प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच दिन के अंतराल पर दो बार राष्ट्र को संबोधित किया। पहले उन्होंने पिछले हफ्ते गुरुवार को राष्ट्रीय टेलीविजन पर 15 मिनट का भाषण दिया और फिर मंगलवार को आधे घंटे का भाषण दिया। पहले भाषण में उन्होंने लोगों से घरों में रहने की अपील करने के साथ साथ रविवार के ‘जनता कर्फ्यू’ का ऐलान किया। मंगलवार के भाषण में उन्होंने 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा की। उन्होंने कहा कि लोग ‘अगले 21 दिन तक बाहर जाना भूल जाएं’। उन्होंने आधे घंटे के भाषण में पांच बार हाथ जोड़े इसके बावजूद लोगों को नोटबंदी के समय का उनका भाषण याद आया, जब उन्होंने हाथ के इशारे से कहा था कि ‘आपके घरों में रखे पांच सौ, हजार के नोट रद्दी हो गए’।
बहरहाल, नोटबंदी की घोषणा भी प्रधानमंत्री ने रात आठ बजे की थी। ये दोनों संबोधन भी रात आठ बजे हुए। इसके बाद पूरे देश में ऐसी अफरातफरी मची, जिसकी मिसाल फिर आठ नवंबर 2016 यानी नोटबंदी की रात में ही मिलती है। जैसे नोटबंदी की घोषणा के बाद लोग अपने अपने घर में पड़ी नकदी लेकर सोना खरीदने या दूसरी जरूरी-गैरजरूरी चीजें खरीदने निकल पड़े थे वैसे ही दोनों संबोधनों के बाद भी लोग खरीदारी करने निकल पड़े। नोटबंदी के समय भी उनके पास रात 12 बजे तक यानी चार घंटे का समय था और इस बार भी लोगों के पास चार घंटे का समय था। दोनों संबोधनों के बाद दुकानें देर तक खुली रही और लोग दुकानों के बाहर आपस में लड़ते रहे। जिसे जो सामान मिला वह खरीद कर ले गया।
दूसरी बार के भाषण में तो प्रधानमंत्री ने लोगों को यह भरोसा भी नहीं दिलाया कि जरूरी सामान मिलते रहेंगे। तभी ज्यादा अफरातफरी मची। तभी सवाल है कि क्या सरकार को पुराने अनुभवों से सबक नहीं लेना चाहिए था? इस तरह की पैनिक बाइंग रोकने या लोगों को समझाने का बंदोबस्त नहीं होना चाहिए था?

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