रविवार, 30 सितंबर 2018

डराने की राजनीति करने वाले दरअसल ख़ुद डरे हुए हैं

अब तक हमारे लोकतंत्र का इतिहास यही रहा है कि जिसने भी सत्ता के मद में ख़ुद को मतदाताओं से बड़ा समझने की हिमाक़त की, मतदाता उसे सत्ता से बेदख़ल करके ही माने. साफ़ है कि वोट की ऐसी राजनीति से मतदाताओं को नहीं, उन्हें ही डर लगता है जो डराने की राजनीति करते हैं.
Narendra Modi Amit Shah PTI

सत्ताओं की देश और देशवासियों के दूरगामी हितों की चिंताएं न्यूनतम स्तर पर चली जाएं और उनके नेताओं की सोच का दायरा इस से उस चुनाव तक सिमट जाये तो उनके मुखारविंदों से आमतौर पर वैसे ही ‘फूल’ झड़ते हैं, जैसे इन दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह के मुंहों से झड़ रहे हैं. इसलिए कि तब न अपना भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार लगता है, न अपनी राजनीति, राजनीति. न खुद की वोट की राजनीति में कोई बुराई दिखती है, न अपने छल-फरेबों और झूठों में.

इसलिए अपने गिरेबान में झांके बगैर इन्हीं सबको लेकर विरोधियों पर बरसने में वह मजा आता है कि पूछिये मत. और बात है कि इसके बावजूद बेदखली का गहरे पैठा हुआ डर जाता नहीं है और नाना रूपों में व्यक्त होता रहता है.

भोपाल में अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के महाकुंभ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह डर उनके विरोधियों की वोट की राजनीति के दीमकों की शक्ल में सामने आया, तो उन्होंने कहा कि इन दीमकों ने देश को बरबाद करके रख दिया है और भाजपा देश को इनसे मुक्त कराने की जिम्मेदारी निभायेगी.

अलबत्ता, जैसी कि उनकी पुरानी आदत है, उन्होंने यह बताने से परहेज रखा कि कैसे निभायेगी? शायद इस डर से कि लोग यह न पूछने न लगें कि जिस पार्टी का समूचा इतिहास ही बहुसंख्यकों के वोटों की राजनीति करने का है, वह उस राजनीति को खत्म करने चलेगी तो क्या खुद ही खुद को ढेर सारे कांटों में नहीं उलझा लेगी?

यों, पूछने की ही बात हो तो कोई यह भी पूछ ही सकता है कि लोकतंत्र में वोटों की नहीं तो और किस चीज की राजनीति होगी? अगर यह राजनीति दीमक जैसी है तो क्या नोटों की राजनीति में संभावनाएं और भविष्य तलाशे जाएंगे?

अगर नहीं तो जो वोट की राजनीति की दीमकों से तुलना का क्या तुक है? लोकतंत्र की तो बुनियाद ही इसी सिद्धांत पर आधारित है कि वे जनप्रतिनिधि ही सत्ता संभालें, जिन्हें ज्यादा वोट हासिल हों.

सो, वोट की राजनीति लोकतांत्रिक सत्ता परिवर्तन का अहम औजार है, जिसके तहत ज्यादा वोट पाने वालों को सत्ता सौंपी जाती है. प्रधानमंत्री को याद हो तो 2014 में वे खुद भी इसी तरह सत्ता में आए थे.

ऐसे में सवाल मौजूं है कि तब वोट की राजनीति से उनकी तकलीफ का सबब क्या यह डर है कि जिन लोगों ने 2014 में उन्हें वोट दिया था, अब किसी और वोट देकर उन्हें सत्ता से हटा सकते हैं?

अगर हां, तो कोई उनकी मदद नहीं कर सकता क्योंकि ऐसा करना वोटरों का हक है और वे भली-भांति जानते हैं कि वोट की राजनीति न हो, तो तानाशाही आ जायेगी और जो एक बार सत्ता में आ जायेगा, मनमाने निर्णय लेगा, विरोधियों का दमन करेगा और सवाल पूछने को देशद्रोह कहेगा.

दुनिया के अनेक देशों में इस तरह के राजनीतिक कुचक्र चलते रहे हैं और हमारे देश में तो वोट की राजनीति के रहते हुए भी चल ही रहे हैं. अनेक लोगों को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है.

यह तो हमारे मतदाताओं के विवेक का फल है कि राजनीतिक पार्टियां भले ही उनको जाति, धर्म, भाषा, प्रांत व क्षेत्र आदि के आधार पर बांटकर अपने-अपने वोट बैंक बनाती रही हैं, लोकतंत्र अपनी चाल चलता रहा है और मतदाताओं ने किसी भी किस्म की तानाशाही को खुद पर हावी नहीं होने दिया है.

अब तक का हमारे लोकतंत्र का इतिहास तो यही है कि जिसने भी सत्ता के मद में खुद को मतदाताओं से बड़ा समझने की हिमाकत की, मतदाता उसे सत्ता से बेदखल करके ही माने. यह सिद्ध करके कि वे चाहें तो वोट की राजनीति को दीमक के बजाय लोकतंत्र का सीमेंट भी बना सकते हैं.

साफ है कि वोट की ऐसी राजनीति से मतदाताओं को नहीं, उन्हें ही डर लगता है जो डरने और डराने की राजनीति करते हैं. यही सिद्ध करते हुए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह दिल्ली के पूर्वांचल महाकुंभ में वोट की राजनीति के दीमकों के बरक्स घुसपैठियों के दीमक तलाश लाये.

रौ में बहे तो कह गये, ‘करोड़ों की संख्या में घुस आये वे (घुसपैठिये) वह खाना खा रहे हैं, जो हमारे गरीबों को खाना चाहिए. वह नौकरियां भी ले ले रहे हैं, जो बेरोजगारों को मिलनी चाहिए. वे हमारे देश में विस्फोट कराते हैं, जिसमें बहुत सारे लोग मारे जाते हैं. दीमक की तरह चाट गए हैं वे देश को.’

अपने इस कथन को लेकर शाह किंचित भी जिम्मेदार होते, जिसकी सत्ता दल का अध्यक्ष होने के नाते उनसे अपेक्षा की जाती है, तो उन्हें यह भी बताना ही चाहिए था कि करोड़ों की संख्या में घुसपैठियों के घुस आने की उनकी जानकारी का स्रोत क्या है?

अगर उन्होंने खुद यह गिनती कराई है तो किसकी ओर से और क्या सरकार ने उन्हें इसकी जिम्मेदारी सौंप रखी है? ये पिछले चार साढ़े चार सालों में घुस आये, तब तो नरेंद्र मोदी सरकार की नाकाबिलियत की निशानी हैं ही, इसके पहले से मौजूद हैं तो भी यह बताने की जिम्मेदारी उसी पर है कि अपने अब तक के कार्यकाल में वह इनके खिलाफ हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठी रही और अब चुनावों के वक्त क्यों जागी है?

फिर क्यों गृहमंत्री राजनाथ सिंह को अपनी पार्टी के अध्यक्ष की तरह देश में विस्फोटों में इनका हाथ होने का पता नहीं है? क्यों इन पार्टी अध्यक्ष के इस कथन के बरक्स, कि नौकरियां घुसपैठियों को चली जा रही हैं, एक और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी कहते हैं कि नौकरियां तो हैं ही नहीं?

क्या इसलिए कि वे सब के सब चाहते हैं कि किसी न किसी बहाने देश में हर कोई डरता रहे-कोई करोड़ों घुसपैठियों से तो न जाने कब उखाड़कर फेंक दिये जाने से? अगर उनका यह कहना सच है कि विपक्ष की ओर से उनके समक्ष कोई गंभीर चुनौती प्रस्तुत ही नहीं की जा रही और आगे आने वाले चुनावों में उनकी ऐसी जीत होने जा रही है, जिसे देखकर विरोधियों की आंखें फटी की फटी रह जायेंगी तो वे लोगों के भयादोहन पर क्यों उतरे हुए हैं?

कहीं यह भयादोहन उनके बेदखली के डर की अभिव्यक्ति तो नहीं है? लगता तो कुछ ऐसा ही है.

ठीक है कि 2019 का लोकसभा और उससे पहले राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ की विधानसभाओं के चुनाव जीतना इन सबके लिए बहुत मायने रखता है, लेकिन इसके लिए बेहतर रास्ता यह था कि वे अपने बेहिस दुर्भावनात्मक व डरने-डराने वालों मुद्दों और उनसे जुड़े दंभों के पार जाकर ऐसी नजरें पैदा करते, जिनसे देख पाते कि साढे़ चार सालों की सत्ता में उनकी वायदाखिलाफियों ने देश के आम लोगों का क्या हाल बना डाला है?

क्यों उनसे उकताये लोग अब यहां तक कहने को मजबूर हो रहे हैं कि आपसे अपने वायदे के अनुसार अच्छे दिन नहीं लाये जाते, तो हमारे वे बुरे दिन ही वापस कर दीजिए, जब पेट्रोल की कीमतों में उछाल और रुपये में गिरावट को लेकर, और तो और, आप खुद भी बिफरते घूमते थे और सरकार इतनी बहरी नहीं हुई थी.

ऐसी नजरों से वे यह भी देख सकते थे कि 2014 के लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी की तहेदिल से समर्थक रही महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का भी अब उनकी सरकार से मोहभंग हो गया है. यहां तक कि उसके प्रमुख राज ठाकरे को मनमोहन राज अच्छा लगने लगा है.

वे कहने लगे हैं कि देश के लोग अर्थव्यवस्था के मामले में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ज्ञान और गंभीरता की कमी महसूस कर रहे हैं क्योंकि मोदी सरकार ऐसे मामलों पर फैसले लेने में बेहद कमजोर सिद्ध हो रही है.

प्रसंगवश, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आरोप लगाते रहे हैं कि कांग्रेस को देश में गठबंधन सहयोगी नहीं मिल रहे तो वह पाकिस्तान में समर्थक तलाश रही है, जबकि यहां उनके खास गठबंधन सहयोगी भी कांग्रेस की उस सरकार को काम्प्लीमेंट दे रहे हैं, जिसे सत्ताच्युत कर वे प्रधानमंत्री बने.

अगर वे कह रहे हैं कि मनमोहन सिंह ने अपने वक्त में देश को आर्थिक सुधारों और उदारीकरण के मार्ग पर अग्रणी बनाया, तो इस पर गौर करने की जरूरत है या नहीं?

चुनाव जीतने के लिए ही सही, प्रधानमंत्री, उनकी सरकार और पार्टी इन सारे असंतोषों पर काबू पाने के ईमानदार प्रयत्नों में लग जायें तो उनका भी भला हो और देश का भी.

अब प्रदेश से भाजपा सरकार को विदाई देने का समय आ गया

राजस्थान किसानों की दुर्दशा के लिए भाजपा सरकार जिम्मेदार 

rajsamand news : BJP government responsible for plight of farmers : sachin Pilot - Rajsamand News in Hindi


