जब मुलजिम ही मुंसिफ तो कौन करेगा इंसाफ ?
सीजेआइ रंजन गोगाई यौन शोषण के आरोपों के बाद अब मुंसिफ या मुलजिम ?
खुद पर पडी तो सीजेआइ के अनुसार न्यायपालिक गंभीर खतरे में आ गई ?
क्यों नहीं है विशेष पीठ में होने के बावजूद प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के आदेश पर हस्ताक्षर
क्यों नहीं किया न्यायिक आदेश पारित ?
स्वंय पर आंच आई तो मीडिया के विवेक पर छोडा कि वह तय करे कि क्या प्रकाशित करें क्या नहीं ?
साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से निवेदन कि क्योंकि इन आरोपों से न्यायपालिका की स्वत़़ंत्रता व प्रतिष्ठा पर अपूरणीय क्षति पहुंचेगी ?
पूर्व जूनियर कोर्ट सहायिका ने सीजेआइ पर यौन शोषण के आरोप लगाए और 22 जजों को शपथपत्र में आपबीती सुनाई, जिसमें कह कि सीजेआइ ने यौन उत्पीडन किया, विरोध करने पर पूरे परिवार को शोषण किया, पति व देवर को निलंबित कराया, महिला ने वीडियो रिकोर्डिंग भी भेजी जिससे पता चल रहा है कि केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह और दिल्ली पुलिस के कमिश्नर अमूल्य पटनायक को 11 जनवरी को इस घटना के बारे में अवगत कराया गया था । आरोप यह भी लगाया कि इस बारे में किसी को पता चला तो यह कहा गया कि परिणाम भुगतने के लिये तैयार रहना।
सवाल यह नहीं है कि महिला ने क्या अपराध किया था कि वह जेल गई, सवाल यह भी नहीं है कि उसने आरोप लगाये वह सही है या गलत, सवाल यह है कि जब कोई महिला किसी पुरूष पर मीटू का आरोप लगाती है और एमजेअकबर सरीखे मंत्री को अपने पद से इस्तीफा देना पडता है और किसी को भी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर 376 भारतीय दंड संहिता का आरोप दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया जाता है, तब न्यायपालिका द्वारा सहानुभूतिपूर्वक यह कभी नहीं देखा जाता कि हो सकता है महिला ने आरोप झूठे लगाये हो, उस पुरूष की जिंदगी और उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा पल भर में धूमिल हो जाती है, लेकिन जब यह आरोप खुद पर लग गये तो सीजेआइ को लग रहा है कि न्यायपालिका की आजादी खतरे में है।
24 घंटे जेल में रहने पर किसी भी सरकारीकर्मी को फैसला नहीं होने तक विभाग द्वारा नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाता है और सीजेआइ खुद पर आई तो कानून को धता बताते हुए कैसे कह सकते हैं कि न्यायपालिका को बलि का बकरा नहीं बनाया जा सकता, मैं इस कुर्सी पर बैठूंगा और बिना किसी डर के कार्यों का निर्वहन करूंगा, मैं रिटायर होने तक सात महिने में मामलों पर फैसला करूंगा। सीजेआइ कहते हैं कि महिला आपराधिक पृष्ठभूमि की है और वह चार दिन जेल में रह चुकी है। क्या सीजेआइ का कहना है कि कोई महिला आपराधिक पृष्ठभूमि की रहने के कारण जेल गई हो तो उसको आरोपों को नहीं सुना जायेगा, या उसके साथ यदि वास्तव में यौन शोषण हुआ हो तो भी उसकी सुनवाई नहीं की जायेगी। महिला ने यह आरोप रंजन गोगोई पर लगाया है और क्या रंजन गोगोई अपने आपको सम्पूर्ण न्यायपालिका समझने की भूल कर सकते है जब एक महिला उन पर यौन शोषण के आरोप लगा रही है।
सवाल यह है कि क्या एक महिला के पक्ष में कोई महिला संगठन इकटठे नहीं होंगे और मौन साध लेंगे। सवाल यह भी है कि महिलाओं की हमदर्द होने का दावा करने वाली राजनैतिक पार्टीयां जबकि चुनाव कुछ जगह हो चुकेेे, कुछ जगह होने है, महिलाओं का साथ देगी । मीडिया चाहे जैसा हो लेकिन इस बार अगर कोई वाकई अपना फर्ज निभा रहा है तो मीडिया निभा रहा है, न्यायपालिका के शीर्ष व्यक्ति के खिलाफ आरोपों में अगर न्याय नहीं मिलेगा तो क्या उस महिला को न्याय दिलाने में मीडिया आगे भी अपनी अहम भूमिका निभायेगा। क्या भविष्य में न्यायपालिका इस तरह के मामलों में पुरूषों का पक्ष लेकर यह कहेगी कि हम इसमें कोई न्यायिक आदेश पारित नहीं कर रहे, मीडिया अपने विवेक के आधार पर तय करे कि क्या छापना है, क्या नहीं, क्योंकि इन आरोपों से समाज के किसी सम्मानित व्यक्ति की प्रतिष्ठा को गहरा आघात पहुंचेगा।
अब नहीं चेते तो कभी नहीं चेत पाओगे। यह आगे की बात है कि आरोप सच है या नहीं, लेकिन नैतिकता के आधार पर अपने पद से त्यागपत्र दिया जाना चाहिये, और आम मुलजिम की तरह ट्राइल फेस करना चाहिये, इसके उपरांत न्यायपालिका को मंथन करना चाहिये कि किसी सम्मानित व्यक्ति पर आरोप सही पाया जाता है तो कोई बात नहीं, लेकिन आरोप झूठा पाया गया, तब तक उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल हो गई, उसका हर्जाना कौन देगा। न्यायपालिका की आजादी खतरे में बिल्कुल नहीं है, यह वक्त दिखाने का है कि न्याय सबके लिये समान है भले वह साधारण आदमी हो या सीजेआइ रंजन गोगोई।

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