जब ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने की खबर पढ़ी तो उनका इतिहास भूगोल पढ़कर बहुत अजीब सा लगा। पिछली बार गुना से लोकसभा चुनाव लड़ते समय उन्होंने अपनी संपत्ति कुल तीन करोड़ रुपए दिखाई थी जबकि सच्चाई यह कि वे एक लाख करोड़ की संपत्ति के वारिस हैं व उस पर अपना अधिकार हासिल करने के लिए अपनी सगी बुओं के साथ मुकदमा लड़ रहे हैं। जिनसे दो भाजपा में ही हैं। पूरा मामला बहुत रोचक है। इस परिवार के राजनीति में आने की कहानी उनकी दादी विजय राजे सिंधिया को कांग्रेस में शामिल होने से शुरू होती है जो कि मूलतः सागर में पैदा हुई थी व नेपाल के राणा शाही परिवार से संबंध रखती थी। उनके पिता उत्तर प्रदेश के डिस्ट्रिक्ट कलक्टर थे। उनका विवाह ग्वालियर के अंतिम राजा जीवाजीराव सिंधिया से हुआ था व उनके पांच बच्चे थे चार बेटियां व इकलौता बेटा माधवराव सिंधिया। उनकी पहली बेटी पद्मा राजे सिंधिया दूसरी उषा राजे, बेटा माधवराव सिंधिया, वसुंधरा राजे (राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री) व यशोधरा राजे मध्यप्रदेश की पूर्व खेल मंत्री थी। ऊषा राजे नेपाल में रहती हैं व सबसे पहले उनकी दादी विजय राजे सिंधिया कांग्रेस में आई थी।
ग्वालियर परिवार की गिनती देश के जाने-माने राजधरानों में हुआ करती थी व उसके शासकों ने अंग्रेंजों के साथ दोस्ती की थी व उनका शासन बचा रहा व उन लोगों ने अकृत संपत्तियां बटोरी। उन्होंने मराठों के खिलाफ संघर्ष में खासतौर पर 1857 की बगावत में अंग्रेजों का साथ दिया था।
राजमाता सिंधिया शुरू में कांग्रेस में शामिल हुई व उन्होंने गुना सांसदीय सीट से चुनाव लड़ा। पर उनकी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्रा से नहीं पटी जो कि राज परिवार को नापसंद करते थे। पांच साल बाद उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर ग्वालियर चुनाव लड़ा व जीते। वे कांग्रेस से नाराज हो गई व 1967 में उन्होंने गुना सीटा से स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा। आजादी के बाद गुना, ग्वालियर व उसके आसपास के इलाके में हिंदू महासभा का काफी प्रभाव था। ज्योतिरादित्य के बाबा व राजमाता के पति जीवाजीराव सिंधिया की हिंदू महासभा में काफी रूचि थी। वे कांग्रेसी नेताओं विशेषकर जवाहर लाल नेहरू को पसंद नहीं था। बाद में राजमाता ने जवाहरलाल नेहरू व इंदिरा गांधी से मुलाकात कर उनके इति उनके पति की राजनीति में कोई रूचि नहीं है। वे हिंदू महासभा को पसंद तो करते हैं मगर उसे चंदा नहीं देते हैं। नेहरू ने उन्हें लाल बहादुर शास्त्री व गोविंद वल्लभ पंत से मिलने को कहा व उनकी सलाह पर उन्होंने लोकसभा का चुनाव लड़ा। राज्य में सूखे के दौरान विरोध प्रदर्शन करते लोगों पर पुलिस की फायरिंग के विरोध में उन्होंने पार्टी छोड़ दी। मुख्यमंत्री तो पहले ही उन्हें घास नहीं डालते थे। वे 1967 में ग्वालियर की कारेना विधानसभा सीटा व गुना लोकसभा सीट से चुनाव लड़ी और दोनों ही सीटे जीतने पर उन्होंने गुना की लोकसभा सीटा छोड़ दी। उन्होंने 1971 का लोकसभा चुनाव विद लोकसभा सीट से जनसंघ के टिकट पर लड़ा व अपने बेटे माधवराव सिंधिया को गुना की सीट से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़वाया। दोनों ही चुनाव जीत गए।