जयपुर। आज जिस भारी संख्या में यहां किसान परिवार एवं कृषि से जुड़े लोग पहुंचे हैं, उससे ये अहसास होता है कि प्रदेश में किसान परिवारों में भाजपा सरकार के प्रति भारी रोष व्याप्त है और किसानों की भाजपा सरकार के प्रति ये नाराजगी भी बिल्कुल जायज है। मुख्यमंत्री ने पिछले चुनावों में सुराज संकल्प यात्रा निकाल कर प्रदेश भर में घूम-घूम कर किसानों से बड़े-बड़े वादे किए और किसान परिवारों ने भी भाजपा पर भरोसा जताया तथा पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा की सरकार बनवायी, लेकिन ये बेहद दुखद है कि पिछले साढ़े चार वर्षों में किसानों एवं कृषि से जुड़े वर्गों की जैसी दुर्गति हुई है और भाजपा सरकार ने इस वर्ग की जो अनदेखी की है वो इतिहास में याद रखा जाएगा और जनता इस भाजपा सरकार को कभी माफ नहीं करेगी। यह बात राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने उदयपुर संभाग के राजसमंद जिले में मौराणा चौराहे पर आयोजित किसान महारैली को सम्बोधित करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि राजस्थान बहुत बड़ा राज्य है, जहां कहीं सूखा पड़ता है तो कहीं बाढ़ के हालात हो जाते हैं। कभी कम वर्षा तो कभी ओलावृष्टि की वजह से किसानों को नुकसान झेलना पड़ता है, लेकिन ये कोई नई बात नहीं है, ऐसा वर्षों से होता आ रहा है और सरकार की मदद से किसानों को राहत मिल जाया करती थी, लेकिन ये बेहद दुख की बात है कि भाजपा के राज में किसानों की ऐसी दुर्गति हुई कि इतिहास में पहली बार राजस्थान के किसानों को आत्महत्या करने पर विवश होना पड़ा है और सैकड़ों किसानों ने सरकारी वादाखिलाफी से निराश होकर आत्मघाती कदम भी उठा लिए है। किसानों को राहत पहुंचाना तो दूर भाजपा सरकार ने किसानों का शोषण करने का काम किया है। उन्होंने कहा कि इस भाजपा राज में किसानों को ना बिजली, ना पानी, ना समर्थन मूल्य, ना समय पर पर्याप्त मुआवजे की व्यवस्था, भाजपा सरकार किसानों की जरूरतों को पूरा करने में हर मोर्चे पर विफल रही है। उन्होंने कहा कि ये वो सरकार है जो किसानों की शव यात्रा निकलती है तो यह अपनी गौरव यात्रा निकालती है।
पायलट ने कहा कि बड़े-बड़े पूंजीपति देश की जनता के अरबों-खरबों रुपए लेकर फरार हो रहे हैं, लेकिन भाजपा सरकार द्वारा किसानों का ऋण माफ करना तो दूर, बैंकों द्वारा कर्जा चुकाने के लिए उन्हें अपमानित व प्रताड़ित तक किया जा रहा है और जमीन की नीलामी की धमकी भी दी जा रही है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार ने यह साबित कर दिया है कि वर्तमान सरकार किसान विरोधी है जिसकी रीति-नीति किसानों की सेवा करना नहीं है, सिर्फ सत्ता में बने रहना ही इसका एक मात्र उद्देश्य है, जिसके लिए भाजपा किसी भी हद तक जा सकती है।
उन्होंने कहा कि इतिहास साक्षी है कि कांग्रेस ने सदैव किसानों के लिए संघर्ष किया है। चाहे कांग्रेस सत्ता में रही हो या नहीं रही हो, किसानों की बात को उठाने में कभी भी कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने विपक्ष में रहते हुए भी किसानों के लिए बिजली, पानी, कर्जा माफी, न्यूनतम समर्थन मूल्यों सहित सभी मुद्दों पर सरकार को घेरा है। उन्होंने सभा में उपस्थित लोगों को विश्वास दिलाया कि आपके आशीर्वाद से प्रदेश में जो कांग्रेस की सरकार बनेगी वो किसानों व आमजन की सरकार होगी।


उन्होंने कहा कि केन्द्र एवं प्रदेश दोनों ही जगह भाजपा की सरकार होने के बावजूद पिछले साढ़े चार वर्षों में भाजपा के किसी भी नेता ने जनता का हाल जानने तक का प्रयास नहीं किया और अब चुनावी माहौल को देख कर मुख्यमंत्री जनता के बीच पहुंच रही है परन्तु जनता अब उन पर विश्वास करने को तैयार नहीं है। उन्होंने कहा कि सत्ता-प्रशासन का दुरुपयोग करके भले ही भाजपा अपनी चुनावी सभाओं में भीड़ जुटाने में कामयाब रही हो, लेकिन हाईकोर्ट की फटकार के बाद अब भाजपा की सभाओ के पण्डाल खाली ही मिलते हैं।
पायलट ने कहा कि कांग्रेस में आपसी मतभेद के आरोप लगाने वालों से कोई पूछे कि क्यों मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जी अलग-अलग चुनावी सभाएं कर रहे हैं? उन्होंने कहा कि कांग्रेस अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में एकजुट है और मिलजुल कर चुनाव लड़ेगी व इस तानाशाह जन-विरोधी भाजपा सरकार को उखाड़ फेंकेगी।

अब प्रदेश से इस भाजपा सरकार को विदाई देने का समय आ गया है। उन्होंने कहा कि ये महलों की सरकार है इसलिए अब अराजकता से मुक्ति मिलनी चाहिए और अब समय आ गया है कि गरीबों, मजदूरों, किसानों और आमजन की सरकार बने, जिसमें जनता की समस्याएं सुन कर उनके समाधान करने का जज्बा हो और जो किसानों की वेदना समझ कर उनको सहूलियत पहुंचा सके।सभा के सम्बोधित करने से पहले एआईसीसी महासचिव व पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे , नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी, वरिष्ठ नेता डॉ. सी.पी. जोशी, डॉ. गिरिजा व्यास, रघुवीर मीणा, एआईसीसी सचिव व सह-प्रभारी तरुण कुमार ने राजसमंद के चारभुजा स्थित प्रसिद्ध श्री चारभुजा नाथ जी मंदिर में दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया।

दृष्टिबाधित बालिकाओं ने बहाई संगीत की सुर सरिता

दृष्टिबाधित बालिकाओं ने बहाई संगीत की सुर सरिता
जयपुर। इन नेत्रों में ज्योति तो नहीं है, लेकिन इनका अंतर्मन ईश्वरीय दृष्टि से इतना अलौकिक है कि ये दृष्टिबाधित बालिकाएं हौसलों से लबरेज हैं। यह कहना था कला एवं संस्कृति विभाग के प्रमुख शासन सचिव कुलदीप रांका का।
रांका लुई ब्रेल दृष्टिहीन विकास संस्थान द्वारा आयोजित दो दिवसीय अखिल भारतीय दृष्टिबाधित महिला संगीत प्रतियोगिता के पुरस्कार वितरण समारोह के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि संगीत ईश्वर की ऐसी साधना है, जो सीधे परमात्मा से साक्षात्कार करवाती है। उन्होंने प्रतियोगिता में भाग ले रही दृष्टिबाधित बालिकाओं की प्रतिभा की तारीफ करते हुए कहा कि कमी चाहे जो भी हो, पर कभी जीवन में निराश नहीं होना चाहिए। उन्होंने प्रतिभाओं को तराशने की आवश्यकता पर बल दिया।

समारोह के अध्यक्ष रील के कार्यकारी निदेशक पीयूष पालीवाल और विशिष्ट अतिथि ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी के प्रादेशिक प्रबंधक डी.एन. सक्करवाल ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि नेत्रहीन बालिकाओं द्वारा दी गई प्रस्तुतियां वाकई सराहनीय हैं। उन्होंने दृष्टिबाधित बालिकाओं को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।
इस अवसर पर अतिथियों ने बाल वर्ग, किशोर वर्ग और युवा वर्ग की विजेता प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र और स्मृति चिह्न भेंटकर हौसला अफजाई की। अंत में संस्थान के अध्यक्ष पी.सी. जैन ने आभार व्यक्त किया।

सुप्रीम कोर्ट ने दी केंद्र सरकार को राहत आधार को हरी झंडी

इस हफ्ते अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आधार को खुलकर सांस लेने का मौका दे दिया है. जजों के बीच बहुमत के आधार पर लिये गये इस फैसले में आधार को संवैधानिक ठहराया गया है और बैंक अकाउंट या सिम कार्ड को आधार से लिंक करने की अनिवार्यता हटाने जैसे कुछ छोटे बदलावों के अतिरिक्त, आधार के समावेशी चरित्र होने के सरकार के दावों को सही मान लिया गया है. 

हालांकि, संविधान पीठ के ही जस्टिस चंद्रचूड़ ने भिन्न राय रखते हुए, इसे असंवैधानिक बताया है और आधार को बतौर मनी बिल पारित करने को धोखा कहा है. फैसला आने के बाद से ही, आधार को लेकर देशभर से मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं. भारतीय परिदृश्य में आधार कार्ड के समावेशी होने से लेकर असंवैधानिक होने के दावों की पड़ताल आज के इन दिनों में....



मेटा डेटा का एक अर्थ है- आकड़ों के बारे में आंकड़ा और दूसरा अर्थ है संग्रहित सूचना. सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों वाली संविधान पीठ के 1,448 पन्नों के फैसले में इस शब्द का लगभग 50 बार जिक्र किया गया है. यह शब्द आधार कानून 2016 में परिभाषित नहीं है. पृष्ठ 121 पर कहा गया है कि आधार कानून भारतवासियों और नागरिकों का मूल बायोमेट्रिक (उंगलियों व आंखों की पुतलियों) की जानकारी, जनसंख्या संबंधी जानकारी और मेटा डेटा का साइबर सूचना संग्रहालय तैयार करता है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला मेटा डेटा (अधि-आंकड़ा) के संबंध में मौजूदा प्रावधान को निरस्त करता है और उसमें संशोधन करने का निर्देश देता है.    


सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित संसदीय समिति ने फरवरी 2014 की अपनी एक रिपोर्ट में अमेरिकी नेशनल सिक्यूरिटी एजेंसी द्वारा किये जा रहे खुफिया हस्तक्षेप और विकिलिक्स के खुलासे और साइबर क्लाउड तकनीकी और वैधानिक खतरों के संबध में इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के तत्कालीन सचिव जे सत्यनारायण (वर्तमान में चेयरमैन, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण, भारत सरकार) से पूछा था. संसदीय समिति उनके जवाब से संतुष्ट नहीं लगी. हैरत की बात है कि इन्हें विदेशी सरकारों और कंपनियों द्वारा सरकारी लोगों और देशवासियों के मेटा डाटा एकत्रित किये जाने से कोई परेशानी नहीं थी. 



सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने दो अलग-अलग फैसला दिया है. दोनों फैसलों में समानता और अंतर है. समानता यह है कि दोनों फैसलों में आधार कानून पर सवाल उठाया गया है. अंतर यह है कि न्यायमूर्ति एके सीकरी द्वारा लिखे चार जजों के आदेश ने आधार के कई प्रावधानों पर सवाल उठाया है और कुछ प्रावधानों को असंवैधानिक बताया है. 

उन्होंने आधार कानून के बहुत से प्रावधानों को रद्द कर दिया है और सरकार को उनमें संशोधन करने का आदेश दिया है. इस फैसले से अलग न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने पूरे आधार कानून को असंवैधानिक बताया है.

मोटे तौर पर ‘आधार’ तो बारह अंकों वाला एक अनूठा पहचान संख्या है, जिसके द्वारा  देशवासियों के संवेदनशील आकड़ों को सूचीबद्ध किया जा रहा है. लेकिन यही पूरा सच नहीं है. असल में यह 16 अंकों वाला है, मगर 4 अंक छुपे रहते हैं. इस परियोजना के कई रहस्य अब भी उजागर नहीं हुए हैं. शायद इसीलिए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के पांच जजों में से चार जज सरकार द्वारा गुमराह हो गये प्रतीत होते हैं. 

यूआईडी/आधार  और नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (राष्ट्रीय खुफिया तंत्र) एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. आधार संख्या सम्मिलित रूप से राजसत्ता और कंपनियां विभिन्न कारणों से नागरिकों पर नजर रखने का उपकरण हैं. 

यह परियोजना न तो अपनी संरचना में और न ही अमल में निर्दोष है. केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने 10 अप्रैल, 2017 को राज्यसभा में आधार पर चर्चा के दौरान कहा कि सरकार नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड और आधार संख्या को नहीं जोड़ेगी. इसी सरकार ने आधार को स्वैच्छिक बता कर बाध्यकारी बनाया है. सुप्रीम कोर्ट के दोनों फैसलों ने ऐसे प्रयासों पर रोक लगा दिया है. फिक्की और एसोचैम की रिपोर्टों से स्पष्ट है कि नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड और बायोमेट्रिक आधार संरचनात्मक तौर पर जुड़े हुए हैं.


आधार परियोजना पर होनेवाले अनुमानित खर्च का आज तक खुलासा नहीं किया गया है. देशवासियों को अंधकार में रखकर बायोमेट्रिक-डिजिटल पहलों से जुड़े हुए उद्देश्य को अंजाम दिया जा रहा है. 

अदालत ने दुनिया की सबसे बड़ी टेक्नोलाॅजी कंपनी आईबीएम के कारनामों की अनदेखी की है. आईबीएम ने नाजियों के साथ मिलकर यहूदियों की संपत्तियों को हथियाने, उन्हें नारकीय बस्तियों में महदूद कर देने, उन्हें देश से भगाने और आखिरकार उनके सफाये के लिए पंच-कार्ड (कंप्यूटर का पूर्व रूप) और इन कार्डों के माध्यम से जनसंख्या के वर्गीकरण की प्रणाली के जरिये यहूदियों की निशानदेही की, उसने मानवीय विनाश के मशीनीकरण को संभव बनाया. इसकी आशंका प्रबल है कि आधार से वही होने जा रहा है, जो जर्मनी में हुआ था. 

