शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

पायलट ने प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से पूछा 15वां प्रश्न

जयपुर। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से  15वां प्रश्न पूछा है कि ‘कौशल विकास के नाम पर हो रहे फर्जीवाड़े को केन्द्रीय कौशल विकास सचिव ने सही माना, युवाओं को रोजगार लायक बनाने वाले कौशल विकास कार्यक्रम में हो रहे भ्रष्टाचार पर क्या आप गौरव महसूस करती हैं?’
पायलट ने कहा कि राजस्थान में स्किल इंडिया योजना भ्रष्टाचार और विफलता की भेंट चढ़ चुकी है। भाजपा ने अपने घोषणा-पत्र में प्रतिवर्ष 25 लाख कुशल श्रमिक तैयार करने का भरोसा दिलाया था, लेकिन सरकार के अपने आंकड़ों के अनुसार 1 जनवरी 2014 से आज तक कौशल विकास विभाग के माध्यम से केवल 2 लाख 51 हजार लोगों को ट्रेनिंग दी गई है। उन्होंने कहा कि आईटीआई के माध्यम से दी जा रही ट्रेनिंग की स्थिति यह है कि 400 से अधिक आईटीआई में एक साल पहले हुए उस महाघोटाले को दबाया जा रहा है, जिसमें इन संस्थानों के निरीक्षण में स्टाफ और प्रयोगशाला नहीं पाई गई, परंतु ट्रेनिंग के प्रमाणपत्र जारी कर दिए गए। उन्होंने कहा कि इन संस्थानों के पंजीकरण रद्द करने की सिफारिश कर दी गई थी, लेकिन शासन सचिवालय से हर बार नई कमेटी बनाकर इन संस्थानों पर होने वाली कार्रवाई को टाल दिया।

उन्होंने कहा कि अक्टूबर 2017 में किए गए सर्वे में स्वतंत्र एजेंसी ने प्रदेश के अनेक स्थानों का मौका मुआयना करने के बाद बताया था कि राजस्थान कौशल विकास एवं आजीविका निगम के आंकड़ों में भारी अंतर है और ट्रेनिंग सेंटर या तो बंद मिले या उनका कोई अस्तित्व नहीं था अथवा शुरू होने के साथ ही बंद हो गए। उन्होंने कहा कि ऐसे सेंटरो से करोड़ों रुपए का भुगतान उठाया गया, परंतु आज तक किसी के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं हुआ है।
          उन्होंने कहा कि इतना ही नहीं स्किल सेंटरों से प्रशिक्षण प्राप्त युवाओं के लिए आयोजित रोजगार मेलों में मात्र 21 प्रतिशत लोगों को रोजगार मिलना यह दर्शाता है कि मुख्यमंत्री बातें तो बड़ी-बड़ी करती हैं लेकिन स्किल इंडिया पर करोड़ों खर्च करने के बाद भी युवाओं को रोजगार नहीं मिल पाया है।   केंद्रीय कौशल विकास सचिव के.पी.कृष्णन द्वारा 25 अगस्त को दिए गए बयान में स्वीकार किया गया है कि देश में 84 प्रतिशत स्किल सेंटर और आईटीआई निजी क्षेत्र में हैं और ये बेहद खराब स्थिति में है, जिसकी वजह से गुणवत्तापूर्ण ट्रेनिंग नहीं हो पा रही है और इस वजह से निजी उद्यमी इन सेंटरों से जारी प्रमाण-पत्रों को गंभीरता से नहीं ले रहे है।
     सरकार के संबंधित विभाग के सचिव का वक्तव्य आंखें खोलने वाला है, जिसमें चार साल से कौशल विकास के नाम पर हो रहे संस्थागत भ्रष्टाचार को स्वीकार किया गया है। उन्होंने मुख्यमंत्री से पूछा है कि क्या वे कौशल विकास के नाम पर हो रहे भ्रष्टाचार पर गौरव महसूस करती हैं।

प्रधानमंत्री जवाब दें कि उन्होंने देश के अर्थव्यवस्था की धज्जियां क्यों उड़ाईं?: राहुल गांधी

मोदी ने सही बात कही थी कि 70 साल में जो कोई नहीं कर पाया, उसे वो करेंगे.
 आज यह बात सही साबित हुई. जो पिछले 70 साल में किसी ने नहीं किया वो उन्होंने कर दिखाया और भारत की अर्थव्यवस्था की धज्जियां उड़ा दीं.
  कांग्रेस अध्यक्ष ने  एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि मोदी जी ने नोटबंदी क्यों की. दरअसल, उनके सबसे बड़े 15-20 क्रोनी कैपिटलिस्ट ने बैंकों से कर्ज लिए और उनके पास एनपीए (फंसे हुए कर्ज) हैं. मोदी जी ने जनता की जेब से पैसे लेकर क्रोनी कैपिटलिस्ट लोगों की मदद की. यही नोटबंदी का लक्ष्य था.’नोटबंदी के समय मोदी जी के मित्रों ने कालेधन को सफेद में बदलने का काम किया. गुजरात का सहकारी बैंक इसका उदाहरण है. अमित शाह जिस बैंक में निदेशक हैं उसमें 700 करोड़ रुपये जमा किए गए. इसलिए यह नोटबंदी बड़ा घोटाला था.नोटबंदी का इरादा क्या था. नोटबंदी का इरादा यह था कि 15-20 क्रोनी कैपिटलिस्ट की कालेधन को सफेद करने में मदद की जाए और छोटे कारोबारियों, दुकानदारों को खत्म करके बड़ी कंपनियों की मदद की जाए.
  पूंजीपतियों के लिए नोटबंदी की थी. यह  छोटे उद्योगों और छोटे व्यापारियों छोटे दुकानदारों, छोटे कारोबारियों पर आक्रमण था और  पैर पर मारी गई कुल्हाड़ी थी. हमला था.


 नोटबंदी से जुड़े रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़े सामने आने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला बोला और आरोप लगाया कि उन्होंने 15-20 सबसे बड़े ‘क्रोनी कैपिटलिस्ट’ (सत्ताधारियों से साठगांठ करने वाले पूंजीपतियों) के कालेधन को सफेद कराने में मदद के इरादे से नोटबंदी का कदम उठाया था.

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री को देश के युवाओं और छोटे कारोबारियों को यह जवाब देना चाहिए कि उन्होंने अर्थव्यवस्था की ‘धज्जियां क्यों उड़ाईं?’

गांधी ने संवाददाताओं से कहा, ‘प्रधानमंत्री जी ने देश के युवाओं, छोटे दुकानदारों, सूक्ष्म, लघु एवं मझोले कारोबारियों से वादा किया था कि नोटबंदी से काला धन खत्म हो जायेगा, नकली नोट खत्म हो जाएंगे और आतंकवाद पर भारी चोट लगेगी.’

उन्होंने कहा, ‘अब नोटबंदी का परिणाम आ गया है. परिणाम यह है कि पूरा का पूरा पैसा वापस आ गया है. जीडीपी को दो फीसदी का नुकसान हुआ है. करोड़ों लोगों का रोजगार छिना. प्रधानमंत्री जी देश और युवाओं को जवाब देना है कि उन्होंने अर्थव्यवस्था पर इतनी बड़ी चोट क्यों मारी?’

कांग्रेस अध्यक्ष ने आरोप लगाया, ‘मैं युवाओं, छोटे दुकानदारों और छोटे कारोबारियों को यह बताना चाहता हूं कि मोदी जी ने नोटबंदी क्यों की. दरअसल, उनके सबसे बड़े 15-20 क्रोनी कैपिटलिस्ट ने बैंकों से कर्ज लिए और उनके पास एनपीए (फंसे हुए कर्ज) हैं. मोदी जी ने जनता की जेब से पैसे लेकर क्रोनी कैपिटलिस्ट लोगों की मदद की. यही नोटबंदी का लक्ष्य था.’

उन्होंने कहा, ‘नोटबंदी के समय मोदी जी के मित्रों ने कालेधन को सफेद में बदलने का काम किया. गुजरात का सहकारी बैंक इसका उदाहरण है. अमित शाह जिस बैंक में निदेशक हैं उसमें 700 करोड़ रुपये जमा किए गए. इसलिए यह नोटबंदी बड़ा घोटाला था.’

गांधी ने कहा, ‘मोदी ने सही बात कही थी कि 70 साल में जो कोई नहीं कर पाया, उसे वो करेंगे. आज यह बात सही साबित हुई. जो पिछले 70 साल में किसी ने नहीं किया वो उन्होंने कर दिखाया और भारत की अर्थव्यवस्था की धज्जियां उड़ा दीं. मोदी जी को यह जवाब देना है कि उन्होंने आम लोगों से पैसे छीनकर 15-20 सबसे बड़े क्रोनी कैपिटलिस्ट को क्यों दिया.’

राफेल मामले में उद्योगपति अनिल अंबानी के समूह द्वारा कांग्रेस को कानूनी नोटिस दिए जाने से जुड़े सवाल पर उन्होंने कहा, ‘अनिल अंबानी जी ने पूरी कांग्रेस पार्टी पर मानहानि का मामला दर्ज करा दिया है. आप मामला दर्ज कराइए, लेकिन मानहानि के मामले से सच्चाई नहीं बदलती है. सच्चाई यह है कि मोदी जी ने 15-20 क्रोनी कैपिटलिस्ट के लिए नोटबंदी की और अपने मित्रों को फायदा पहुंचाने के लिए राफेल सौदा किया.’

एक अन्य सवाल के जवाब में कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, ‘आपको जल्द पता चल जाएगा कि नोटबंदी का इरादा क्या था. नोटबंदी का इरादा यह था कि 15-20 क्रोनी कैपिटलिस्ट की कालेधन को सफेद करने में मदद की जाए और छोटे कारोबारियों, दुकानदारों को खत्म करके बड़ी कंपनियों की मदद की जाए. नोटबंदी कुछ नहीं, बल्कि बड़ा घोटाला है.’

उन्होंने कहा, ‘छोटे दुकानदारों, छोटे कारोबारियों सुन लो. नोटबंदी कोई गलती नहीं थी, बल्कि आपके ऊपर आक्रमण था और आपके पैर पर मारी गई कुल्हाड़ी थी.’

यह पूछे जाने पर कि क्या वह प्रधानमंत्री से माफी की मांग करेंगे तो गांधी ने कहा, ‘माफी तब मांगी जाती है जब गलती होती है. प्रधानमंत्री जी ने यह जानबूझकर किया. उनका लक्ष्य ऐसे लोगों की मदद करना था जिनके कारण टेलीविजन पर उनका चेहरा दिखाई देता है.’

पेड न्यूज, फेक न्यूज और मतदाताओं को लुभाने वाले पर स्टेट लेवल मीडिया सेल रखेगी पैनी नजर

सभी 33 जिलों में जिला निर्वाचन अधिकारी की अध्यक्षता में एमसीएमसी का गठन कर दिया गया है।
 कमेटी का काम चुनाव की अधिघोषणा के साथ और उम्मीदवारों के नामांकन के साथ ही शुरू हो जाएगा। कमेटी उम्मीदवारों द्वारा इलेक्ट्रोनिक, प्रिंट और सोशल मीडिया के जरिये प्रसारित समाचारों पर कड़ी निगरानी रखेगी।
जयपुर। प्रदेश में होने वाले विधानसभा आम चुनाव-2018 में पेड न्यूज, फेक न्यूज और मतदाताओं को लुभाने वाले संदेहास्पद विज्ञापनों पर पैनी नजर रखने के लिए गठित स्टेट लेवल मीडिया सेल की प्रथम बैठक शुक्रवार को अतिरिक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ. जोगाराम की अध्यक्षता में हुई।

शासन सचिवालय परिसर में हुई बैठक में विशेषाधिकारी एचएस गोयल ने पीपीटी प्रजेंटेशन के जरिये अधिकारियों को पेड न्यूज, विज्ञापन प्रमाणीकरण, एमसीएमसी (मीडिया सर्टिफिकेशन एंड मॉनिटरिंग कमेटी) और मीडिया मैनेजमेंट से जुड़ी तमाम तरह की जानकारियों से अवगत करवाया।

डॉ. जोगाराम ने कहा कि पिछले चुनाव की तुलना में इस बार सोशल मीडिया का असर चुनावों में ज्यादा देखने को मिलेगा। ऎसे में फेक न्यूज और पेड न्यूज पर कमेटी को कड़ी निगरानी रखनी होगी। उन्होंने कहा कि चुनाव के दौरान प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर प्रसारित होने वाले विज्ञापनों के अलावा सोशल वेबसाइट्स पर आने वाले विज्ञापनों पर भी कमेटी को सजग रहना होगा। उन्होंने कहा कि पिछले विधानसभा चुनाव विभाग और कमेटी की सजगता के कारण 100 से ज्यादा उम्मीदवारों को नोटिस दिए गए थे।
          गौरतलब है कि राज्य के अलावा सभी 33 जिलों में जिला निर्वाचन अधिकारी की अध्यक्षता में एमसीएमसी का गठन कर दिया गया है। कमेटी का काम चुनाव की अधिघोषणा के साथ और उम्मीदवारों के नामांकन के साथ ही शुरू हो जाएगा। कमेटी उम्मीदवारों द्वारा इलेक्ट्रोनिक, प्रिंट और सोशल मीडिया के जरिये प्रसारित समाचारों पर कड़ी निगरानी रखेगी। बैठक में अतिरिक्त निदेशक (प्रशासन) कैलाश यादव, अतिरिक्त निदेशक (सूजस) पीपी त्रिपाठी, संयुक्त निदेशक एससी मीणा, सहायक निदेशक जसराम मीणा, सहायक निदेशक आशीष खंडेलवाल व अन्य अधिकारी उपस्थित रहे।

आने वाले दिनों में राफेल से भ्रष्टाचार तबाही मचाएगा : राहुल गांधी

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल लड़ाकू विमान सौदे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आज फिर कड़ा प्रहार करते हुए कहा कि आने वाले दिनों में इस सौदे से जुड़ा भ्रष्टाचार तबाही मचाएगा। गांधी ने राफेल सौदे को वैश्विक भ्रष्टाचार बताया और कहा कि यह आने वाले दिनों में भारतीय जनता पार्टी के लिए एक बडा संकट बनेगा।

कांग्रेस अध्यक्ष ने ट्वीट किया, ''यह वैश्विक भ्रष्टाचार है। यह राफेल विमान सच में बहुत दूर तक और तेजी से उड़ेगा। आने वाले कुछ सप्ताह में यह बंकरों को ध्वस्त करने वाले बड़े बम भी गिरायेगा।'' गांधी राफेल विमानों को लेकर पिछले कुछ दिनों से मोदी सरकार पर लगातार हमले कर रहे हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा इस संबंध में कांग्रेस से सवाल पूछने पर उन्होंने सरकार पर पलट वार किया और राफेल मामले की जांच संयुक्त संसदीय समिति से कराने की मांग की।

‘नाकाम' नोटबंदी के लिए कौन सा प्रायश्चित करेंगे - शिवसेना

‘यह सरकारी खजाने की लूट है. आरबीआई गवर्नर ने इस लूट को रोका नहीं, जिसके लिए उन्हें अदालत के सामने पेश किया जाना चाहिए. आरबीआई का काम अर्थव्यवस्था की रक्षा करना है और मौजूदा सरकार में वह मतवाले बंदर की तरह हो गया है. कालेधन का कोई अंबार नहीं लगाता और नोटबंदी से यह पैसा खत्म नहीं हो सकता, यह बहुत ही आसान-सा अर्थशास्त्र है. जिनकी समझ में यह नहीं आया उन्होंने पूर्व मनमोहन सिंह का मजाक उड़ाया, मगर अब सच सामने आ गया है.
शिवसेना ने आरबीआई की एक रिपोर्ट के मद्देनजर शुक्रवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नोटबंदी के जरिये देश को ‘वित्तीय अराजकता' में डालने के लिए कौन सा प्रायश्चित करेंगे. दरअसल, इस रिपोर्ट में कहा गया है कि चलन से बाहर किये गये 99.3 प्रतिशत नोट बैंकिंग प्रणाली में वापस लौट आये हैं.

