जिस प्रदेश में मुख्यमंत्री के गृह संभाग में दर्जनों किसानों सहित पूरे प्रदेश में सैकड़ों किसानों ने आत्महत्या कर ली हो, उस कृषि प्रधान प्रदेश में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के नाम पर बीमा कंपनियां चांदी कूट रही हैं
और किसान आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर हों, क्या आप किसानों की हो रही दुर्दशा पर गौरव महसूस करती हैं?
जयपुर। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से आज 33वां प्रश्न पूछा है कि ‘‘फसल बीमा योजना में घोर अनियमितताओं के कारण किसानों के हितों पर हुए कुठाराघात पर, क्या आप गौरव महसूस करती हैं?’’
पायलट ने कहा कि कैग ने अपनी वर्ष 2018 की रिपोर्ट जून माह में सरकार को प्रस्तुत कर दी थी, लेकिन सरकार ने वर्तमान विधानसभा के सत्र के अंतिम दिन इस रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखा, ताकि किसान फसल बीमा योजना में बीमा कंपनियों के साथ सरकार की साठ-गांठ व किसानों के साथ किए गए धोखे पर पर्दा पड़ा रहा है और सदन में इस मुद्दे पर कोई विमर्श नहीं हो सके। उन्होंने कहा कि सीएजी ने बीमा कंपनियों के चयन के लिए आमंत्रित टेंडर प्रक्रिया में अनियमितता पर प्रश्र उठाते हुए साफ कहा है कि निविदाओं की शर्तों में उल्लेखित फार्मूले के स्थान पर दूसरा फार्मूला अपनाने से न्यूनतम दरदाता बीमा कंपनी की अवेहलना हुई है, जिससे 2 जिलों की निविदाओं में 1.07 करोड़ का नुकसान हुआ है और इसी प्रकार यदि इसे 33 जिलों में आंका जाए तो 3 साल में यह राशि 100 करोड़ से अधिक हो सकती है।
उन्होंने कहा कि सीएजी ने सरकार पर यह भी आरोप लगाया है कि 7 जिलों की सैम्पल चैकिंग में 8 करोड़ से अधिक के बीमा प्रीमियम का अधिक भुगतान किया गया है, जो किसानों की जेब से निकाला गया है, यदि इसे 33 जिलों में आंका जाए तो 3 साल में यह आंकड़ा 150 करोड़ के आसपास पहुंच जाता है। इसके विपरीत किसानों को 5 सैम्पल जिलों में 19 करोड़ का कम क्लेम एक वर्ष में दिया गया है, जिसे 3 साल में आंका जाए तो यह 500 करोड़ से ऊपर पहुंच जाता है।
उन्होंने कहा कि वास्तविक स्थिति जो किसानों द्वारा बताई जाती है वह सीएजी के आंकलन से भी ज्यादा खराब है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में लगभग 70 लाख से अधिक किसान खेती करते हैं, जिनमें से लगभग आधे किसान सहकारी समिति के माध्यम से पंजीकृत हैं और बचे हुए किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) के माध्यम से खेती के लिए कर्ज की व्यवस्था करते हैं। उन्होंने कहा कि फसल बीमा योजना में शामिल फसलों का चक्र कृषि विभाग द्वारा हर वर्ष तहसीलवार बदला जाता है, जिसका ज्ञान किसानों को नहीं रहता है और वे अपनी इच्छा से फसल की बुआई कर लेते हैं, जबकि केसीसी में पंजीकृत किसान के खाते से बिना किसान की सहमति लिए संबंधित बैंक स्वत: ही बीमा प्रीमियम उस फसल का काट लेते हैं जो कृषि विभाग ने अधिसूचित की है, जिससे किसानों को परेशानी होती है।
उन्होंने कहा कि बीमा कंपनियों के विभिन्न नियम, उप नियम किसानों को मालूम नहीं होते हैं और फसल खराब होने पर भी उनको दावा नहीं मिल पाता है। उन्होंने कहा कि प्राप्त जानकारी के अनुसार हर जिले में औसतन 75 हजार से 1 लाख किसानों को उनके करोड़ों रुपयों के दावों का भुगतान नहीं हो रहा है, जिसके कारण अनेक बार हनुमानगढ़, झुंझुनूं, टोंक, बारां, अलवर सहित अनेक जिलों में किसानों को धरना देना पड़ा, फिर भी उनकी समस्या का समाधान नहीं हुआ है।

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