यों प्रकृति बनाम इंसान की लड़ाई । मानना है कि वैज्ञानिक बना लेंगे वैक्सीन याकि टीका। प्रकृति और मानव में यह होड़ अंतहीन है कि तुम डाल, डाल तो मैं पात, पात!’ इसलिए वायरस प्रकृति की मार है तो इंसान पात-पात में आगे टीका बना ही लेगा। लेकिन साल तो लगेगा। (यदि चार-छह महीने वैज्ञानिकों ने लिए तो फैक्टरियों से प्रोडक्शन हो कर भारत तक पहुंचने में कुछ महीने) और चार-महीनों का लम्हा ही बहुत है देशों को, मानवता को बरबाद करने के लिए। उस नाते कल लंदन की ‘द इकॉनोमिस्ट’ पत्रिका ने अपने संपादकीय अगली विपदा (the next calamity) में भारत जैसे विकासशील देशों पर पड़ने वाले कहर में याद दिलाया आंकड़ा अपने पाठक भी ध्यान रखें। हां, राज तब अंग्रेजों का था और स्पेनिश फ्लू (ब्यूबोनिक प्लेग) ने भारत की कुल आबादी में छह प्रतिशत लोगों को लील लिया था।
इसका वायरस भी भारत में चीन, हांगकांग के रास्ते 1894 में आया था। वायरस के पहले झटके में एक करोड़ लोग मरे और फिर धीरे-धीरे सवा करोड़ लोग। वह वायरस भारत में तीस साल तक लोगों की जान लेता रहा। गांवों में सालों पसरा रहा। शुरुआत मुंबई, पुणे, कोलकाता, कराची से हुई थी। मतलब महानगरों से शुरुआत और फिर धीरे-धीरे शेष भारत में। उससे चीन में ज्यादा लोग नहीं मरे थे लेकिन भारत में मरे जबकि राज अंग्रेजों का था। इतिहास की पुनारवृत्ति व वक्त की त्रासदी का यह सिलसिला गौरतलब है कि तब भी पश्चिमी भारत, पंजाब, यूनाइटेड प्रोविंस (यूपी) सर्वाधिक प्रभावित घोषित हुआ था और अब भी महाराष्ट्र, पंजाब, उत्तर भारत पर खतरा मंडरा रहा है।
ब्रितानी सरकार के तब उपाय थे क्वारैंटाइन, आईसोलेशन कैंप, यात्रा पाबंदी और लोगों पर पाबंदियां। तब भारतीयों ने और राष्ट्रवादी नेताओं ने, बाल गंगाधर तिलक ने सरकार की सख्ती और लापरवाही को ले कर अंग्रेज सरकार की आलोचना की तो अंग्रेजों ने पाबंदियां और बढ़ाईं। तिलक को आलोचना के लिए 18 महीने की सश्रम कैद हुई।
तब और अब का फर्क इसलिए नहीं है कि तब भी एक वायरस था अब भी एक वायरस है। तब भी चीन से आया था और अब भी वहीं से आया हुआ है। तब भी बीमारी की न दवा थी और न इलाज था।
इसलिए लॉकडाउन से हम 21 दिन में विजय पा लेंगे, यह संभव ही नहीं है। कोरोना वायरस से भारत में लड़ाई दुनिया के सभी देशों के मुकाबले ज्यादा लंबी चलनी है क्योंकि हम 130 करोड़ लोगों की भीड़ लिए हुए हैं और आबादी के अनुपात में मेडिकल सुविधा, संसाधनों में सर्वाधिक गरीब हैं। हमें मुक्ति तभी मिलेगी, हम तभी जीतेंगे जब पश्चिमी देश हमें वैक्सीन बना कर दें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें