सोमवार, 16 मार्च 2020

सवाल सरकार के रुतबे का

क्या अफसरों पर नरेंद्र मोदी सरकार की धमक नहीं चलती? हालांकि अब प्रधानमंत्री या सत्ताधारी पार्टी के नेता भ्रष्टाचार मिटाने की बातें जोरशोर से नहीं करते, मगर 2014 में यह उनका प्रमुख नारा था। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद ऐसी खबरें खूब चर्चित रहीं कि सरकार ने भ्रष्ट अफसरों पर नकेल कस दी है। उसका कोई खास अच्छा नतीजा हुआ, इस बात के कोई प्रमाण नहीं हैं। बल्कि ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल जैसी संस्थाओं के इंडेक्स में आरंभ में ऊपर चढ़ने के बाद भारत का दर्ज फिर से गिरता गया है। इस बीच एक ऐसी खबर है, जिससे बड़े अफसरों पर मोदी स सरकार के रुतबे पर सवाल उठता है। खबर है कि देश के करीब 300 आईएएस अफसरों ने केंद्र सरकार को अपनी संपत्तियों का हिसाब-किताब देने की जरूरत नहीं समझी है। जबकि हाल ही में एक संसदीय समिति ने ऐसे अफसरों पर सख्त कार्रवाई की सिफारिश की थी। मगर कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) की ओर से जनवरी में कई रिमांइडर भेजने के बाद भी अफसरों ने संपत्ति का खुलासा नहीं किया।

कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के निर्देशों के मुताबिक हर साल 31 जनवरी तक पिछले वर्ष की अचल संपत्तियों की जानकारी एक निर्धारित प्रोफॉर्मा पर देनी पड़ती है, जिसे इमूवेबल प्रॉपर्टी रिटर्न (आईपीआर) कहते हैं। अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियमावली, 1968 के नियम 16(2) के तहत अधिकारियों को जमीन, जायदाद, घर आदि संपत्तियों के बारे में एक निर्धारित प्रोफॉर्मा पर सूचना देनी होती है। इसमें संपत्ति और उसे खरीदने के लिए धन के स्रोत के बारे में भी बताना होता है। संपत्ति की मौजूदा समय में क्या कीमत है, इसका भी अपडेट देना होता है। हर साल एक से 31 जनवरी के बीच पिछले वर्ष तक की अचल संपत्तियों की सूचना देनी होती है। डीओपीटी के सूत्रों ने मीडिया से कहा कि इस संबंध में बहुत पहले 29 अक्टूबर 2007 को ही एक आदेश जारी कर सब कुछ स्पष्ट किया जा चुका है, जिसके मुताबिक अगर कोई अफसर आईपीआर दाखिल नहीं करता है, तो उसकी विजिलेंस क्लीयरेंस को रद्द किया जा सकता है। साथ ही उन्हें पदोन्नति और विदेशों में पोस्टिंग से संबंधित जरूरी एनओसी देने से भी रोका जा सकता है। मगर ये साफ है कि इन आदेशों का असल में पालन नहीं होता। ये चलन पिछली सरकारों के समय भी था और आज भी बदस्तूर जारी है। 

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