गौरतलब है कि चार जजों ने आधार के बहुत सारे प्रावधानों पर सवाल उठाया है. एक जज ने पूरे आधार कानून को असंवैधानिक बताया है. कोर्ट ने आधार कानून की धारा 57 को खत्म कर दिया है. आधार एक्ट के तहत प्राइवेट कंपनियां 2010 से ही आधार की मांग कर रही थी. धारा 57 के अनुसार सिर्फ राज्य ही नहीं, बल्कि बॉडी कॉरपोरेट या फिर किसी व्यक्ति को चिह्नित करने के लिए आधार संख्या मांगने का अधिकार अब नहीं है. 

इस प्रावधान के तहत मोबाइल कंपनी, प्राइवेट सर्विस प्रोवाइडर्स के पास वैधानिक सपोर्ट था, जिससे वे पहचान के लिए आपका आधार संख्या मांगते थे. ऐसे नाजायज प्रावधान को धन विधेयक का हिस्सा बनाया गया था, जिसे लोकसभा और लोकसभा अध्यक्ष ने कानून बना दिया था. बीते 26 सितंबर तक इस प्रावधान के तहत देशवासियों के साथ कानून के नाम पर घोर अन्याय किया गया. इस अन्याय के लिए लोकसभा और लोकसभा अध्यक्ष को नागरिकों से माफी मांगनी चाहिए. इस प्रावधान से देश के हित और नागरिकों के हित के साथ खिलवाड़ हुआ है. 


सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने फैसले में कहा है कि आधार कानून धन विधेयक है. ये जज हैं- प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा , न्यायमूर्ति एके सीकरी, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति अशोक भूषण. इन जजों का मानना है कि लोकसभा अध्यक्ष के फैसले को संवैधानिक चुनौती दी जा सकती है.  

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा है कि वह सरकार की इस दलील से सहमत नहीं है कि आधार कानून धन विधेयक है और उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष के फैसले को गलत बताया है. 

उन्होंने आधार को लागू करनेवाले भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) के साथ हुए विदेशी निजी कंपनियों के करार का हवाला देते हुए कहा कि नयी इन बायोमेट्रिक तकनीकी कंपनियों की सहभागिता से होनेवाले राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी खतरे और नागरिकों के मूलभूत अधिकारों के हनन को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है. इसलिए उन्होंने आधार परियोजना और कानून को खारिज कर दिया और इसकी जगह कोई वैकल्पिक व्यवस्था करने की अनुशंसा की है.      

वित्त मंत्री अरुण जेटली पर आरोप है कि इन्होंने तथ्यों को गलत ढंग से पेश किया है. सूचना के अधिकार के तहत जो कॉन्ट्रेक्ट एग्रीमेंट निकाले गये हैं, उसमें स्पष्ट लिखा गया है कि ऐक्सेंचर, साफ्रान ग्रुप, एर्नेस्ट यंग नाम की ये कंपनियां भारतवासियों के इन संवेदनशील बाॅयोमेट्रिक आंकड़ों को सात साल के लिए अपने पास रखेंगी.

इस का संज्ञान सुप्रीम कोर्ट के एक जज वाले फैसले में लिया गया है. इसी कारण चार जजों ने भी निजी कंपनियों को आधार सूचना देने पर पाबंदी लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने अभी यह तय नहीं किया है कि यदि आधार परियोजना और विदेशी कंपनियों के ठेका और संविधान में द्वंद्व हो, तो संविधान प्रभावी होगा कि ठेका. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि संविधान प्रभावी होगा. बाकी के चार जजों ने फिलहाल इस मामले में चुप्पी साध ली है.     

आधार को लागू करनेवाले प्राधिकरण द्वारा अब तक 120 करोड़ से अधिक भारतीय निवासियों को आधार संख्या प्रदान किये जा चुके हैं. यह नागरिकता का पहचान नहीं है. यह आधार पंजीकरण से पहले देश में 182 दिन रहने का पहचान प्रदान करता है. कोई बुरुंडी, टिंबकटू, सूडान, चीन, तिब्बेत, पाकिस्तान, होनोलुलू या अन्य देश का नागरिक भी इसे बनवा सकता है. नागरिकों के अधिकार को उनके बराबर करना और इसे बाध्यकारी बनाकर और इस्तेमाल करके उन्हें मूलभूत अधिकारों से वंचित करना तर्कसंगत और न्यायसंगत नहीं है.

अरुण जेटली ने आधार के जरिये जुटाये जा रहे बाॅयोमेट्रिक आंकड़ों को पूरी तरह सुरक्षित बताया था. मीडिया में हुए खुलासों ने इस दावे की पोल खोल दी है. आधार परियोजना का आपातकाल के दौर के संजय गांधी की बाध्यकारी परिवार नियोजन वाली विचारधारा से कोई रिश्तेदारी सी दिखती है. ऐसी विचारधारा का खामियाजा उन्होंने भोगा था. आधार परियोजना के पैरोकार भी उनके रास्ते ही चल रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

आधार की संवैधानिकता पर चल रही बहस की दिशा सुप्रीम कोर्ट ने बदल दी है. प्रावधानों में कुछ बदलावों के साथ सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत के तहत आधार की संवैधानिकता को वैध ठहराया है. 

इस फैसले के बाद, आधार कार्ड को बैंक खाते से लिंक करना जरूरी नहीं रह गया है और टेलीकॉम कंपनियां मोबाइल सिम का कनेक्शन प्रदान करने के लिए आधार की मांग नहीं कर सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि आधार अधिनियम के तहत डेमोग्राफिक और बायोमेट्रिक जानकारी देना गोपनीयता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है. 

सरकार द्वारा डाटा काे संग्रहित करने और इस्तेमाल करने से गोपनीयता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं होता. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, आधार कानून का काम व्यापक निगरानी का नहीं है. फैसले को लेकर संविधान पीठ से अलग राय रखते हुए, जस्टिस चंद्रचूड़ ने आधार एक्ट को धन विधेयक की तरह पास करना संविधान के साथ धोखा बताया है, उन्होंने कहा- यह संविधान के अनुच्छेद 110 का उल्लंघन है.

आधार की अनिवार्यता 

कहां जरूरी है

पैन कार्ड व ड्राइविंग लाइसेंस से आधार को जोड़ना और आयकर दाखिल करते समय आधार संख्या लिखना अनिवार्य है.
कहां जरूरी नहीं है
यूजीसी व निफ्ट की परीक्षा, सीबीएसई व स्कूलाें में प्रवेश के लिए, मोबाइल और बैंक खाता से आधार लिंक करना और निजी कंपनियों द्वारा प्रमाणीकरण के लिए आधार की अनिवार्यता अब खत्म हो गयी है.
आधार कालक्रम
मार्च 2006 : संचार व सूचना तकनीक मंत्रालय, भारत सरकार ने गरीब परिवारों के लिए विशिष्ट पहचान योजना (यूनिक आईडी स्कीम) को मान्यता प्रदान की.
दिसंबर 2006 : दो योजनाओं, नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत राष्ट्रीय जनसंख्या पंजिका और यूआईडी योजनाओं के अध्ययन के लिए मंत्रियों के आधिकारिक समूह (इंपावर्ड ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स) का गठन किया गया.
वर्ष 2007 : अपनी पहली बैठक में ईजीओएम ने नागरिकों के डाटाबेस बनाने की जरूरत महसूस की, जिसने आधार की नींव रखी.
जनवरी 2009 : भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण यानी यूआईडीएआई की स्थापना हुई और नंदन निलेकणी इसके पहले अध्यक्ष बनाये गये.
दिसंबर 2010 : भारतीय राष्ट्रीय पहचान प्राधिकरण विधेयक , 2010 (एनआईएआई बिल) संसद में पेश किया गया.
नवंबर 2012 : कर्नाटक उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के एस पुट्टास्वामी व अन्य ने उच्चतम न्यायालय में आधार की वैधता को चुनौती देनेवाली याचिका दाखिल की.
सितंबर 2013 : उच्चतम न्यायालय ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए कहा कि आधार कार्ड नहीं होने की स्थिति में किसी भी व्यक्ति को तकलीफ नहीं होनी चाहिए.

नवंबर 2013 : उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया कि सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश प्रतिवादी के तौर पर पक्षकार बनेंगे.
मार्च 2014 : एजेंसियों द्वारा कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार नंबर मांगने के आदेश को उच्चतम न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया गया. साथ न्यायालय ने यूआईडीएआई को आधार डाटाबेस में दी गयी व्यक्तिगत जानकारी को बिना उस व्यक्ति की रजामंदी के किसी भी एजेंसी से साझा करने से मना कर दिया.

अगस्त 2015 : उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की एक खंडपीठ ने कुछ कल्याणकारी याेजनाओं के लिए आधार को सीमित कया और आदेश दिया कि आधार कार्ड न होने की स्थिति में किसी भी व्यक्ति को लाभ से वंचित नहीं किया जाना चाहिए.
3 मार्च, 2016 : आधार विधेयक को संसद में पेश किया गया, जो बाद में धन विधेयक के तौर पर पारित हुआ.
जनवरी-मार्च 2017 : अनेक मंत्रियों ने कल्याणकारी योजनाओं, पेंशन व रोजगार योजनाओं और आयकर रिटर्न के लिए आधार को अनिवार्य किया.
मई 2017 : पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के नेता जयराम रमेश ने आधार विधेयक को धन विधेयक के रूप में पारित करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गये.
24 अगस्त, 2017 : सुप्रीम कोर्ट के नौ न्यायाधीशों की एक खंडपीठ ने फैसला देते हुए कहा कि निजता का अधिकार एक मूलभूत अधिकार है.
15 दिसंबर, 2017 : उच्चतम न्यायालय ने अनेक सेवाओं और कल्याणकारी योजनाओं से आधार जोड़ने की अंतिम तिथि बढ़ाकर 31 मार्च, 2018 कर दिया.
17 जनवरी, 2018 : पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ ने आधार मामले की सुनावाई शुरू की.
7 मार्च, 2018 : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अखिल भारतीय परीक्षा में विद्यार्थियों के नामांकन में आधार संख्या अनिवार्य नहीं है.
3 अप्रैल, 2018 : केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि आधार कानून निष्पक्ष और सही है.
17 अप्रैल, 2018 : उच्चतम न्यायालय ने आधार डाटा के गलत इस्तेमाल के खतरे को लेकर चिंता जतायी.
25 अप्रैल, 2018 : आधार नंबर को मोबाइल के साथ जोड़ने की अनिवार्यता पर उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से सवाल पूछा.
10 मई, 2018 : आधार कार्ड की वैधता पर उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले को सुरक्षित रख लिया.
26 सितंबर, 2018 : उच्चतम न्यायालय ने आधार को संवैधानिक तोर पर वैध माना, हालांकि उसने कई सेवाओं में इसकी अनिवार्यता समाप्त कर दी.

प्रतिदिन 10 लाख लोगों का नामांकन


121  करोड़ आधार कार्ड जारी किये जा चुके हैं इस वर्ष जुलाई तक भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण द्वारा.

10  लाख लोग प्रतिदिन आधार कार्ड के लिए नामांकन/ नवीनीकरण करा रहे हैं, यूआईडीएआई के सीईओ, अजय भूषण पांडे के अनुसार.
14,200  कुल आधार नामांकन केंद्र हैं देश भर में (इस वर्ष जुलाई तक), जिनमें लगभग 13,000 भारतीय डाक विभाग द्वारा स्थापित किये गये हैं.

85.9  करोड़ (859 मिलियन) बार उपयोग हुआ आधार का प्रमाणीकरण के लिए, जो एक वर्ष में इसका न्यूनतम इस्तेमाल है. इस प्रकार पिछले वर्ष सितंबर महीने के 148 करोड़ (1.48 बिलियन) के मुकाबले जून महीने में आधार के इस्तेमाल में 40 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी थी, यूआईडीएआई के मुताबिक.

996  मिलियन बार आधार का इस्तेमाल हुआ था प्रमाणीकरण के लिए इस वर्ष फरवरी में जबकि यह मार्च में बढ़कर 1.125 बिलियन पर पहुंच गया (केवल मार्च ही ऐसा महीना रहा, जब आधार के इस्तेमाल में वृद्धि देखी गयी, वर्ना पिछले वर्ष सितंबर से हर महीने इसके उपयोग में कमी आयी है), यूआईडीएआई वेबसाइट के अनुसार.

