पर मास्क नहीं पहनकर गए थे।  भारत में भी स्थानीय प्रशासन को इसी चुस्ती के साथ काम करना चाहिए।  भारत में गांव और या देश का प्रधान कोई भी नियमों से ऊपर नहीं है। 

लॉकडाउन होते ही सरकार प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना लेकर आई।  इस योजना के तहत गरीबों के लिए पौने दो लाख करोड़ रु. का पैकेज दिया गया।  बीते 3 महीनों में गरीबों के खाते में रुपये जमा किए गए है।  

कोरोना से लड़ते हुए भारत में 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को तीन महीने का राशन यानि पांच किलो गेंहू या चावल मुफ्त दिया गया।  इसके अलावा प्रत्येक परिवार को हर महीने 1 किलो दाल भी मुफ्त दी गई।  यानि अमेरिका की कुल जनसंख्या से ढाई गुना अधिक लोगों को, ब्रिटेन की जनसंख्या से 12 गुना ज्यादा लोगों को और यूरोपीयन यूनियन की आबादी से 2 गुना ज्यादा लोगों को हमारी सरकार ने मुफ्त अनाज दिया है। 

गरीब कल्याण अन्न योजना का विस्तार

पीएम ने कहा, 'आज मै इसी से जुड़ी एक महत्वपूर्व घोषणा करने जा रहा हूं. हमारे यहां वर्षा ऋतु के दौरान कृषि क्षेत्र में ही मुख्य तौर पर ज्यादा काम होते है।  अब देखिए सावन महीने के शुरू होते ही त्योहार शुरू हो जाते हैं।  त्योहारों का यह समय जरूरत भी बढ़ता है और खर्च भी बढ़ाता है।  हमने अब फैसला किया है कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना का विस्तार अब दिवाली और छठ पूजा यानि नवंबर महीन के आखिरी तक कर दिया जाएगा। 

यानि 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देने वाली ये योजना अब जुलाई, अगस्त, सितंबर, अक्टूबर और नवंबर में भी लागू रहेगी।  सरकार द्वारा इन पांच महीनों के दौरान 80 करोड़ लोगों को सरकार द्वारा 5 किलो गेंहू या 5 किलो चावल मुफ्त दिया जाएगा।  इसके अलावा प्रत्येक परिवार को एक किलो चना भी मुफ्त दिया जाएगा।  इस योजना में 90 हजार करोड़ रुपए खर्च होगा।  अगर इसमें पिछले तीन महीनों को खर्च भी जोड़ दें तो ये 1.50 लाख करोड़ रु हो जाता है। '

पूरे देश में एक राशन कार्ड व्यवस्था लागू होगी

पूरे भारत के लिए हमने एक सपना देखा है।  कई राज्यों ने बहुत अच्छा काम किया हम बाकि राज्यों से भी इस पर आगे बढ़ने की योजना बना रहे है।  अब पूरे देश में एक राशनकार्ड की व्यवस्था भी हो रही है।  इसका लाभ उन लोगों को भी मिलेगा जो रोजगार या दूसरी जरूरतों के लिए अपना घर गांव छोड़कर कमाने के लिए दूसरे राज्यों में मजदूरी को ले लिए जाते हैं। 

समाज के किसान और टैक्सपेयर्स का शुक्रिया

 साथियों आज गरीब को जरूरतमंद को सरकार मुफ्त अनाज दे पा रही है उसका श्रेय दो लोगों को जाता है पहला किसान को दूसरा हमारे देश के टैक्सपेयर्स ।  जिनकी की वजह से देश मदद कर पा रहा है।  आपने देश का अन्न भंडार भरा है इसलिए गरीब का चूल्हा जल रहा।  आपने ईमानदारी से अपना टैक्स भरा है जिसकी वजह से देश गरीब की मदद कर पा रहा है।  आज मैं देश के किसान और टैक्सपेयर्स को नमन करता हूं। 

दो गज की दूरी का पालन करें

 'हम सब आत्मनिर्भर भारत के अभियान को आगे बढ़ाएंगे।  हम लोकल के लिए वोकल बनेंगे।  आपसे आग्रह है कि सभी स्वस्थ्य रहिए दो गज की दूरी का पालन करें।  कोई लापरवाही ना बरतें। '

सोमवार, 29 जून 2020

ध्यान भटकाने का खेल कब तक?

देश के सामने इस समय सबसे ज्वलंत मुद्दे क्या हैं? सरकार चाहे कुछ भी कहे कोरोना वायरस का संक्रमण इस समय नंबर एक चिंता है। सरकार को भी सब कुछ छोड़ कर इस समय वायरस का संक्रमण रोकने के प्रयास में लगना चाहिए। इसके बाद नंबर दो चिंता चीन की है। यह संकट भी कोरोना वायरस से ही जुड़ा है। चीन ने इस वायरस का संक्रमण दुनिया भर में जान बूझकर फैलाया या फैलने दिया और उसके बाद दुनिया के देशों के साथ किसी न किसी किस्म की लड़ाई में उलझा है। सो, भारत को कोरोना वायरस से निपटने की जैसी चिंता करनी चाहिए वैसी ही चिंता चीन से निपटने की भी करनी चाहिए।

इसके बाद तीसरी चिंता आर्थिकी की है। कोरोना वायरस के संक्रमण और चीन के आक्रामक व्यवहार दोनों का साझा नतीजा यह हुआ है कि भारत की आर्थिकी धड़ाम से गिरी है। चालू वित्त वर्ष में जीडीपी की विकास दर निगेटिव रहने का अनुमान अब लगभग हर जानकार जता रहा है। चौथी समस्या देश के अलग अलग हिस्सों से लौटे मजदूरों की है। वे अपने गांव लौटे हैं, जहां उनके पास रोजगार नहीं है। वे खाली हाथ लौटे हैं इसलिए उनके सामने अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी करने का संकट है। सरकार की ओर से मुफ्त राशन बांटने की योजना से जरूर मजदूरों को भोजन मिल जा रहा है पर वह पर्याप्त नहीं है।  

सो, ये चार ज्वलंत समस्याएं हैं, जिनसे सरकार को निपटना है। पर ऐसा लग रहा है कि सरकार इन समस्याओं से निपटने की बजाय इनको कमतर करके दिखाने या यह साबित करने में लगी है कि ये कोई समस्या नहीं है, सरकार ने इन्हें निपटा दिया। जैसा कि खुद प्रधानमंत्री ने कहा है कि चीन को मुंहतोड़ जवाब मिल गया है और आर्थिकी में ग्रीन शूट्स यानी हरी कोंपलें दिखने लगी हैं। उनको तो लग रहा है कि इसी साल भारत नई उंचाइयों को छू सकता है। मजदूरों की समस्या हल करने का तो ऐसा रास्ता निकला कि उत्तर प्रदेश सरकार ने एक ही दिन में एक करोड़ रोजगार की घोषणा कर दी, जिसे हरी झंडी भी खुद प्रधानमंत्री ने दिखाई। कोरोना को तो सरकार अब कोई चिंता नहीं मान रही है क्योंकि उसने लोगों को इसके साथ रहने के लिए कह दिया है।

यानी जो चार बड़े संकट हैं, ऐतिहासिक हैं और इनमें से एक कोरोना का संकट तो वैश्विक है, जिसे पूरी मानवता पर संकट माना जा रहा है, भारत में उसे संकट के तौर पर देखा भी नहीं जा रहा है। हर दिन 20 हजार मरीज आ रहे हैं और सत्तारूढ़ पार्टी और सरकार के शीर्षस्थ लोग कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ने कोरोना के खिलाफ शानदार लड़ाई लड़ी है और काफी हद तक इसे काबू पा लिया है। असल में कोरोना का मामला हो या चीन का और आर्थिकी का मुद्दा हो या मजदूरों का सरकार एक तरह का भ्रम पैदा कर रही है। वह आम लोगों को आधे अधूरे और सच्चे-झूठे आंकड़ों के सहारे यह समझा रही है कि सब कुछ ठीक है। लोग भी यह मान रहे हैं कि इस भारी संकट के बीच जो बचा हुआ है वह भी बहुत है और वह ‘मोदीजी’ की वजह से है।