शिवसेना ने कहा कि नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान पहुंचाया, उद्योग प्रभावित हुए, आजादी के बाद से पहली बार रुपया अपने सबसे निचले स्तर पर आ गया और सैकड़ों लोगों ने अपनी जान गंवायी, लेकिन अब भी देश के शासक विकास की शेखी बघार रहे हैं. पार्टी के मुखपत्र ‘सामना' में शुक्रवार को एक संपादकीय में कहा गया है, ‘चूंकि नोटबंदी ने देश को वित्तीय अराजकता में डाल दिया, फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश से किये गये वादों को लेकर कौन-सा प्रायश्चित करेंगे? नोटबंदी की कवायद लोकप्रियता हासिल करने के लिए की गयी.' उद्धव ठाकरे के नेतृत्ववाली पार्टी नवंबर 2016 में गोवा में दिये मोदी के भाषण का जिक्र कर रही थी, जहां प्रधानमंत्री ने लोगों से 50 दिन तक उनके साथ सहयोग करने की अपील की थी और कहा था कि यदि उनके इरादे गलत पाये गये तो वह देश द्वारा दी जानेवाली कोई भी सजा भोगने को तैयार हैं.

शिवसेना ने कहा कि नोटबंदी ने देश के लिए परेशानियां खड़ी की. पार्टी ने कहा, ‘देश की अर्थव्यवस्था से जुड़े फैसले जल्दबाजी में नहीं लेने चाहिए. नोटबंदी ने देश की अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया, जिस पर रिजर्व बैंक ने भी मुहर लगायी.' पार्टी ने कहा, ‘मोदी ने कहा था नोटबंदी का मतलब भ्रष्टाचार, काला धन और जाली नोटों को हमेशा के लिए खत्म करना है. हालांकि, पिछले दो वर्षों में ये सभी चीजें बढ़ गयी. ये दावे भी खोखले साबित हुए कि नोटबंदी से कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियां खत्म हो जायेंगी और घाटी में शांति स्थापित होगी.' पार्टी ने कहा कि काला धन और जाली नोट हासिल नहीं किये जा सकें क्योंकि 99.3 प्रतिशत नोट बैंकिंग व्यवस्था में वापस आ गये.

भाजपा के सहयोगी दल शिवसेना ने कहा कि नोटबंदी के कारण छोटे उद्योग, आवासीय एवं सेवा क्षेत्र बर्बाद हो गये, किसानों को काफी सहन करना पड़ा और लोगों को दो महीनों तक बैंकों के बाहर लंबी कतारों में खड़ा रहना पड़ा. पार्टी ने दावा किया कि इन कतारों में 100 से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवा दी. पार्टी ने आरोप लगाया कि नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ कर रख दी. सरकारी खजाने को नये नोट छापने में 15,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. एटीएम में तकनीकी बदलावों पर 700 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े. नये नोटों के वितरण पर भी 2,000 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े. पार्टी ने कहा कि नोटबंदी का कदम बहुत ही भयावह था जिससे 2.25 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.

शिवसेना ने कहा, ‘यह सरकारी खजाने की लूट है. आरबीआई गवर्नर ने इस लूट को रोका नहीं, जिसके लिए उन्हें अदालत के सामने पेश किया जाना चाहिए. आरबीआई का काम अर्थव्यवस्था की रक्षा करना है और मौजूदा सरकार में वह मतवाले बंदर की तरह हो गया है.' पार्टी ने कहा कि मूलत: कालेधन का कोई अंबार नहीं लगाता और नोटबंदी से यह पैसा खत्म नहीं हो सकता, यह बहुत ही आसान-सा अर्थशास्त्र है. जिनकी समझ में यह नहीं आया उन्होंने पूर्व मनमोहन सिंह का मजाक उड़ाया, मगर अब सच सामने आ गया है.'

सरकार के खिलाफ बोलना देशद्रोह नहीं: विधि आयोग

आयोग ने कहा कि देशभक्ति का कोई एक पैमाना नहीं है. लोगों को अपने तरीके से  देश के प्रति स्नेह प्रकट करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए.


 विधि आयोग ने ‘देशद्रोह’ विषय पर एक परामर्श पत्र में कहा कि देश या इसके किसी पहलू की आलोचना को देशद्रोह नहीं माना जा सकता और यह आरोप उन मामलों में ही लगाया जा सकता है जहां इरादा हिंसा और अवैध तरीकों से सरकार को अपदस्थ करने का हो.

आयोग ने कहा कि देशभक्ति का कोई एक पैमाना नहीं है. लोगों को अपने तरीके से  देश के प्रति स्नेह प्रकट करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए.

आयोग ने यह भी कहा कि देशद्रोह से संबंधित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा ‘124 ए’ के संशोधन का अध्ययन करने के लिए, इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए कि आईपीसी में इस धारा को जोड़ने वाले ब्रिटेन ने दस साल पहले देशद्रोह के प्रावधानों को हटा दिया है.

परामर्श पत्र में कहा गया है कि देश या इसके किसी पहलू की आलोचना को देशद्रोह के रूप में नहीं देखा जा सकता और ना ही देखा जाना चाहिए.

यदि देश सकारात्मक आलोचना के लिए तैयार नहीं है, तो आजादी से पहले और बाद के युग में थोड़ा ही अंतर रह जाता है. अपने ही इतिहास की आलोचना का अधिकार और ठेस पहुंचाने का अधिकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत संरक्षित अधिकार है.

आयोग ने कहा, ‘हम उम्मीद करते हैं कि उपरोक्त मुद्दों पर कानूनी दिग्गजों, सांसदों, सरकार और गैर-सरकारी एजेंसियों, अकादमिक, छात्रों और सभी से ऊपर, सामान्य जनता के बीच एक स्वस्थ बहस होगी, ताकि आम जनता के अनुकूल संशोधन लाया जा सके.’

बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन करते हुए आयोग ने कहा कि देशभक्ति का कोई एक पैमाना नहीं है. लोगों को अपने तरीके से  देश के प्रति स्नेह प्रकट करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए. धारा 124 ए का इस्तेमाल केवल उन मामलों में किया जाना चाहिए जहां किसी भी पब्लिक ऑर्डर को बाधित करने या सरकार को हिंसा और अवैध तरीके से उखाड़ फेंकने की कोशिश हो.

किसी को इस आधार पर देशद्रोही नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि उसके विचार सरकार की नीतियों के अनुरूप नहीं हैं.  

भारत v/s पाकिस्‍तान: जल संधि से रार तक, आखिर क्‍या है नदियों के बंटवारे का सच

जयपुर। जगजाहिर स्‍पेशल  भारत-पाकिस्‍तान के बीच सिंधु जल समझौते पर 1960 में दस्तखत किए गए। जल बंटवारे में तीन नदियों का पानी भारत के हिस्‍से में गया तो तीन नदियों का 80 फीसद पानी पाकिस्तान के हिस्से में। इसके बाद से पाकिस्‍तान ने कई बार जल बंटवारे को लेकर भारत पर निरर्थक आरोप लगाए। तब से कई बार जल बंटवारे को लेकर दोनों देशों के बीच रिश्‍तों में तल्‍खी आई है। आइए जानते हैं कि आखिर क्‍या है पाकिस्‍तान के दावे का सच। क्‍या है सिंधु जल संधि ।


आखिर क्‍या है सिंधु जल करार 
1- इसके तहत सिंधु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में बांटा गया है। सतलुज, ब्यास व रावी को पूर्वी नदी में रखा गया है, जबकि झेलम, चिनाब और सिंधु की पश्चिम की नदियां हैं। रावी, ब्यास और सतलुज नदी का पानी भारत के हिस्से में गया तो सिंधु, झेलम और चिनाब का 80 फीसद पानी पाकिस्तान के हिस्से में।

2- इस समझौते के तहत पश्चिमी नदियों के पानी का हक भारत को भी दिया गया। मसलन जैसे बिजली निर्माण या कृषि के क्षेत्र में नदियों के जल के उपयोग का अधिकार दिया गया।


3- किसी बाधा या समस्‍या के समाधान के लिए इसके तहत एक स्थाई सिंधु आयोग के गठन का प्रस्‍ताव था। यह तय हुआ कि आयोग समय-समय पर बैठके करेगा। दोनों मुल्‍क के कमिश्नर समय-समय पर एक दूसरे से मिलेंगे और समस्‍याओं पर बात करेंगे। यह व्‍यवस्‍था बनाई गई कि अगर आयोग समस्या का हल नहीं ढूंढ़ पाते हैं तो सरकारें उसे सुलझाने की कोशिश करेंगी।

4- इसके अलावा विवादों का हल ढूंढने के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ की मदद लेने का प्रावधान किया गया। इसके तहतकोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन में जाने का भी विकल्‍प दिया गया है।



भारत का पक्ष
- इस संधि के अनुसार भारत को पाकिस्‍तान के नियंत्रण वाली नदियों के जल का उपयोग सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्‍पादन हेतु करने की अनुमति है। इस सिंध के प्रावधानों के अनुसार सिंधु नदी का कुल पाानी केवल 20 फीसद उपयोग भारत द्वारा किया जा सकता है।

- भारत का कहना है कि उसने अपने हिस्से के 20 फीसद पानी का पूरा इस्तेमाल नहीं किया है। सिंधु जल समझौता भारत को इन नदियों के पानी से 14 लाख एकड़ जमीन की सिंचाई करने का अधिकार देता है। भारत फिलहाल सिंधु, झेलम और चिनाब नदी से 3000 मेगावॉट बिजली का उत्पादन करता है, लेकिन सिंधु घाटी के बारे में कहा जाता है कि इसमें 19000 मेगावॉट बिजली उत्पादन करने की क्षमता है।



- 1987 में भारत ने पाकिस्तान के विरोध के बाद झेलम नदी पर तुलबुल परियोजना का काम रोक दिया था लेकिन अब सूत्रों का कहना है कि जल संसाधन मंत्रालय इसे फिर से शुरू कर सकता है।

आगे आया विश्व बैंक
विश्‍व बैंक की मध्‍यस्‍थ्‍ता के साथ भारत और पाकिस्‍तान के बीच सिंधु नदी के पानी को लेकर 19 सितंबर 1960 को एक करार हुआ। उस समय तत्‍कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्‍ट्रपति अयूब खान ने इस समझौते पर हस्‍ताक्षर किए। सिंधु घाटी में भारत की दो पनबिजली परियोजनाओं को लेकर हुए विवाद के बाद अंतरराष्ट्रीय पंचाट में विश्व बैंक दोनों देशों के बीच एक समझौते करा चुका है। हालांकि, भारत ने इस पर एतराज जताया जिसके बाद विश्व बैंक ने कदम पीछे खींच लिए, लेकिन विश्व बैंक ने दोनों देशों को अपने मतभेद सुलझाने के लिए मनाने की कोशिश की है।



30 करोड़ से अधिक लोगों की जीवन रेखा बनी सिंधु नदी
भारत और पाकिस्‍तान के लिए सिंधु नदी एक जीवन रेखा है। करीब 30 करोड़ से अधिक लोग सिंधु नदी के आसपास के इलाके में रहते हैं। यानी सिंधु नदी इन 30 करोड़ से ज्‍यादा लोगों की जिंदगी से जुड़ी है। सिंधु नदी के 80 फीसद जल का इस्‍तेमाल पाकिस्‍तान की ओर से किया जाता है। सिंधु नदी का इलाका करीब 11 लाख 20 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। ये नदी तिब्‍बत से निकलती है। कराची और गुजरात के पास अरब सागर में जाकर मिल जाती है। इस नदी की कुल लंबाई 2,880 किलोमीटर है।

सिंधु जल संधि के पीछे की कहानी
आजादी के पूर्व यानी भारत-पाकिस्‍तान के विभाजन के पूर्व 1947 में सिंधु नदी के जल को लेकर पंजाब और सिंध प्रांत में विवाद हुआ था। यह विवाद जारी रहा और आजादी के बाद भारत और पाकिस्तान के इंजीनियर मिले और उन्होंने पाकिस्तान की तरफ़ आने वाली दो प्रमुख नहरों पर एक 'स्टैंडस्टिल समझौते' पर हस्ताक्षर किए, जिसके अनुसार पाकिस्तान को लगातार पानी मिलता रहा। ये समझौता 31 मार्च 1948 तक लागू था।  एक अप्रैल 1948 को जब समझौता लागू नहीं रहा तो भारत ने दो प्रमुख नहरों का पानी रोक दिया, इसका असर  पंजाब की 17 लाख एकड़ ज़मीन पर पड़ा। हालांकि, बाद में हुए समझौते के बाद भारत पानी की आपूर्ति जारी रखने पर राज़ी हो गया।



चीन से करार
ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदियों को लेकर भारत और चीन के बीच भी करार है। भारत के भाखड़ा बराज और कई पन बिजली परियोजनाओं का जल इन्‍हीं नदियों से मिलता है। दिल्ली, चंडीगढ़, पंजाब के तमाम इलाकों में विद्युत आ‍पूर्ति यहीं से होती है।

