चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी दूसरी पार्टियों में खूब तोड़ फोड़ करती है। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से लेकर तमाम क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं को भाजपा में भरती किया गया था। एक आकलन के मुताबिक 2014 में भाजपा के जो 284 सांसद जीते उनमें करीब एक सौ नेता ऐसे थे जो दूसरी पार्टियों से आए थे। यानी भाजपा के अपने नेता उतने ही जीते थे, जितने अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के जमाने में जीता करते थे। इस लिहाज से तो कह सकते हैं कि बाहर से आए नेताओं से भाजपा को फायदा हुआ। राज्यों के चुनाव में भी ऐसा सफल खेल भाजपा ने किया है।
पर दूसरी पार्टियों से जो बड़े नेता भाजपा में आए वे पार्टी के लिए एक तरह से कचरा है। या तो वे खुद बेकार साबित हुए या भाजपा ने किसी न किसी मजबूरी में उनको बेकार कर दिया। इसके इक्का दुक्का अपवाद हैं, जैसे राजद छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए रामकृपाल यादव, जिन्होंने लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद की बेटी को हराया और बाद में भाजपा ने उनको केंद्र सरकार में मंत्री बनाया है। ऐसे अपवादों को छोड़ दें तो जोश खरोश के साथ भाजपा में शामिल कराए गए ज्यादातर नेता पैदल हैं या पैदल कर दिए गए हैं।
पश्चिम बंगाल के दिग्गज नेता मुकुल रॉय को भाजपा ने बड़े धूमधाम के साथ पार्टी में शामिल कराया था। उनके सहारे भाजपा को पश्चिम बंगाल में ममता को हराना था। ध्यान रहे मुकुल रॉय तृणमूल कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और कांग्रेस में सेंध लगा कर ममता की पार्टी के संगठन को मजबूत करने में सबसे बड़ी भूमिका उनकी थी। पर वे भाजपा में शामिल हुए तो एक छोटा सा प्यादा बन कर रह गए हैं। उन्होंने यह फायदा हुआ हो सकता है कि जिन चिटफंड घोटालों में वे घिर रहे थे उससे बच जाएं पर राजनीतिक रूप से वे भाजपा के काम नहीं आ रहे हैं।
पहले ऐसा लग रहा था कि भाजपा उनको प्रदेश में पार्टी की कमान सौंपेगी और उनको राज्यसभा में भेजा जाएगा। आखिर वे अपना राज्यसभा का कार्यकाल खत्म होने से पहले इस्तीफा देकर आए थे। पर भाजपा ने उनको राज्यसभा में नहीं भेजा और प्रदेश में पार्टी संगठन के काम में कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी। उलटे अमित शाह के पिछले दौरे में मुकुल रॉय को मंच पर एक कोने में बैठाया गया। ऐसे माना जा रहा है कि ममता बनर्जी को खुश करने के लिए भाजपा ने किया है। भाजपा को ऐसा लग रहा है कि चुनाव के बाद ममता की जरूरत पड़ सकती है इसलिए उसने मुकुल रॉय की बलि चढ़ा दी है।
कमोबेश यहीं स्थिति ओड़िशा की केंद्रपाड़ा सीट के पूर्व सांसद जय पांडा की है। बीजू जनता दल और लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद वे भाजपा में शामिल होने वाले थे। पर नवीन पटनायक की नाराजगी को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि भाजपा ने उनकी एंट्री रोक दी है। ध्यान रहे पटनायक ने अभी लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर और राज्यसभा में उप सभापति के चुनाव में भाजपा की मदद की है। आगे भी भाजपा को उनकी मदद की जरूरत दिख रही है। यह भी कहा जा रहा है कि केंद्रीय मंत्री और ओड़िशा में भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार धर्मेंद्र प्रधान ने उनकी एंट्री रूकवाई है। ऐन चुनाव से पहले इस्तीफा देकर पांडा फंस गए हैं। उनके पास अब इतना समय भी नहीं है कि वे अपनी पार्टी बना कर अलग राजनीति करें।
