महेश झालानी आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारतीय मुद्रा की छपाई का अधिकांश नियंत्रण विदेश की उस कम्पनी डे ला रु ज्योरी के हाथ मे है जो पाकिस्तान को भी नॉट बनाने के लिए कागज की सप्लाई करती है । भारत मे इस कपनी की अवांछनीय गतिविधियों के कारण पिछली सरकार ने इसे ब्लैकलिस्टेड कर दिया था । आज यही कंपनी वित्त मंत्री अरुण जेटली और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मेहरबानी से भारत को वही कागज सप्लाई कर रही है जो वह पाकिस्तान को दे रही है । यही कारण है कि मोदी की नोटबन्दी की घोषणा के बाद भी नकली नोटों का कारोबार नही थमा है ।
रिजर्व बैंक और आतंकवादियों की मिलीभगत से भारतीय बाजार नकली नोट से अटा पड़ा है । पूरी जानकारी तो उपलब्ध नही हो पाई, लेकिन मोटे तौर पर 1.36 लाख करोड़ के नकली नोट बाजार में दौड़ रहे है । यानी हर हिंदुस्तानी के पास एक नकली नोट । सीबीआई और अन्य जाच एजेंसियों को पड़ताल से ज्ञात हुआ कि पाकिस्तान से आये नकली नोट रिजर्व बैंक के बॉक्स में पैक होकर आए थे । मोदी ने नोटबन्दी की घोषणा करते हुए वक्त देशवासियो को भरोसा दिलाया था कि नोटबन्दी के बाद नकली नोट पर पाबंदी लग जायेगी । हुआ इसका उल्टा । पहले से अब नकली नोट में 3.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है ।
सवाल यह भी उठता है कि जब देश खुद मुद्रा छापने का कागज बनाने में सक्षम है तो फिर विदेशी कंपनियों से आयात क्यो ? मोदी अपने हर भाषण में एक रोना जरूर रोते है कि पिछले 60 साल में कांग्रेस ने कुछ नही किया । आपने क्या कर लिया ? बुलेट ट्रेन चलाने की बात करते है जबकि देश मे नोट छापने का कागज तक तैयार क्यो नही कर पा रहे है, यह जनता को बताना ही होगा । हकीकत यह है कि ज्योरी जैसी कंपनी अपने सप्लायर, अफसरों और सरकार में बैठे हुक्मरानों को करीब 10-13 फीसदी का कमीशन देती है । इस हिसाब से खरबो रुपये का कमीशन हुक्मरानों और मंत्रियों की जेब मे जा रहा है ।
खुफिया सूत्रों ने बताया कि ज्योरी द्वारा उतने वजन का कागज सप्लाई नही किया जा रहा है जितने का करार हुआ था । इसके अलावा कागज में कपास की मात्रा भी पर्याप्त नही है । नोट छापने वाला कागज मुख्य रूप से कपास के मिश्रण से बनता है ताकि गुणवत्ता और दृढ़ता बरकरार रह सके । पुराने नोटों की तुलना में नए नोट एकदम घटिया है । इसके अतिरिक्त छपाई के उपयोग में ली जाने वाली स्याही की क्वालिटी भी बेहद घटिया है । इसका रंग छूटने लगता है और रंग का चयन भी सही तरीके से नही किया गया । इसलिए लोग नकली नोट को चूर्ण के नोट की संज्ञा देते है । पुराने नोट के स्थान पर नए नोटों को हेय दृष्टि से देखते है ।
आपको बता दूं कि अपनी स्थापना के बाद से लेकर आज तक रिज़र्व बैंक अब तक 22 गवर्नरों के दस्तखत वाले नोट जारी कर चुका है. 1540 से 1545 के बीच शेरशाह सूरी से ने रुपया शब्द दिया और अब भारत समेत आठ देशों की मुद्रा को रुपया के नाम ही से जाना जाता है पहले रुपया केवल धातु से बने सिक्कों को ही कहा जाता था लेकिन 1861 में पेपर करेंसी एक्ट के साथ ही अठारहवी सदी के अंतिम सालों में कागजी नोट का जन्म हुआ.
सन 1934 तक रुपये को नोट के रुप में जारी करने की जिम्मेदारी सरकार की थी, जबकि 1935 से लेकर अब तक ये काम रिजर्व बैंक के पास है. हालांकि एक रुपये के नोट को जारी करने की जिम्मेदारी अब भी सरकार के पास है जबकि 2 से लेकर 1000 रुपये के नोटों को जारी करने की जिम्मेदारी रिजर्व बैंक की है. हालांकि अब दो रुपये और पांच रुपये के नोट छपते नहीं हैं. चूंकि एक को छोड़ बाकी मूल्य के नोटों को रिजर्व बैंक जारी करता है, इसीलिए उनपर रिजर्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर होते हैं. 1 रुपये के नोट पर भारत सरकार के वित्त सचिव दस्तख्त करते हैं.