एसएमएस में फ्री पार्किंग करने के निर्देश, मरीजों व परिजनों को मिलेगी राहत

जयपुर। जयपुर की स्थायी लोक अदालत ने एक परिवाद का निस्तारण करते हुए राज्य के सबसे बड़े अस्पताल एसएमएस में फ्री पार्किंग करने के आदेश दिये हैं। जयपुर निवासी नरेन्द्रपुरी की ओर से पेश किये गये परिवाद पर सुनवाई के बाद स्थायी लोक अदालत के अध्यक्ष डी पी शर्मा, सदस्य ओंकारसिंह और रमाशंकर वशिष्ठ की बैच ने ये आदेश दिया है।

 इस आदेश के तहत एसएमएस प्रशासन को अस्पताल में साफ सफाई रखने, वाहनों को सुव्यवस्थित रखने के लिए स्टाफ की व्यवस्था कराने के आदेश दिये है। साथ ही एक माह बाद किसी भी रोगी, रोगी के परिजन या विजिटर से पार्किंग शुल्क वसुला नहीं जा सकेगा। अदालत ने वर्तमान में जारी ठेके के लिए ठेकेदार से किसी प्रकार की राशि वसूल होने की स्थिती में क्षतिपूर्ति देने के भी आदेश दिये हैं। परिवादी की ओर से इस मामले मे अधिवक्ता गोवर्धनसिंह ने पैरवी करते हुए अस्पताल को साफ स्वच्छ रखने की गुहार लगायी थी।

आनंद के सानिध्य में होगी चुनाव

आनंद कुमार कई अहम पदों पर रह चुके हैं और हाल ही में वे सचिव से प्रमुख सचिव बने थे। वे धौलपुर, डूंगरपुर, बाड़मेर, राजसमंद, उदयपुर, भरतपुर में कलेक्टर रह चुके हैं। साथ ही हाउसिंग बोर्ड आयुक्त की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। चिकित्सा शिक्षा में प्रमुख सचिव का अभी जिम्मा संभाल रहे थे। पंचायतीराज आय़ुक्त का जिम्मा वे संभाल चुके हैं। आनंद कुमार का होम टाउन रेवाड़ी है और उनकी योग्यता एमबीए,बी टेक सिविल इंजीनियरिंग हैं। 1994 बैच के आईएएस हैं और उनका जन्म 25 जून 1967 को हुआ।
जयपुर। राज्य की ब्यूरोक्रेसी में बड़ा बदलाव हुआ है। भारत निर्वाचन आयोग के निर्देश के बाद राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी अश्विनी भगत को हटा दिया गया है। उनके स्थान पर आनंद कुमार को मुख्य निर्वाचन अधिकारी बनाया गया है।

आनंद कुमार कई अहम पदों पर रह चुके हैं और हाल ही में वे सचिव से प्रमुख सचिव बने थे। वे धौलपुर, डूंगरपुर, बाड़मेर, राजसमंद, उदयपुर, भरतपुर में कलेक्टर रह चुके हैं। साथ ही हाउसिंग बोर्ड आयुक्त की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। चिकित्सा शिक्षा में प्रमुख सचिव का अभी जिम्मा संभाल रहे थे। पंचायतीराज आय़ुक्त का जिम्मा वे संभाल चुके हैं। आनंद कुमार का होम टाउन रेवाड़ी है और उनकी योग्यता एमबीए,बी टेक सिविल इंजीनियरिंग हैं। 1994 बैच के आईएएस हैं और उनका जन्म 25 जून 1967 को हुआ।
            प्रदेश में विधानसभा आम चुनाव 2018 को स्वतंत्र- निष्पक्ष और शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न कराना ही उनकी प्राथमिकता है।

                  एक फोन ने बदल दिया राज्य का मुख्य निर्वाचन अधिकारी

 आखिर अचानक ऐसे क्या कारण रहे कि राज्य के मुख्य चुनाव निर्वाचन अधिकारी अश्विनी भगत को हटाया गया। एकबार तो आदेश मिलते ही भगत को खुद भी विश्वास नहीं हुआ पर कुछ देर में वे सचिवालय से निकल गए। सूत्रों की माने तो नई दिल्ली स्थित भारत निर्वाचन आयोग से आए फोन ने इस अधिकारी को अपने पद से हटा दिया। यह फोन मुख्य सचिव डीबी गुप्ता के पास आया और उनसे राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को बदल कर आनंदकुमार को लगाने को कहा गया।

बताया जाता है कि आयोग को अश्विनी भगत के खिलाफ पिछले कुछ समय से शिकायत मिल रही थी कि वे कार्य के प्रति गंभीर नहीं है। उन्होंने कांग्रेस की 45 लाख फर्जी वोटरों की शिकायत को भी गंभीरता से नहीं लिया है। इसके साथ ही चुनाव आयोग से मिले निर्देशों की तरीके से पालना नहीं की जा रही है। पिछले कुछ समय से वे अपनी कार्यप्रणाली को लेकर खासे विवादों में रहे।

गुरुवार, 30 अगस्त 2018

सिंधु जल संधि पर बातचीत पूरी, भारत ने पाक की आपत्ति को खारिज किया

सिंधु जल संधि पर यहां अहम उच्चस्तरीय द्विपक्षीय बातचीत पूरी होने के बीच एक पाकिस्तानी अधिकारी ने गुरुवार को कहा कि भारत ने चेनाब नदी पर अपनी दो पनबिजली परियोजनाओं पर पाकिस्तान की आपत्तियों को खारिज कर दिया है.

इमरान खान के 18 अगस्त को प्रधानमंत्री बनने के बाद दोनों देशों के बीच यह पहली आधिकारिक बातचीत थी. बातचीत समाप्ति के बाद सिंधु जल संबंधी पाकिस्तानी आयुक्त सैयद मेहर अली शाह ने संवाददाताओं से कहा कि इस मुद्दे पर कोई ब्रीफिंग और बयान नहीं होगा. शाह ने कहा, यह एक संवेदनशील मामला है और हमें इस पर (विदेश कार्यालय द्वारा) बात नहीं करने के लिए कहा गया है. इस संबंध में विदेश कार्यालय बयान जारी करेगा.

पाकिस्तानी पक्ष के एक अन्य अधिकारी ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कहा कि भारत ने चेनाब नदी पर 1000 मेगावाट की पाकल दुल और 48 मेगावाट लोअर कलनाल पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण पर पाकिस्तान की आपत्तियों को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि भारत ने दोनों परियोजनाओं पर काम जारी रखने का संकेत दिया है. अधिकारी के अनुसार पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों का रुख कर सकता है.

सचिन ने मुख्यमंत्री राजे से पूछा 14वां सवाल

जयपुर। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से गुरुवार को चौदहवां प्रश्न पूछा है कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत 80 प्रतिशत बच्चों को निजी स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करने से वंचित रख क्या आप गौरव महसूस करती हैं?’
पायलट ने कहा कि यूपीए सरकार ने गरीब एवं जरूरतमंद परिवारों के बच्चों को प्राथमिक स्तर पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए कानून बनाया था, जिसके अनुसार निजी स्कूलों की 25 प्रतिशत सीटें बीपीएल, अल्प आय वर्ग एवं वंचित वर्ग के लिए आरक्षित की गईं और इन सीटों के लिए फीस का पुनर्भरण सरकारी बजट के माध्यम से किया जाना निश्चित किया गया।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस शासन के दौरान वर्ष 2013 में 1,53,670 बच्चों को आरटीई एक्ट की अनुपालना में निजी स्कूलों में प्रवेश दिलवाया गया था, परंतु भाजपा के सत्ता में आते ही यह आंकड़ा हर वर्ष कम होता गया, जो कि वर्ष 2016 में घटकर 82 हजार रह गया, जबकि शिक्षा के अधिकार कानून के अधीन निजी स्कूलों में इस वर्ग के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 4 लाख 34 हजार है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार ने लगभग 80 प्रतिशत सीटों को खाली रखकर जहां एक ओर शिक्षा के अधिकार अधिनियम को कमजोर बनाने का काम किया है, वहीं इसके लिए आवंटित बजट का भी कोई उपयोग नहीं किया गया है। सरकार के इस कदम से निजी स्कूलों को फायदा पहुंचा है, जिन्होंने आरटीई के तहत आरक्षित सीटों पर सामान्य वर्ग के बच्चों को दाखिला देकर जमकर चांदी कूटी है।

उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि सरकार ने कानून की अवहेलना करते हुए गरीब व कमजोर वर्ग की आय की सीमा 2.5 लाख से घटाकर 1 लाख कर दी, जिस पर उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर हुई और उच्च न्यायालय ने भाजपा सरकार के आय संशोधन आदेश को निरस्त करते हुए मई, 2016 में निर्देश दिए कि जितने आवेदन आए हैं, उनको 2.5 लाख प्रतिवर्ष आय के हिसाब से जांच कर दाखिले दिए जाएं।

       उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार ने कमजोर वर्ग के प्रति दुर्भावना का परिचय देते हुए उच्चतम न्यायालय में अपील की और न्यायालय के समक्ष इन कमजोर वर्ग के छात्रों पर होने वाले खर्च को वहन करने में असमर्थता जताकर अपनी दमित विरोधी नीति को उजगार कर दिया है।  उच्चत्तम न्यायालय ने भी भाजपा सरकार को शिक्षा के अधिकार कानून से छेड़छाड़ नहीं करने का निर्देश जारी किया है, परंतु भाजपा सरकार अपनी हठधर्मिता के चलते उच्चतम न्यायालय के आदेशों की अवहेलना कर रही है।

आरएसएस की विचारधारा देश के लिए जहर के समान

 कर्नाटक में एक छोटी क्षेत्रीय पार्टी (जनता दल-सेक्युलर) के 37 विधायक हैं
 और हमारे 80 विधायक होने के बाद भी हमने धर्मनिरपेक्ष ताकतों को मजबूत करने के लिए उस पार्टी के लिए मुख्यमंत्री पद छोड़ त्याग दिया है। इसलिए राहुल गांधी या कांग्रेस के किसी अन्य नेता को आरएसएस मुख्यालय जाने का कोई सवाल ही नहीं उठता।  आरएसएस की विचारधारा देश के लिए और दलितों और अन्य उत्पीडि़त वर्गों के लिए एक जहर के समान है। कांग्रेस के नेता ए के एंटनी ने कहा कि अगर आरएसएस का न्योता आता भी है तो इसे स्वीकार करने की आवश्यकता नहीं है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के न्योते की चर्चाओं के मध्यनजर दिल्ली में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की बैठक का आयोजन किया गया। इसमें वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं का मानना है कि राहुल गांधी को न्योता स्वीकार नहीं करना चाहिए। मिली जानकारी के अनुसार ,कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष को संघ कार्यक्रम में भाग नहीं लेने का सुझाव दिया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने कहा है कि राहुल गांधी को संघ के कार्यक्रम का निमंत्रण को अस्वीकार कर देना चाहिए।

बैठक में पुरानी घटना का उल्लेख करते हुए बताया गया कि इससे पहले 2007 में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी आरएसएस की ओर से एक कार्यक्रम में शामिल होने का प्रस्ताव आया था, लेकिन उन्होंने मना कर दिया था। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खडग़े ने कहा है कि कांग्रेस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ एक वैचारिक लड़ाई लड रही है। कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद की तिरांजलि दी है।

खडग़े ने कहा कि कर्नाटक में एक छोटी क्षेत्रीय पार्टी (जनता दल-सेक्युलर) के 37 विधायक हैं और हमारे 80 विधायक होने के बाद भी हमने धर्मनिरपेक्ष ताकतों को मजबूत करने के लिए उस पार्टी के लिए मुख्यमंत्री पद छोड़ त्याग दिया है। इसलिए राहुल गांधी या कांग्रेस के किसी अन्य नेता को आरएसएस मुख्यालय जाने का कोई सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने आगे बताया कि आरएसएस की विचारधारा देश के लिए और दलितों और अन्य उत्पीडि़त वर्गों के लिए एक जहर के समान है। कांग्रेस के नेता ए के एंटनी ने कहा कि अगर आरएसएस का न्योता आता भी है तो इसे स्वीकार करने की आवश्यकता नहीं है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि आम चुनाव से पहले पार्टी के आरएसएस के ट्रैप में फंसना नहीं चाहती।


देश में संविधान लागू है और क़ानून अपना काम कर रहा है

रोजगार नहीं है. उत्पादन घट गया है. किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नसीब नहीं हो रहा है. हेल्थ सर्विस चौपट हो चली है. शिक्षा-व्यवस्था डांवाडोल है. मुस्लिम ख़ामोश हो गया है. दलित चुपचाप है लेकिन आवाज़ नहीं उठनी चाहिए क्योंकि देश में क़ानून अपना काम कर रहा है.


क्या जयप्रकाश नारायण आज होते तो माफी मांगते. क्या राम मनोहर लोहिया आज होते तो माफी मांगते. क्या वीपी सिंह आज होते तो माफी मांगते. क्या प्रणव मुखर्जी सोच रहे होंगे कि गलती हो गई. शायद ये सारे सवाल बेमानी है.



क्योंकि वक्त बदल चुका है और बदले हुए वक्त तले ये सवाल लगातार बड़ा होता जा रहा है कि आजादी के वक्त क्या चर्चिल का टिप्पणी सही थी कि ‘भारत को आजादी मिल जाएगी लेकिन ये शासन चलाना नहीं जानते.’




तब का संदर्भ कांग्रेस और मुस्लिम लीग को लेकर रहा होगा. हो सकता है तब चर्चिल के जेहन में हिंदू महासभा भी रही हो लेकिन 71 बरस बाद कैसे आजादी, संविधान, लोकतंत्र और शायद आपातकाल की भी परिभाषा बदल गई ये किसी ने सोचा ना होगा. दोष सिर्फ तत्काल का नहीं है लेकिन सफर जब किसी मुकाम पर पहुंचता है तो कटघरे में वही वक्त होता है.

हालात को परखने से पहले एक बार पन्नों को पलटकर 43 बरस पहले 1975 में लौटना होगा क्योंकि तब पहली बार इस देश ने संविधान का महत्व समझा था. यानी संविधान अगर सत्ता तले गिरवी हो जाये तो आम नागरिक कैसे बिलबिलाते हैं और संवैधानिक संस्थान कैसे सत्ता की ताकत बन जाते हैं.

सिस्टम कैसे वर्दीधारियों के बूटों तले सत्ता के इशारे पर रौदा जाता है. सब कुछ तो याद होगा उस पीढ़ी को जिसने आपातकाल के खिलाफ संघर्ष किया और काल कोठरी में 18 महीने बिताए. कतार लंबी है स्वयसेवकों की भी. पर तब हुआ क्या था?