विपक्ष इस भ्रम को तोड़ सकता है। विपक्षी पार्टियां इसका प्रयास भी कर रही हैं। मीडिया का पर्याप्त समर्थन नहीं मिलने के बावजूद सोशल मीडिया के सहारे विपक्ष ने इन मुद्दों पर लोगों को हकीकत बताई है। यह कितना असरदार होगा, यह कहना मुश्किल है। असल में सरकार और सत्तारूढ़ दल पिछले छह साल से विपक्ष और उसके नेताओं की साख बिगाड़ने में लगे हैं। उन्हें इसमें काफी हद तक कामयाबी भी मिली है। उसी रणनीति के तहत इस ऐतिहासिक संकट के समय विपक्ष की साख बिगाड़ने और ध्यान भटकाने की रणनीति पर काम होने लगा है। पूरे देश को इस बहस में लगा दिया गया है कि सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ एमओयू किया और कांग्रेस ने सरकार में रहते प्रधानमंत्री राहत कोष से राजीव गांधी फाउंडेशन को चंदा दिलाया। पार्टी के सबसे बड़े नेताओं में से एक अहमद पटेल के घर इसी बीच प्रवर्तन निदेशालय, ईडी की टीम भी भेज दी गई।

इस बात का कोई मतलब नहीं है कि कांग्रेस पार्टी ने 2008 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ साझेदारी बनाने वाला एमओयू किया था। अगर यह कानूनी रूप से गलत है तो कांग्रेस के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। इसी तरह अगर राजीव गांधी फाउंडेशन को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने चंदा दिया तो कानूनी रूप से क्या गलत है और क्या इसी चंदे की वजह से आज चीन की फौज सीमा पर भारतीय फौज से लड़ रही है? चिदंबरम ने सही पूछा कि अगर कांग्रेस 20 लाख का चंदा लौटा दे तो क्या चीनी फौज सीमा पर से लौट जाएगी? इसी तरह राजीव गांधी फाउंडेशन को प्रधानमंत्री राहत कोष से चंदा दिए जाने का भी मामला है। अगर वह कानूनी रूप से गलत है तो सरकार मुकदमा दर्ज करे और फाउंडेशन के खिलाफ कार्रवाई करे। लेकिन इसकी बजाय भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर सबसे नीचे के कार्यकर्ता तक की बातों से ऐसा लग रहा है कि देश के सामने असली मुद्दा कोरोना, चीन, आर्थिकी या मजदूरों की समस्या नहीं है, बल्कि कांग्रेस का चीन से तालमेल और राजीव गांधी फाउंडेशन का चंदा लेना है।

असलियत यह है कि कांग्रेस का विरोध या उसकी साख खराब करना अब कोई मुद्दा नहीं है। उलटे लगातार उस पर हमला करके भाजपा अपना नुकसान कर रही है। क्योंकि इस बार जो समस्याएं लोगों के सामने हैं वे उन्हें सचमुच में परेशान कर रही हैं। कांग्रेस पर हमला करने से उनका दिल नहीं बहल रहा है। आखिर कितने समय तक लोग अपनी समस्याएं भूल कर कांग्रेस की आलोचना से दिल बहलाएंगे।

शुक्रवार, 26 जून 2020

विपक्ष रोए, राजनीति करे!

राहुल गांधी, अखिलेश, मायावती, तेजस्वी, शरद पवार, कुमारस्वामी, स्टालिन आदि पापी बनेंगे यदि इन्होंने देश की मौजूदा स्थिति में राजनीति नहीं की। ये भारत राष्ट्र-राज्य के साथ गद्दारी करेंगे यदि ये राजनीति करते हुए सरकार की कमियों को बता कर अपनी बात नहीं कहते हैं। इन्हें देश के मान-सम्मान के साथचीन के सीमा पर प्रतिदिन के चीरहरण को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।  सरकार से जवाब तलब करना चाहिए। इन्हें आर्थिकी की मौत और महामारी के कुएं में मर रही जनता के लिए रोना चाहिए। काले कपड़े पहन कर सड़क पर बैठना चाहिए। प्रदर्शन न करें, जेल न भरें लेकिन काले कपड़े पहन कर विपक्ष सड़क पर बैठ कर स्यापा तो कर ही सकता है। बेमौत मौतों पर मोमबत्ती तो जला सकता है। उन सरकारी सिविल अस्पतालों, श्मशान के आगे तो बैठ सकता है, जहां सरकार-प्रशासन की लापरवाही से लाशें निकल रही हैं। ऐसे वक्त में भी विपक्ष क्यों घर बैठा रहे? आजाद भारत के इतिहास में कब पहले बेमौत 15 हजार लोग मरे हैं? कब भारत में लाखों-करोड़ों परिवार बीमारी, भूख-तकलीफ में वैसे रहे हैं, जैसे आज है या आने वाले महीनों में रहेंगे? तभी विपक्ष का आज धर्म है कि वह मौत पर, लोगों की तकलीफ में कंधा देने के लिए, रोने के लिए, उठावने के लिए सड़क पर काले कपड़े पहन कर बैठने जैसी राजनीति करें।

हां, दुश्मन के हाथों देश का सीमा पर चीरहरण जब है, सरकार के निकम्मेपन, उसकी मूर्खता में देश की आर्थिकी और जनता को जब मौत के कुएं में सांस लेनी पड़ रही हो तो विपक्ष का कर्तव्य है कि वह सत्य बोलने का साहस करे। इस बात की फिक्र नहीं करनी चाहिए कि मीडिया उनका कहा नहीं बताएगा। वह उलटे गालियां देगा। इससे क्या फर्क पडता है? राहुल गांधी, सोनिया गांधी, अखिलेश, मायावती आदि सभी को ध्यान रखना चाहिए कि इंदिरा गांधी ने 19 महीने पूरे मीडिया को सरकारी भोंपू बना कर रखा था। देश को विपक्ष की खबर नहीं लगती थी बावजूद इसके विपक्ष लोगों की संवेदनाओं के साथ गुपचुप ऐसे जुड़ा कि वक्त आया तो लोगों ने एक झटके में इंदिरा गांधी को उखाड़ फेंका।

आज इमरजेंसी से असंख्य गुना भयावह दशा है। चीन ने दुनिया के आगे भारत राष्ट्र-राज्य की प्रतिष्ठा का बाजा बजवा दिया है। आर्थिकी रसातल में है। भारत वापिस कृषि आधारित इकोनॉमी में लौटता हुआ है। बीस-तीस करोड़ लोग वापिस गरीबी रेखा से नीचे लौटे सकते हैं तो अमेरिका,यूरोप के जरिए आईटी जैसे प्रोफेशन व खाड़ी जैसे देशों में नौजवानों के रोजगार की तमाम संभावनाएं खत्म प्रायः हैं।लोकतंत्र और संस्थाओं का भगवान मालिक है। एक व्यक्ति की उंगली पर टिका पूरा देश भरभरा कर गिर पड़ने के कगार पर है। प्रधानमंत्री मोदी ने इतना भी दम नहीं दिखाया कि अपने कथित दोस्त ट्रंप को एचबी-1 वीजा खत्म करने से रोकें। इसका मतलब है कि पढ़े-लिखे उच्च-मध्य वर्ग के विदेश जा कर रोजगार की संभावना पर ताला लगा है तो दिहाड़ी मजदूर के परिवार में भी रोजी रोटी का लाले पड़ने हैं।

जाहिर है गांव-कस्बों-शहर-महानगर सर्वत्र घर-घर में चिंता, परेशानी, बीमारी, मौत, भूख, बेरोजगारी, बरबादी का वह ख्याल पसरेगा, वह भाव बनेगा, जिसमें वह विपक्ष को सुनना चाहेगा। मीडिया भले न बताए, जनता विपक्ष को जान लेगी। उसे बुरा लग रहा है कि हर दिन मौतें हो रही हैं, हर दिन आर्थिकी रसातल में जा रही है, हर दिन चीन आंखें दिखा रहा है, हर दिन संक्रमण पसर रहा है लेकिन राहुल गांधी या अखिलेश या विरोधी पार्टियां बिना प्रतिदिन की ब्रीफ्रिंग के हैं। वे बिना राजनीति के हैं।

भला क्यों? क्या इस चिंता में कि भोंपू मीडिया उनकी बात नहीं बताएगा और उलटे मोदी सरकार ऐसी हेडलाइन बनवा देगी, जिसमें उलटे कुप्रचार होगा कि कांग्रेस तो चीन की दल्ला पार्टी है! कांग्रेस मौत की सौदागर है। कांग्रेस के भ्रष्टाचार से देश की आर्थिकी रसातल में गई है या डॉ. मनमोहनसिंह ने देश को बेच खाया! अखिलेश-तेजस्वी तो बच्चा पार्टी है या शरद पवार, चिदबंरम, दिग्विजयसिंह, एके एंटनी जब सत्ता में थे तब इन्होंने क्या किया था?  