राजमाता ने 1980 में अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मिलकर भाजपा की स्थापना की। बाद में आपातकाल के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया व उनका इकलौटा बेटा माधवराव सिंधिया सरकार द्वारा गिरफ्तार न किए जाने के आश्वासन पर नेपाल चले गए। लौटने पर वे कांग्रेस में शामिल हो गई तब राजमाता ने यह खुलासा किया था कि ‘भैया ने मुझसे कहा था कि अगर मैं कांग्रेस में शामिल नहीं हुआ तो वे लोग गिरफ्तार कर लेंगे। जब 1977 के चुनाव की घोषणाएं हुई तो माधवराव सिंधिया ने अपनी मां व उनके सलाहकार संभाजीराव आंग्रे से कहा कि अब किसी की सलाह की जरूरत नहीं है। मैं अपने फैसले खुद लिया करूंगा। उन्होंने ग्वालियर लोकसभा सीट से आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा व राजमाता के समर्थन व राजधराने के प्रभाव के कारण चुनाव जीत गए। बाद में वे इंदिरा गांधी व संजय गांधी के काफी करीब आ गए। जब 1980 में इंदिरा गांधी ने रायबरेली से चुनाव लड़ा तो राजमाता ने उनके खिलाफ चुनाव लड़ा। वे हार गई व मां बेटे की आपसी कटुता बढ़ती गई। माधवराव गुना से चुनाव जीत गए व राजीव गांधी व फिर नरसिंह राव सरकार में मंत्री बने। जैन हवाला डायरी कांड में अपना नाम आने पर उन्होंने कांग्रेस व मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। उस समय उन्होंने कहा था कि जो व्यक्ति अरबो रुपए की संपत्ति व किलो का मालिक हो क्या वह दो करोड़ रुपए रिश्वत के रूप में लेगा। उन्होंने मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस नाम से अपनी पार्टी बनाई व सीताराम के सरी से कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने पर सोनिया गांधी ने पार्टी में उनकी वापसी करवा दी। मगर 2001 में एक विमान हादसे में कानपुर के निकट उनकी मृत्यु हो गई। उनके व राजमाता के संबंध इतने ज्यादा खराब थे कि एक बार जब दशको पहले मैं ग्वालियर स्कूल के शताब्दी समारोह में हिस्सा लेने ग्वालियर गया तो वहां चल रहे समारोह में राजमाता सबसे आगे बैठी थी। कुछ देर बाद माधवराव उनके सामने से सिर झुकाए बिना गुजर गए। जब राजमाता के भाषणा देने की बारी आई तो उन्होंने कहा कि मैं तो इतना ही कहना चाहूंगी कि अच्छे स्कूलो को अपने छात्रों को अपने मां-बाप की इज्जत करने की शिक्षा भी देनी चाहिए। जाहिर था कि इसी स्कूल में पढ़े अपने बेटे की अपेक्षा वे काफी पीड़ित थी।
माधवराव सिंधिया की मृत्यु के बाद उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गुना सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा व 2014 तक इस सीट से जीतते रहे। 2019 के चुनाव में वे भाजपा प्रत्याशी से हार गए थे। उनकी दो बुआएं वसुंधरा राजे व यशोधरा राजे पहले से भाजपा में थी। अब वे भी भाजपा में आकर राज्यसभा में पहुंचने वाले हैं। उनके परिवार के साथ एक शाप भी जुड़ा। बताते हैं कि किसी सन्यासी के श्राप के कारण उनके परिवार के पुरुष वारिस 50 साल की आयु से ज्यादा नहीं जीते हैं। भगवान उन्हें लंबी आयु दे। वे 49 साल के हैं व हमारी प्रार्थना है कि वे दीर्घायु होकर इस तरह की किवदंतियों को गलत ठहराए। मगर सबकुछ होते हुए भी वे लाखों करोड़ की संपत्ति हासिल करने के लिए अपनी ही सगी बुआ से मुकदमा लड़ रहे हैं।

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