समाजार्थिक विभाजन का परिणाम है यूआईडीएआई



बीते 26 सितंबर के दिन आधार पर दिये अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट में बहुमत वाले न्यायाधीशों द्वारा सेक्शन 7 को बरकरार रखना बेहद निराशाजनक है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि न्यायाधीशों ने सरकार के सभी 'दावे' स्वीकार करने का फैसला किया है, जो तथ्यों के आधार पर गलत हैं. उन्होंने इसके पीछे यह दलील दी है कि इस कार्यक्रम को लांच करने का उद्देश्य उन योग्य व्यक्तियों का 'समावेश' करना है, जिन्हें लाभ प्राप्त करना चाहिए. कोर्ट द्वारा सरकार के दावों को तथ्यों के रूप में स्वीकार किये जाने के कई उदाहरण हैं. 

मसलन, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने अदालत के सामने यह तथ्य प्रस्तुत किया कि आंख की पुतली और उंगली प्रमाणीकरण का असफल होने का प्रतिशत क्रमशः 8.54 और 6 है. वहीं निर्णय के पेज नं 384 में कहा गया है कि यूआईडीएआई ने 99.76 प्रतिशत की बॉयोमेट्रिक सटीकता का दावा किया है. साफ है कि अदालत में दो अलग-अलग विफलता दरें जमा की गयी हैं.

लोगों के साथ-साथ जजों के मन में भी यह धारणा घर कर गयी है कि आधार समाज को समावेशी बनायेगा. यह विश्वास भ्रामक है. अगर इसका मतलब यह है कि आधार प्राप्त करना आसान है, तो यह शायद सच है. 'शायद' केवल इसलिए, क्योंकि अनेक लोगों ने आधार प्राप्त करने के लिए भुगतान किया है, भले ही यह प्रक्रिया मुफ्त बनायी गयी है. कई बार लोगों को आधार पाने में मशक्कत करनी पड़ती है. विकलांगों के लिए तो नामांकन करना ही बहुत दूभर रहा है और बहुत बार वे नामांकन में असफल हुए हैं. 

आधार पाने से वंचितों की संख्या जनसंख्या के प्रतिशत के बिना पर भले छोटी हो सकती है, लेकिन वे समाज के सबसे कमजोर लोग हैं, जिनमें बेहद बूढ़े, बीमार, दुर्घटनाग्रस्त, देखने में असमर्थ लोग शामिल हैं. एक गलतफहमी भी लोगों में घर कर गयी है कि आधार ही लाखों भारतीयों के लिए अकेली या पहली आईडी है. एक आरटीआई के जवाब के मुताबिक, आधार संख्या पानेवाले 99.97 प्रतिशत लोगों ने पहले से मौजूद पहचान-पत्र के आधार पर आवेदन किया था. 

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार का कोई भी प्रतिनिधि यह समझाने में सक्षम नहीं है कि आधार कैसे सरकारी कल्याणकारी योजनाओं को समावेशी बनाता है. प्रत्येक सरकारी कार्यक्रम के अपने मानदंड हैं. 

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में राज्यों के अपने समावेशी मानदंड हैं, जिनका आधार से कोई लेना-देना नहीं है. कुछ राज्यों में, भले आपके पास सरकारी नौकरी है या कंक्रीट/ पक्का घर है, लेकिन आपको पीडीएस राशन कार्ड नहीं मिल सकता है- भले ही आपके पास आधार हो. वहीं, यदि आप झोपड़ी में रहते हैं या आदिवासी हैं, तो आपको पीडीएस राशन कार्ड मिलेगा. लेकिन, आधार के आने के बाद पीडीएस राशन कार्ड को आधार कार्ड से लिंक अनिवार्य किया गया था.

जजों के बीच बहुमत की राय कहती है कि 'आधार अधिनियम का उद्देश्य कमियों को नियंत्रित करना है' और 'हम पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि यह सभी उद्देश्यों को पूरा करता है' (पृष्ठ 386). यह परेशान करनेवाली बात है कि मीडिया इन मिथ्या निरूपणों को चुनौती क्यों नहीं दे रहा है.
दरअसल, यह समूची परिघटना भारतीय समाज में गहरे सामाजिक और आर्थिक विभाजन का परिणाम प्रतीत होती है. जो लोग इन कार्यक्रमों से लाभ उठाते हैं और जो यह समझ पाते हैं कि आधार समावेशी नहीं हो सकता है, उनकी मीडिया में या नीति-निर्माण में कोई आवाज शामिल नहीं होती है. साक्ष्य-आधारित नीति-निर्माण के विपरीत, हमने इस मामले में जो देखा है, वह अतिक्रमण-आधारित नीति-निर्माण ही है. 

दरअसल, न्यायाधीशों के निर्णय ने समाज में जाति और वर्ग के आधार पर गहरे विभाजन के शिकार समुदायों को धोखा दिया है. गनीमत है कि जहां चार न्यायाधीशों ने फैसले में सरकार की ही कहानी पर गौर किया, वहीं उनके पांचवें साथी ने बहुमत के बहाव में न बहते हुए अपनी स्वतंत्र सोच का उपयोग किया और कहा कि आप हर समय सभी लोगों को गुमराह नहीं कर सकते हैं.

कमेंट

आधार असंवैधानिक है. यह निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है, क्योंकि इससे व्यक्तियों व मतदाताओं की सोच और उनके व्यवहार का विश्लेषण किया जा सकता है.

- न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़

मोबाइल के साथ आधार जोड़ना स्वायत्तता, गरिमा और निजता के लिए खतरा है. इसका उद्देश्य तर्कसंगत हो सकता है, लेकिन इस उद्देश्य को प्राप्त करने के साधन अनुचित नहीं हो सकते.

- न्यायमूर्ति अशोक भूषण

कुल मिलाकर यह एक अच्छा निर्णय है. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का कहना है कि यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है, इससे मैं व्यक्तिगत रूप से खुश हूं.

- सोली सोराबजी, पूर्व अटॉर्नी जनरल, भारत सरकार

न्यायालय ने आधार के संस्थापक सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से मान्यता प्रदान की है.

शांति भंग करने वालों को मुंहतोड़ जवाब देंगे हमारे जांबाज : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  'मन की बात' कार्यक्रम के 48वें संस्करण के जरिए एक बार फिर से देश की जनता को संबोधित कर रहे हैं. अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा कि शायद ही कोई भारतीय हो सकता है जिसको हमारे सशस्त्र बलों पर,हमारे सेना के जवानों पर गर्व न हो प्रत्येक भारतीय चाहे वो किसी भी क्षेत्र, जाति,धर्म,पंथ या भाषा का क्यों न हो- हमारे सैनिकों के प्रति अपनी समर्थन दिखाने के लिए हमेशा तत्पर रहता है.

उन्होंने कहा कि कल भारत के सवा-सौ करोड़ देशवासियों ने, पराक्रम पर्व मनाया था. हमने 2016 में हुई उस सर्जिकल स्टाइक को याद किया, जब हमारे सैनिकों ने हमारे राष्ट्र पर आतंकवाद की आड़ में छद्म युद्ध की धृष्टता करने वालों को मुंहहतोड़ ज़वाब दिया था.

प्रधानमंत्री ने कहा कि पराक्रमपर्व जैसा दिवस युवाओं को हमारी सशस्त्र सेना के गौरवपूर्ण विरासत की याद दिलाता है और देश की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने के लिए हमें प्रेरित भी करता है. अब यह तय हो चुका है कि हमारे सैनिक उन सबको मुंहतोड़ ज़वाब देंगे जो हमारे राष्ट्र में शांति और उन्नति के माहौल को नष्ट करने का प्रयास करेंगे.

उन्होंने कहा कि भारत सदा ही शांति के प्रति वचनबद्ध और समर्पित रहा है. 20वीं सदी में दो विश्वयुद्धों में हमारे एक लाख से अधिक सैनिकों ने शांति के प्रति अपना सर्वोच्च बलिदान दिया. आज भी यूएन की अलग-अलग शांति सेना में भारत सबसे अधिक सैनिक भेजने वाले देशों में से एक है. पीएम मोदी ने कहा कि 8 अक्टूबर को हम ‘वायुसेनादिवस’ मनाते हैं. 1932 में छह पायलट और 19 वायु सैनिकों के साथ एक छोटी सी शुरुआत से बढ़ते हुए हमारी वायुसेना आज 21वीं सदी की सबसे साहसिक और शक्तिशाली एयरफोर्स में शामिल हो चुकी है. यह अपने आप में एक यादगार यात्रा है.

पीएम मोदी ने कहा कि देश में लैंगिक समानता यानी स्त्री और पुरुष की समानता सुनिश्चित करने में एयरफोर्स ने मिसाल कायम की है. भारत गर्व से कह सकता है कि भारत की सेना में सशस्त्र बलों में पुरुष शक्ति ही नहीं, स्त्रीशक्ति का भी उतना योगदान बनता जा रहा है. उन्होंने नेवी के जवान अभिलाष टोमी का भी जिक्र अपने मन की बात कार्यक्रम में की और कहा कि पिछले दिनों टोमी अपने जीवन और मृत्यु की लड़ाई लड़ रहे थे. मैंने अभिलाष से टेलीफोन पर बात की. इतने संकट से बाहर आने के बाद भी उनका जो ज़ज्बा था, हौसला था और फिर एक बार ऐसा ही कुछ पराक्रम करने का जो संकल्प उन्होंने बताया देश की युवा-पीढ़ी के लिए वो हमारे देश की युवा-पीढ़ी को ज़रूर प्रेरणा देगी.

उन्होंने आगे कहा कि इस वर्ष 2 अक्टूबर एक विशेष महत्व है। अब से 2 साल के लिए हम महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती के निमित्त विश्वभर में अनेक विविध कार्यक्रम करने वाले हैं. महात्मा गांधी के विचार ने पूरी दुनिया को प्रेरित किया है. आज की मन की बात में, मैं आपके साथ पूज्य बापू के एक और महत्वपूर्ण कार्य की चर्चा करना चाहता हूं, जिसे अधिक-से-अधिक देशवासियों को जानना चाहिए. पूज्य बापू लोक संग्राहक थे. उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति को ये अनुभव कराया कि वह देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण और नितांत आवश्यक है. स्वतंत्रता संग्राम में उनका सबसे बड़ा योगदान ये रहा कि उन्होंने इसे एक व्यापक जन-आंदोलन बना दिया. प्रधानमंत्री ने कहा कि गांधीजी का एक जंतर आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है. क्या हम खरीदारी करते समय सोच सकते हैं कि मैं जो चीज़ खरीद रहा हूं उससे मेरे देश के किस नागरिक का लाभ होगा... गांधी जी के इस जंतर को याद करते हुए आने वाले दिनों में हम जब भी कुछ खरीद करें, तब हम जरुर देखें कि हमारी हर खरीदी में किसी-न-किसी देशवासी का भला होना चाहिए. विशेष अवसरों पर खादी और हैंडलूम के उत्पाद खरीदने के बारे में सोचें, इससे अनेक बुनकरों को मदद मिलेगी.

उन्होंने कहा कि आज जब हम पूज्य बापू का स्मरण कर रहें हैं तो स्वाभाविक है कि स्वच्छता की बात के बिना रह नहीं सकते. 15 सितम्बर से ‘स्वच्छता ही सेवा’ एक अभियान प्रारंभ हुआ. करोड़ों लोग इस अभियान में जुड़े. मैं इसके लिए इन सभी देशवासियों को ह्रदय पूर्वक बहुत-बहुत बधाई देता हूं. पीएम मोदी ने कहा कि आपने बहुत बड़ी बात कही हर किसी के जीवन में स्वच्छता का अपना महत्व है और ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के तहत आपके घर में शौचालय बना और उससे अब आपको सुविधा हो रही है हम सब के लिए इससे ज्यादा ख़ुशी की बात और क्या हो सकती है. मेरे प्यारे देशवासियो, इस बार भारत इतिहास में दुनिया का सबसे बड़ा स्वच्छता सम्मेलन आयोजित कर रहा है.‘महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छता सम्मेलन’... आगे उन्होंने कहा कि जब न्याय की चर्चा होती है, तो मानव अधिकार का भाव उसमें पूरी तरह से समाहित रहता है. शोषित, पीड़ित और वंचित जनों की स्वतन्त्रता, शांति और उन्हें न्याय सुनिश्चित कराने के लिए - ये विशेष रूप से अनिवार्य है.

कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी ने कहा कि पूज्य बापू के साथ ही हम शास्त्री जी की भी जयंती मनायेंगे. शास्त्री जी का नाम आते ही हम भारतवासियों के मन में एक असीम श्रद्धा का भाव उमड़ पड़ता है. उनका सौम्य व्यक्तित्व हर देशवासी को सदा ही गर्व से भर देता है. 