इस तरह के हल्ले की विपक्ष को अब चिंता नहीं करनी चाहिए। न भोंपू मीडिया की चिंता करनी चाहिए और न सत्ता के अहंकारी हमलों की। इसलिए की पहली बात साल बाद, दो साल, पांच साल, दस साल बाद सत्य अनिवार्यतः जन-जन के बीच मौजूद होगा। दूसरी बातजनता आज चौबीस घंटे चिंता में है। नरेंद्र मोदी का जादू भले चाहे जो हो, वे महामारी-बीमारी और मौत को रोकने में फेल हैं। बीमारी-भूख-कंगाली का वह दौर शुरू हो गया है जो 2024 तक भारत को न जाने कितनी तरह से लीलेगा। अभी जो बामन-बनिए-भक्त लंगूर उनकी तुताड़ी लिए हुए हैं वे भी तीन साल बाद बिलबिलाते मिलेंगे। नरेंद्र मोदी-अमित शाह, भाजपा, संघ के बस में अब घटनाएं नहीं हैं। हेडलाइन से घटनाओं को बस में लेने की आखिर एक सीमा होती है। फिर महामारी को जब ट्रंप और पुतिन कंट्रोल नहीं कर पाए तो नरेंद्र मोदी तो पहले दिन से ही ताली-थाली और दीये के भरोसे हैं। भारत आगे महामारी का नंबर एक घर बनेगा और करोड़ों लोग संक्रमित होंगे।

तभी एक तर्क है और मैं भी एक हद तक मानता हूं कि विपक्ष को कुछ करने की जरूरत नहीं है। वह घर बैठा रहे। प्रधानमंत्री मोदी अपने अहंकार, अपनी सर्वज्ञता में वह सब कर देंगे, जिससे भारत इतना बीमार, लुटा-पिटा होगा कि दुनिया भर में हिंदू राजनीति कलंकित होगी।

पर इस सोच में फिर विपक्ष का धर्म क्या हुआ? क्या यह राष्ट्र-राज्य, लोकतंत्र को कमजोर बनाते हुए जनता के साथ धोखा नहीं होगा? मोदी सरकार ने जिस मुकाम पर देश को पहुंचाया है उसमें 138 करोड़ लोगों की गरिमा, इज्जत, बीमारी, मौत में सहारा देने के लिए, संवेदना के लिए विपक्ष को बोलना ही होगा। विपक्षी नेताओं, कार्यकर्ताओं ने यदि पिछले छह साल वाला ढर्रा अपनाए रखा तो न केवल देश और जर्जर बनेगा, बल्कि संकट से लड़ने की देश में न ताकत बचेगी, न विचार बचेगा और न विकल्प। इसलिए अपनी ईश्वर से प्रार्थना है कि विपक्ष भले दीया ले कर सड़क पर बैठे मगर बैठे, वह अंधकार युग न आने दे।

कूटनीति नहीं है सैन्य ताकत का विकल्प

यह बात चीन के संबंध में भी सही है और नेपाल जैसे छोटे से छोटे देश से लेकर पाकिस्तान जैसे जन्म जन्मांतर के दुश्मन देश के बारे में भी सही है कि कूटनीति कभी भी सैन्य ताकत का विकल्प नहीं हो सकती है। अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौर तक बस यात्रा करके कूटनीति की थी पर पाकिस्तान को जो बात समझ में आई वह कारगिल की लड़ाई में मिली निर्णायक हार थी। उसी तरह नरेंद्र मोदी ने नवाज शरीफ को अपने शपथ में बुला कर और बाद में उनके घर जाकर एक कूटनीति की थी लेकिन वह बात पाकिस्तान को समझ में नहीं आई। उसको सर्जिकल स्ट्राइक या एयर स्ट्राइक ही समझ में आती है। 

सो, चीन के साथ भी कूटनीतिक वार्ता से नतीजा निकलेगा इसमें संदेह है क्योंकि चीन अपनी सैन्य ताकत के मद में चूर है और उसे लग रहा है कि भारत मनोवैज्ञानिक रूप से लड़ने को तैयार नहीं या भारत में नेतृत्व के स्तर पर वह क्षमता नहीं है कि चीन को सीधे जवाब देने का फैसला हो सके। इसलिए वह भारत को कूटनीतिक या सैन्य वार्ता में उलझा रहा है और सीमा पर अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है। उसने भारत को 50 दिन से ज्यादा समय से बातचीत में उलझा रखा है। 15 जून की रात को तो अचानक भारतीय सैनिकों के पहुंचने पर झड़प हो गई और तब देश को पता चला कि चीन कितना अंदर तक घुसा हुआ है और क्या क्या कर रहा है।

हालांकि उसके बाद भी भारत उसके साथ वार्ता में उलझा हुआ है। पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन के विदेश मंत्री वांग यी से वार्ता की। उसके बाद भारत, रूस और चीन के विदेश मंत्री की त्रिपक्षीय वार्ता हुई। फिर भारत के सैन्य कमांडर ने मोल्डो में जाकर चीन के साथ सैन्य अधिकारी से वार्ता की। कहा जा रहा है कि यह वार्ता 11 घंटे तक चली। इसके बाद दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों के संयुक्त सचिव स्तर की वार्ता हुई। यह खबर आई कि दोनों देशों के सेना पीछे हटने को तैयार हो गई है। ध्यान रहे ऐसी खबर पहले भी आई थी और भारतीय सेना के सर्वोच्च स्तर से कहा गया था कि चीन की फौज पीछे हटने लगी। मीडिया ने आगे बढ़ कर कहा कि चीन की सेना ढाई किलोमीटर पीछे हट गई। उसके बाद ही 15 जून वाली हिंसक झड़प हुई थी।

उसी तरह विदेश मंत्री, सैन्य कमांडर और संयुक्त सचिव स्तर की वार्ता के बाद स्थिति यह है कि चीन ने कुछ नए इलाकों में घुसपैठ कर ली है और भारतीय सेनाओं की पेट्रोलिंग में बाधा डाली है। पहले चीन ने पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी, पैंगोंग लेक, डेमचक और दौलत बेग ओल्डी में घुसपैठ की, जिसमें से उसका फोकस गलवान घाटी और पैंगोंग लेक पर था। उसने गलवान घाटी में झड़प की और पैंगोंग लेक में बड़े इलाके पर कब्जा कर लिया। अब कई स्तर की कई वार्ताओं के बाद खबर है कि उसने दौलत बेग ओल्डी में भारतीय सैनिकों को गश्त करने से रोका है और देपसांग में घुसपैठ की है। ध्यान रहे चीन देपसांग में पहले 2014 में भी घुसपैठ कर चुका है। इससे भारत को वार्ता की हकीकत समझ में आ जानी चाहिए थी। भारत को यह तथ्य भी ध्यान में रखना चाहिए कि 2003 के बाद से दोनों देशों के बीच सीमा विवाद सुलझाने के लिए खासतौर से बनाए गए समूहों की 22 बार बैठकें हो चुकी हैं। यह शीर्ष नेताओं की शिखर वार्ताओं से अलग है। इतनी बैठकों के बाद विवाद सुलझाने की दिशा में रत्ती भर तरक्की नहीं हुई है।

जाहिर है चीन का मकसद इस तरह की वार्ताओं के जरिए भारत को उलझाए रखने की है। चीन यह भ्रम पैदा करना चाहता है कि वह वार्ता के जरिए ही मामला सुलझाना चाहता है और इसे लेकर गंभीर है। पर असल में वह सिर्फ भारत को उलझाए रखना चाहता है और इस बीच अपनी सैन्य तैयारियां बढ़ा रहा है। उसने पूर्वी लद्दाख में ही कई जगहों पर स्थायी निर्माण कर लिया है। कई जगह टेंट लगा दिए हैं, भारी हथियार जुटा लिए हैं और सैनिकों की तैनाती बढ़ा दी है। गलवान घाटी से लेकर देपसांग तक वह सैनिक तैनाती बढ़ा रहा है। इसलिए भारत को समझना चाहिए कि उससे बातचीत करने की कोई उपयोगिता नहीं है। बातचीत होती भी है तो 11 घंटे उसके साथ बैठने का कई मतलब नहीं है। भारत को दो टूक अंदाज में चीन से कहना चाहिए कि वह अप्रैल से पहले की यथास्थिति बहाल करे और अगर नहीं करता है तो भारत सैन्य ताकत के दम पर यथास्थिति बहाल कराने का प्रयास करेगा।

