गुरुवार, 22 मार्च 2018

लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए के पुराने सहयोगी दे रहे हैं बीजेपी को टेंशन!

लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए के पुराने सहयोगी एक-एक कर साथ छोड़ रहे हैं। शिवसेना, हम के बाद टीडीपी ने भी बीजेपी से किनारा कर लिया है। लेकिन अब बिहार के तीनों सहयोगी दलों ने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं।

बिहार एनडीए में बीजेपी के साथ जेडीयू, एलजेपी व आरएलएसपी है। इन तीनों दलों में सबसे मजबूत सहयोगी जेडीयू है। कुशवाहा के बारे में बहुत पहले से यह चर्चा है कि वे महागठबंधन के साथ जा सकते हैं। महागठबंधन के नेताओं की हमदर्दी हमेशा कुशवाहा के साथ रहती है। हालांकि कुशवाहा खंडन करते रहे हैं कि वे एनडीए छोड़कर कहीं नहीं जा रहे हैं। लेकिन चार साल तक चुप रहे पासवान ने भी अब अपनी जुबान खोल दी है।

पासवान अब बीजेपी को नसीहत दे रहे हैं कि अल्पसंख्यकों के प्रति बीजेपी को अपनी छवि बदलनी होगी। पासवान के बिगड़ते मूड को देखते हुए दिल्ली में धर्मेंद्र प्रधान व बीजेपी के महासचिव भूपेंद्र यादव ने मुलाकात की। माना जाता है कि पासवान को एनडीए में दोबारा वापस लाने में प्रधान की भूमिका अहम रही है।

दरअसल, पासवान ने यह बयान नीतीश से मुलाकात के बाद दी थी। वहीं, नीतीश कुमार ने भी इशारों-इशारों में बीजेपी को हाल में घटित तीन घटनाओं को लेकर स्पष्ट कर दिया कि उन्हें सांप्रदायिकता कतई बर्दाश्त नहीं है। वोट की चिंता उन्हें नहीं है। साथ ही उपचुनाव में मिले हार पर नीतीश ने कहा था कि उनके ऊपर बहुत दबाव था इसलिए चुनाव लड़ने का फैसला लिया था। इन तीनों नेताओं के तेवर देख बीजेपी को भी समझ में आ गया है कि 2019 के लिए बिहार से संकेत ठीक नहीं हैं। क्योंकि पासवान व नीतीश के बोल समझने के लिए काफी था। क्योंकि पासवान राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं, समय के अनुसार अपना पाला बदलते रहते हैं।
उधर महागठबंधन के नेता दावा करते रहते हैं कि पासवान हमारे संपर्क में हैं। क्योंकि हाल ही में जीतनराम मांझी एनडीए छोड़ लालू के साथ गए हैं। ऐसे में पासवान के इस बयान के बिहार के लिए राजनीतिक मायने हैं, जिससे परेशान बीजेपी ने अपने दो दिग्गज नेताओं को उनके पास मनाने के लिए भेजा। वहीं, उपेंद्र कुशवाहा के तेवर भी सही नहीं हैं। उन्होंने उपचुनाव के दौरान सीट बंटवारे को लेकर विरोध किया था। हालांकि बाद में वे मान गए थे। लेकिन कुछ दिन पहले दिल्ली में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से उनकी मुलाकात भी हुई थी। बताया जाता है कि शाह ने उनसे दो टूक पूछा था कि आपके मन में चल क्या रहा है।
वहीं, नीतीश ने भी फिर से अपना रुख बीजेपी नेता गिरिराज सिंह व नित्यानंद राय के बयानों के बाद साफ कर दिया है कि मैं न तो भ्रष्टाचार का साथ दूंगा और न समाज को बांटने वाले लोगों के साथ हूं। दरअसल, नीतीश का यह बयान उस वक्त आया है, जब एनडीए को अररिया व जहानाबाद सीट पर उपचुनाव में हार मिली है।
क्योंकि जेडीयू व एलजेपी को बीजेपी पर वार करने का मौका इसलिए मिल गया कि बिहार में हुए दरभंगा, अररिया व भागलपुर मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश का आरोप बीजेपी नेताओं पर है। गिरिराज सिंह व अश्विनी चौबे नीतीश सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं, उसके बावजूद दोनों सरकार के खिलाफ बोलने से नहीं कतराते थे।
 ऐसे में नीतीश कुमार लगता है कि ऐसे बयानों पर लगाम नहीं लगा तो उनकी छवि पर गहरा असर पड़ सकता है। इन तीनों बिहारी नेताओं ने बीजेपी को एक नया टेंशन दे दिया है। क्योंकि दिल्ली फतह करने के लिए बिहार-यूपी में मजबूत होना जरूरी है। यूपी-बिहार में लोकसभा के कुल 120 सीटें हैं। 2014 के चुनाव में इन राज्यों से बीजेपी व उसके सहयोगियों को 100 से ज्यादा सीटें मिली थी।

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