इसी तरह भाजपा ने बड़े धूमधड़ाके से महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे को धूमधाम से पार्टी में शामिल किया था और वे राज्यसभा के सदस्य भी बने। कोंकण के इलाके में वे सबसे बड़े मराठा नेता हैं। शिव सेना ने उनको मुख्यमंत्री बनाया था और कांग्रेस की सरकार में भी वे मंत्री थे। वे महाराष्ट्र की भाजपा सरकार में मंत्री बनना चाहते थे। पर शिव सेना ने उनका विरोध कर दिया, जिसकी वजह से भाजपा ने उनके किनारे किया। अब वे राज्यसभा के सदस्य तो बन गए हैं पर शिव सेना के विरोध को देखते हुए भाजपा उनका इस्तेमाल नहीं कर रही है। ध्यान रहें कोंकण का इलाका ही शिव सेना का भी सबसे मजबूत गढ़ है। और भाजपा को शिव सेना के बगैर चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं हो रही है।
कर्नाटक में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने कांग्रेस के दिग्गज नेता एसएम कृष्णा को अपनी पार्टी में शामिल कराया। वे विदेश मंत्री रहे हैं और कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे हैं। पर भाजपा में उनको क्या जिम्मेदारी मिली? वे सोशल मीडिया टीम में शामिल किए गए, जबकि उनके नाम पर भाजपा वोक्कालिगा वोट हासिल करना चाहती थी। वहां भाजपा की दिक्कत जेडीएस को लेकर थी, जिसकी राजनीति वोक्कालिगा वोट की है। भाजपा जेडीएस के देवगौड़ा पिता-पुत्र को नाराज नहीं करना चाहती थी।
ऐसे ही दिल्ली में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे अरविंदर सिंह लवली को भाजपा ने धूमधड़ाके से पार्टी में शामिल कराया। कुछ दिन तक उनको कोई जिम्मेदारी नहीं मिली तो बेचारे लवली वापस कांग्रेस में लौट गए। हरियाणा में कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए राव इंद्रजीत सिंह केंद्र में मंत्री तो बन गए हैं पर वे भी अगले चुनाव से पहले पार्टी छोड़ने की तैयारी में हैं। उत्तर प्रदेश में मायावती की पार्टी में सबसे कद्दावर नेता रहे स्वामी प्रसाद मौर्य राज्य की भाजपा सरकार में मंत्री बन कर पड़े हैं। भाजपा के संगठन में उनका कोई इस्तेमाल नहीं है। और अगर जरूरत पड़ी तो मायावती को खुश करने के लिए भाजपा को उनकी कुर्बानी देने में कोई हिचक नहीं होगी।
पर दूसरी पार्टियों से जो बड़े नेता भाजपा में आए वे पार्टी के लिए एक तरह से कचरा है। या तो वे खुद बेकार साबित हुए या भाजपा ने किसी न किसी मजबूरी में उनको बेकार कर दिया। इसके इक्का दुक्का अपवाद हैं, जैसे राजद छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए रामकृपाल यादव, जिन्होंने लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद की बेटी को हराया और बाद में भाजपा ने उनको केंद्र सरकार में मंत्री बनाया है। ऐसे अपवादों को छोड़ दें तो जोश खरोश के साथ भाजपा में शामिल कराए गए ज्यादातर नेता पैदल हैं या पैदल कर दिए गए हैं।
पश्चिम बंगाल के दिग्गज नेता मुकुल रॉय को भाजपा ने बड़े धूमधाम के साथ पार्टी में शामिल कराया था। उनके सहारे भाजपा को पश्चिम बंगाल में ममता को हराना था। ध्यान रहे मुकुल रॉय तृणमूल कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और कांग्रेस में सेंध लगा कर ममता की पार्टी के संगठन को मजबूत करने में सबसे बड़ी भूमिका उनकी थी। पर वे भाजपा में शामिल हुए तो एक छोटा सा प्यादा बन कर रह गए हैं। उन्होंने यह फायदा हुआ हो सकता है कि जिन चिटफंड घोटालों में वे घिर रहे थे उससे बच जाएं पर राजनीतिक रूप से वे भाजपा के काम नहीं आ रहे हैं।