कागजी नोट के रुप में रुपया मध्य प्रदेश के देवास, महाराष्ट्र के नासिक, कर्नाटक के मैसूर औऱ पश्चिम बंगाल के सल्बोनी स्थित प्रिटिंग प्रेस में छपता है जबकि सिक्कों के रूप में मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद और नोएडा स्थित टकसाल में ढाला जाता है. आपको बता दू कि अब रुपया ही नहीं, किसी भी देश की मुद्रा के पीछे सोना या चांदी जैसा कोई बहुमूल्य धातु नही रखा जाता. 1971 में ब्रिटेन वुड व्यवस्था खत्म होने के साथ ही गोल्ड स्टैंडर्ड का भी अंत हो गया. अब विभिन्न देशों की मुद्रा की तरह रुपये को फिएट करेंसी कहा जाता है. फिएट करेंसी कानूनी तौर पर मान्यता प्राप्त मुद्रा होती है जिसे सरकार का सहारा होता है. फिएट लैटिन भाषा से लिया गया शब्द है. हिंदी में इसका मतलबा आज्ञा या हुकुम होता है.
नोट जारी करने वाली संस्था के मुखिया के तौर पर गवर्नर (के हस्ताक्षर) नोट रखने वाले को अंकित रकम के बराबर मूल्य अदा करने का वचन देता है. एक बात यहां बता दू कि ये वचन किसी करार के तहत नही बल्कि कानूनी प्रावधानों के तहत दिया जाता है. अब 4 सितम्बर के बाद अपने हस्ताक्षर के जरिए उर्जित पटेल ये वचन देंगे. अब सवाल ये है कि कितना नोट छापा जाए या कितने सिक्के ढ़ाले जाएं?
जहां तक बात नोटों की है, 1 रुपये को छोड़ बाकी कीमत वाले नोटों के बारे में रिजर्व बैंक आर्थिक विकास दर, महंगाई दर और नोटों की बदलने की मांग जैसे तथ्यों के आधार पर अनुमान लगता है, फिर सरकार के साथ विचार-विमर्श कर तय होता है कि कितना नोट छपेगा. रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, 2008 से 2013 के बीच रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे डी.सुब्बाराव के हस्ताक्षर वाले 3600 करोड़ से भी ज्यादा नोट 2011-12 और 2012-13 के दौरान छपे.
इन नोट की कुल कीमत सात लाख 20 हजार करोड़ रुपये के करीब थी. वहीं सितम्बर 2013 से सितम्बर 2016 के बीच गवर्नर रहे रघुराम राजन के हस्ताक्षर वाले करीब साढ़े चार हजार नोट 2014-15 और 2015-16 के दौरान छपे. जिनकी कुल कीमत आठ लाख 13 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा थी.
इतनी बड़ी तादाद में नोट छापे जाने के बावजूद एक डॉलर के लिए 67 रुपये चुकाने पड़ रहे हैं. इसकी वजह जानते हैं. बाजार का नियम है कि जिस चीज की मांग जितनी ज्यादा होगी, उसकी कीमत उतनी ही ज्यादा होगी. आज की तारीख में दुनिया भर के बाजार में किसी मुद्रा की अगर सबसे ज्यादा मांग है तो वो है डॉलर. नतीजा ज्यादातर देशो की मुद्रा के मुकाबले डॉलर महंगा है. ये भी मत भूलिए कि जिस देश की अर्थव्यवस्था जितनी बड़ी होगी, उसका उतना ही अच्छा असर उसकी मुद्रा पर पड़ेगा. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़े बताते हैं कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था 18.55 खरब डॉलर के साथ पहले स्थान पर है जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार सवा दो खरब डॉलर से कुछ ज्यादा ही है.
भले ही नोट छापने और सिक्का ढालने का फैसला सरकार और रिजर्व बैंक मिलकर करते हैं, लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि गरीबी दूर करने के लिए खूब सारे नोट छाप लिए जाएं. बाजार में अगर नोट औऱ सिक्के काफी ज्यादा हो जाएंगे, तो महंगाई आसमान छूने लगेगी और अर्थ व्यवस्था तबाह हो जाएगी ।

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