पीएम मोदी ने कहा कि डॉ. बाबा साहब अम्बेडकर द्वारा दिये गये संविधान में ग़रीबों के मूल अधिकारों की रक्षा के लिए कई प्रावधान किये गये हैं. अम्बेडकर के विजन से प्रेरित होकर 12 अक्तूबर 1993 को ‘राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग’ यानी एनएचआरसी  का गठन किया गया था. उन्होंने कहा कि हमारे प्राण-प्रिय नेता हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमान् अटल बिहारी वाजपेयी जी ने स्पष्ट रूप से कहा था कि मानव अधिकार हमारे लिए कोई परायी अवधारणा नहीं है.

पीएम मोदी ने कहा कि आज राष्ट्रीय स्तर पर मानव अधिकार के काम के साथ-साथ 26 राज्य मानव अधिकार आयोग भी गठन किया है. एक समाज के रूप में हमें मानव अधिकारों के महत्व को समझने और आचरण में लाने की आवश्यकता है - ये ही ‘सब का साथ - सब का विकास’ का आधार है. उन्होंने कहा कि अक्तूबर महीना हो, जयप्रकाश नारायण जी की जन्म-जयन्ती हो, राजमाता विजयाराजे सिंधिया जी की जन्म शताब्दी वर्ष का प्रारंभ होता हो - ये सभी महापुरुष हम सब को प्रेरणा देते रहे हैं उनको हम नमन करते हैं. प्रधानमंत्री ने कहा कि 31 अक्तूबर सरदार साहब की जयंती है, मैं अगली ‘मनकीबात’ में विस्तार से बात करूंगा. मैं आप सब से आग्रह करता हूं कि 31 अक्तूबर को ‘रन फॉर यूनिटी’ के ज़रिये समाज के हर वर्ग को, देश की हर इकाई को एकता के सूत्र में बांधने के हमारे प्रयासों को हम बल दें और यही उनके लिए अच्छी श्रद्धांजलि होगी... अंत में उन्होंने कहा कि मेरे प्यारे देशवासियो, नवरात्रि हो, दुर्गापूजा हो, विजयादशमी हो इस पवित्र पर्वों के लिए मैं आप सब को हृदयपूर्वक बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं. धन्यवाद..

शनिवार, 29 सितंबर 2018

आईएनआईएफडी ने कोरियोग्राफी, कॉस्टयूम डिजाइनिंग और मॉडलिंग को किया प्रदर्शित

आईएनआईएफडी जयपुर में किया गया नये उभरते डिजाइनर्स का स्वागत और स्नातक, स्नातकोत्तर छात्र—छात्राओं के लिये फेवरेल पार्टी का आयोजन । 

जयपुर। आईएनआईएफडी जयपुर में शनिवार को फेवरेल के साथ फ्रेशर्स का स्वागत समारोह अपने कैम्पस में आयोजित किया गया। इवेंट की थीम ब्लूमिंग डेल्स थी। आईएनआईएफडी ने पूरे जोश के साथ कोरियोग्राफी, कॉस्टयूम डिजाइनिंग और मॉडलिंग को प्रदर्शित किया। फ्रेशर्स और सीनियर्स ने मौजमस्ती की, डांस किया, फैशन शो किया और गाने गाये। 
24 स्टूडेंट्स जिन्होंने अपने परिधान न्यूयार्क फैशन वीक स्पिरिंग समर 2019 में प्रदर्शित कर  आईएनआईएफडी  जयपुर को ख्याति दिलाई उनको सम्मानित किया।





 सर्वदर्शी भरेल, हर्षिता गुप्ता, मेघा खण्डेलवाल, अंजलि शर्मा जिन्होनें अपने परिधान फैशन स्काउट के दौरान लंदन फैशन वीक 2018 में प्रदर्शित किये थे उनका संग्रह देखकर स्टूडेंट्स उत्साहित हुए। 

इस अवसर पर विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित की गई। प्रतिभागी विभिन्न श्रेणियों में चयनित किये गये — आईएनआईएफडी — मिस्टर एवं मिस फ्रेशर,आईएनआईएफडी — मिस्टर एवं मिस फोटोजैनिक,  आईएनआईएफडी — मिस्टर एवं मिस बेस्ट पर्सनेलिटी, मिस ब्यूटीफुल, बेस्ट कैट वॉक व बेस्ट इन कारपेट वॉक थीम पर। 

इस अवसर पर कमला पोद्दार ग्रुप की चेयरपर्सन कमला पोद्दार, कमला पोद्दार ग्रुप के डायरेक्टर अभिषेक पोद्दार ने स्टूडेंट्स के भावी भविष्य के लिये शुभकामनाएं दी और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की।

अयोध्या में राम मंदिर बनवाने के लिए तोगड़िया ने किया ऐलान

जयपुर। राम मंदिर बनवाने के मामले में अंतरराष्ट्रीय हिंदू परिषद के अध्यक्ष प्रवीण भाई तोगड़िया ने भी ऐलान कर दिया है। उन्होंने जयपुर में कहा है उनका एकमात्र मकसद राम मंदिर बनवाना है। इसके लिए वे 21 अक्टूबर को लखनऊ से अयोध्या के लिए पैदल कूच करेंगे। जयपुर स्थित पिंकसिटी प्रेस क्लब में मीडिया से बात करते हुए तोगड़िया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी आरोप लगाए।

 उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपनी विचारधारा बदल ली है। मोदी ने जनता के साथ भी वादाखिलाफी की है। ना तो किसानों को फायदा हुआ और ना ही सस्ता पेट्रोल और डीजल मिला है। इस दौरान तोगड़िया ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत द्वारा पिछले दिनों दिए गए बयान को खारिज करते हुए यह भी कहा कि संघ प्रमुख परिवर्तित नहीं, परावर्तित हो गए हैं। उन्होंने कहा कि पहले संघ कहता था कि हिंदी है, राष्ट्र है, लेकिन अब कह रहे हैं कि मुसलमान के बिना हिंदुत्व नहीं है। तोगड़िया ने कहा कि आरएसएस प्रमुख भागवत आज कह रहे हैं कि मुसलमानों के बिना हिंदुत्व नहीं हो सकता है, कभी यह न कह दें कि मुसलमान ही राष्ट्र है। उन्होंने कहा कि उन्हें पश्चाताप है इस बात का कि उन्होंने विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए लंबे समय तक ऐसे संगठन के लिए जीवन खराब कर लिया, जो योग्य ही नहीं है।

लखनऊ से अयोध्या के लिए निकाली जाने वाली यात्रा के बारे में उन्होंने कहा कि इस यात्रा में किसी तरह की हिंसा नहीं की जाएगी, बल्कि शांति और लोकतांत्रिक तरीके से यात्रा निकालेंगे। अयोध्या में राम मंदिर बनाने का संकल्प लेकर वे केवल अयोध्या राम मंदिर ही नहीं, बल्कि जिले के प्रत्येक गांव में जाएंगे। 

   प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोलते हुए तोगड़िया ने आरोप लगाया कि केंद्र में इनकी सरकार होने के बावजूद राम मंदिर का निर्माण नहीं कर पाए हैं। उन्होंने कहा कि बड़ी अजीब सी स्थिति है एससी-एसटी एक्ट का निर्णय संसद में करा रहे हैं और रामलला के मंदिर का निर्णय कोर्ट में करा रहे हैं। नरेंद्र मोदी समय के साथ बदल गए हैं। जो व्यक्ति कभी कट्टर हिंदुत्व की बात करता था, वह अब मस्जिदों में जाने लगा है। उन्होंने खुद के लिए कहा कि मैं कभी मस्जिद न तो गया हूं और न ही जाऊंगा।

‘स्मार्ट सिटी’ महज़ एक ‘मिथ्या नाम और नारा’ है

प्रख्यात वास्तुकार और नगर नियोजक क्रिस्टोफर बेननिंगर ने कहा कि सरकार को स्मार्ट सिटी के बजाय गरीब लोगों को गरिमापूर्ण रहन-सहन देने वाले शहरों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।


 प्रख्यात वास्तुकार एवं नगर नियोजक क्रिस्टोफर बेननिंगर ने  कहा कि ‘स्मार्ट सिटी’ महज़ एक ‘मिथ्या नाम और नारा’ है। सरकार को इसके बजाय गरीब लोगों को गरिमापूर्ण रहन-सहन देने वाले शहरों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

बेननिंगर ने नई दिल्ली में हुए साइरस झाबवाला स्मारक व्याख्यान के तीसरे संस्करण में कहा कि शहर को अपने सभी लोगों को मूलभूत सुविधाएं प्रदान करने वाला होना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘यदि आप किसी राज्य सरकार के नगर निगम अधिनियम को पढ़ेंगे तो आप पाएंगे कि यह सड़क, पेयजल, सीवेज प्रणाली, स्ट्रीट लाइट, फुटपाथ और कुछ अन्य चीज़ों के बारे में बातें करता है।

75 वर्षीय वास्तुकार बेननिंगर ने कहा, ‘कोई भी शहर जो अपने राज्य के नगरपालिका अधिनियम को लागू करता है और अपने लोगों को ये बुनियादी सुविधाएं प्रदान करता है, मेरे ख़्याल में वो स्मार्ट सिटी है। न कि ये वाहियात चीज़ें, जिसे हम प्रायोजित कर रहे हैं। स्मार्ट सिटी एक मिथ्या है और दुखद है इसमें हम सभी को शामिल किया गया है।

उन्होंने कहा कि विभिन्न मानदंडों के ज़रिये यह देखना आसान है कि पहले लोगों का रहन सहन क्या था और अब वे कैसे रह रहे हैं। उनके पास पेयजल, सीवेज प्रणाली जैसे मानदंड हो सकते हैं… इसे आर्थिक रूप से पिछड़े इलाकों के लिए भी मापा जा सकता है।

उन्होंने कहा कि आप यह माप सकते हैं कि तीन साल पहले की तुलना में किसी क्षेत्र के कुछ लोग या ज़्यादा लोगों के पास कैसा सीवर सिस्टम उपलब्ध है। आप लोगों के ज़िंदगी जीने के तौर-तरीकों से यह माप सकते हैं कि वे तब कैसे रहते थे और अब कैसे रह रहे हैं।

फुलब्राइट फेलोशिप पाने के बाद 1968 में भारत आए बेननिंगर ने तमाम परियोजनाओं पर काम किया जिसमें आईआईटी हैदराबाद, पुणे का कॉलेज आॅफ इंजीनियरिंग शामिल हैं।



उन्होंने देश के युवा वास्तुकारों को संबोधित करते हुए कहा कि उन लोगों को ‘भारत के लोगों के लिए’ एक शहर की योजना बनानी चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि दक्षिण दिल्ली, लुटियन दिल्ली और चंडीगढ़ के लिए बहुत कुछ किया जा चुका है। आप वास्तुकार हैं और आप प्रसिद्ध वास्तुकार बनने चाहते हैं, इसलिए आपको भारत के लोगों के लिए एक शहर की योजना बनानी चाहिए।

बेननिंगर ने कहा, ‘युवाओं को इस बात की जानकारी लेनी चाहिए कि इस देश में रहने वाले लोग कौन हैं और उन्हें किस तरह की योजना और वास्तुशिल्प की ज़रूरत है। विश्वास कीजिए अभी भी बहुत कुछ ऐसा है जिसे किया जाना बाकी है।

इस साल इस व्याख्यानमाला का शीर्षक ‘द स्टोरीज़ फ्रॉम माय जर्नी: यस्टरडे, टुडे और टुमारो’ था। व्याख्यानमाला में बेननिंगर ने एक वास्तुकार के रूप में अपने शुरुआती दिनों और वर्षों के अपने काम की जानकारी भी दी।

यह व्याख्यानमाला प्रख्यात वास्तुकार साइरस झाबवाला की याद में हर साल आयोजित की जाती है. साइरस ने दिल्ली स्थित पारसी धर्मशाला, भिवंडीवाला हॉल और डार-ए-मेहर जैसे भवनों को डिज़ाइन किया था।

इसके अलावा उन्होंने उत्तर भारत के कुछ बड़े विश्वविद्यालयों का डिज़ाइन तैयार करने के अलावा दिल्ली में होने वाले ट्रेड फेयर के लिए तमाम पेवेलियन तैयार किया था। बुकर पुरस्कार प्राप्त उपन्यासकार रुथ प्रवेर झाबवाला उनकी पत्नी थीं।

उनके उपन्यास ‘हीट एंड डस्ट’ के लिए साल 1975 में उन्हें बुकर पुरस्कार मिला था. इसके अलावा 1987 में ‘अ रूम विथ अ व्यू’ के लिए और 1992 में ‘हॉवर्ड्स एंड’ फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट अडॉप्टेड स्क्रीनप्ले का आॅस्कर अवार्ड मिला था।

जयपुर जिले में कुल 45 लाख 56 हजार 668 मतदाता

जयपुर। जिले में आगामी विधानसभा चुनावों के लिए सभी 19 विधानसभा क्षेत्रों की मतदाता सूचियों का प्रकाशन 28 सितंबर शुक्रवार को कर दिया गया. मतदाता सूची के अंतिम प्रकाशन में कुल 45 लाख 56 हजार 668 मतदाता हैं.

