जयपुर। राज्य सरकार ने जघन्य अपराधों की मॉनिटरिंग के लिए यूनिट गठित कर दी, लेकिन विधिक राय देने के लिए सही अधिकारी नियुक्त ही नहीं किए। ऐसे में विधिक राय के बिना यूनिट का काम सुचारू नहीं हो पा रहा है। पुलिस मुख्यालय ने सरकार से दो सहायक अभियोजन अधिकारी नियुक्त करने की मांग की है।
प्रदेश में सनसनीखेज और जघन्य अपराधों की त्वरित जांच और ऐसे मामलों की कोर्ट में प्रभावी पैरवी के लिए जघन्य अपराध पर्यवेक्षण यूनिट का गठन किया गया। यूनिट मांगने के पीछे पुलिस मुख्यालय की मंशा थी कि सनसनीखेज अपराध करने वाले गुनाहगारों को उनके अपराध की सजा के अंजाम तक पहुंचाया जा सके। गृह विभाग ने 20 दिसंबर 2019 को जघन्य अपराध यूनिट के गठन की प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वीकृति भी जारी कर दी, लेकिन पदों पर अधिकारी नियुक्त नहीं किए। ऐसे में यूनिट का काम विधिवत ढंग से शुरू नहीं हो पा रहा है।
खास बिंदु
- यूनिट का गठन राज्य स्तर पर पुलिस मुख्यालय में और सभी रेंज मुख्यालयों पर पर गंभीर अपराधों की मॉनिटरिंग के लिए किया गया।
- यूनिट के लिए 62 अस्थाई पदों के सृजन की स्वीकृति दी गई।
- राज्य स्तर पर 20 तथा रेंज यूनिटों के लिए 42 पद सृजित किए गए।
- सरकार ने यूनिट के आदेश में 2 पद वरिष्ठ विधि अधिकारी के स्वीकृत किए थे।
- इन 2 पदों पर सहायक निदेशक अभियोजन स्तर के अधिकारी लगाए जाने थे।
- 6 फरवरी 2020 को पीएचक्यू से निदेशक अभियोजन को पत्र लिखा गया।
- निदेशक अभियोजन ने यूनिट में सहायक निदेशक अभियोजन के दो पद स्वीकृत कराने की सलाह दे डाली।
क्या कहना है पीएचक्यू का
इधर पीएचक्यू का कहना है कि मूल प्रस्ताव में सहायक निदेशक अभियोजन के दो पद मांगे गए थे, लेकिन गृह विभाग ने वरिष्ठ विधि अधिकारी कर दिया। पीएचक्यू का कहना है कि अन्वेषण की गुणवत्ता बढ़ाने, सफलता की दर बढ़ाने, सम्पूर्ण कुशलता से काम करने के लिए सहायक अभियोजन अधिकारी चाहिए। अब पीएचक्यू दो वरिष्ठ विधि अधिकारियों के स्थान पर दो सहायक निदेशक अभियोजन के पद मांग रहा है। इसके लिए गृह विभाग के पुराने आदेश में संशोधन मांग रहा है।

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