इस प्रयास में सफलता मिले या नहीं मिले वह अलग बात है पर बातचीत की टेबल पर अपनी संप्रभुता और अपना भूभाग गंवाने से बेहतर है कि लड़ कर गंवाया जाए। सीमित युद्ध में तो फिर भी इस बात की संभावना है कि भारत के जवान अपनी बहादुरी के दम पर अपनी सरजमीं हासिल कर सकते हैं पर वार्ता की टेबल पर तो गारंटी है कि भारत को नुकसान होगा। नुकसान इसलिए होगा क्योंकि चीन का इरादा ठीक नहीं है। वह अपनी विस्तारवादी सोच के तहत भारत की सीमा में घुस कर बैठा है और उसका इरादा लद्दाख में यथास्थिति बदलने का है। उसे अपनी सीपीईसी परियोजना और डैमर बाशा डैम प्रोजेक्ट की वजह से भी यह कबूल नहीं है कि लद्दाख भारत का केंद्र शासित प्रदेश रहे। तभी वह सैनिक ताकत के जरिए इस इलाके में यथास्थिति बदलने का प्रयास कर रहा है और भारत को भी कूटनीतिक वार्ता को सैन्य ताकत का विकल्प नहीं बनाना चाहिए। भारत को भी चीन को जैसे को तैसा जवाब देने की तैयारी करनी चाहिए।

बुधवार, 24 जून 2020

पीएम केयर्स फंड के तहत अब तक क़रीब छह फीसदी वेंटिलेटर का ही उत्पादन हुआ: रिपोर्ट

पीएम केयर्स फंड के तहत कुल 50,000 स्वदेशी वेंटिलेटर्स बनाने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन अब तक सिर्फ छह फीसदी वेंटिलेटर्स ही बनाए जा सके हैं।

यह स्थिति देश में मेडिकल उपकरणों से जुड़े कंपोनेंट के उत्पादन की खस्ता हालत दर्शाती है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, मंगलवार को प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से एक बयान जारी किया गया, जिसमें कहा गया कि पीएम केयर्स फंड के तहत कुल 50,000 स्वदेशी वेंटिलेटर्स का अब तक 2,923 वेंटिलेटर यानी करीब छह प्रतिशत का ही उत्पादन हुआ है, जिनमें से 1,340 वेंटिलेटर्स को पहले ही राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को डिलीवर किया जा चुका है।

बयान में कहा गया, ‘जिन-जिन राज्यों में अब तक इन वेंटिलेटर्स की डिलीवरी की गई है, उनमें महाराष्ट्र (275), दिल्ली (275), गुजरात (175), बिहार (100), कर्नाटक (90) और राजस्थान (75) है. जून 2020 के अंत तक अतिरिक्त 14,000 वेंटिलेटर्स को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में डिलीवर किया जाएगा।’

रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत, उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) के सचिव गुरुप्रसाद मोहपात्रा और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के चेयरमैन डॉ. सतीश रेड्डी ने देश में कंपोनेंट उत्पादन में कमी को 11 जून को सरकार और उद्योग जगत के बीच हुई बातचीत में उठाया था।

इस कार्यक्रम में प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार डी. विजयराघवन ने भी हिस्सा लिया था।

अमिताभ कांत की अध्यक्षता में आयोजित इस ई-कॉन्फ्रेंस में वरिष्ठ अधिकारियों, वेंटिलेटर और कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स से जुड़े प्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया।

सूत्रों का कहना है कि कॉन्फ्रेंस के दौरान वेंटिलेटर्स के देरी से बनने के मुद्दे को उठाया गया।

शीर्ष अधिकारियों ने स्वीकार किया कि वेंटिलेटर की मैन्युफैक्चरिंग के लिए जरूरी कलपुर्जे (कंपोनेंट्स) नहीं होने की वजह से वेंटिलेटर की डिलीवरी में देरी हुई।

11 जून को हुई बैठक के दौरान मोहपात्रा ने कहा था, ‘मांग का आकलन करने के बाद सरकार ने चार भारतीय वेंटिलेटर उत्पादक कंपनियों को 60,000 वेंटिलेटर्स बनाने का ऑर्डर दिया था लेकिन महत्वपूर्ण कलपुर्जे नहीं होने की वजह से इनकी डिलीवरी में देरी हुई, क्योंकि ये कलपुर्जे बाहर से आयात करने पड़ते हैं।’

डीपीआईआईटी अधिकारियों ने एसी/डीसी कंवर्टर, छोटे सामान्य उपयोग के फिल्टर, थर्मो इलेक्ट्रिक डिवाइस, प्रेशर पंप, सेंसर्स, ऑप्टिकल एनकोडर, ऑक्सीजन सेंसर्स, फ्लो सेंसर्स और सब्सटेंस वॉल्व जैसे विशेष कलपुर्जों की खरीद में भारतीय वेंटिलेटर्स उत्पादकों की समस्याओं पर भी बात की।

अमिताभ कांत ने कहा कि वेंटिलेटर के कई कलपुर्जे भारत में नहीं बनाए जाते, उन्हें बाहर से आयात करना पड़ता है, जिससे इनके उत्पादन और बाद में सप्लाई में देरी हो जाती है।

सूत्रों के मुताबिक, डीआरडीओ चेयरमैन ने देश में कंपोनेंट ईको-सिस्टम बनाए जाने की जरूरत पर जोर दिया। वेंटिलेटर उत्पादक कंपनियों ने देश में वेंटिलेटर बनाने की समस्याओं से भी अवगत कराया।



लोकतांत्रिक जवाबदेही से बेखबर?

भारतीय जनता पार्टी छह साल से सत्ता में है। इसके पहले भी 1998 से 2004 तक केंद्र की सत्ता में रह चुकी है। यानी कुल 12 साल। 12 साल को एक युग कहा जाता है। लेकिन ऐसा लगता है कि एक युग तक सत्ता संभालने के तजुर्बे के बावजूद बीजेपी के नेता लोकतांत्रिक जवाबदेही के सिद्धांत को गले नहीं उतार पाए हैं। कायदा यह है कि लोकतंत्र में विपक्ष, सिविल सोयासटी या मीडिया कोई सवाल उठाए तो, सरकार या सत्ताधारी पार्टी उसका माकूल जवाब सामने रखे। मगर ऐसा कोई सवाल या सलाह आने पर बीजेपी के नेता आक्रोश में आकर जवाबी सवाल पूछने लगते हैं। ऐसा ही पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान पर हुआ। उन्होंने चीन की अभी जारी घुसपैठ के बारे में प्रधानमंत्री को एक अहम सलाह दी और सरकार के तौर-तरीके की आलोचना की। इस पर बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा ने जवाबी हमला बोल दिया। इल्जाम लगाया कि मनमोहन सिंह के शासनकाल में 2010 से 2013 के बीच भारत ने सैकड़ों वर्ग किलोमीटर जमीन चीन को सरेंडर कर दिया। उस दरम्यान चीन के घुसपैठ की 600 से ज्यादा घटनाएं हुईं। इस पर कांग्रेस सीनियर लीडर पी चिदंबरम ने कहा कि ये बात ठीक है कि 2010 से 2013 के बीच घुसपैठ की घटनाएं हुई थीं। लेकिन उस दौरान भारत की जमीन के किसी हिस्से पर चीन का कब्जा नहीं हुआ। 

ना किसी भारतीय सैनिक की चीन के फौजियों हाथों मौत हुई। अब मुद्दा यह है कि राष्ट्रीय सुरक्षा का यह सवाल क्या इस तरह दलगत तू तू- मैं मैं में बदलना चाहिए? यहां यह जरूर याद रखना चाहिए कि जब भाजपा विपक्ष में थी, तो ऐसे मामलों में उसका रुख आज की कांग्रेस की तुलना में कहीं ज्यादा आक्रामक रहता था। 2004 से 2014 के बीच- जब केंद्र में यूपीए सरकार थी- भाजपा ने चीन और दूसरे पड़ोसी देशों से भारत के रिश्तों के मामले में राजनीतिक प्रस्ताव पारित किए थे, श्वेत पत्र यानी ह्वाइट पेपर जारी करने की मांग की थी और सरहदी इलाकों का जायजा लेने के लिए अपने दल वहां भेजे थे। तब चीन या किसी दूसरे पड़ोसी देश से तनाव पैदा होने का कोई मामला सामने आता था, तो बीजेपी ने बढ़-चढ़ कर प्रेस कांफ्रेंस करते थे। उनमें तब की सरकार पर जम कर हमला बोला जाता था। यह विपक्षी दल के रूप में उसका कर्त्तव्य था। लेकिन सवाल यह है कि बीजेपी को आज क्यों यह महसूस होता कि जो पार्टियां आज विपक्ष में हैं, उनका भी ये कर्त्तव्य है कि वो सरकार से सवाल पूछें?