जिला कलक्टर एवं जिला निर्वाचन अधिकारी  सिद्धार्थ महाजन ने जिला कलक्ट्रेट सभागार में मीडियाकर्मियों से बातचीत की. महाजन ने बताया कि जिले में मतदाता सूची के अंतिम प्रकाशन में कुल 45 लाख 56 हजार 668 मतदाता हैं. इनमें से 23 लाख 95 हजार 746 पुरुष एवं 21 लाख 60 हजार 922 महिला मतदाता हैं. 

उन्होंने बताया कि जिले की सम्पूर्ण मतदाता सूची में प्रत्येक एक हजार पुरुषों की तुलना में 902 महिला मतदाता हैं. जिले में सर्विस मतदाताओं की संख्या 7196 है. पिछ्ले 2013 के विधानसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या 39 लाख 11 हजार 585 थी.

 सिद्धार्थ महाजन ने बताया कि जिले में विधानसभा चुनावों के लिए 4612 मतदान केन्द्र स्थापित किये गये हैं. इनमें से शहरी क्षेत्र में 2053 तथा ग्रामीण क्षेत्र में 2559 मतदान केन्द्र शामिल हैं.  महाजन ने बताया कि जिले में एक जनवरी 2018 की अर्हता के आधार पर 31 जुलाई  2018 को विधानसभा क्षेत्रों की मतदाता सूचियों के प्रारूप का प्रकाशन किया गया था. 

जयपुर जिले में कुल 45 लाख 87 हजार 030 मतदाता थे जो शुक्रवार को प्रकाशित सूची में 45 लाख 56 हजार 668 हो गये हैं. शुक्रवार को प्रकाशित अंतिम सूची में 30 हजार 362 मतदाताओं की कमी हुई है. महाजन ने बताया कि जिले में चलाए गए मतदाता सूचियों के द्वितीय विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण कार्यक्रम के दौरान 93 हजार 122 नये नाम जोड़े गए. जबकि आपत्तियों के आधार पर एक लाख 23 हजार 484 मतदाताओं के नाम हटाए गये हैं
विधानसभा क्षेत्रों के अनुसार मतदाताओं की संख्या-

जयपुर जिले के कोटपूतली विधानसभा में 2 लाख 05 हजार 881, विराट नगर विधानसभा में 2 लाख 7 हजार 789, शाहपुरा विधानसभा में 2 लाख 07 हजार 776 मतदाता हैं. वहीं चौमूं विधानसभा क्षेत्र में 2 लाख 19 हजार 705, फुलेरा विधानसभा में 2 लाख 38 हजार 854, दूदू विधानसभा क्षेत्र में 2 लाख 29 हजार 85, झोटवाड़ा विधानसभा क्षेत्र 3 लाख 56 हजार 39 और आमेर विधानसभा में 2 लाख 45 हजार 776 मतदाता हैं.

जमवारामगढ़ विधानसभा 2 लाख 4 हजार 753, हवामहल विधानसभा क्षेत्र में 2 लाख 31 हजार 8. विद्याधरनगर विधानसभा क्षेत्र में 3 लाख 18 हजार 483, सिविल लाइन विधानसभा में 2 लाख 35 हजार 78, किशनपोल विधानसभा क्षेत्र में एक लाख 96  मतदाता हैं. आदर्श नगर विधानसभा क्षेत्रमें  2 लाख 40 हजार 436, मालवीय नगर विधानसभा क्षेत्र में 2 लाख 12 हजार 151, सांगानेर विधानसभा क्षेत्र में 3 लाख 01 हजार 559, बगरू विधानसभा क्षेत्र में  2 लाख 93 बस्सी विधानसभा क्षेत्र में 2 लाख चाकसू विधानसभा क्षेत्र में 2 लाख 3 हजार 776 मतदाता हैं.

शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

इस बार सैनी कहां से चुनाव लड़ेंगे खुद सैनी को भी पूरा अंदाजा नहीं

ये है वसुंधरा का 'अर्जुन' जिसे कहीं से भी लड़ा दो जितेगा ही
जयपुर। प्रदेश में विधानसभा चुनाव की दुंदुभी बज चुकी है. ऐसे में सभी दलों के नेता महासमर में उतरने लगे हैं. ऊंट किस करवट बैठेगा ये तो चुनाव के नतीजे ही बताएंगे. लेकिन इन सब के बीच सरकार के कुछ मंत्री एंटी इनकंबेंसी के चलते सीट बदलकर चुनाव लड़ना चाहते है. तो वहीं एक कैबिनेट मंत्री ऐसा भी है जिसे न चाहते हुए भी सीट बदलकर हर बार चुनाव समर में उतरना पड़ता है.

दरअसल राजस्थान की राजनीति में  पूर्व उपराष्ट्रपति स्व. भैरों सिंह शेखावत के बाद भाजपा में एकमात्र ऐसा नेता है जो लगातार अपनी सीट बदलकर चुनाव लड़ता है. कृषि और पशुपालन मन्त्री प्रभुलाल सैनी 3 बार से लगातार भाजपा के विधायक हैं और इन तीन बार की विधायकी में से 2 बार सरकार में मंत्री भी रहे. लेकिन सैनी ने अपने तीनों ही चुनाव अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों से लड़ा. इस बार सैनी कहां से चुनाव लड़ेंगे इस बारे में खुद सैनी को भी पूरा अंदाजा नहीं है. यही कारण है कि प्रभु लाल सैनी इस सवाल के जबाब में कहते हैं कि प्रदेश में 200 विधानसभा सीट हैं और जिसमें पार्टी उन्हें टिकट देकर लड़वाना उचित समझेगी वो वहां से ही चुनाव मैदान में उतरेंगे

4 चुनाव, 3 में जीत, हर बार बदली सीट
वसुंधरा सरकार में कृषि पशुपालन मंत्री प्रभु लाल सैनी अब तक चार बार राज्य विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं. जिनमें से तीन बार उन्हें फतेह हासिल हुई है. इसमें भी सबसे खास बात यह रही कि वे तीनों ही चुनाव सीट बदल-बदल कर लड़े और तीनों ही बार उन्होंने कांग्रेस और अन्य दिग्गज नेताओं को पटखनी देकर विधानसभा में अपने जाने का रास्ता बनाया. प्रभु लाल सैनी ने अपने जीवन में विधानसभा का पहला चुनाव साल 1998 में टोंक जिले के उनियारा विधानसभा सीट से लड़ा. देवली उनियारा सैनी का पैतृक क्षेत्र है. हालांकि सैनी अपना पहला विधानसभा चुनाव हार गए.

साल 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में सैनी को फिर इसी सीट से भाजपा का टिकट मिल और इस बार सैनी ने जीत दर्ज कर राज्य विधानसभा में पहुंचने का रास्ता प्रशस्त किया. साल 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में प्रभुलाल सैनी को भाजपा ने हिंडोली से चुनाव लड़वाया. ये सीट सैनी के लिए नई होने के बावजूद प्रभुलाल सैनी ने यहां कांग्रेस के हरिमोहन शर्मा और पार्टी की खिलाफत में खड़े हुए गुर्जर नेता प्रहलाद गुंजल को परास्त कर जीत दर्ज की और पार्टी के विश्वास पर खरे उतरे. इसके बाद साल 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में एकबार फिर भाजपा ने प्रभुलाल सैनी की सीट बदल दी और इस बार उन्हें कोटा के अंता विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाया गया. इस चुनाव में सैनी के लिए यह क्षेत्र भी नया था और जातिगत समीकरण भी उनके साथ नहीं थे. इसके अलावा सैनी के सामने कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रमोद जैन भाया थे. लेकिन इस बार भी सैनी की किस्मत चमकी और उन्होंने जीत दर्ज की.


ऐसे में अब एक बार फिर चुनाव नजदीक है. लेकिन सैनी की दुविधा यह हैं कि इस बार पार्टी ने उनके लिए कौन सी सीट तय कर रखी है. यह खुद उन्हें भी नहीं पता. हालांकि सैनी की चाहत अपने पैतृक क्षेत्र से यानी देवली उनियारा से चुनाव लड़ने की है. लेकिन वहां भाजपा के मौजूदा विधायक राजेन्द्र गुर्जर हैं. मतलब इस साल के अंत में होने वाले चुनाव में सैनी को किस सीट से चुनाव मैदान में उतारने का मौका मिलता है इस पर अभी संशय के बादल छाए हुए हैं.

सचिन पायलट ने प्रदेश की मुख्यमंत्री से पूछा 36वाँ प्रश्न

जयपुर। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से शुक्रवार को 36वाँ प्रश्न पूछा है कि ‘‘किसानों के लिए कृषक सुरक्षा अधिनियम लागू करने और समर्थन मूल्य पर खरीद का स्थाई तंत्र विकसित करने के चुनावी वादे से मुकरने पर क्या आप गौरव महसूस करती हैं ?

पायलट ने कहा कि भाजपा ने किसानों को कृषक सुरक्षा अधिनियम लागू करने और किसानों की फसल को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने के लिए सरकार का स्थाई तंत्र विकसित करने का वादा घोषणा पत्र में किया था और इस मुद्दे पर किसानों का समर्थन प्राप्त किया था, परन्तु सत्ता में आने के बाद भाजपा सरकार ने किसानों के साथ वादाखिलाफी की और किसानों की आय, सुविधाएं और उनके जीवन स्तर को बढ़ाने के लिए कृषक सुरक्षा अधिनियम विधानसभा में नहीं लायी और इसके विपरीत भाजपा सरकार ने विधानसभा में राज्य के लिए एक ऐसा भूमि अधिग्रहण बिल तैयार किया जिसका विरोध करने पर भू-स्वामी को तीन महीने की सजा का प्रावधान था, कांग्रेस के भारी विरोध के कारण बिल को प्रवर समिति को भेजा गया परन्तु भाजपा के विधायकों ने मुख्यमंत्री के डर से कांग्रेस के विधायकों के उन सुझावों को नहीं माना जिसमें उल्लेखित किया गया था कि भूमि अधिग्रहण के समय किसानों की सहमति लेना और सामाजिक, आर्थिक प्रभाव का अध्ययन करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि यद्यपि विधानसभा के आखिरी सत्र की समाप्ति के बाद उस बिल का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता लेकिन भाजपा सरकार ने अहंकार और सामंती सोच के कारण उस बिल को काले कानून की तर्ज पर वापस नहीं लिया, जो भाजपा सरकार की किसान विरोधी सोच का परिचायक है।
लेकिन मुख्यमंत्री और उनके मंत्री किसानों से बेखबर अपने चुनावी दौरों व यात्राओं में मस्त है। उन्होंने कहा कि क्या किसान एवं खेती की दुर्दशा पर मुख्यमंत्री गौरव महसूस करती है। 

राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर अंतिम मतदाता सूची जारी, 31 हजार फर्जी वोटर बाहर

4 करोड़ 74 लाख से ज्यादा मतदाता करेंगे मताधिकार का प्रयोग, नाम जुड़ाने में महिलाएं आगे
आनंद कुमार, मुख्य निर्वाचन अधिकारी
जयपुर. आगामी विधानसभा चुनाव के लिए राज्य में मतदाता सूचियों का अंतिम प्रकाशन शुक्रवार को किया गया. इसमें सबसे ज्यादा खास बात यह रही कि 31 जुलाई को जारी की गई मतदाता सूची में से 31,032 नाम घटे हैं. राजस्थान में ऐसा पहली बार हुआ है कि अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित होने के समय वोटर्स घटे हैं.