सुनिएगा तो हंसिएगा. जो सवाल न्यायापालिका के सामने 1975 में उठे और इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को कठघरे में खड़ा कर दिया, वही सवाल अब सत्ता- व्यवस्था का हिस्सा बन चुके हैं. तो देश भी अभ्यस्त हो चुका है.

यानी 1975 के सवाल बीतते वक्त के साथ कैसे महत्व खो चुके हैं या फिर सिस्टम का हिस्सा बना दिए गए, इसे देश में कोई महसूस कर ही नहीं पाता है क्योंकि संविधान की जगह पार्टियों के चुनावी मैनिफेस्टो ने ले ली है.

वक्त के साथ अंधेरा इतना घना हो गया कि किसी ने आकर कोई भी सपना दिखा दिया नागरिक उसे सच मान बैठे. क्योंकि सिस्टम और संविधान कहा मायने रखता है.

इस एहसास को इसलिए समझे क्योंकि 1975 के बाद जन्म लेने वाले भारतीय नागरिकों की तादाद मौजूदा वक्त में दो तिहाई है. यानी 80 करोड़ लोगों को पता ही नहीं कि इमरजेंसी होती क्या है.

याद कीजिये 26 जून की सुबह 8 बजे आकाशवाणी से इंदिरा गांधी का संदेश, ‘राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा की है. इसमें घबराने की जरूरत नहीं है…’ तो हर सत्ता हर हालात को लेकर कुछ इसी तरह कहती है. घबराने की जरूरत नहीं है.

आपके जेहन में नोटबंदी या सर्जिकल स्ट्राइक आये या फिर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को लेकर उठते सवाल आएं और आप सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से राहत महसूस कर रहे हैं कि सत्ता से विरोध के स्वर को लोकतंत्र में सेफ्टी वाल्ब का काम करते हैं, उससे पहले याद कीजिए 12 जून, 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद से लेकर 25 जून 1975 तक देश में हो क्या रहा था और वह कौन से सवाल थे, जिसे अदालत सही नहीं मानता था और इंदिरा गांधी ने सत्ता छोड़ने की जगह देश पर इमरजेंसी थोप दी.

12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सिन्हा ने जन-प्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 (7) के तहत दो मुद्दों पर इंदिरा गांधी को दोषी माना. पहला, रायबरेली में चुनावी सभाओं के लिए मंच बनाने और लाउडस्पीकर के लिए बिजली लेने में सरकारी अधिकारियों का सहयोग लेना.

दूसरा, भारत सरकार के अधिकारी जो पीएमओ में थे, यशपाल कपूर की मदद चुनाव प्रचार में लेना. तो अब चुनाव में क्या-क्या होता है और बिना सरकारी सहयोग के क्या सत्ता कोई
भी चुनाव लड़ती है. ये कम से कम वाजपेयी-मनमोहन-मोदी के दौर को याद करते हुए कोई भी सवाल तो कर ही सकता है.



इस दौर ने तो पीवी नरसिम्हा राव का सत्ता बचाने के लिए झामुमो घूस कांड भी देख लिए. मनमोहन के दौर में भाजपा का संसद में करोड़ों के नोट उड़ाने को भी परख लिया. यानी आप ठहाका लगाएंगें कि क्या वाकई देश में एक ऐसा वक्त था जब पीएमओ के किसी अधिकारी से चुनाव के वक्त पीएम मदद लें और चुनावी प्रचार के वक्त सरकारी सहयोग से मंच और लाउडस्पीकर के लिए बिजली ली जाये तो अपराध हो गया.

इतना ही नहीं आज के दौर में जब चुनाव धन-बल के आधार पर ही लड़ा जाता है तो 1971 के चुनाव को लेकर अदालत 1975 में ये भी सुन रही थी कि क्या इंदिरा गांधी ने तय रकम से ज्यादा प्रचार में खर्च तो नहीं किए.

वोटरों को रिश्वत तो नहीं दी. वायुसेना के जहाज-हेलीकॉप्टर पर सफर कर चुनावी प्रचार तो नहीं किया. चुनाव चिह्न गाय-बछड़े के आसरे धार्मिक भावनाओं से खेल कर लाभ तो नहीं उठाया.

43 बरस में भारत कितना बदल गया ये सत्ता के चुनावी मिजाज से ही समझ जा सकता है. जहां धर्म के नाम पर सियासत खुल कर होती है. हिंदुत्व चुनावी जुमला है. सरकारी लाभ उठाना सामान्य सी बात है.

जब समूची सरकार ही चुनाव जीतने में लग जाती हो और सत्ताधारी पार्टी गर्व करती हो कि उसके पास मोदी सरीखा प्रचारक है तो फिर अधिकारियों की कौन पूछे. फिर अब के वक्त तो खर्च की कोई सीमा ही नहीं है.

हर चुनाव के बाद चुनाव आयोग के आंकड़े सबूत हैं लेकिन नया सवाल तो उसके आगे का है. संविधान देश में लागू है. संवैधानिक संस्थाएं काम कर रही हैं. पुलिस-प्रशासन सक्रिय है. सिस्टम बना हुआ है. स्कूल कॉलेज चल रहे हैं. यूनिवर्सिटी में पढ़ाई जारी है लेकिन जो जैसे चल रहा है उससे आप नाराज नहीं हो सकते.

अगर संवैधानिक संस्थान सत्ता के हक को लेकर सक्रिय हैं तो आप सवाल नहीं कर सकते हैं कि आखिर सीबीआई, ईडी, सीवीसी, सीआईसी, कैग, यूजीसी, चुनाव आयोग यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के भीतर से भी आवाज आए कि लोकतंत्र को खतरा है लेकिन आवाज उठनी नहीं चाहिए.

रोजगार नहीं है. उत्पादन कम हो गया है. किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नसीब नहीं हो रहा है. हेल्थ सर्विस चौपट हो चली है. शिक्षा व्यवस्था डांवाडोल है लेकिन आवाज उठनी नहीं चाहिए.

मुस्लिम खामोश हो गया है. दलित चुपचाप है. गरीब की बोलती तो पहले से बंद थी. अब सभी के हक की लड़ाई सत्ता और सरकार लड़ रही है. योजनाएं बना रही है. सत्ता कल्याणकारी सोच के साथ है. उसे गरीबी का मतलब पता है.

घर-घर रोशनी की जा रही है. एक दो नहीं सेंचुरी पार कर योजनाओं का ऐलान हुआ है. पर कुछ हो क्यों नहीं पा रहा. हालात बदतर क्यों हो रहे हैं. आवाज होनी नहीं चाहिए. क्योंकि देश में संविधान अपना काम कर रहा है.

तो क्या 43 बरस में चुनावी लोकतंत्र की परिभाषा ही बदल गई है. या कहे इमरजेंसी के दौर में जो सवाल संविधान के खिलाफ लगते या फिर गैर कानूनी माने जाते थे, वही सवाल सियासी तिकड़मों तले 43 बरस में ऐसे बदलते चले गये कि भारत के नागरिक ही हालातों से समझौता करने लगे.

क्योंकि 12 जून को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द किया था. छह बरस तक प्रतिबंध लगाया था. तब इंदिरा गांधी ने सुप्रीम कोर्ट से फैसला अपने हक में कराया और सत्ता में बने रहने के लिए इमरजेंसी थोप दी.


फिर 1975 में 12 से 25 जून तक जो दिल्ली की सड़क से लेकर जिस सियासत की व्यूह रचना तब 01, सफदरजंग रोड पर होती रही. उसे इतिहास में काले अक्षरों में लिखा जाता है. लेकिन वैसी ही तिकड़में उसके बाद सियासत का कैसे हिस्सा बनते-बनते लोगों को अभ्यस्त कराते चली गई. इस पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया.

क्योंकि याद कीजिए 20 जून 1975. कटघरे में खड़ी इंदिरा गांधी के लिए कांग्रेस का शक्ति प्रदर्शन. सत्ता के इशारे पर बस ट्रेन सब कुछ झोक दिया गया. चारों दिशाओं से इंदिरा स्पेशल ट्रेन-बस दिल्ली पहुंचने लगी.

लोगों को ट्रैक्टर-कार-बस-ट्रक में भरभरकर बोट क्लब पहुंचाया गया. पूरी सरकारी अमला जुटा था. संजय गांधी खुद समूची व्यवस्था देख रहे थे. इंदिरा की तमाम तस्वीरों से सजे 12 फुट ऊंचे मंच पर जैसे ही इंदिरा पहुंचती हैं गगनभेदी नारे गूंजने लगते हैं.

माइक संभालते ही इंदिरा कहती हैं, ‘…देश के भीतर-बाहर कुछ शक्तिशाली तत्व उनकी सत्ता पलटने का षडयंत्र रच रहे हैं. इन विरोधी दलों को समाचारपत्रों का समर्थन प्राप्त है और तथ्यों को बिगाड़ने और सफेद झूठ फैलाने की इन्हें अनोखी आजादी प्राप्त है. सवाल ये नहीं है कि मै जीवित रहूं या मर जाती हूं. सवाल राष्ट्र के हित का है.’

25 मिनट के भाषण को दिल्ली दूरदर्शन लाइव करता है. आकाशवाणी से सीधा प्रसारण होता है. यानी अब का दौर और तब का दौर. क्या तब था अब क्या है, ये बताने की जरूरत
नहीं है.

कैसे सैकड़ों चैनलों से लेकर डिजिटल मीडिया तक सत्तानुकुल हैं. कैसे किसी भी चुनाव रैली को सफल दिखाने के लिए ट्रेन-बस-ट्रकों में भरभरकर लोगों को लाया जाता है. चुनावी बरस में सरकारी खर्च पर प्रचार-प्रसार किसी से छुपा नहीं है.

अब याद कीजिए रामलीला मैदान की 25 जून 1975 की तस्वीर जब जेपी की रैली हुई. लाखों की संख्या में लोग सिर्फ जेपी के एक ऐलान पर चले आये.

जेपी ने अपने भाषण में कहा, ‘छात्र स्कूल-कॉलेजो से निकल आएं और जेलों को भर दें. पुलिस और सेना गैरकानूनी आदेशों का पालन ना करें.’

तब जेपी को देशद्रोही करार देने में सत्ता तनिक भी देर नहीं लगाती. बकायदा दुनियाभर में भारत के दूतावासों तक में ये जानकारी भेजी जाती है कि जेपी सेना को उकसा रहे हैं. उनके खिलाफ देशद्रोह का मामला है. पर अब कौन कितना किस रूप में देशद्रोही है ये बताने दिखाने में कहा और किसे हिचक है.

संविधान लागू है. कानून अपना काम कर रहा है. इस बेहतरीन लाइन से बेहतर और क्या हो सकता है. ये अलग बात है तब जेपी के भाषण की रौ में कोई बह ना जाये तो दूरदर्शन पर फिल्म बॉबी दिखायी गई थी.

और अब घर-घर लगे टीवी चैनलों में बॉबी से ज्यादा बेहतरीन फिल्में तो मुनाफे के लिए हमेशा चलती रहती हैं. लेकिन संविधान देश में लागू है और कानून अपना काम कर रहा है. ये बताने के लिए जी-तोड़ मशक्त न्यूज चैनलों में चलती है. जो फिल्म बॉबी से ज्यादा घांसू होती है.

विपक्ष को अब भी तमीज नहीं आयी है कि वह इन बहस में शामिल होकर क्या बताने जाता है. यानी सत्ता के डायनिंग टेबल पर जायके का मजा लेते हुए कोई कहे जायका ठीक नहीं तो फिर देश के भूखे-नंगे या गरीबों के लिए वह विपक्ष भी खलनायक नहीं होगा तो क्या होगा?

इमरजेंसी लगने से एक दिन पहले 24 जून की रात में 400 वारंट पर हस्ताक्षर हुए. इसके बाद विरोधी नेताओं की गिरफ्तारी के आदेश 25 की सुबह 10 बजे तक भेजे भी जा चुके थे.

यानी कैसे देश इमरजेंसी की तरफ बढ़ रहा था और कैसे इंदिरा की सत्ता एडवांस में ही हर निर्णय ले रही थी और इसमें समूची सरकारी मशानरी कैसे लग जाती है. यह हो सकता है आज कोई अजूबा ना लगे. क्योंकि हर सत्ता ने हर बार कहा कि जनता ने उसे चुना है तो उसे गद्दी से कोई कानून उतार नहीं सकता. ये बात इंदिरा गांधी ने भी तब कही थी.

ताज बना देहशोषण का अडडा, ताज का अस्तित्व समाप्त

काफी वर्षों से जयपुर के रंगकर्मियों की मांग थी कि हम लोगों के उत्थान के लिये एसोसियेशन हो, उत्थान के लिये एसोसियेशन भी बन गई, लेकिन जब एसोसियेशन बालिग हुआ तो उत्थान की जगह नारियों के जिस्म के साथ खेलने का अडडा बनकर रह गई, और रंगकर्मी जहां थे उससे भी नीचे आ गये।

               जयपुर । जगजाहिर विशेष संवाददाता। थियेटर आर्टिस्ट एसोसियेशन आॅफ जयपुर ताज के संस्थापक सदस्यों ने  प्रेस क्लब में प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर ताज के वर्तमान कार्यकारिणी के पदाधिकारियों पर महिलाओं के यौन शोषण, आवाज मोबाइल में रिकॉर्डिंग कर उन्हें ब्लेैकमेल करने जैसे आरोप लगाये।

 प्रवक्ता जफर खान ने, संजय विद्रोही ने बताया कि ताज के पदाधिकारियों द्वारा संगठन की आड में बहुत से अनैतिक कार्य किये जा रहे हैं, महिला रंगकर्मियों को बॉलीवुड और फिल्मों में कार्य दिलाने का भरोसा दिलाकर उनका शारीरिक शोषण किया जा रहा है। वह बदनामी के डर से कुछ बोल नहीं पाती हैं, ताज के पदाधिकारियों द्वारा रंगकर्मियों को मिलने वाले अनुदान में कलाकार और विभाग के बीच दलाल का कार्य किया जा रहा है व दलाली ली जा रही है, यह विभाग के अधिकृत दलाल बन चुके हैं।

 यह आरएएस, आइएएस, मंत्री सभी को दबाव में लेने की कोशिश् करते हैं और दबाव में नहीं आने पर उनके विरूद्ध चार लोगों को इकटृठा कर नारे लगवा दिये जाते हैं, इस तरह ताज यौन शोषण का अडडा बन चुका है। यह इतना बदनाम हो चुका है कि अब सिर्फ लडकियों के दलाल किस्म के लोग ही इससे जुडें रहने में गौरव महसूस करेंगे, बाकी को तो इनके साथ खडा रहने में भ्री शर्म आयेगी, इसलिये इसको सदा—सदा के लिये भंग कर दिया गया है, ताज के पदाधिकारी हिमांशु झांकल, मुकेश सोनी, के के कोहली है व तीन साल से  इसमें अन्य पदाधिकारियों ने कोहराम मचा रखा था। अब ताज नाम की कोई संस्था कलाकारों की यूनियन होने का दावा नहीं कर सकती, इसके समर्थन में प्रमुख नाटय संस्थाओं ने अपने शपथपत्र पेश किये ।