1962 युद्ध: अमेरिका और ब्रिटेन ने खुलकर दिया था भारत का साथ, पाकिस्तान समेत ये देश थे खिलाफ

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद जारी है। गलवां घाटी में हुई हिंसक झड़प में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए थे। इसे लेकर देशभर में गुस्से का माहौल है। लोग चीन से भारत के सपूतों की शहादत का बदला लेने और चीन को सबक सिखाने की मांग कर रहे हैं। भारत को कई देशों का भी साथ मिल रहा है। 

वहीं, कुछ देश 1962 के युद्ध की तरह चीन के साथ नजर आ रहे हैं। क्या आपको मालूम है कि जब भारत और चीन के बीच 1962 में युद्ध हुआ तो भारत को सबसे बड़ी मदद उस देश से मिली थी जिससे भारत बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं कर रहा था। चलिए हम आपको बताते हैं कि 1962 के युद्ध में कौन से देश भारत के साथ और किसने विरोध किया था। 

दो भागों में बंट गई थी दुनिया

1962 में जब भारत और चीन का युद्ध हुआ तो पूरी दुनिया दो खेमों में बंटी हुई थी। एक खेमा सोवियत संघ का साम्यवादी खेमा जो पूर्वी खेमा कहलाता था और दूसरा खेमा अमेरिका और मित्र देशों का था। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इसी के बीच गुटनिरपेक्ष देशों का आंदोलन खड़ा कर रहे थे। 

हालांकि, भारत ने सोवियत संघ (अब रूस) से मिग विमानों की खरीद करके ब्रिटेन और अमेरिका को नाराज कर दिया था। युद्ध से पहले सोवियत संघ भारत से लगातार दोस्ती की बात कर रहा था लेकिन भारत और चीन का युद्ध होते ही वो शांत होकर बैठ गया। 

अमेरिका ने दिया था खुलकर साथ

भारत को सबसे बड़ी मदद अमेरिका से मिली थी जिसकी भारत को उम्मीद नहीं थी। अमेरिका ने हथियारों और समर्थन दोनों तरीके से भारत की मदद की। अमेरिका के राष्ट्रपति जान एफ कैनेडी ने भारत का साथ दिया। उन्होंने कोलकाता में 02 नवंबर 1962 को सात विमानों से हथियार भेजे। भारत का साथ देने की एक वजह सोवियत संघ और अमेरिका के बीच क्यूबा को लेकर चल रही जबरदस्त तनातनी भी थी। 

अमेरिका ने पाकिस्तान पर बनाया था दवाब

अमेरिका ने पर्दे के पीछे भी बड़ी भूमिका भी निभाई। उसने सुनिश्चित किया कि पाकिस्तान उस समय पश्चिम छोर से भारत पर आक्रमण नहीं करेगा। तत्कालीन नई दिल्ली स्थित अमेरिकी राजदूत जॉन कैनेथ गालब्रेथ की प्रकाशित डायरी से साफ पता चलता है कि अमेरिका ने इस युद्ध को रोकने, चीन पर दबाव डालने और पाकिस्तान को शांत रखने में काफी सक्रियता दिखाई थी।

चीन को लगा, भारत की मदद नहीं करेगा कोई देश

1962 में जब चीन ने भारत पर हमला किया तो उसे लग रहा था कि अमेरिका और सोवियत संघ आपस में उलझे हुए हैं तो कोई भी देश भारत की मदद नहीं कर पाएगा। इसके बाद भी अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने भारत के लिए समय निकाला और खुलकर मदद की। 

भारत को सैनिक मदद देने को तैयार था ब्रिटेन

भारत पर चीन के आक्रमण के बाद ब्रिटेन में तुरंत संसद की बैठक हुई। जिसे रानी एलिजाबेथ द्वितीय ने संबोधित किया। संसद के नए अधिवेशन में अपना अभिभाषण देते हुए उन्होंने भारत को पूरा समर्थन दिया था। उन्होंने कहा था कि इस संकट की घड़ी में ब्रिटेन पूरी तरह से भारत के साथ है। अगर भारत चाहे तो हम उसे सैनिक मदद दे सकते हैं।

खुलकर समर्थन में नहीं आए गुटनिरपेक्ष देश

अमेरिका और ब्रिटेन की तरह गुटनिरपेक्ष देश भारत के समर्थन में खड़े होते नहीं दिखाई दिए। केवल मिस्र और यूनाइटेड अरब रिपब्लिक ही खुलकर भारत के समर्थन में आए। बाद में 10 दिसंबर 1962 में गुटनिरपेक्ष देशों ने श्रीलंका में एक मीटिंग कर चीन से अनुरोध किया था कि उसकी सेना 20 किमी पीछे हट जाए।

सोवियत संघ (रूस) रहा चुप

दोनों देशों के बीच युद्ध के दौरान सोवियत संघ (रूस) चुप रहा और उसने न तो किसी का साथ दिया और न ही मुखालफत जाहिर की। हालांकि 50 के दशक के आखिर में सोवियत संघ ने भारत के साथ प्रगाढ़ दोस्ती का वादा किया। तब भारत ने अमेरिका और ब्रिटेन को नाराज करके उससे मिग विमान खरीदने का फैसला किया।

ये देश खड़े थे साथ

युद्ध में भारत के पक्ष में जो देश खड़े हो थे उन्होंने खुले तौर पर चीन की कार्रवाई को गलत बताया था। उसमें ऑस्ट्रेलिया, साइप्रस, फ्रांस, जर्मनी, दक्षिण कोरिया, वियतनाम, न्यूजीलैंड, मेक्सिको, कनाडा, जापान, ईरान, हॉलैंड, स्वीडन और इक्वाडोर आदि शामिल थे।

भारत के खिलाफ था पाकिस्तान लेकिन नहीं कर पाया कुछ

पाकिस्तान की भूमिका युद्ध में निश्चित तौर पर चीन के साथ थी लेकिन अमेरिका की दखलअंदाजी के कारण वो शांत रहा। इस समय भारत को आंख दिखा रहा नेपाल तब भारत के साथ खड़ा था। उसने उस युद्ध में भारत को अपनी जमीन सैन्य इस्तेमाल के लिए दी थी।





हर लोकसभा क्षेत्र में खुलेंगे पासपोर्ट सेवा केंद्र, ई-पासपोर्ट की भी हो रही पहल : जयशंकर

केंद्रीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को पासपोर्ट सेवा दिवस के मौके पर देश और देश के बाहर पासपोर्ट जारी करने वाले भारतीय अधिकारियों से वार्ता की। इस दौरान उन्होंने वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान उनके कार्य की प्रशंसा की तो देश में पासपोर्ट सेवा केंद्रों की संख्या बढ़ाने की योजना और ई-पासपोर्ट पर भी चर्चा की। 

जयशंकर ने कहा, पासपोर्ट सेवा दिवस के मौके पर मैं भारत और विदेश में हमारे सभी पासपोर्ट जारी करने वाले अधिकारियों को सम्मानित करना चाहता हूं। हम बहुत अलग परिस्थितियों में बैठक कर रहे हैं। मैंने देखा है कि वैश्विक महामारी कोविड-19 के बीच आप सभी ने सार्वजनिक आवश्यकताओं को बदलने के लिए कितने बेहतर तरीके से प्रतिक्रिया दी है।

