देश के कई नेताओं ने यूपीए तीन नहीं बनने देने की कसम खाई है। सीपीएम के पूर्व महासचिव प्रकाश करात उनमें से एक हैं। उनके अलावा तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और ओड़िशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी कांग्रेस को भाजपा विरोधी मोर्चे से अलग रखने के हिमायती हैं। तभी सवाल है कि कांग्रेस अपना मोर्चा कैसे बनाएगी? बिना लेफ्ट और मजबूत प्रादेशिक क्षत्रपों के किसी मोर्चा का क्या मतलब होगा?
प्रकाश करात ने कहा है कि कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए तीन का प्रयोग सफल नहीं हो सकेगा। ध्यान रहे 2004 में यूपीए एक सीपीएम की वजह से ही बना था और काफी हद तक सफल रहा था। उस हरकिशन सिंह सुरजीत सीपीएम के महासचिव थे। तब कांग्रेस को भाजपा से सिर्फ सात सीटें ज्यादा मिली थीं। तब 1996 की तरह कोई प्रयोग करने की बजाय सुरजीत ने समूचे लेफ्ट और सपा आदि को कांग्रेस के साथ जोड़ा था। प्रकाश करात के कमान संभालने के दो साल के अंदर लेफ्ट और कांग्रेस का संबंध विच्छेद हो गया था। करात जिस माइंडसेट के साथ 2008 में कांग्रेस से अलग हुए थे उसी माइंडसेट में अब भी काम कर रहे हैं।
इसी तरह तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने कोलकाता जाकर तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी की महत्वाकांक्षाओं को हवा दी है। बताया जा रहा है कि राव ने उनको प्रधानमंत्री पद का सबसे उपयुक्त दावेदार बताया है। मशहूर वकील राम जेठमलानी ने अलग चिट्ठी लिख कर ममता को हवा में उड़ाया हुआ है। उधर शरद पवार की महत्वाकांक्षा अपनी जगह है, जो 1991 से ही उफान मार रही है।
कांग्रेस को यह चिंता है कि एक तरफ भाजपा अपना गठबंधन बना रही है। उसके कुछ साथी अलग हो रहे हैं तो वह कुछ नए साथी जोड़ने के प्रयास में भी लगी है। दूसरी ओर प्रादेशिक क्षत्रप आपस में एकजुटता बनाने में लगे हैं। वे गैर कांग्रेस और गैर भाजपा पार्टियों को एक मंच पर लाने का प्रयास कर रहे हैं। तभी कांग्रेस को लग रहा है कि कहीं ऐसा न हो कि अंत में वह छोटी छोटी पार्टियों के साथ अकेले रह जाए और लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय स्तर पर त्रिकोणात्मक बन जाए। इसका सबसे बड़ा फायदा भाजपा को होगा।
प्रकाश करात ने कहा है कि कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए तीन का प्रयोग सफल नहीं हो सकेगा। ध्यान रहे 2004 में यूपीए एक सीपीएम की वजह से ही बना था और काफी हद तक सफल रहा था। उस हरकिशन सिंह सुरजीत सीपीएम के महासचिव थे। तब कांग्रेस को भाजपा से सिर्फ सात सीटें ज्यादा मिली थीं। तब 1996 की तरह कोई प्रयोग करने की बजाय सुरजीत ने समूचे लेफ्ट और सपा आदि को कांग्रेस के साथ जोड़ा था। प्रकाश करात के कमान संभालने के दो साल के अंदर लेफ्ट और कांग्रेस का संबंध विच्छेद हो गया था। करात जिस माइंडसेट के साथ 2008 में कांग्रेस से अलग हुए थे उसी माइंडसेट में अब भी काम कर रहे हैं।
इसी तरह तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने कोलकाता जाकर तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी की महत्वाकांक्षाओं को हवा दी है। बताया जा रहा है कि राव ने उनको प्रधानमंत्री पद का सबसे उपयुक्त दावेदार बताया है। मशहूर वकील राम जेठमलानी ने अलग चिट्ठी लिख कर ममता को हवा में उड़ाया हुआ है। उधर शरद पवार की महत्वाकांक्षा अपनी जगह है, जो 1991 से ही उफान मार रही है।
कांग्रेस को यह चिंता है कि एक तरफ भाजपा अपना गठबंधन बना रही है। उसके कुछ साथी अलग हो रहे हैं तो वह कुछ नए साथी जोड़ने के प्रयास में भी लगी है। दूसरी ओर प्रादेशिक क्षत्रप आपस में एकजुटता बनाने में लगे हैं। वे गैर कांग्रेस और गैर भाजपा पार्टियों को एक मंच पर लाने का प्रयास कर रहे हैं। तभी कांग्रेस को लग रहा है कि कहीं ऐसा न हो कि अंत में वह छोटी छोटी पार्टियों के साथ अकेले रह जाए और लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय स्तर पर त्रिकोणात्मक बन जाए। इसका सबसे बड़ा फायदा भाजपा को होगा।

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