दरअसल, फर्जी वोटर्स को लेकर कांग्रेस के आरोपों के बाद राज्य में पहली बार मतदाता सूची में 31 हजार से ज्यादा वोटर्स घटे हैं. राज्य में अब कुल 4 करोड़ 74 लाख 79 हजार 402 मतदाता हैं. इनमें 2 करोड़ 47 लाख 07 हजार 755 पुरुष और 2 करोड़ 27लाख 18 हजार 647 महिला मतदाता हैं. जबकि सर्विस वोटर्स की संख्या 1 लाख 13 हजार 642 है. राज्य में सबसे ज्यादा मतदाता जयपुर में 45 लाख 56 हजार 667 और सबसे कम जैसलमेर में 4 लाख 18 हजार 912 मतदाता हैं


संक्षिप्त पुनरीक्षण के दौरान 3,30,830 पुरुष और 4,29,485 महिलाओं सहित कुल 7, 60, 288 मतदाताओं के नाम जुड़वाने के लिए आवेदन स्वीकार किए. वहीं, पड़ताल और भौतिक सत्यापन के बाद 7,91,320 नाम हटाए गए. इसमें से 3,91,805  पुरुष और 3,99,515 महिलाओं के नाम मतदाता सूची से हटाए गए हैं. प्रदेश में फोटो युक्त मतदाता पहचान पत्र धारक 4 करोड़ 74 लाख 75 हजार 110 यानी 99.99% हैं.


प्रदेश में कुल मतदान केंद्र 51,796
प्रदेश में कुल 51,796 मतदान केंद्र हैं, इनमें 9,490 शहरी और 4,2306 ग्रामीण इलाकों में स्थित हैं. वहीं, राज्य में 4. 22 फीसदी आबादी युवाओं युवाओं की है, जिनमें से  2.58% यानी 19,84,269 मतदाता पंजीकृत हैं.

जिलेवार मतदाताओं की सूची
अजमेर - 18,50,866  अलवर - 24,45,075 बांसवाड़ा - 12,26,44 बारां - 8,70,049     बाड़मेर - 16,55,960   भरतपुर - 16,88,403 भीलवाड़ा - 17,07,283 बीकानेर - 15,61,294  बूंदी - 7,79,485 चित्तौड़गढ़ - 12,59,338 चूरू - 14,57,624   दौसा - 10,79,504      धौलपुर - 79,2,656   डूंगरपुर -  9, 24, 296 गंगानगर - 13,50,022
हनुमानगढ़ - 12,61,062 जयपुर -  45,56,667 जैसलमेर - 41, 8,912 जालोर - 12,96,68   झालावाड़ -  98,8,049  झुंझुनूं - 16,35,194 जोधपुर - 24, 58, 616 करौली - 98,5,384   कोटा - 13,48,842
नागौर - 23,64,849   पाली - 16,01,826   प्रतापगढ़ - 4,81,079 राजसमंद - 8,50,313 सवाईमाधोपुर - 9,09,984 सीकर - 19,79,209 सिरोही -  7,15,792  टोंक - 9,75,846     उदयपुर - 19,92,805

यहां पर बढ़ी वोटरों की संख्या
जायल, तिजारा, निम्बाहेड़ा, अजमेर उत्तर और लूणकरणसर विधानसभा क्षेत्रों में वोटर्स ज्यादा हुए हैं,

यहां पर कम हुई वोटरों की संख्या
किशनपोल, बीकानेर पश्चिम, उदयपुर, उदयपुर ग्रामीण और गढ़ी विधानसभा क्षेत्रों में वोटरों की संख्या कम हुई है. 

सीईओ आनंद कुमार ने शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि राजनीतिक दलों को इस सूची का परीक्षण कर्क स्थानीय और राज्यस्तर पर शिकायत करने और बूथ लेवल कार्यकर्ता लगाकर परीक्षण करने की अपील की है. उन्होंने बताया कि 2 से 4 अक्टूबर को ग्रामसभाएं और वार्ड सभाएं आयोजित होंगी, जहां नाम जोड़ने और हटाने के फॉर्म भरवाए जाएंगे. वहीं, 7 अक्टूबर को सुबह  9 से 6 बजे तक बीएलओ बूथ्स पर रहकर सूची संबंधी जानकारी देंगे और अन्य त्रुटियों को देखेंगे. उन्होंने बताया कि सूची इमेज पीडीएफ के तौर पर पहली बार प्रकाशित की गई हैं, जो कि भारत निर्वाचन आयोग के जनवरी में दिए निर्देशों के अनुसार किया है.

सबरीमाला मंदिर : बेंच में शामिल एकमात्र महिला जज बहुमत से असहमत

सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल पुराने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक ठहराया, कहा ये मनमाना कानून था.

 सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक ठहराया है, जिसके तहत व्यभिचार (एडल्ट्री) आपराधिक था.

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पीठ ने सर्वसम्मति से गुरुवार को कहा कि व्यभिचार से संबंधित 158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक करार हुए इस दंडात्मक प्रावधान को निरस्त कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह महिलाओं की व्यक्तिकता को ठेस पहुंचाता है और इस प्रावधान ने महिलाओं को ‘पतियों की संपत्ति’ बना दिया था. शीर्ष अदालत ने इस धारा को स्पष्ट रूप से मनमाना, पुरातनकालीन और समानता के अधिकार तथा महिलाओं के लिए समान अवसर के अधिकार का उल्लंघन करने वाला बताया.

व्यभिचार को प्राचीन अवशेष करार देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि मानव जीवन के सम्मानजनक अस्तित्व के लिए स्वायत्तता स्वाभाविक है और धारा 497 महिलाओं को अपनी पसंद से वंचित करती है.

इस मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा, ‘कानून का कोई ऐसा प्रावधान जो कि किसी व्यक्ति के सम्मान और महिलाओं की समानता को प्रभावित करता है तो ये संविधान के लिए सही नहीं है. अब समय आ गया है कि हम ये कहें कि पति पत्नी का मालिक नहीं होता है.’

प्रधान न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा कि व्यभिचार आपराधिक कृत्य नहीं होना चाहिए लेकिन इसे अभी भी नैतिक रूप से गलत माना जाएगा और इसे विवाह ख़त्म करने तथा तलाक़ लेने का आधार माना जाएगा. घरों को तोड़ने के लिए कोई सामाजिक लाइसेंस नहीं मिल सकता. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि धारा 497 स्पष्ट रूप से मनमाना कानून है.

भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के अनुसार, यदि कोई पुरुष यह जानते हुए भी कि महिला किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी है और उस व्यक्ति की सहमति या मिलीभगत के बगैर ही महिला के साथ यौन संबंध बनाने के अपराध का दोषी होगा. यह बलात्कार के अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा. इस अपराध के लिए पुरुष को पांच साल की क़ैद या जुर्माना अथवा दोनों की सज़ा का प्रावधान था.

संविधान पीठ ने जोसेफ शाइन की याचिका पर यह फैसला सुनाया. यह याचिका किसी विवाहित महिला से विवाहेत्तर यौन संबंध को अपराध मानने और सिर्फ पुरुष को ही दंडित करने के प्रावधान के ख़िलाफ़ दायर की गई थी.

याचिका में तर्क दिया गया था कि कानून तो लैंगिक दृष्टि से तटस्थ होता है लेकिन धारा 497 का प्रावधान पुरुषों के साथ भेदभाव करता है और इससे संविधान के अनुच्छेद 14 (समता के अधिकार), 15 (धर्म, जाति, लिंग, भाषा अथवा जन्म स्थल के आधार पर विभेद नहीं) और अनुच्छेद 21 (दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन होता है.

कोर्ट ने इस कानून को पुरातन करार देते हुए कहा कि ये संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीने का अधिकार) का उल्लंघन करता है. कोर्ट ने कहा कि व्यभिचार तलाक का आधार हो सकता है, लेकिन इसे आपराधिक कृत्य नहीं ठहराया जा सकता है.

अपनी और न्यायमूर्ति खानविलकर की ओर से फैसला लिखने वाले प्रधान न्यायाधीश मिश्रा ने कहा कि व्यभिचार महिला की व्यक्तिकता को ठेस पहुंचाती है और व्यभिचार चीन, जापान तथा ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अपराध नहीं है.

उन्होंने कहा, संभव है कि व्यभिचार खराब शादी का कारण नहीं हो, बल्कि संभव है कि शादी में असंतोष होने का नतीजा हो.

जस्टिस मिश्रा ने कहा कि महिला के साथ असमान व्यवहार संविधान के कोप को आमंत्रित करता है. उन्होंने कहा कि समानता संविधान का शासकीय मानदंड है.

जस्टिस मिश्रा और जस्टिस खानविलकर ने अपने फैसले में कहा, ‘विवाह के ख़िलाफ़ अपराध से जुड़ी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 198 को हम असंवैधानिक घोषित करते हैं.’

न्यायमूर्ति नरिमन ने धारा 497 को पुरातनकालीन बताते हुए प्रधान न्यायाधीश और जस्टिस खानविलकर के फैसले से सहमति जतायी. उन्होंने कहा कि दंडात्मक प्रावधान समानता का अधिकार और महिलाओं के लिए समान अवसर के अधिकार का उल्लंघन है.

वहीं न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि धारा 497 महिला के सम्मान को नष्ट करती है और महिलाओं को गरिमा से वंचित करती है.

पीठ में शामिल एकमात्र महिला न्यायाधीश न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा ने अपने फैसले में कहा कि धारा 497 संविधान प्रदत्त मूल अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है और इस प्रावधान को बनाए रखने के पक्ष में कोई तर्क नहीं है.

इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने तीन बार व्यभिचार के खिलाफ कानून को बरकरार रखा था. पिछले साल, यह कहा गया था कि व्यभिचार पर कानून एक महिला को अपने पति के अधीनस्थ के रूप में मानता है और अब यह समय आ गया है कि समाज यह माने कि एक महिला हर मामले में पुरुष के बराबर होती है 

इस मौके पर राष्ट्रीय महिला आयोग की प्रमुख रेखा शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया और कहा, ‘ये एक पुरातन कानून था, जिसे बहुत पहले खत्म कर दिया जाना चाहिए था. ये अंग्रेजों के जमाने का कानून था. यहां तक अंग्रेजों ने भी अपने यहां ये कानून खत्म कर दिया था. लेकिन हम अभी इसे बनाए हुए थे.’

व्यभिचार क़ानून को असंवैधानिक ठहराने का पूरा घटनाक्रम
10 अक्टूबर, 2017: केरल के एनआरआई जोसेफ शाइन ने न्यायालय में याचिका दायर कर आईपीसी की धारा 497 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी. याचिका में शाइन ने कहा कि पहली नज़र में धारा 497 असंवैधानिक है क्योंकि वह पुरुषों और महिलाओं में भेदभाव करता है तथा संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करता है.

08 दिसंबर, 2017: न्यायालय ने व्यभिचार से जुड़े दंडात्मक प्रावधानों की संवैधानिक वैधता की समीक्षा करने पर हामी भरी.

05 जनवरी, 2018: न्यायालय ने व्यभिचार से जुड़े दंडात्मक क़ानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजा.

11 जुलाई, 2018: केंद्र ने न्यायालय से कहा कि धारा 497 को निरस्त करने से वैवाहित संस्था नष्ट हो जाएगी.

01 अगस्त, 2018: संविधान पीठ ने मामले की सुनवाई शुरू की.

02 अगस्त, 2018: न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक पवित्रता एक मुद्दा है लेकिन व्यभिचार के लिए दंडात्मक प्रावधान अंतत: संविधान प्रदत्त समानता के अधिकार का उल्लंघन है.

08 अगस्त, 2018: केंद्र ने व्यभिचार के संबंध में दंडात्मक क़ानून बनाए रखने का समर्थन किया, कहा कि यह सामाजिक तौर पर गलत है और इससे जीवनसाथी, बच्चे और परिवार मानसिक तथा शारीरिक रूप से प्रताड़ित होते हैं.

08 अगस्त, 2018: न्यायालय ने छह दिन तक चली सुनवाई के बाद व्यभिचार संबंधी दंडात्मक प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा.

27 सितंबर, 2018: न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक बताते हुए इस दंडात्मक प्रावधान को निरस्त किया.

पायलट ने प्रदेश की मुख्यमंत्री से पूछा 35वां सवाल

जयपुर। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से आज 35वां प्रश्न पूछा है कि ‘‘रिसर्जेंट राजस्थान के दौरान किए गए निवेश के दावों का 5 प्रतिशत भी खर्च नहीं होने पर क्या आप गौरव महसूस करती हैं? 

