बुधवार, 25 मार्च 2020

मेडिकल सुविधा पर ध्यान देने की जरूरत

कोरोना वायरस से लड़ने में ऐसा लग रहा है कि भारत सरकार का सारा फोकस लॉकडाउन पर है। सरकार लॉकडाउन को रामबाण नुस्खा समझ रही है जबकि यह कोरोना वायरस के संक्रमण से लड़ने के कई उपायों में से एक उपाय है। जब तक सारे उपायों को समग्रता से नहीं आजमाया जाएगा, तब तक इस समस्या का समाधान नहीं निकला है। एक उपाय करने से या आधा अधूरा उपाय करने धोखा खाने की संभावना ज्यादा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर भारत में भी मेडिकल क्षेत्र के जानकारों का कहना है क लॉकडाउन के साथ साथ स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करने की जरूरत है। लॉकडाउन के जरिए ज्यादा से ज्यादा इतना हो सकता है कि वायरस के फैलने की रफ्तार कम की जा सकती है। पर इसे पूरी तरह से खत्म तभी किया जा सकता है, जब टेस्टिंग बढ़े और इलाज पर जोर हो।

भारत के लिए अच्छी बात यह है कि यहां 80 फीसदी से ज्यादा लोग खुद ही ठीक हो रहे हैं। लेकिन अगर संख्या बढ़ती है और अगर पांच फीसदी लोगों को भी अस्पताल में भरती कराना पड़ता है तो यह संख्या भारत में बहुत बड़ी होगी। ध्यान रहे भारत में संक्रमितों की संख्या दस दिन में एक सौ से से बढ़ कर छह सौ के करीब हो गई। अगर रफ्तार इससे कम भी होती है तब भी संख्या बहुत ज्यादा होगी। इसलिए मेडिकल सुविधा बढ़ाने पर जोर देना होगा। ध्यान रहे भारत में 30 जनवरी के पहला केस आया था और 15 मार्च को एक सौ पहुंचा था। पर बुधवार की सुबह तक यह संख्या को छह सौ के करीब पहुंच गई।

अगर सचमुच सरकार इसे लेकर गंभीर है और चाहती है कि नागरिकों की इससे रक्षा हो तो उसे लॉकडाउन के बीच में अस्पतालों की संख्या बढ़ानी होगी, जिसके लिए निजी अस्पतालों को इस लड़ाई में शामिल करना होगा। क्लीनिकल लैब्स बढ़ाने होंगे। मास्क, वेंटिलेटर की उपलब्धता बढ़ानी होगी। दवा, आइसोलेशन वार्ड, क्वरैंटाइन सुविधा, पर्सनल प्रोटेक्शन गियर आदि की व्यवस्था कहीं से भी करनी होगी। एम्स में वेंटिलेटर के जिस प्रोटोटाइप पर विचार हो रहा है उसका निर्माण युद्धस्तर पर कराना होगा।  

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