विदेश मंत्री ने कहा, हम ऐसे हर लोकसभा क्षेत्र में पोस्ट ऑफिस पासपोर्ट सेवा केंद्र खोलने का विचार कर रहे हैं, जहां आज की तारीख में कोई पासपोर्ट सेवा केंद्र (पीएसके) नहीं है। उन्होंने कहा कि अभी तक हम 488 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में यह सेवा प्रदान करने में सक्षम हुए हैं। लगातार आगे बढ़ रही यह महत्वाकांक्षी प्रक्रिया कोरोना के चलते कुछ समय के लिए रुकी है। 

जयशंकर ने कहा, हम चिप-सक्षम ई-पासपोर्ट के लिए भारतीय सुरक्षा प्रेस नासिक और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र के साथ काम कर रहे हैं। ई-पासपोर्ट का परिचय हमारे यात्रा दस्तावेजों की सुरक्षा को मजबूत करेगा। इस उत्पादन के लिए खरीद प्रक्रिया चल रही है और मैं इस कार्य को जल्द से जल्द पूरा करने की आवश्यकता पर जोर दूंगा।

क्या है पासपोर्ट सेवा दिवस

साल 1966 तक पासपोर्ट जारी करने की प्रक्रिया को प्रशासनिक अनुदेशों के द्वारा विनियमित किया जाता था । पासपोर्ट जारी किए जाने संबंधी शक्तियों का प्रयोग सरकार द्वारा भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची-1, मद संख्या 19 के साथ पठित अनुच्छेद 73 के आधार पर किया जाता था । हालांकि, संसद सत्र के रूप में नहीं था, इसलिए सरकार ने पासपोर्ट अध्यादेश 1967 प्रख्यापित किया और छह माह के बाद इसे वर्तमान पासपोर्ट अधिनियम, 1967 से प्रतिस्थापित कर दिया, जो 24 जून, 1967 से प्रवृत्त हुआ। इस दिन को अब पासपोर्ट सेवा दिवस के रूप में मनाया जाता है |
लालबाजार की पुलिस फोर्स ‘सिंघम’ तो नहीं पर ‘सिंघम’ से कम भी नहीं

राजनीतिक द्वन्दः ‘आत्मनिर्भर’ व ‘आत्मसमर्पण’ के बीच…

भारत की सीमा पर चीन ने चाहे अघोषित युद्ध छेड़ रखा हो, किंतु भारत में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और प्रमुख प्रतिपक्षी दल काँग्रेस के बीच चीन को लेकर ही घोषित युद्ध छिड़ गया है, पक्ष-विपक्ष के बीच यह वाक-युद्ध ‘आत्मनिर्भर’ व ‘आत्मसमर्पण’ के हथियारों से लड़ा जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जहां चीन को हराने के लिए ‘आत्मनिर्भरता’ का नारा दिया,

वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मोदी जी के लिए चीन के संदर्भ में ‘सरेण्डर’ (आत्मसमर्पण) शब्द का उपयोग किया, यद्यपि जहां तक मोदी के लिए ‘सरेण्डर’ या ‘आत्मसमर्पण’ के उपयोग का सवाल है, वे सही में ‘आत्मसमर्पित’ है, किंतु अंतर सिर्फ इतना है कि वे देश की सेवा के प्रति आत्मसमर्पित है, चीन के सामने नहीं, और इसी कारण अंग्रेजी का यह ‘सरेण्डर’ शब्द मोदी जी के लिए गाली बन गया और भाजपा ने राहुल के लिए तलवारें तान ली। 

पिछले एक-दो दिनों के इसी राजनीतिक घटनाक्रम व उसके कारणों पर सूक्ष्म नजर डाले तो इसके लिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी या उनकी माँ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया जी को व्यक्तिशा इसलिए दोषी नहीं माना जा सकता क्योंकि इसमें इन माँ-बेटे का दोष नहीं बल्कि दोष सही राजनीतिक प्रशिक्षण व संस्कारों के अभाव का है। आज की कांग्रेस की दुरावस्था पर यदि गंभीर चिंतन किया जाए तो इसके लिए दोषी इसमें राजनीतिक परिपक्वता व संस्कार का अभाव ही है, कांग्रेस की नई पीढ़ी के प्रमुख सदस्य राहुल गांधी या पूर्व कांग्रेसी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों का ही राजनीति में प्रवेश विरासत के कारण मिला, इंदिरा जी की हत्या के समय तो राहुल मात्र चौदह वर्ष के थे, इसलिए उनसे राजनीति का प्रारंभिक प्रशिक्षण प्राप्त करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता, और इनके पिताजी स्व. राजीव गांधी को भी आनन-फानन में पॉयलट की नौकरी छोड़कर राजनीतिक अपरिपक्वता की स्थिति में प्रधानमंत्री बनना पड़ा था, किंतु चूंकि उन्होंने पॉयलटी के साथ अपनी माँ का राजनीतिक करतब भी करीब से देखा था, इसलिए उन्होंने पांच साल प्रधानमंत्री के रूप में ठीक से काम किया, किंतु उनकी पत्नी और वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बहू रहते हुए अपनी सास से राजनीति का पाठ पढ़ने में कोई रूचि नहीं दिखाई,

इसलिए वे राजनीतिक दृष्टि से अपरिपक्व रही और राजीव की हत्या के बाद उन्हें पति की विरासत के रूप में कांग्रेस अध्यक्ष बनना पड़ा, यद्यपि उन्होंने अध्यक्ष के रूप में दस साल कांग्रेस की सरकार चलाई, जिसके कई विवाद आज भी उभर कर ऊपर आ जाते है, फिर जब अपनी ममता व महत्वकांक्षा के तहत राहुल को अध्यक्ष बनाया तो वे पार्टी के लिए यथोचित उपयोगी सिद्ध नहीं हो पाए और फलतः सोनिया को अध्यक्ष पद वापस लेना पड़ा। यही स्थिति कांग्रेस के पूर्व नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की भी रही, उनकी भी राजनीतिक दीक्षा पूरी नही हो पाई और माधवराव जी चले गए, यदि माधवराव जी उन्हें राजनीति का सिर्फ एक पाठ (अपने आस-पास वालों से कैसे निपटना) ठीक से पढ़ा पाते तो आज ज्योतिरादित्य को कांग्रेस छोड़ने को मजबूर नहीं होना पड़ता।

…..तो कुल मिलाकर यही मान लिया जाना चाहिये कि देश के मौजूदा राजनीतिक परिदृष्य में कांग्रेस के धीरे-धीरे लोप होने के पीछे मोदी जी का कोई करिश्मा या चमत्कार नहीं है, बल्कि कांग्रेस स्वयं अपनी नादानी और बचकानी हरकतों से गिर रही है, वर्ना यदि इंदिरा जी द्वारा प्रशिक्षित संजय गांधी होते तो आज कांग्रेस का चाल-चरित्र और चेहरा अलग ही होता और आजादी के बाद से इस देश में दो ही दल मुख्य रहे पूर्व जनसंघ या वर्तमान भाजपा तथा कांग्रेस, और कांग्रेस चूंकि संक्रमण के दौर से गुजर रही है और कोई क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय दल बन नही पाया इसीलिए आज भाजपा की ‘‘तूती’’ बोल रही है।

अब यदि फिर वही सवाल उठाया जाता है कि पचास वर्षिय राहुल को सत्तर वर्षिय नरेन्द्र मोदी को ‘सरेण्डर’ की राजनीतिक गाली नही देनी थी तो इसके लिए राहुल का नहीं बल्कि उनमें संस्कारों का अभाव दोषी है, यदि संस्कारों का अभाव नहीं होता तो देश के मौजूदा हालातों में सभी के साथ होने की जगह वे अपनी ढपली अलग क्यों बजाते? अरे….. जब वर्तमान हालातों में ममता बैनर्जी जैसी घोर मोदी विरोधी मोदी की सरकार की सहयोगी बनी हुई है तो संसद के दरबार में खुलेआम मोदी के गले लगने (बकौल मोदी गले पड़ने) वाले राहुल अब अचानक वाचाल कैसे बन गए? और कांग्रेस व उसके आकाओं का मौजूदा रवैया ऐसे ही जारी रहा तो फिर कांग्रेस की नैया को रानीति के मझधार में डूबने से कोई नहीं बचा सकता।