पहले ऐसा लग रहा था कि भाजपा उनको प्रदेश में पार्टी की कमान सौंपेगी और उनको राज्यसभा में भेजा जाएगा। आखिर वे अपना राज्यसभा का कार्यकाल खत्म होने से पहले इस्तीफा देकर आए थे। पर भाजपा ने उनको राज्यसभा में नहीं भेजा और प्रदेश में पार्टी संगठन के काम में कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी। उलटे अमित शाह के पिछले दौरे में मुकुल रॉय को मंच पर एक कोने में बैठाया गया। ऐसे माना जा रहा है कि ममता बनर्जी को खुश करने के लिए भाजपा ने किया है। भाजपा को ऐसा लग रहा है कि चुनाव के बाद ममता की जरूरत पड़ सकती है इसलिए उसने मुकुल रॉय की बलि चढ़ा दी है।
कमोबेश यहीं स्थिति ओड़िशा की केंद्रपाड़ा सीट के पूर्व सांसद जय पांडा की है। बीजू जनता दल और लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद वे भाजपा में शामिल होने वाले थे। पर नवीन पटनायक की नाराजगी को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि भाजपा ने उनकी एंट्री रोक दी है। ध्यान रहे पटनायक ने अभी लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर और राज्यसभा में उप सभापति के चुनाव में भाजपा की मदद की है। आगे भी भाजपा को उनकी मदद की जरूरत दिख रही है। यह भी कहा जा रहा है कि केंद्रीय मंत्री और ओड़िशा में भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार धर्मेंद्र प्रधान ने उनकी एंट्री रूकवाई है। ऐन चुनाव से पहले इस्तीफा देकर पांडा फंस गए हैं। उनके पास अब इतना समय भी नहीं है कि वे अपनी पार्टी बना कर अलग राजनीति करें।
इसी तरह भाजपा ने बड़े धूमधड़ाके से महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे को धूमधाम से पार्टी में शामिल किया था और वे राज्यसभा के सदस्य भी बने। कोंकण के इलाके में वे सबसे बड़े मराठा नेता हैं। शिव सेना ने उनको मुख्यमंत्री बनाया था और कांग्रेस की सरकार में भी वे मंत्री थे। वे महाराष्ट्र की भाजपा सरकार में मंत्री बनना चाहते थे। पर शिव सेना ने उनका विरोध कर दिया, जिसकी वजह से भाजपा ने उनके किनारे किया। अब वे राज्यसभा के सदस्य तो बन गए हैं पर शिव सेना के विरोध को देखते हुए भाजपा उनका इस्तेमाल नहीं कर रही है। ध्यान रहें कोंकण का इलाका ही शिव सेना का भी सबसे मजबूत गढ़ है। और भाजपा को शिव सेना के बगैर चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं हो रही है।
कर्नाटक में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने कांग्रेस के दिग्गज नेता एसएम कृष्णा को अपनी पार्टी में शामिल कराया। वे विदेश मंत्री रहे हैं और कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे हैं। पर भाजपा में उनको क्या जिम्मेदारी मिली? वे सोशल मीडिया टीम में शामिल किए गए, जबकि उनके नाम पर भाजपा वोक्कालिगा वोट हासिल करना चाहती थी। वहां भाजपा की दिक्कत जेडीएस को लेकर थी, जिसकी राजनीति वोक्कालिगा वोट की है। भाजपा जेडीएस के देवगौड़ा पिता-पुत्र को नाराज नहीं करना चाहती थी।
ऐसे ही दिल्ली में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे अरविंदर सिंह लवली को भाजपा ने धूमधड़ाके से पार्टी में शामिल कराया। कुछ दिन तक उनको कोई जिम्मेदारी नहीं मिली तो बेचारे लवली वापस कांग्रेस में लौट गए। हरियाणा में कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए राव इंद्रजीत सिंह केंद्र में मंत्री तो बन गए हैं पर वे भी अगले चुनाव से पहले पार्टी छोड़ने की तैयारी में हैं। उत्तर प्रदेश में मायावती की पार्टी में सबसे कद्दावर नेता रहे स्वामी प्रसाद मौर्य राज्य की भाजपा सरकार में मंत्री बन कर पड़े हैं। भाजपा के संगठन में उनका कोई इस्तेमाल नहीं है। और अगर जरूरत पड़ी तो मायावती को खुश करने के लिए भाजपा को उनकी कुर्बानी देने में कोई हिचक नहीं होगी।
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