अपराधों को बंद तो कोई भी नहीं कर सकता : गुलाबचंद कटारिया

 मैं यह नहीं कहता कि अपराध खत्म हो रहे हैं, लेकिन अपराध रोकने के लिए हमारे प्रयास जारी हैं। पिछले साल के मुकाबले अपराधों में कमी आई है। इसके अलावा महिला उत्पीड़न, दहेज, महिला अत्याचार संबंधी अपराधों में कमी हुई है।  कटारिया ने विपक्ष को भी खुली बहस की चुनौती दे दी। 

जयपुर। राजस्थान कांग्रेस दुष्प्रचार करने में आगे रहती है। प्रदेश में अपराधों के मामलों को लेकर भी कांग्रेस दुष्प्रचार कर रही है, जबकि हमारी सरकार में कानून सभी के लिए बराबर है। मेरे कार्यकाल में जो भी कानून का उल्लंघन करता है, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होती है। हमारा महकमा निष्पक्षता से कार्रवाई करता है।

 मीडिया से बात करते हुए गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया ने कहा कि वास्तविकता यह है कि राजस्थान में निरंतर अपराधों में कमी आ रही है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2012-2013 में कांग्रेस शासन में अपराधों में 14 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, जबकि भाजपा शासन में वर्ष 2013-14 में यह घटकर 7 प्रतिशत पर आ गई और उसके बाद 2014-15 में 5.8 प्रतिशत कम हुई, वर्ष 2015-16 में 8.93 प्रतिशत कम हुई, वर्ष 2016-17 में 5.79 प्रतिशत कम हुई, वर्ष 2017-18 में 3.40 प्रतिशत की कमी हुई है एवं निरंतर कमी आती गई है।

 कांग्रेस शासन में वर्ष 2012-13 में महिला अपराधों में 32.65 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, जबकि भाजपा शासन में महिला अपराधों में वर्ष 2013-14 में 10.30 प्रतिशत वृद्धि हुई, वर्ष 2014-15 में 9.55 प्रतिशत की कमी हुई, वर्ष 2015-16 में 2.59 प्रतिशत की कमी आई, वर्ष 2016-17 में 9.79 प्रतिशत की कमी आई, वर्ष 2017-18 में निरंतर कमी आती गई है।

 अपराधों को बंद तो कोई भी नहीं कर सकता, लेकिन हमारी सरकार ने अपराधों पर लगाम लगाने का प्रयास किया है। आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस शासन की तुलना में अब भाजपा शासन में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व महिला अत्याचारों में निरंतर कमी आई है। नेशनल क्राइम रिपोर्ट के अनुसार देश में हो रहे नाबालिग बच्चियों के साथ दुष्कर्म जैसे अपराधों (पास्को एक्ट) में राजस्थान अन्य राज्यों की तुलना में 10वें नंबर पर है।

 कटारिया ने कहा कि महिला अत्याचार के विरुद्ध सजा देने में देश में राजस्थान का दूसरा स्थान है। उन्होंने कहा कि पास्को एक्ट के तहत 7 दिन में चालान पेश किया एवं 42 दिन में फांसी की सजा भी सुना दी गई।

भाजपा में बाहरी नेताओं ने औकात जानी

चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी दूसरी पार्टियों में खूब तोड़ फोड़ करती है। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से लेकर तमाम क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं को भाजपा में भरती किया गया था। एक आकलन के मुताबिक 2014 में भाजपा के जो 284 सांसद जीते उनमें करीब एक सौ नेता ऐसे थे जो दूसरी पार्टियों से आए थे। यानी भाजपा के अपने नेता उतने ही जीते थे, जितने अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के जमाने में जीता करते थे। इस लिहाज से तो कह सकते हैं कि बाहर से आए नेताओं से भाजपा को फायदा हुआ। राज्यों के चुनाव में भी ऐसा सफल खेल भाजपा ने किया है। 

पर दूसरी पार्टियों से जो बड़े नेता भाजपा में आए वे पार्टी के लिए एक तरह से कचरा है। या तो वे खुद बेकार साबित हुए या भाजपा ने किसी न किसी मजबूरी में उनको बेकार कर दिया। इसके इक्का दुक्का अपवाद हैं, जैसे राजद छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए रामकृपाल यादव, जिन्होंने लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद की बेटी को हराया और बाद में भाजपा ने उनको केंद्र सरकार में मंत्री बनाया है। ऐसे अपवादों को छोड़ दें तो जोश खरोश के साथ भाजपा में शामिल कराए गए ज्यादातर नेता पैदल हैं या पैदल कर दिए गए हैं।

पश्चिम बंगाल के दिग्गज नेता मुकुल रॉय को भाजपा ने बड़े धूमधाम के साथ पार्टी में शामिल कराया था। उनके सहारे भाजपा को पश्चिम बंगाल में ममता को हराना था। ध्यान रहे मुकुल रॉय तृणमूल कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और कांग्रेस में सेंध लगा कर ममता की पार्टी के संगठन को मजबूत करने में सबसे बड़ी भूमिका उनकी थी। पर वे भाजपा में शामिल हुए तो एक छोटा सा प्यादा बन कर रह गए हैं। उन्होंने यह फायदा हुआ हो सकता है कि जिन चिटफंड घोटालों में वे घिर रहे थे उससे बच जाएं पर राजनीतिक रूप से वे भाजपा के काम नहीं आ रहे हैं।

पहले ऐसा लग रहा था कि भाजपा उनको प्रदेश में पार्टी की कमान सौंपेगी और उनको राज्यसभा में भेजा जाएगा। आखिर वे अपना राज्यसभा का कार्यकाल खत्म होने से पहले इस्तीफा देकर आए थे। पर भाजपा ने उनको राज्यसभा में नहीं भेजा और प्रदेश में पार्टी संगठन के काम में कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी। उलटे अमित शाह के पिछले दौरे में मुकुल रॉय को मंच पर एक कोने में बैठाया गया। ऐसे माना जा रहा है कि ममता बनर्जी को खुश करने के लिए भाजपा ने किया है। भाजपा को ऐसा लग रहा है कि चुनाव के बाद ममता की जरूरत पड़ सकती है इसलिए उसने मुकुल रॉय की बलि चढ़ा दी है।

कमोबेश यहीं स्थिति ओड़िशा की केंद्रपाड़ा सीट के पूर्व सांसद जय पांडा की है। बीजू जनता दल और लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद वे भाजपा में शामिल होने वाले थे। पर नवीन पटनायक की नाराजगी को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि भाजपा ने उनकी एंट्री रोक दी है। ध्यान रहे पटनायक ने अभी लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर और राज्यसभा में उप सभापति के चुनाव में भाजपा की मदद की है। आगे भी भाजपा को उनकी मदद की जरूरत दिख रही है। यह भी कहा जा रहा है कि केंद्रीय मंत्री और ओड़िशा में भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार धर्मेंद्र प्रधान ने उनकी एंट्री रूकवाई है। ऐन चुनाव से पहले इस्तीफा देकर पांडा फंस गए हैं। उनके पास अब इतना समय भी नहीं है कि वे अपनी पार्टी बना कर अलग राजनीति करें।

इसी तरह भाजपा ने बड़े धूमधड़ाके से महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे को धूमधाम से पार्टी में शामिल किया था और वे राज्यसभा के सदस्य भी बने। कोंकण के इलाके में वे सबसे बड़े मराठा नेता हैं। शिव सेना ने उनको मुख्यमंत्री बनाया था और कांग्रेस की सरकार में भी वे मंत्री थे। वे महाराष्ट्र की भाजपा सरकार में मंत्री बनना चाहते थे। पर शिव सेना ने उनका विरोध कर दिया, जिसकी वजह से भाजपा ने उनके किनारे किया। अब वे राज्यसभा के सदस्य तो बन गए हैं पर शिव सेना के विरोध को देखते हुए भाजपा उनका इस्तेमाल नहीं कर रही है। ध्यान रहें कोंकण का इलाका ही शिव सेना का भी सबसे मजबूत गढ़ है। और भाजपा को शिव सेना के बगैर चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं हो रही है।

कर्नाटक में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने कांग्रेस के दिग्गज नेता एसएम कृष्णा को अपनी पार्टी में शामिल कराया। वे विदेश मंत्री रहे हैं और कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे हैं। पर भाजपा में उनको क्या जिम्मेदारी मिली? वे सोशल मीडिया टीम में शामिल किए गए, जबकि उनके नाम पर भाजपा वोक्कालिगा वोट हासिल करना चाहती थी। वहां भाजपा की दिक्कत जेडीएस को लेकर थी, जिसकी राजनीति वोक्कालिगा वोट की है। भाजपा जेडीएस के देवगौड़ा पिता-पुत्र को नाराज नहीं करना चाहती थी।

ऐसे ही दिल्ली में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे अरविंदर सिंह लवली को भाजपा ने धूमधड़ाके से पार्टी में शामिल कराया। कुछ दिन तक उनको कोई जिम्मेदारी नहीं मिली तो बेचारे लवली वापस कांग्रेस में लौट गए। हरियाणा में कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए राव इंद्रजीत सिंह केंद्र में मंत्री तो बन गए हैं पर वे भी अगले चुनाव से पहले पार्टी छोड़ने की तैयारी में हैं। उत्तर प्रदेश में मायावती की पार्टी में सबसे कद्दावर नेता रहे स्वामी प्रसाद मौर्य राज्य की भाजपा सरकार में मंत्री बन कर पड़े हैं। भाजपा के संगठन में उनका कोई इस्तेमाल नहीं है। और अगर जरूरत पड़ी तो मायावती को खुश करने के लिए भाजपा को उनकी कुर्बानी देने में कोई हिचक नहीं होगी। 

रेप केस छोड़ किरोड़ीलाल मीणा के खिलाफ दर्ज सभी केस वापस!

राजस्थान सरकार किरोड़ी लाल मीणा और गोलमादेवी के खिलाफ दर्ज मारपीट, अभद्रता और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के सभी मामले वापस लेने जा रही है.
जयपुर । चुनावी साल में राजस्थान की बीजेपी सरकार ने बड़ा फैसला करते हुए राज्यसभा सांसद किरोड़ीलाल मीणा और विधायक गोलमा देवी के खिलाफ दर्ज सभी मामले वापस लेने का मानस बना लिया है. सरकार की ओर से जयपुर, दौसा, अलवर और सवाई माधोपुर के कलेक्टर - एसपी से दोनों जनप्रतिनिधियों के खिलाफ दर्ज मामलों की रिपोर्ट मांगी गई थी, जो सरकार को मिल चुकी है. अब सरकार मारपीट, अभद्रता और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसे सभी मुकदमे वापस लेने जा रही है.

हालांकि, किरोड़ी लाल मीणा पर 21 साल की युवती से गैंगरेप के मामले में सरकार ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया है. दो साल पहले युवती ने 12 लोगों के खिलाफ थाने में गैंगरेप का केस दर्ज कराया था जिसमें किरोड़ीलाल मीणा का नाम भी है. जयपुर पुलिस ने गैंगरेप के इस मामले को जांच के लिए सीआईडी के क्राइम ब्रांच को सौंप दिया था. गैंगरेप में मीणा समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 376डी, 366, 344 और 323 के तहत केस दर्ज है.

इससे करीब पांच महीने पहले राजस्थान के बहुचर्चित गुर्जर आरक्षण आंदोलन के दौरान गुर्जर नेताओं के खिलाफ राजद्रोह के केस को वसुंधरा सरकार ने वापस ले लिया था. इस तरह करीब तीन साल पहले पिछली सरकार द्वारा गुर्जर नेताओं पर दर्ज कराए गए सभी केस वापस ले लिए गए हैं और पुलिस ने उन सभी की फाइल बंद कर दी है.

सरकार के इस फैसले से गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला और हिम्मत सिंह सहित 22 गुर्जरों को बड़ी राहत मिली है. इन सभी के खिलाफ राजद्रोह सहित कई संगीन धाराओं में केस दर्ज किए गए थे. पुलिस ने इन सभी मुकदमों पर फाइनल रिपोर्ट (एफआर) लगा दी है.