राज्यसभा में गणित बदलने का मतलब

राज्यसभा के ताजा चुनावों के बाद संसद के उच्च सदन कि गणित बदल गया है। छह साल में पहली बार भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के सांसदों की संख्या तीन अंकों में पहुंची है। हालांकि बहुमत अब भी बहुत दूर है पर भाजपा और एनडीए दोनों की ताकत बढ़ी है। भाजपा के लिए राज्यसभा में ताकत बढ़ाना कितना अहम है उसे इस बात से समझा जा सकता है कि उसने कांग्रेस, टीडीपी, समाजवादी पार्टी जैसी कई पार्टियों के राज्यसभा सांसदों से इस्तीफा करा कर उनको अपने साथ जोड़ा है। इस बार के चुनाव में भी भाजपा ने सारे उपाय करके मध्य प्रदेश, गुजरात और मणिपुर में सीटें बचाईं या अतिरिक्त सीट हासिल की।

अब राज्यसभा में भाजपा की अपनी 84 सीटें हो गई हैं। यह मुख्य विपक्ष कांग्रेस की सीटों से दोगुनी से ज्यादा संख्या है। लंबे समय के बाद पक्ष और विपक्ष के बीच सीटों का इतना बड़ा अंतर आया है। इस साल के अंत तक यह अंतर और ज्यादा हो जाएगा। नवंबर में उत्तर प्रदेश की दस सीटों और उत्तराखंड की एक सीट का चुनाव होना है। इन 11 सीटों में से भाजपा को दस सीटें मिलेंगी। उसके चार राज्यसभा सांसद रिपीट होंगे। इसका मतलब है कि उसे छह सीटों का फायदा होगा और उसकी संख्या 90 से ऊपर चली जाएगी। उसके बाद भाजपा का प्रयास अपनी संख्या को एक सौ से ऊपर ले जाने का होगा। 

वैसे तो जब एनडीए की राज्यसभा में इतनी ताकत भी नहीं थी तब भी उसने कश्मीर का विधेयक पास कराया और नागरिकता कानून में भी संशोधन करा लिया। कांग्रेस और कुछ अन्य पार्टियों को छोड़ कर ज्यादातर पार्टियां और नेता हमेशा भाजपा के बनाए इस नैरेटिव के जाल में फंस जाते हैं कि उसकी सरकार जो कर रही है वह देशभक्ति है और इसका विरोध करना गद्दारी कहलाएगा। कश्मीर के विशेष राज्य के दर्ज को बदलने और राज्य के बंटवारे के मामले में भी यहीं हुआ और नागरिकता के मसले पर भी यहीं हुआ। पार्टियों ने आगे बढ़ कर सरकार के प्रस्ताव का समर्थन किया।

अब सरकार को अर्थव्यवस्था से जुड़े कई बदलाव करने हैं। सरकार ने आपदा को अवसर बनाते हुए श्रम कानूनों से लेकर कृषि कानून, आवश्यक वस्तु कानून सहित कई बदलाव किए हैं। इनके अध्यादेश जारी हो चुके हैं और अगले सत्र में इन्हें कानून बनाना है। इन आर्थिक मसलों पर सरकार का विरोध हो सकता है। लेकिन उससे पहले ही सरकार ने अपनी ताकत इतनी बढ़ा ली कि अब कांग्रेस, कम्युनिस्ट और कुछ समाजवादी विचारधारा की पार्टियों के विरोध का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। यहां तक तो ठीक है। इसके बाद माना जा रहा है कि एनडीए की बढ़ी हुई ताकत संविधान के कुछ अन्य प्रावधानों को बदलने के काम आ सकती है। जैसे समान नागरिक संहिता का विधेयक लाने की चर्चा काफी समय से है और जनसंख्या नियंत्रण के कानून की भी चर्चा चल रही है।

सरकारी योजनाओं की ऑडिट जरूरी

छह साल पहले नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने पहले कार्यकाल के पांच साल में दर्जनों योजनाओं की शुरुआत की। भाजपा के नेताओं ने कई बार बड़े गर्व से बताया कि प्रधानंमत्री ने 90 के करीब नई योजनाओं की शुरुआत की है। इनमें से ज्यादातर योजनाएं पहले कार्यकाल के पहले या दूसरे साल में ही शुरू हो गई थीं। इसका मतलब है कि उनके पांच या छह साल हो गए हैं। सो, इन सारी योजनाओं की स्वतंत्र रूप से ऑडिट की जानी चाहिए और लोगों के सामने यह सचाई आनी चाहिए कि इनसे क्या हासिल हुआ है। ये योजनाएं कितनी सफल हुईं, इनसे कितने लोग लाभान्वित हुए और इन पर कितना खर्च हुआ।

इसकी जरूरत इस वजह से लग रही है कि एक तो इन योजनाओं के पांच साल से ज्यादा हो गए हैं इसलिए इनकी सफलता-विफलता का आकलन होना चाहिए। दूसरे, पिछले काफी समय से इन योजनाओं की चर्चा नहीं हो रही है इसलिए भी जरूरी है कि इनकी खोज खबर ली जाए और तीसरे, हाल में एक योजना की ऑडिट हुई है, जिसके चौंकाने वाले नतीजे आए हैं। पिछले दिनों भारत सरकार ने खुद ही सांसद आदर्श ग्राम योजना की ऑडिट कराई। एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी की अध्यक्षता में एक लंबी चौड़ी टीम बनाई गई थी, जिसने 120 गांवों में जाकर मुआयना किया और वहां के लोगों से बात करके एक रिपोर्ट बनाई है, जिसके मुताबिक सांसद आदर्श ग्राम योजना लगभग पूरी तरह से फेल हो गई है।

भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय ने पांचवें कॉमन रिव्यू मिशन के तहत इस योजना की जांच कराई। इसकी टीम ने आठ राज्यों के 21 जिलों में जाकर 120 गांवों का आकलन किया। इसके अध्ययन की रिपोर्ट कहती है कि पिछले पांच साल के समय में इन गांवों की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि अगर यह योजना इसी रूप में चलती रही तो इससे कुछ हासिल नहीं होगा। इसके मुताबिक ज्यादातर सांसदों ने सांसद आदर्श ग्राम योजना को आगे बढ़ाने में रूचि नहीं ली। उन्होंने सांसद निधि का पैसा इससे जुड़ी योजनाओं पर खर्च नहीं किया।

सोचें, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना की शुरुआत की थी और उन्होंने खुद भी एक गांव गोद लिया था। इसके बावजूद किसी सांसद ने आदर्श गांव बनाने में दिलचस्पी नहीं ली। इस बात को लेकर हैरानी इसलिए भी है कि सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के अपने लोकसभा में 303 सांसद हैं और राज्यसभा में भी उसके सांसदों की संख्या कांग्रेस से दोगुनी हो गई है। पिछली लोकसभा में भी भाजपा के 284 सांसद थे। प्रधानमंत्री की अपील के बावजूद भाजपा के सांसदों ने भी आदर्श ग्राम योजना को आगे नहीं बढ़ाया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिन योजनाओं में सांसदों या जन प्रतिनिधियों को नहीं जोड़ा गया और जिन्हें लेकर पार्टी अनुशासन या पार्टी नेतृत्व की चिंता नहीं है उनका क्या हस्र हुआ होगा।

जिस तरह पांच साल बीत जाने के बाद भी आदर्श ग्राम विकसित नहीं हुए उसी तरह स्मार्ट सिटी की परियोजना भी अटकी दिख रही है। केंद्र सरकार ने एक सौ स्मार्ट सिटी बनाने का ऐलान किया था। इसकी पड़ताल होनी चाहिए कि पांच साल में कितने शहर स्मार्ट बने हैं, स्मार्ट सिटी के नाते उनमें क्या नई सुविधाएं विकसित की गई हैं, जो उन्हें दूसरे शहरों से अलग करती हैं और उन पर कितना खर्च हुआ है।  इस योजना की ऑडिट हो तो निश्चित रूप से इसकी भी स्थिति आदर्श ग्राम योजना की ही तरह पता चलेगी। तभी पिछले कुछ समय से स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की चर्चा लगभग पूरी तरह से बंद हो गई है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वच्छता मिशन, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना, डिजिटल इंडिया, स्टैंड अप इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, मेक इन इंडिया, प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री ग्राम आवास योजना, डिजीलॉकर, सुकन्या समृद्धि एकाउंट, अटल पेंशन योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा, प्रधानमंत्री कौशल विकास, सॉयल हेल्थ कार्ड योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, मिशन इंद्रधनुष, सागरमाला, हेरिटेज सिटी योजना, सेतु भारतम, बचत लैंप, उन्नत भारत अभियान आदि कुछ ऐसे नाम हैं, जिनके बारे में तब खूब चर्चा हुई थी, जब इन्हें लांच किया गया था। इसके अलावा भी 50 से ज्यादा और योजनाओं की घोषणा की गई थी परंतु उनके बारे में अब चर्चा नहीं होती है।

