जयपुर। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से गुरुवार को चौदहवां प्रश्न पूछा है कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत 80 प्रतिशत बच्चों को निजी स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करने से वंचित रख क्या आप गौरव महसूस करती हैं?’
पायलट ने कहा कि यूपीए सरकार ने गरीब एवं जरूरतमंद परिवारों के बच्चों को प्राथमिक स्तर पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए कानून बनाया था, जिसके अनुसार निजी स्कूलों की 25 प्रतिशत सीटें बीपीएल, अल्प आय वर्ग एवं वंचित वर्ग के लिए आरक्षित की गईं और इन सीटों के लिए फीस का पुनर्भरण सरकारी बजट के माध्यम से किया जाना निश्चित किया गया।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस शासन के दौरान वर्ष 2013 में 1,53,670 बच्चों को आरटीई एक्ट की अनुपालना में निजी स्कूलों में प्रवेश दिलवाया गया था, परंतु भाजपा के सत्ता में आते ही यह आंकड़ा हर वर्ष कम होता गया, जो कि वर्ष 2016 में घटकर 82 हजार रह गया, जबकि शिक्षा के अधिकार कानून के अधीन निजी स्कूलों में इस वर्ग के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 4 लाख 34 हजार है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार ने लगभग 80 प्रतिशत सीटों को खाली रखकर जहां एक ओर शिक्षा के अधिकार अधिनियम को कमजोर बनाने का काम किया है, वहीं इसके लिए आवंटित बजट का भी कोई उपयोग नहीं किया गया है। सरकार के इस कदम से निजी स्कूलों को फायदा पहुंचा है, जिन्होंने आरटीई के तहत आरक्षित सीटों पर सामान्य वर्ग के बच्चों को दाखिला देकर जमकर चांदी कूटी है।
उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि सरकार ने कानून की अवहेलना करते हुए गरीब व कमजोर वर्ग की आय की सीमा 2.5 लाख से घटाकर 1 लाख कर दी, जिस पर उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर हुई और उच्च न्यायालय ने भाजपा सरकार के आय संशोधन आदेश को निरस्त करते हुए मई, 2016 में निर्देश दिए कि जितने आवेदन आए हैं, उनको 2.5 लाख प्रतिवर्ष आय के हिसाब से जांच कर दाखिले दिए जाएं।
उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार ने कमजोर वर्ग के प्रति दुर्भावना का परिचय देते हुए उच्चतम न्यायालय में अपील की और न्यायालय के समक्ष इन कमजोर वर्ग के छात्रों पर होने वाले खर्च को वहन करने में असमर्थता जताकर अपनी दमित विरोधी नीति को उजगार कर दिया है। उच्चत्तम न्यायालय ने भी भाजपा सरकार को शिक्षा के अधिकार कानून से छेड़छाड़ नहीं करने का निर्देश जारी किया है, परंतु भाजपा सरकार अपनी हठधर्मिता के चलते उच्चतम न्यायालय के आदेशों की अवहेलना कर रही है।
पायलट ने कहा कि यूपीए सरकार ने गरीब एवं जरूरतमंद परिवारों के बच्चों को प्राथमिक स्तर पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए कानून बनाया था, जिसके अनुसार निजी स्कूलों की 25 प्रतिशत सीटें बीपीएल, अल्प आय वर्ग एवं वंचित वर्ग के लिए आरक्षित की गईं और इन सीटों के लिए फीस का पुनर्भरण सरकारी बजट के माध्यम से किया जाना निश्चित किया गया।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस शासन के दौरान वर्ष 2013 में 1,53,670 बच्चों को आरटीई एक्ट की अनुपालना में निजी स्कूलों में प्रवेश दिलवाया गया था, परंतु भाजपा के सत्ता में आते ही यह आंकड़ा हर वर्ष कम होता गया, जो कि वर्ष 2016 में घटकर 82 हजार रह गया, जबकि शिक्षा के अधिकार कानून के अधीन निजी स्कूलों में इस वर्ग के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 4 लाख 34 हजार है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार ने लगभग 80 प्रतिशत सीटों को खाली रखकर जहां एक ओर शिक्षा के अधिकार अधिनियम को कमजोर बनाने का काम किया है, वहीं इसके लिए आवंटित बजट का भी कोई उपयोग नहीं किया गया है। सरकार के इस कदम से निजी स्कूलों को फायदा पहुंचा है, जिन्होंने आरटीई के तहत आरक्षित सीटों पर सामान्य वर्ग के बच्चों को दाखिला देकर जमकर चांदी कूटी है।
उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि सरकार ने कानून की अवहेलना करते हुए गरीब व कमजोर वर्ग की आय की सीमा 2.5 लाख से घटाकर 1 लाख कर दी, जिस पर उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर हुई और उच्च न्यायालय ने भाजपा सरकार के आय संशोधन आदेश को निरस्त करते हुए मई, 2016 में निर्देश दिए कि जितने आवेदन आए हैं, उनको 2.5 लाख प्रतिवर्ष आय के हिसाब से जांच कर दाखिले दिए जाएं।
उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार ने कमजोर वर्ग के प्रति दुर्भावना का परिचय देते हुए उच्चतम न्यायालय में अपील की और न्यायालय के समक्ष इन कमजोर वर्ग के छात्रों पर होने वाले खर्च को वहन करने में असमर्थता जताकर अपनी दमित विरोधी नीति को उजगार कर दिया है। उच्चत्तम न्यायालय ने भी भाजपा सरकार को शिक्षा के अधिकार कानून से छेड़छाड़ नहीं करने का निर्देश जारी किया है, परंतु भाजपा सरकार अपनी हठधर्मिता के चलते उच्चतम न्यायालय के आदेशों की अवहेलना कर रही है।

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