बुधवार, 29 अगस्त 2018

सितंबर माह को प्रदेश में ‘पोषण माह’ के रूप में मनाया जाएगा

जयपुर। राष्ट्रीय पोषण मिशन के तहत पोषण अभियान की ही कड़ी में प्रदेश में सितंबर माह को ‘पोषण माह’ के रूप में मनाया जाएगा। इस दौरान समावेशी भागीदारी को सुनिश्चित करते हुए समस्त हितधारकों के सहयोग से अभियान का संचालन किया जाएगा।

खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग की शासन सचिव मुग्धा सिन्हा ने बताया कि प्रदेेश के हर व्यक्ति को सुपोषण का महत्व बताने और देश की भावी पीढ़ी के अच्छे स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए पूरे सितंबर माह में पोषण संबंधी जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएंगे। इसमें स्थानीय जनप्रतिनिधियों, स्कूल प्रबन्धन समितियों, सामाजिक संगठनों, राजकीय विभागों एवं सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र को अभियान का हिस्सा बनाया जाएगा।

शासन सचिव ने बताया कि पोषण माह के दौरान महिला एवं बाल विकास विभाग, जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग, विद्यालय शिक्षा विभाग, चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, कृषि विभाग, जनजातीय क्षेत्रीय विकास विभाग, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग, ग्रामीण एवं पंचायती राज विभाग तथा खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के परस्पर समन्वय से पोषण एवं पोषाहार से सम्बन्धित विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया जाएगा। सभी गतिविधियां सम्बन्धित जिला अभिसरण योजना समिति के तत्वावधान में संचालित होंगी।

      सिन्हा ने बताया कि विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि पोषण माह के दौरान सम्बन्धित जिला कलक्टर के मार्गदर्शन में जिले में आयोजित गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए सितम्बर माह के लिए आवंटित खाद्यान सामग्री का वितरण समयबद्ध एवं समुचित ढंग से करें ताकि पोषण श्रृंखला की निरन्तरता बनी रहे।

शासन सचिव ने प्रदेश के समस्त जिला रसद अधिकारियों को इस बात के भी निर्देश दिए हैं कि अक्टूबर माह के लिए आवंटित खाद्यान का उठाव भी सितम्बर माह में पूर्ण किया जाए ताकि आगामी महीनों में राष्ट्रीय पोषण मिशन के समस्त पात्र लाभार्थियों को निर्धारित खाद्यान सामग्री समय पर वितरित हो सके। उन्होंने यह भी निर्देशित किया है कि सभी उचित मूल्य की दुकानें नियमित रूप से खुली रहें तथा क्षेत्र में खाद्यान वितरण की नियमित मॉनिटरिंग की जाए।

पोषण माह पर जिला स्तरीय अधिकारियों की आमुखीकरण कार्यशाला

जयपुर। समेकित बाल विकास सेवाऐं अंतर्गत विश्व बैंक एवं भारत सरकार के सहयोग से
संचालित पोषण अभियान के तहत् सितम्बर माह को पोषण माह के रूप में आयोजित किया जायेगा। पोषण माह के दौरान जिला, ब्लाॅक एवं आंगनबाड़ी केन्द्रों  पर गतिविधियों का आयोजन कर आमजन तथा समुदाय में  स्वास्थ्य एवं पोषण के बारे में  जानकारी प्रदान की जायेगी।

 आमुखीकरण कार्यशाला में समेकित बाल विकास विभाग के उप निदेशदेकों, बाल विकास परियोजना अधिकारीयों एवं पर्यवेक्षकों के साथ-ं साथ अन्य संबन्धित विभागों  यथा ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग, चिकित्सा एवं  स्वास्थ्य विभाग, शिज्ञा विभाग, पये जल एंव
स्वच्छता विभाग से  राज्य एवं जिला स्तरीय अधिकारियों  ने भाग लिया।

कार्यशाला के प्रारंभ में श्रीमती सुषमा अरोड़ा, निदेषक, समेकित बाल विकास सेवाऐं ने सभी प्रतिभागियों  का स्वागत करते हुये आमुखीकरण कार्यशाला के संबन्ध में विचार व्यक्त किये। कार्यशाला में  मुख्य अतिथि के रूप में  प्रमुख -शासन सचिव, महिला एवं बाल विकास विभाग श्रीमती रोली सिंह ने सहभागियों  को संबोधित करते हुये बताया कि आंगनबाड़ी केन्द्रों  पर उपलब्ध पोषण एवं  स्वास्थ्य संबन्धी सवेंओं की निगरानी हेतु पुरानी व्यवस्थायें  में  परिवर्तन कर नवीन तकनीकों का समावेश कर मोबाईल एप्लीकेशन का उपयोग राज्य में  प्रारंभ किया जा चुका है एवं  इसके परिणाम भी अत्यंत सकारात्मक रहे हैं, इसी को ध्यान में  रखते हुये -शेष रही सभी आंगनबाड़ी कन्द्रों पर -शीघ्र ही स्मार्टफोन उपलब्ध कराये जायंगे।

आमुखीकरण कार्यशाला के दौरान विभिन्न प्रस्तुतिकरणों के द्वारा आगामी सितम्बर में पोषण माह के दौरान आयोजित की जाने वाली गतिविधियों के बारे में प्रतिभागियों को जानकारी दी गई एवं विभिन्न विभागों द्वारा ग्राम एवं वार्ड स्तर पर आयोजित की जाने वाली पोषण एवं स्वास्थ्य सबंन्धी गतिविधियों के आयोजन के दौरान सभी सबंन्धित विभागों के क्षेत्रीय प्रतिनिधियों की भूमिका के महत्व के बोरंे मेेंं  चर्चा की गयी। इस हेतु आपसी समन्वय एवं  सामन्जस्य के साथ पोषण माह में क्रियान्वित की जाने वाली गतिविधियों की कार्ययोजना तैयार किये जाने पर बल दिया। उक्त कार्यशाला में स्वास्थ्य एवं पोषण के क्षेत्र में  कार्य करने वाले विभिन्न अंतर्राट्रीय एवं राश्ट्रीय संस्थानों तथा वल्र्डबैंक से  डाॅ. अरविन्द सिंघल (राज्य समन्वयक),
यूनिसेफ से निजामुद्दीन अहमद, श्रीमती वनिता (पो-ुनवजयाण अधिकारी)
एवं टीम आदि की सक्रिय सहभागिता रही।

कांग्रेस नेता पायलट ने वसुंधरा राजे से पूछा 13वां खास सवाल

क्या मुख्यमंत्री को विद्युत क्षेत्र में बढ़ी अव्यवस्थाओं पर
 जनता से की गई वादाखिलाफी पर गौरव महसूस होता है।
जयपुर। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से बुधवार को तेहरवां प्रश्न पूछा है कि ‘बिजली की दरें 37 से 70 प्रतिशत तक बढ़ाकर तथा जनता को लूटने के उद्देश्य से प्रमुख शहरों में निजी कम्पनियों को बिजली वितरण देकर और लटकते तारों व जलते ट्रांसफार्मर से लगभग 2500 नागरिकों की मौत हो जाने पर क्या मुख्यमंत्री गौरव महसूस करती हैं?’

पायलट ने कहा कि गत पौने पांच वर्षों में भाजपा सरकार ने प्रत्येक वर्ग के लिए बिजली की दरों में बेतहाशा वृद्धि कर दी है। घरेलू बिजली की दरों में 37 से 70 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर व व्यापारिक व औद्योगिक क्षेत्र की बिजली दरों को दुगुना कर दिया है। उदय योजना को लागू कर प्रदेश की जनता पर 60 हजार करोड़ रुपए का बोझ डाला गया है। बिजली छीजत व चोरी को नियंत्रित करने में भाजपा सरकार बुरी तरह से नाकाम रही है। फीडर रिनोवेशन प्रोग्राम के तहत लाखों ट्रांसफार्मर बदलने के दावों के बावजूद प्रदेश में भाजपा के राज में गत समय में लगभग 2500 निर्दोष लोग व बड़ी संख्या में पशुधन विद्युत कंपनियों की लापरवाही के कारण 11 केवी ट्रांसमिशन लाइन से करंट लगने, ट्रांसफार्मर के फटने व जलने के कारण बेमौत मारे गए हैं। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्य है कि इतनी बड़ी तादाद में बेकसूरों की मौत होने पर भी सरकार के स्तर पर किसी भी जिम्मेदार व्यक्ति की इन हादसों के लिए जवाबदेही सुनिश्चित नहीं की गई।

उन्होंने कहा कि भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में किसानों को 8 घंटे तीन फेस व सभी ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में 24 घंटे सिंगल फेस बिजली देने का वादा किया था, परंतु सत्ता में आते ही वादाखिलाफी कर जनता से कहा गया कि सरकार के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है और विभाग की एमआरआई रिपोर्ट प्रमाणित करती है कि 5 से 6 घंटे से भी कम समय तीन फेस बिजली मिलती है, जबकि सिंगल फेस बिजली शहरों में औसतन 16 घंटे व गांवों में केवल 8 घंटे ही मिलती है।  सूरतगढ़ थर्मल पावर प्लांट की समस्त इकाइयों को नवंबर से बंद करने व इनके लिए आवंटित कोयले को डायवर्ट करने का निर्णय करके प्रदेश की जनता के साथ धोखा किया है।

इसी प्रकार बीकानेर के नेवेली लिग्नाइट कार्पोरेशन द्वारा निर्माणाधीन बरसिंगसर और बीठनोख विवादों के चलते बंद करना पड़ा है, जिससे प्रदेश संभावित लगभग 600 मेगावाट बिजली के उत्पादन से वंचित हो गया है। उन्होंने कहा कि क्या मुख्यमंत्री को विद्युत क्षेत्र में बढ़ी अव्यवस्थाओं पर जनता से की गई वादाखिलाफी पर गौरव महसूस होता है।



भारतीय युवा शक्ति पार्टी सभी 200 विधानसभाओं में उतारेगी प्रत्याशी

जयपुर। भारतीय युवा शक्ति पार्टी राजस्थान की सभी 200 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी। पार्टी का चुनाव चिह्न क्रिकेट का बल्ला होगा। यह बात पूर्व सांसद एवं पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मीठालाल जैन ने कही। वे जयपुर के मानसरोवर इलाके स्थित दीप स्मृति सभागार में पार्टी के चुनाव चिह्न विमोचन समारोह को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि पार्टी का चुनाव चिह्न क्रिकेट का बल्ला होने और युवाओं के नाम पार्टी होने के कारण आज राष्ट्रीय खेल दिवस को चुनाव चिह्न के विमोचन के लिए चुना गया है। पार्टी को चुनाव चिह्न मिला है, वह ऐतिहासिक है, जो युवा की सबसे बड़ी जीत है।

उन्होंने कहा कि आगामी विधानसभा चुनाव 2018 में पार्टी सभी 200 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी और राजस्थान में तीसरा मोर्चा बनाकर नया संदेश देगी। उन्होंने सभी जिलाध्यक्षों एवं विधानसभा अध्यक्षों को अपने-अपने क्षेत्रों में मजबूती से काम करने का निर्देश दिया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रदेश अध्यक्ष (युवा प्रकोष्ठ) मुरलीराम गुर्जर ने कहा कि राजस्थान इस बार विधानसभा चुनाव ऐतिहासिक होगा। उन्होंने युवाओं से पार्टी को जिताने की अपील की।   पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव डॉ. सीमा सिंह ने कहा कि राजस्थान की जनता को तीसरा मोर्चा चाहिए। यह पूरे जनता की मांग भी है। पार्टी द्वारा चुनाव चिह्न क्रिकेट का बल्ला लाना चर्चा का विषय बना हुआ है।

 संचालन करते हुए प्रदेश उपाध्यक्ष रूपसिंह डोई ने कहा का राजस्थान में चुनाव लड़ना बड़ी बात नहीं है, लेकिन युवाओं, किसानों, मजदूरों के सम्मान में पार्टी बनाने के लिए जो सहयोग राष्ट्रीय अध्यक्ष मीठालाल जैन ने किया है, वह सराहनीय है। 
    इससे पूर्व भारत माता एवं मेजर ध्यानचंद सिंह के चित्र पर पुष्प अर्पित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इसके बाद वक्ताओं ने कार्यक्रम में आए लोगों का अभिनंदन किया। कार्यक्रम के दौरान पार्टी की ओर से सभी जिलों में किए गए कार्यक्रमों की वीडियो भी दिखाई गई।

पूर्व मंत्री शैलेंद्र जोशी की कांग्रेस में वापसी

दौसा में राजनीति के बदलेंगे समीकरण  बिगड़ेगा 'गणित'
शैलेंद्र ने कहा- मैंने बिना शर्त कांग्रेस ज्वॉइन की है, कांग्रेस से मेरे मतभेद थे लेकिन मनभेद कभी नहीं रहे, पार्टी ने टिकट दिया तो बांदीकुई से चुनाव लड़ूंगा।
जयपुर। पूर्व मंत्री शैलेन्द्र जोशी की कांग्रेस में घरवापसी हो गई है। पीसीसी मुख्यालय में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने उन्हें सदस्यता ग्रहण करवाई। पूर्व मंत्री शैलेंद्र जोशी ने करीब 10 साल पहले कांग्रेस छोड़ दी थी और भाजपा में शामिल हो गए थे। 10 साल बाद उन्होंने घर वापसी करते हुए वापस कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली। जोशी अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस कार्यालय पहुंचे, जहां पार्टी प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट ने उन्हें सदस्यता ग्रहण कराई। जोशी के समर्थकों ने भी इस अवसर पर कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की। पूर्व मंत्री शैलेन्द्र जोशी के कांग्रेस में शामिल होने के अवसर पर पीसीसी में कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के साथ विधायक भंवरलाल शर्मा, पूर्व मंत्री मुरारीलाल मीणा, ममता भूपेश सहित दौसा जिले के कई कांग्रेस नेता मौजूद रहे।

सदस्यता ग्रहण करने के बाद शैलेंद्र ने कहा- मैंने बिना शर्त कांग्रेस ज्वॉइन की है, कांग्रेस से मेरे मतभेद थे लेकिन मनभेद कभी नहीं रहे, पार्टी ने टिकट दिया तो बांदीकुई से चुनाव लड़ूंगा।

   दौसा में राजनीति के बदलेंगे समीकरण

शैलेन्द्र जोशी के कांग्रेस में शामिल होने के बाद अब आगामी चुनाव में दौसा जिले के सियासी समीकरण बिगड़ सकते हैं। शैलेन्द्र जोशी पहले कांग्रेस छोड़ बीजेपी में गए थे और फिर बीजेपी छोड़ राजपा में शामिल हुए थे। जोशी पिछले विधानसभा चुनाव में राजपा के टिकट पर बांदीकुई से चुनाव लड़े चुके हैं। इससे पहले दो बार बांदीकुई से शैलेंद्र कांग्रेस की टिकट पर विधायक रह चुके हैं।  शैलेन्द्र के पिता बीएन जोशी भी चार बार विधायक रहे थे।

राजस्थान के बिजली सेक्टर को विश्व बैंक से 25 करोड़ डॉलर ऋण

भारत ने राजस्थान विद्युत वितरण क्षेत्र का प्रदर्शन सुधारने के लिए 25 करोड़ डॉलर के एक विकास नीति ऋण (डीपीएल) पर हस्ताक्षर किए।

यह समझौता केंद्र सरकार, राजस्थान सरकार और विश्व बैंक के बीच हुआ। यह राजस्थान के बिजली वितरण सेक्टर के व्यापक कायालपलट के लिए नियोजित दो अभियानों की श्रृंखला में दूसरा है। पहला ऋण समझौता पिछले वर्ष मार्च में हुआ था।

विद्युत वितरण कंपनियां (डिस्कॉम) राजस्थान में लगभग 95 लाख उपभोक्ताओं को बिजली मुहैया कराती हैं। इस कार्यक्रम के तहत राज्य में वितरण सेक्टर के शासन को मजबूत करना, ऊर्जा खरीद लागत घटाना और संचालन प्रदर्शन को सुधारना शामिल हैं।

इसमें डिस्कॉम्स के ऋण की पर्याप्त मात्रा को राज्य को स्थानांतरित कर इस क्षेत्र में वित्तीय पुनर्गठन और रिकवरी को सुधारना भी शामिल है।

आर्थिक मामलों के संयुक्त सचिव समीर कुमार खरे ने कहा कि कार्यक्रम राज्य की राजकोषीय स्थिरता में योगदान करेगा।