सरकार को चाहिए कि इन तमाम योजनाओं की ऑडिट कराए। मिसाल के तौर पर सरकार के कौशल विकास योजना को लिया जा सकता है। कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से बड़ी संख्या में मजदूर देश के अलग अलग हिस्सों से अपने अपने राज्य में लौटे हैं। राज्य सरकारें उनके कौशल की सूची बना रही है और उस हिसाब से उनके लिए काम की व्यवस्था करने की तैयारी हो रही है। केंद्र सरकार की कौशल विकास योजना इस काम आ सकती है। पर इस बारे में सुनने को नहीं मिल रहा है। इसकी पड़ताल हो तो पता चलेगा कि यह योजना कितनी कारगर हुई है और आगे इसका क्या भविष्य है।

इसी तरह बीमा या बैंक खातों या मुद्रा योजना जैसी योजनाओं की भी जांच-पड़ताल होनी चाहिए। मुद्रा योजना के तहत कितने लोगों ने क्या काम किया और कितने लोग अब भी कर्ज की किश्तें चुका रहे हैं और कितने लोग पैसे डकार कर गायब हो गए, इसका पता लगाया जाना चाहिए। ध्यान रहे कुछ समय पहले इस बारे में खबरें आई थीं कि इस योजना के तहत जारी किया गया बहुत सारा कर्ज एनपीए हो गया है। जिस तरह से भारत सरकार सदियों से या दशकों से बने ऐसे कानूनों को खत्म कर रही है, जो बेकार हो गए हैं या जिनकी उपयोगिता नहीं है तो उसी तरह सरकार को ऐसी योजनाओं की पड़ताल करनी चाहिए, जिनसे आम लोगों को फायदा नहीं हो रहा है या जिन पर पैसे ज्यादा खर्च हुए हैं और लोगों को लाभ कम हुआ है। इस तरह की योजनाओं की पहचान करके उन्हें बंद कर देना चाहिए।

कोरोना की दवा बनाने के बाबा रामदेव के दावे पर विवाद, चिकित्सा मंत्री ने कहा- भारत सरकार कार्रवाई करे

जयपुर। योग गुरु बाबा रामदेव  की कंपनी के द्वारा कोरोना की दवा  खोजने के दावे पर विवाद हो गया है। राजस्थान के जिस अस्पताल से क्लिनिकल ट्रायल का दावा किया जा रहा है उसकी राज्य सरकार से अनुमति तो दूर सूचना तक नहीं दी गई। प्रदेश के चिकित्सा मंत्री डॉ. रघु शर्मा ने कोरोना की दवा ईजाद करने के मामले में बाबा रामदेव के दावे पर गंभीर सवाल उठाते हुए भारत सरकार से उनके खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की है।

अनुमति की छोड़िए हमसे से तो किसी ने पूछा तक नहीं

चिकित्सा मंत्री डॉ. रघु शर्मा ने कहा कि अनुमति की छोड़िए हमसे से तो किसी ने पूछा तक नहीं। राजस्थान सरकार द्वारा कार्रवाई के सवाल पर रघु शर्मा ने कहा हमारे डॉक्टर ने एफआईआर दर्ज करवाई है। हम देखेंगे कि क्या कार्रवाई हो सकती है। अस्पताल और बाबा रामदेव के खिलाफ़ कार्रवाई के बारे में देखा जाएगा। उन्होंने कहा कि आयुष मंत्रालय ने गजट नोटिफिकेशन करके 9 बिंदु में निर्देश दिए हैं जिनका किसी भी दवा के ट्रायल में पालन करना अनिवार्य है। बाबा रामदेव ने सभी प्रावधानों का उल्लंघन किया है। बकौल डॉ. शर्मा बिना केंद्र और राज्य की अनुमति कोई दवा का क्लिनिकल ट्रायल नहीं कर सकता। बाबा रामदेव जिस अस्पताल में दवा का क्लीनिकल ट्रायल का दावा कर रहे, वहां हमने तो मरीजों को क्वॉरेटाइन किया था। कई मरीज 3 दिन में ही ठीक हो रहे थे, लेकिन कोरोना की दवा ईजाद करने की बात करना गलत है।

बिना अनुमति ट्रायल पूर्णतया अवैध, भारत सरकार कार्रवाई करे

रघु शर्मा ने कहा कि कानून के हिसाब से यह ट्रायल अवैध है। कानून के दायरे में लाकर इन्हें सजा देनी चाहिए। बिना अनुमति क्लिनिकल ट्रायल अपने स्तर पर करना गंभीर मामला है। बाबा रामदेव केंद्र सरकार के कितने ही नजदीक क्यों ना हों उनके खिलाफ़ कार्रवाई करनी चाहिए। डॉ. शर्मा ने कहा हम भी काढ़ा पिला रहे हैं, लेकिन इससे कोई कोरोना ठीक करने का दावा कैसे कर सकता है। ICMR और WHO अनुमति दे तभी कोरोना की दवा का दावा कर सकते हैं। 

मानसून से पहले राजस्थान के 285 बांधों की स्थिति

जयपुर।  मानसून राजस्थान में बांसवाड़ा के बार्डर को छू चुका है  प्रदेश में मानसून की दस्तक भी होने वाली है।  इससे पहले बांधों की मौजूदा स्थिति भी जाननी बहुत जरूरी है। 

राजस्थान के 285 बांधों में 24 फीसदी पानी दर्ज किया गया है।  जल संसाधन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, 9 बड़े बांधों में 40 फीसदी, छोटे बांधों में 7 फीसदी और 220 बहुत छोटे बांधों में 6 फीसदी पानी की मात्रा दर्ज की गई है।  ऐसे में इस बार अच्छे मानसून की उम्मीद है ताकि सूखे और आधे बांध पानी से लबालब हो सके। 

राजस्थान के 9 बड़े बांधों की स्थिति

बांध                    क्षमता        पानी का स्तर    प्रतिशत

बीसलपुर बांध    315.50         312.90        56.76

ग्लावा बांध            6.1                3       24.73

टोरडी सागर         9.14               0              0

मोरल बांध            9.14           2.03           17.11

सीकरी बांध           3.64           0                  0

पार्वती बांध           223.41      212.80          13.40

रामगढ़ बांध          19.82             0           0

छपरवाडा बांध        5.18             0          0

कैलाश सागर बांध      7.93            0           0



छोटे बांधों में पानी की मात्रा कम

मानसून से पहले जल संसाधन विभगा ने जो रिपोर्ट जारी की है, उनके मुताबिक छोटे बांधों की स्थिति अच्छी नहीं है।  27 मीडियम बांधों में केवल 7 फीसदी पानी दर्ज किया गया है।  वहीं, छोटे बांधो में केवल 6 फीसदी पानी ही है। 

केवल 7 बांधों की स्थिति अच्छी

राजस्थान के बड़े और मीडियम बांधों की बात करें तो केवल 7 बांध ही ऐसे है, जिनकी स्थिति ठीक नहीं है।  बीसलपुर बांध, ग्लावा बांध, मोरल बांध, पार्वती समेत चुनिंदा बांधों की स्थिति ठीक है। 

कई बांध चढ़ गए अतिक्रमण की भेंट

मानूसन की बारिश अच्छी होने के बावजूद भी बांधों की पानी नहीं पहुंच पाता।  वजह ये है कि बांध के बहाव क्षेत्रों में अतिक्रमण हो गया है, जिस कारण बारिश का पानी बांध में नहीं पहुंच पाता।  जयपुर के रामगढ़ बांध भी पूरी तरह से अतिक्रमण की भेंट चढ़ गया।