इस ऋण की अनुग्रह अवधि तीन साल है और परिपक्वता अवधि 21 वर्ष।

प्रोमोशन में भी आरक्षण आखिर कितना न्यायपूर्ण है

भारतीय जनता पार्टी ने एक वोट बैंक के लिए अपने एक दूसरे वोट बैंक को दांव पर लगा दिया है। शायद यह सोचते हुए कि सवर्ण वोटरों के पास उसे वोट देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही है जिसमें एससी एसटी की ‘क्रीमी लेयर’ को प्रमोशन में आरक्षण का लाभ न देने की गुजारिश की गई है। लेकिन केंद्र सरकार इस याचिका का विरोध कर रही है। जबकि संविधान पीठ के जजों ने केंद्र से पूछा है कि आखिर ‘क्रीमी लेयर' को कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है। गौरतलब है कि 2006 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, ओबीसी के लिए क्रीमी लेयर के तहत पदोन्नतियों में आरक्षण की व्यवस्था नहीं है, लेकिन एससी-एसटी मामले में आरक्षण का लाभ बना हुआ है। कोर्ट ने प्रमोशन देने के साथ जो तीन शर्ते जोड़ी थी। वो हैं- पिछड़ेपन की पहचान, अपरिहार्य वजहें, और अपर्याप्त प्रतिनिधित्व। अगर इन तीन आधारों पर आरक्षण जायज है, तभी ही इसका लाभ दिया जाना चाहिए। अब सरकार चाहती है कि अदालत अपने इस फैसले पर फिर से विचार करे। उसका कहना है कि पिछड़ेपन का परीक्षण करना जरूरी नहीं है। इस दलील के पीछे दृष्टिकोण ये है कि दलित जातियां हजारों वर्षों के दमन और उत्पीड़न की वजह से पिछड़ी हुई रही हैं। इसलिए ये व्यवस्था बनी रहनी चाहिए।

इस साल पांच जून को अपने एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को एससी-एसटी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण देने की मंजूरी दे दी थी। लेकिन इसी बीच ये मामला संविधान पीठ के पास सुनवाई के लिए आ गया। लिहाजा पुराना आदेश अभी प्रभावी नहीं रह गया है। वैसे ये तथ्य है कि आईएस, आईपीएस और आईएफएस जैसी सर्वोच्च सिविल सेवाओं में एससी, एसटी और ओबीसी अधिकारियों की संख्या निर्धारित कोटे से कम है। पदानुक्रम में जैसे-जैसे वो सीढ़ियां चढ़ते हैं, तो एससी-एसटी कर्मचारियों की संख्या घटती जाती है। यानी ये दिखता है कि आरक्षण की व्यवस्था भी पूरा न्याय नहीं कर पा रही है। 2015 में एक आरटीआई के जवाब में पाया गया कि केंद्र सरकार की नौकरियों में 27 फीसदी आरक्षण के बावजूद 12 प्रतिशत से भी कम ओबीसी कर्मचारी हैं। नियुक्ति देने वाले कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग में भी हालात खराब है। इसलिए आरक्षण का तर्क बना हुआ है। लेकिन प्रोमोशन में भी आरक्षण आखिर कितना न्यायपूर्ण है? 

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को कोलकाता कोर्ट ने भेजा समन

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को कोलकाता की मेट्रोपोलिटयन मजिस्ट्रेट कोर्ट ने समन भेजा है। समन में 28 सितंबर से पहले कोर्ट हाजिर होने के लिए कहा गया है। यह समन टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी की ओर से दाखिल केस के आधार पर दिया गया है। मिली जानकारी के अनुसार, मामला यह था कि भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने एक बंगाल में रैली के दौरान कहा था कि यह भीड़ इस बात का संकेत है कि पश्चिम बंगाल से ममता बनर्जी का शासन खत्म होने जा रहा है।

इस रैली के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को लीगल नोटिस भेजा गया था। इसमें कहा गया था कि अमित शाह ने ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी पर शारदा घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया गया है, जो बिलकुल गलत है। इसलिए शाह 72 घंटे के अंदर अपने बयान पर माफी मांगे नहीं तो उनके उनके खिलाफ सिविल और क्रिमिनल केस दर्ज किया जाएगा। इसी मामले को लेकर टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी ने कोर्ट में केस दर्ज किया। इसी के आधार पर मेट्रोपोलिटयन मजिस्ट्रेट कोर्ट ने समन में 28 सितंबर से पहले कोर्ट में हाजिर होने के लिए कहा है।

‘चौकीदार जी’ ने अंबानी के लिए चौकीदारी की है

मानव संसाधन मंत्रालय के शुरुआती नियमों में अंबानी के जियो इंस्टीट्यूट को प्रतिष्ठित संस्थान का टैग नहीं मिल पाता. यहां तक कि वित्त मंत्रालय ने भी चेतावनी दी थी कि जिस संस्थान का कहीं कोई वजूद नहीं है उसे ‘इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस’ का दर्जा देना तर्कों के ख़िलाफ़ है.



उपरोक्त संदर्भ में चौकीदार कौन है, नाम लेने की ज़रूरत नहीं है. वर्ना छापे पड़ जाएंगे और ट्विटर पर ट्रोलर कहने लगेंगे कि कानून में विश्वास है तो केस जीत कर दिखाइये. जैसे भारत में फर्ज़ी केस ही नहीं बनता है और इंसाफ़ झट से मिल जाता है.

आप लोग भी सावधान हो जाएं. आपके ख़िलाफ़ कुछ भी आरोप लगाया जा सकता है. अगर आप कुछ नहीं कर सकते हैं तो इतना तो कर दीजिए कि हिंदी अख़बार लेना बंद कर दें या फिर ऐसा नहीं कर सकते तो हर महीने अलग-अलग हिंदी अख़बार लें, तभी पता चलेगा कि कैसे ये हिंदी अख़बार सरकार की थमाई पर्ची को छाप कर ही आपसे महीने का 400-500 लूट रहे हैं.

हिंदी चैनलों का तो आप हाल जानते हैं. मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं इसके लिए आपको 28 और 29 अगस्त के इंडियन एक्सप्रेस में ऋतिका चोपड़ा की ख़बर बांचनी होगी. आप सब इतना तो समझ ही सकते हैं कि इस तरह की ख़बर आपने अपने प्रिय हिंदी अख़बार में कब देखी थी.

इंडियन एक्सप्रेस की ऋतिका चोपड़ा दो दिनों से लंबी-लंबी रिपोर्ट फाइल कर रही हैं कि किस तरह अंबानी के जियो इंस्टीट्यूट के लिए पीएमओ के कहने पर नियमों में बदलाव किया गया. ऋतिका ने आरटीआई के ज़रिए मानव संसाधन मंत्रालय और पीएमओ के बीच पत्राचार हासिल कर यह रिपोर्ट तैयार की है.

मानव संसाधन मंत्रालय ने शुरू में जो नियम बनाए थे उसके अनुसार अंबानी के जियो इंस्टीट्यूट को प्रतिष्ठित संस्थान का टैग नहीं मिल पाता. यहां तक कि वित्त मंत्रालय ने भी चेतावनी दी थी कि जिस संस्थान का कहीं कोई वजूद नहीं है उसे इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस का लेबल देना तर्कों के ख़िलाफ़ है.

इससे भारत में शिक्षा सिस्टम को ठेस पहुंचती है. इसके बाद भी अंबानी के जियो इंस्टीट्यूट को मानव संसाधन मंत्रालय की सूची में शामिल करने के लिए मजबूर किया गया.

वित्त मंत्रालय के ख़र्चा विभाग यानी डिपार्टमेंट ऑफ एक्सपेंडिचर ने मानव संसाधन मंत्रालय को लिखा था कि इस तरह से एक ऐसे संस्थान को आगे करना जिसकी अभी स्थापना तक नहीं हुई है, उन संस्थानों की तुलना में उसके ब्रांड वैल्यू को बढ़ाना होगा जिन्होंने अपने संस्थान की स्थापना कर ली है. इससे उनका उत्साह कम होगा.

सिर्फ मंशा के आधार पर कि भविष्य में कुछ ऐसा करेंगे, किसी संस्थान को इंस्टीट्यूट ऑफ़ एमिनेंस का दर्जा देना तर्कों के ख़िलाफ़ है. इसलिए जो नए नियम बनाए गए हैं उनकी समीक्षा की जानी चाहिए.

वित्त मंत्रालय और मानव संसाधन मंत्रालय की राय के ख़िलाफ़ जाकर पीएमओ से अंबानी के जियो संस्थान को दर्जा दिलवाने की ख़बर आप इंडियन एक्सप्रेस में पढ़ सकते हैं. भले ही इस खबर में यह नहीं है कि चौकीदार जी अंबानी के लिए इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहे हैं लेकिन इस ख़बर को पढ़ते ही आपको यही समझ आएगा. दो दिनों से ख़बर छप रही है मगर किसी ने खंडन नहीं किया है.

अडाणी जी की एक कंपनी है, अडाणी एंटरप्राइजेज लिमिटेड. यह कंपनी सिंगापुर के हाईकोर्ट में अपना केस हार चुकी है. भारत के रेवेन्यू इंटेलिजेंस ने कई पत्र जारी करके इस कंपनी के बारे में दुनिया के अलग अलग देशों से जवाब मांगे हैं. तो इसके खिलाफ अडाणी जी बाॉम्बे हाईकोर्ट गए हैं कि डिपार्टमेंट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस के लेटर्स रोगेटरी को रद्द कर दिया जाए. जब आप विदेशी मुल्क से न्यायिक मदद मांगते हैं तो उस मुल्क को ‘लेटर ऑफ़ रोगेटरी’ जारी करना पड़ता है.

आप जानते हैं कि चौकीदार जी ने मुंबई के एक कार्यक्रम में ‘हमारे मेहुल भाई’ कह दिया था. आप यह भी जानते हैं कि यही ‘हमारे मेहुल भाई’ ने महान भारत की नागरिकता छोड़ कर महान एंटीगुआ की नागरिकता ले ली है. चौकीदार जी के ‘हमारे मेहुल भाई’ लगातार भारत को शर्मिंदा कर रहे हैं. उन्होंने कह दिया है कि वे भारत नहीं जाएंगे क्योंकि वहां के जेलों की हालत बहुत ख़राब है.

चौकीदार जी के ‘हमारे मेहुल भाई’ पर मात्र 13,500 करोड़ के गबन के आरोप हैं. सरकार चाहे तो इनके लिए 1 करोड़ ख़र्च कर अलग से जेल बनवा सकती है या किसी होटल के कमरे को जेल में बदल सकती है. कम से कम मेहुल भाई को वहां रहने में तो दिक्कत नहीं होगी. कहां तो काला धन आने वाला था, कहां काला धन वाले ही चले गए.

2014 के लोकसभा चुनाव से पहले श्री रविशंकर का एक ट्विट घूमता है कि मोदी जी प्रधानमंत्री बनेंगे तो एक डॉलर 40 रुपये का हो जाएगा. फिलहाल यह 70 रुपये का हो गया है और भारत के इतिहास में इतना कमज़ोर कभी नहीं हुआ है. वैसे भी आप तक इसकी ख़बर प्रमुखता से नहीं पहुंची होगी और जिनके पास पहुंची है उनके लिए तर्क के पैमाने बदले जा रहे हैं.

नीति आयोग के उपाध्यक्ष हैं राजीव कुमार. राजीव ने कहा है कि हमें मुद्रा के आधार पर अर्थव्यवस्था को जज करने की मानसिकता छोड़नी ही पड़ेगी. मज़बूत मुद्रा में कुछ भी नहीं होता है.

वाकई ऐसे लोगों के अच्छे दिन हैं. कुछ भी तर्क देते हैं और बाजार में चल जाता है. राजीव कुमार को पता नहीं है कि उनके चेयरमैन चौकीदार जी भी भारतीय रुपये की कमज़ोरी को दुनिया में भारत की गिरती साख और प्रतिष्ठा से जोड़ा करते थे. सबसे पहले उन्हें जाकर ये बात समझाएं. वैसे वे समझ गए होंगे.

वैसे आप कोई भी लेख पढ़ेंगे, उसमें यही होगा कि रुपया कमज़ोर होता है तो उसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है. वित्तीय घाटा बढ़ता है. 2018 के साल में भारतीय रुपया ही दुनिया भर में सबसे ख़राब प्रदर्शन कर रहा है. वैसे बाबा रामदेव ने भी रजत शर्मा के आपकी अदालत में कहा था कि मोदी जी आ जाएंगे तो पेट्रोल 35 रुपया प्रति लीटर मिलेगा. इस समय तो कई शहरों में 86 और 87 रुपये प्रति लीटर मिल रहा है.

ये सब सवाल पूछना बंद कर दीजिए वर्ना कोई आएगा फर्ज़ी कागज़ पर आपका नाम लिखा होगा और फंसा कर चला जाएगा. जब टीवी और अखबारों में इतना डर घुस जाए तभी शानदार मौका होता है कि आप अपनी मेहनत की कमाई का 1000 रुपया बचा लें. दोनों को बंद कर दें. कुछ नहीं तो कम से कम ये काम तो कर ही सकते हैं. हमेशा के लिए नहीं बंद कर सकते, मगर एक महीने के लिए तो बंद कर ही सकते हैं.

ब्राह्मण समाज की वाहन रैली 2 को

रेली सर्व समाज एकता एवं सद्भावना बनाये रखकर शान्ति पूर्वक निकाली जायेगी। रैली का
उद्देश्य सभी समाजों को सद्भावना एवं एकता बनाये रखते हुए मौजूदा सरकार को सहयोग करना
मान है। इस रैली को शान्ति एवं सौहार्द पूर्वक निकालने की जिम्मेदारी पुलिस प्रशासन के होगी। 

जयपुर । अम्बिकाप्रकाश पाठक प्रदेशाध्यक्ष ब्राह्मण समाज राजस्थान के द्वारा वाहन रैली का 02 सितम्बर 2018 प्रातः 10 बजे से पिंजरापोल गौशाला टोंक रोड सांगानेर विधानसभा से शुभारम्भ होगा। रैलीकर्ता संयोजक अम्बिकाप्रकाश पाठक ने बताया कि वाहन रैली रविवार 02 सितम्बर 2010 को सांगानेर विधानसभा टोंक रोड स्थित पिंजरापोल गौशाला से प्रातः 10 बजे रवाना होकर श्योपुर रोड होते हुए प्रताप नगर सेक्टर 8 से मेन बाजार होते हुए टोक रोड कुम्मा मार्ग से सेक्टर-35 शिकारपुरा , रामवेरी सांगा सेतु चौरडिया पेट्रोल पम्प होते हुए वापिस सांगानेर स्टेडियम में पहुंचेगी।

सर्व प्रथम रेली के मुख्य अतिथि  रामचरण जी बोहरासांसद जयपुर महानगर द्वारा झण्डी दिखाकर रैली का शुभारम्भ किया जायेगा। रैली सहयोग के लिए एडवोकेट विजय भारद्वाज के नेतृत्व में 50 युवा अनुशासित वॉलीन्टियर्स लगाये गये हैं जो कि रैली की देखरेख करते हुए पुलिस प्रशासन का सहयोग करेंगे। रैली का मार्गदर्शन रविन्द्र शर्मा, राकेश शर्मा करेंगे। पन्नालाल पत्रकार के नेतृत्व में खोजी पत्रकार टीम का गठन किया जो कि रैली में संभावित परेशानियों की जानकारी पुलिस प्रशासन को देंगे। रैली का समापन सांगानेर स्टेडियम पर अम्बिकाप्रकाश पाठक द्वारा भाषण सम्बोधन देकर किया जायेगा।

रेली सर्व समाज एकता एवं सद्भावना बनाये रखकर शान्ति पूर्वक निकाली जायेगी। रैली का
उद्देश्य सभी समाजों को सद्भावना एवं एकता बनाये रखते हुए मौजूदा सरकार को सहयोग करना
मान है। इस रैली को शान्ति एवं सौहार्द पूर्वक निकालने की जिम्मेदारी पुलिस प्रशासन के सहयोग से रेली संयोजक अम्बिकाप्रकाश पाठक की होगी।

इस अवसर पर एडवोकेट विजय भारद्वाजडॉ. शारदा शर्मा, गोपाल भारद्वाज चेतावाला,
अशोक आचार्यरविन्द्र शर्मा, राकेश शर्मा, रवि पाठक, सत्यवीर बैसलानागरमल तिवाडी उपस्थित
रहे।

मंगलवार, 28 अगस्त 2018

सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव में ख़र्च सीमित करने पर सहमति जताई

मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा कि आयोग ने ईवीएम की गड़बड़ी मामले में गंभीरता से संज्ञान लिया है और आने वाले लोकसभा चुनाव से पहले इसका समाधान निकाल लिया जाएगा.



 भाजपा के अलावा सभी बड़ी राजनीति दलों ने पार्टी द्वारा चुनाव में ख़र्च की एक सीमा तय करने की बात कही है.

बीते सोमवार को चुनाव आयोग द्वारा आयोजित सर्वदलीय बैठक में राजनीतिक पार्टियों की फंडिंग और उनके द्वारा चुनाव में किए जाने वाला ख़र्चा बहस का मुख्य मुद्दा था.

इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक भाजपा के महासचिव भूपेंद्र यादव, जो कि केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा के साथ चुनाव आयोग की बैठक में भाजपा का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ने कहा कि चूंकि सभी राजनीतिक दलों को अपनी आयकर फाइलिंग में अपना व्यय घोषित करना होता है, इसलिए इसमें किसी प्रकार की कैपिंग (सीमा) नहीं लगाई जानी चाहिए.

यादव ने कहा कि चुनाव मुद्दों पर आधारित होना चाहिए, न कि जाति या बाहुबल या आपराधिक शक्ति पर. पार्टियों के लिए चुनाव ख़र्च की सीमा तय नहीं होनी चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘पार्टियों को ज़्यादा से ज़्यादा प्रचार करने का अवसर और सुविधा देनी चाहिए.’ यादव ने कहा कि पार्टियों के क्राउड-फंडिंग में पार्दर्शिता होनी चाहिए.

भाजपा ने एक बयान जारी कर कहा कि चुनाव आयोग ख़र्च की सीमा तय करने के बजाय पार्टियों की फंडिंग में एक बेहतर पार्दर्शिता ला सकता है.

वहीं कांग्रेस ने पार्टी द्वारा चुनाव में ख़र्च की एक सीमा तय करने के मुद्दे पर कोई आपत्ति जाहिर नहीं की. हालांकि मामले में छोटी और क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों के मुकाबले कांग्रेस उतनी ज़्यादा मुखर नहीं थी.

कांग्रेस की तरफ से मुकुल वास्निक और मुहम्मद खान ने आयोग की मीटिंग में पार्टी का पक्ष रखा. वास्निक ने कहा, ‘पार्टी इस विचार का समर्थन करती है लेकिन इसके लिए एक फार्मूला तैयार करना होगा कि इसे कैसे लागू किया जा सकता है.’

बाद में, कांग्रेस ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि वे चुनाव में पार्टी द्वारा ख़र्च को सीमित करने के प्रस्तावित संशोधन प्रस्ताव का पूरी तरह से स्वागत करते हैं.

अन्य पार्टियां इस मुद्दे पर काफी ज़्यादा मुखर थीं. इनका कहना था कि बड़ी पार्टियों द्वारा चुनाव में बेतहाशा ख़र्च की वजह से उन्हें बराबरी का मौका नहीं मिलता है.

बैठक के बाद संवाददाताओं से बात करते हुए, मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा, ‘कई पार्टियों ने कहा कि चुनाव में ख़र्च पर एक सीमा तय की जानी चाहिए और मौजूदा नियमों को लागू करने के बारे में कुछ अन्य विचार थे, ताकि सभी के बराबर मौके हों. रावत ने कहा कि यदि इसे कानूनी रूप से किया जा सकता है, तो आयोग इस पर कदम उठाएगा.

सात राष्ट्रीय पार्टियों समेत कुल 40 पार्टियां चुनाव आयोग की मीटिंग में मौजूद थीं.

वहीं मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने यह भी कहा कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में गड़बड़ी संबंधी तमाम राजनीतिक दलों की चिंताओं पर चुनाव आयोग गंभीरतापूर्वक संज्ञान लेते हुए आम चुनाव से पहले इनका समाधान करेगा.

कांग्रेस सहित तमाम दलों द्वारा बैलेट पेपर से मतदान कराने की मांग के सवाल पर रावत ने कहा, ‘कुछ दलों का कहना था कि बैलेट पेपर पर वापस लौटना अच्छा नहीं होगा, क्योंकि हम नहीं चाहते हैं कि ‘बूथ कैप्चरिंग’ का दौर वापस आए.’ हालांकि कुछ दलों की ओर से ईवीएम और वीवीपैट में कुछ समस्याएं होने की बात कही गई, इन सभी पहलुओं का आयोग ने संज्ञान में लिया है और इस बारे में हम संतोषजनक समाधान देने के लिए आश्वस्त करते हैं.’

बैठक के बाद सपा के रामगोपाल यादव ने बताया, ‘हमारी पार्टी ने भी बैलेट पेपर से चुनाव कराने की तरफदारी की है लेकिन मैं यह जानता हूं कि आयोग यह मांग नहीं मानेगा. इसलिए हमने सुझाव दिया कि जिस मतदान केंद्र पर प्रत्याशी या उसके एजेंट को ईवीएम पर शक हो, उसके मतों का मिलान वीवीपैट मशीन की पर्ची से अनिवार्य किया जाना चाहिए.’

आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा ने कहा कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार मतदान शत प्रतिशत वीवीपैट युक्त ईवीएम से सुनिश्चित करने, 20 प्रतिशत मशीनों के मतों का मिलान वीवीपैट की पर्ची से करने और प्रत्येक प्रत्याशी की पसंद से किसी एक ईवीएम के मतों का मिलान वीवीपैट की पर्ची से करने को अनिवार्य बनाने का सुझाव दिया है.

वहीं भाकपा के अतुल कुमार अंजान ने बताया कि उन्होंने बैठक में भाजपा और टीडीपी सहित सिर्फ तीन दलों ने ईवीएम के बजाय बैलेट पेपर से मतदान कराने की मांग का विरोध किया.

उन्होंने बताया कि बैठक में चुनावी ख़र्च की सीमा तय करने और नेपाल की तर्ज पर समानुपातिक प्रतिनिधितत्व पद्धति (प्रपोर्सनल रिप्रजेंटेशन मेथड) से भारत में भी चुनाव कराने के सुझाव पेश किए गए.

वर्षा नहीं हुई तो क्या हाल होगा

अब विभाग भी शुरू करेगा कटौती वर्तमान में बीसलपुर में पानी की आवक नगण्य होने के कारण जयपुर शहर में वितरित किए जा रहे पेयजल में  आंशिक कटौती की जाएगी।  बीसलपुर से 44 करोड़ लीटर पानी लिया जा रहा है, जिसे घटाकर 35 करोड़ लीटर पानी कर दिया जाएगा।
जयपुर। पर्याप्त मात्रा में बारिश नहीं होने से बीसलपुर बांध में पानी की आवक बेहद कम हो गई है। ऐसे में प्रबंधकीय दृष्टि से जलदाय विभाग ने पेयजल की आपूर्ति में आंशिक कटौती करने का निर्णय लिया है।

अतिरिक्त मुख्य अभियंता दिनेश सैनी ने बताया कि वर्तमान में बीसलपुर में पानी की आवक नगण्य होने के कारण जयपुर शहर में वितरित किए जा रहे पेयजल में बुधवार से आंशिक कटौती की जाएगी।
सैनी ने बताया कि वर्तमान में शहर को मिलने वाले पेयजल की अवधि 1 घंटे से 1:30 घंटे के बीच है, इसे घटाकर 45 मिनट से 70 मिनट तक किया जाएगा।
    गौरतलब है कि वर्तमान में बीसलपुर से 44 करोड़ लीटर पानी लिया जा रहा है, जिसे घटाकर 35 करोड़ लीटर पानी कर दिया जाएगा। इसके अलावा 7 करोड़ लीटर पानी शहर स्थित नलकूपों से पूर्व की भांति लिया जाता रहेगा।

टॉपी पहनाकर कराई पार्टी ज्वाइन

आम आदमी पार्टी से प्रेरित होकर की पार्टी ज्वाइन
जयपुर ।विधानसभा चुनावों के पहले आम आदमी पार्टी राजस्थान में दो पूर्व अधिकारियों ने पार्टी ज्वाइन की है। आम आदमी पार्टी ज्वाइन करने वाले  दोनों ही व्यक्ति कैग और आफ इंडिया के सेवानिवृत्त एवं डिप्टी एकाउंट और जनरल  एन के गुप्ता और राजस्थान में विभिन्न जिलों में रहे अतिरिक्त  जिला एवं सेशन न्यायाधीश रहे।

 जगमोहन अग्रवाल ने आम आदमी पार्टी की रीति नीति से प्रेरित होकर पार्टी को ज्वाइन किया है।राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अभी तक कई रिटायर अधिकारी के साथ कई सामाजिक कार्यकर्ता आम आदमी पार्टी में शामिल हो चुके है। राजस्थान के प्रभारी दीपक वाजपेयी ने बताया कि राजस्थान में पार्टी के प्रति कई लोगों ने दिलचस्पी दिखाई है।

 इन लोगों के आने से पार्टी और मजबूत होगी वहीं पार्टी के ज्वाइन करने पर दोनों व्यक्तियों का टोपी पहनाकर स्वागत किया गया।

कृषि आय पर झूठे वादे

ग्रामीण भारत में 57.8 प्रतिशत कृषि परिवार थे। यानी लोगों के खेती छोड़ने की रफ्तार तेज हुई है। ताजा रिपोर्ट में ये बात भी सामने आई है कि कृषि परिवारों की कमाई का सिर्फ 43 प्रतिशत हिस्सा खेती और पशुधन पालन से आता है। अगर हम कुल ग्रामीण परिवारों की कमाई देखें तो उनकी खेती पर निर्भरता घट रही है। कुल ग्रामीण परिवारों की आय का सिर्फ 23 प्रतिशत हिस्सा खेती और पशुपालन से आता है। नरेंद्र मोदी सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बात कही है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अप्रैल 2016 में अशोक दलवाई कमेटी का गठन किया गया था। 
हाल ही में 16 अगस्त को नाबार्ड ने अपनी अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण (एनएएफआईएस) रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट के मुताबिक देश के आधे से ज़्यादा कृषि परिवार कर्ज के बोझ से दबे हैं। हर एक व्यक्ति पर औसतन एक लाख से ज़्यादा का कर्ज है। नाबार्ड ने इस रिपोर्ट को 2015-16 के दौरान 245 जिलों के 2016 गांवों के 40,327 परिवारों के बीच सर्वे करके तैयार किया है। रिपोर्ट के बताया गया है कि ग्रामीण भारत में 48 प्रतिशत परिवार ही कृषि परिवार हैं। इसके अलावा गांव के अन्य परिवार गैर-कृषि स्रोतों पर निर्भर हैं। इससे पहले 2014 में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा इसी तरह की रिपोर्ट जारी की गई थी। उसके मुताबिक 2012-13 में ग्रामीण भारत में 57.8 प्रतिशत कृषि परिवार थे। यानी लोगों के खेती छोड़ने की रफ्तार तेज हुई है। ताजा रिपोर्ट में ये बात भी सामने आई है कि कृषि परिवारों की कमाई का सिर्फ 43 प्रतिशत हिस्सा खेती और पशुधन पालन से आता है। अगर हम कुल ग्रामीण परिवारों की कमाई देखें तो उनकी खेती पर निर्भरता घट रही है। कुल ग्रामीण परिवारों की आय का सिर्फ 23 प्रतिशत हिस्सा खेती और पशुपालन से आता है। नरेंद्र मोदी सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बात कही है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अप्रैल 2016 में अशोक दलवाई कमेटी का गठन किया गया था।

कमेटी ने बताया कि किसानों की आय दोगुनी करने के लिए 2022-23 तक किसानों की आय का 69 से 80 प्रतिशत खेती और पशुपालन से प्राप्त करना होगा। नाबार्ड की रिपोर्ट ने बताया है कि खेती और पशुपालन के जरिए कमाई में भारी कमी आई है। एनएसएसओ की पिछली रिपोर्ट के मुताबिक साल 2012-13 में कृषि परिवार की कमाई का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा कृषि व्यवसाय (कृषि/पशुपालन) से था, जबकि लगभग 32 प्रतिशत कमाई मजदूरी/रोजगार वेतन से होती थी। अब खेती से ज़्यादा ग्रामीणों की कमाई का 43 प्रतिशत हिस्सा दिहाड़ी मजदूरी से आता है। यहां तक कि कृषि परिवार की भी 34 प्रतिशत कमाई दिहाड़ी मजदूरी से होती है। वहीं ग्रामीणों की कमाई का 24 प्रतिशत हिस्सा सरकारी या निजी नौकरी के जरिए आता है। तो किसानों की कृषि आय दोगुनी कैसे होगी? पिछले तीन से चार साल में सरकार जिस तरह की कृषि योजनाएं लेकर आई है और उसे जिस तरह लागू किया गया है, उसे देखकर इसका भरोसा तो नहीं बंधता।