पायलट ने कहा कि तीन वर्ष पूर्व भाजपा सरकार ने सैकड़ों करोड़ रुपए का अपव्यय करके रिसर्जेंट राजस्थान का आयोजन कर प्रदेश की जनता को बड़े-बड़े सपने दिखाए थे और उनके माध्यम से लाखों करोड़ रुपए का निवेश आने और प्रदेश की कायापलट होने का दावा किया था, इसके साथ ही यह भी कहा गया था कि लाखों युवाओं को इससे स्थायी रोजगार मिलेगा। उन्होंने कहा कि परंतु पिछले तीन सालों की रिजर्सेंट राजस्थान में किए गए एमओयू की रिपोर्ट देखी जाए तो वह घोर निराशाजनक साबित हुई है, जो भाजपा सरकार द्वारा जनता को भ्रमित करने का जीता-जागता उदाहरण है। उन्होंने कहा कि रिसर्जेंट राजस्थान में 3.38 लाख करोड़ के निवेश प्रस्तावों के साथ 470 एमओयू किए गए, जिनमें से 200 प्रस्ताव ड्रॉप हो चुके हैं, इसी प्रकार लगभग 51 प्रस्ताव निवेशकों एवं सरकार के मध्य लम्बित हैं और 25 प्रस्ताव कोर्ट केस व अन्य कारणों से लम्बित हैं।

उन्होंने कहा कि तीन सालों में 278 निवेश प्रस्ताव तो इस प्रकार से रद्द ही हो गए हैं, जबकि बचे हुए 192 निवेश प्रस्तावों में तीन साल में मात्र 10,125 करोड़ रुपए का व्यय हुआ है, जो रिसर्जेंट राजस्थान में निवेश राशि के दावों का तीन प्रतिशत है तथा 192 निवेश प्रस्तावों की राशि का मात्र 5 प्रतिशत है। उन्होंने कहा कि देशभर के अन्य राज्यों में भी रिसर्जेंट राजस्थान जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं लेकिन शायद ही इतनी बड़ी विफलता निवेश आमंत्रित करने के लिए किए गए कार्यक्रम में किसी अन्य राज्य को मिली हो। उन्होंने कहा कि प्रदेश के निवेश में पिछड़ने के पीछे भाजपा सरकार में बढ़ते भ्रष्टाचार व अपराध सबसे प्रमुख कारण हैं, जो निवेश के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करने में सबसे बड़ी बाधा साबित हुए हैं। उन्होंने कहा कि सरकार के स्तर पर निवेशकों के साथ समन्वय की कमी भी इसका एक प्रमुख कारण है। 

 पायलट ने कहा कि प्रदेश में हुआ निवेश पूरे देश में हुए विदेशी निवेश का 0.4 प्रतिशत है। उन्होंने कहा कि प्रदेश की भाजपा सरकार की नीतियों के कारण राज्य को निवेश से वंचित रहना पड़ रहा है, जिसके कारण उत्पादन क्षमता कम हो गई है और आधारभूत संरचनाओं के निर्माण की गति भी धीमी हो गई है।  निवेश आमंत्रित करने में पूरी तरह से विफल रहने पर क्या मुख्यमंत्री गौरव महसूस करती हैं।

गुरुवार, 27 सितंबर 2018

कलाकार ही कला को कर रहे कलंकित

विश्व प्रस़िद्ध गुलाबी नगरी जयपुर के कलाकारों द्वारा विश्व में अपनी पहचान बनाई गई, लेकिन आज कलाकार ही कला को कलंकित कर रहे हैं, कलाकारों द्वारा ही बनाया गया संगठन ताज कलाकारों को संगठित न कर गुण्डों को संगठित कर रहा है, या हम कह सकते हैं कि ताज संगठन में कला के माध्यम से अपराध करने की कला सिखाई जाती है ताज संगठन के बैनर तले ।
1993 में खलनायक फिल्म का प्रदर्शन हुआ था, खलनायक के रूप में भूमिका निभाने वाले संजय दत्त की कला को लोगों ने जरूर सराहा था लेकिन वास्तविक खलनायक के रूप में जनता ने संजय दत्त को नकार दिया था और उन्हें जेल भी जाना पडा था।                                                


जयपुर  । जगजाहिर सम्पादक अरूण कुमार, विशेष आलेख । थियेटर आर्टिस्ट एसोसियेशन ऑफ जयपुर (ताज) के कुल 10 में से 8 संस्थापक सदस्यों ने पूर्ण बहुमत से रजिस्ट्रार राजस्थान नॉन ट्रेडिंग कम्पनीज, राजस्थान, जयपुर को ताज का रजिस्ट्रेशन रद्द करने का पत्र देकर एवं तत्पश्चात प्रेस क्लब, जयपुर में पत्रकार वार्ता आयोजित कर ताज के वर्तमान पदाधिकारियों एवं पिछले तीन साल से इसके अन्य पदाधिकारियों पर कोहराम मचाने का आरोप लगाते हुए महिला रंगकर्मियों के शारीरिक शोषण तक  के गंभीर आरोप लगा डाले और बताया कि वर्तमान में ताज  के पदाधिकारी हिमांशु झांकल, मुकेश सोनी, के.के.कोहली हैं।

संस्थापक सदस्यों ने यह भी आरोप लगाया कि ताज ​के पदाधिकारी राजस्थान सरकार से मिलने वाले अनुदान में विभाग के अधिकृत दलाल बन चुके हैं, जो संबंधित अधिकारियों व संबंधित मंत्री तक को दबाव में लेने की कोशिश करते हैं व मनपसंद न्यूज नहीं लगाने पर पत्रकारों की सम्पादक तक से शिकायत करते हैं इस तरह मीडिया को भी दबाव में लेने की कोशिश करते हैं। 19 अगस्त,2018 को पूर्व प्रधानमंत्री व भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के कारण 7 दिन के राजकीय शोक होने के बावजूद रवीन्द्रमंच के मिनी थियेटर में बिना प्रबंधक सोविला माथुर की मंजूरी के फर्जी चुनाव के जरिये वापस से पदाधिकारियों के पद हथिया लिये, मालाएं पहनकर खुशियां मनाई गई, इस देशद्रोही कृत्य के लिये प्रबंधक सोविला माथुर कतई इजाजत नहीं दे सकती, जबकि उन्होंने स्वंय ही शोक के दौरान पहले से तयशुदा कार्यक्रमों को निरस्त करवाया था।

जब पत्रकार राजेन्द्र सिंह गहलोत ने इस पर आर्टिकल लिखा था 'ताज मिली मिट्टी में, जिसमें उन्होने लिखा था कि असल मुद्दा देह शोषण के आरोप का है, अगर आरोप सही लगाया है तो लड़की को सामने लाकर एफआईआर दर्ज  करवाओ, जिससे बाकी लड़कियों की जिंदगी भी बर्बाद होने से बच सके, और अगर आरोप गलत है तो 'ताज के अध्यक्ष हिमांशु झांकल ने आरोप लगाने वालों पर कानूनी कार्यवाही की बात की है तो उन्हें तुरन्त कार्यवाही करनी चाहिये, उनके द्वारा कानूनी कार्यवाही नहीं करने पर वह अपने आपको स्वंय ही कठघरे में खड़ा कर लेंगे।

 हिमांशु झांकल को यह भी साबित करना होगा कि यह आरोप गलत है कि हमने कला एवं संस्कृति विभाग, राजस्थान सरकार, जयपुर के डिप्टी सेक्रेटरी पर लड़की मांगने का आरोप लगाकर ट्रांसफर करवाया, दूसरी तरफ यदि आरोप सही है तो हिमांशु झांकल को बताना पड़ेगा कि उन्होंने आज तक यह बात मीडिया को क्यों नहीं बताई ।

यह सब करने के बजाय 'ताज' के पदाधिकारी रहे व्यक्तियों द्वारा सोशल मीडिया पर पत्रकार को बिका हुआ बताया गया एवं एक अल्पसंख्यक समुदाय के पदाधिकारी रहे व्यक्ति द्वारा अपशब्दों का प्रयोग करते हुए सोशल मीडिया पर एक पोस्ट पर लिखा 'निकम्मे लोग, ताज जिन्दाबाद, हिमांशु झांकल जिन्दाबाद, हाथी के पीछे कुत्ते भौंकते हैं .. .. .. .दूसरी पोस्ट में लिखा 'मेरे होते हुए हिमांशु सर का कोई कुछ नहीं कर सकता, टांगें काट दूंगा, लो स्क्रीन शॉट खुलकर बोल रहा हूं। दोनो पोस्ट पर नाम असलम कुरैशी, मोबाईल नंबर 9351796622 दर्ज है। दूसरी पोस्ट में लिखा है 'बहुत-बहुत धन्यवाद असलम भाई, मैं तो खुद आपके रोल से भयभीत हो गया था, आप भी कमाल के कलाकार हैं, कभी किसी की टांग काट देते हो, और कभी पिस्तौल, ये आपका दोष नहीं है, दरअसल आपने दास्तान-ए-जुर्म के एपिसोड कुछ ज्यादा ही किये हैं।' इस पोस्ट पर नाम रमन पारीक और मोबाईल नम्बर 9782119797 दर्ज है  । 

इस तरह एक बात समझ में आई कि ये रंगकर्मियों की बातचीत नहीं है, यह तो अपराधियों की भाषा है, जो पदाधिकारी सोशल मीडिया पर 'टांगें काट दूंगा, लो स्क्रीन शॉट खुलकर बोल रहा  हूं' और उनके मित्र भयभीत होकर कहते हैं कि 'बहुत-बहुत धन्यवाद असलम भाई, मैं तो खुद आपके रोल से भयभीत हो गया था, आप भी कमाल के कलाकार हैं, कभी किसी की टांग काट देते हो, और कभी पिस्तौल, ये आपका दोष नहीं है, दरअसल आपने दास्तान-ए-जुर्म के एपिसोड कुछ ज्यादा ही किये हैं।' तो यह सहज ही कल्पना की जा सकती है कि वह लड़कियां जो इन लोगों के चंगुल में फंस चुकी है, जिनके देहशोषण के आरोप ताज के संस्थापक सदस्यों ने लगाये हैं, वह खुलकर सामने कैसे आयेगी, क्या पता उनको कितना भयभीत कर रखा हो कि सामने आई तो तुम्हारी और तुम्हारे परिवारजनों की टांगे काट दी जायेगी। विश्वस्त सूत्रों से पता चला कि यह अल्पसंख्यक समुदाय के ताज के पदाधिकारी रहे व्यक्ति किसी महिला को सोशल मीडिया पर परेशान करने के आरोप में पूर्व में भी मोतीडूंगरी थाना, जयपुर में तलब किये जा चुके हैं, जहाँ पर रवीन्द्र मंच की उस महिला ने इनको जमकर कस-कसकर चांटे मारे, इन्होंने रिरियाते हुए माफी मांगी, ताज के अध्यक्ष हिमांशु झांकल और एक वरिष्ठ थाने जाकर इनको छुडाकर लाये । 

तो सवाल यह है कि क्या ताज अपराधियों का गढ़ बन चुकी है कि जो भी ताज के खिलाफ या हिमांशु झांकल के खिलाफ बोलेगा उसकी टांगें काट दी जायेगी, और जब वरिष्ठ इनको थाने से छुडाकर ला सकते हैं तो क्या ताज के संरक्षक ताज के इन पदाधिकारियों को संरक्षा नहीं देंगे, क्योंकि ताज के पंजीकरण के रद्द होने के साथ ही उनका संरक्षक का पद भी जाता रहेगा, दोनो ही पक्ष इस बात को नहीं समझ रहे कि दोनो पक्ष सिर्फ मोहरे हैं, ताज की सत्ता किसी के पास रहे, आयाराम के पास, या गयाराम के  पास, ताज के संरक्षकों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, वह तो दोनो ही स्थिति में संरक्षक रहेंगे, वह अपनी सेवाएं देंगे भी और बदले में इन लोगों से सेवाएं लेंगे भी, तो क्या इतनी आसानी से वह ताज का पंजीकरण रद़्द होने देंगे, वह परदे के पीछे से अपने पाले हुए सोशल मीडिया पर सक्रिय सरकारी व गैरसरकारी रंगकर्मी बने गुर्गे लगाकर किसी भी तरह का जोड़-तोड़ बिठाकर यह चाहेंगे कि यह चुनाव रद्द हो जायें, लेकिन ताज का पंजीकरण रद्द न हो, क्योंकि ताज एक संगठन है, जिसका इस्तेमाल करके वह सत्ता से अपना मनचाहा काम करवा सकते हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर सक्रिय उनके सरकारी गुर्गे यह नहीं समझ रहे कि अपराधियों की सोशल मीडिया पर पैरवी करना भी अपराध है और वह सहअभियुक्त हो सकते है और अपनी सरकारी सेवा को खो भी सकते है और उस वक्त उनका साथ देने वाला कोई नहीं होगा। 


दूसरी बात कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक रूप से सोशल मीडिया पर ऐसा करने की हिम्मत तभी कर सकता है जब उसके पीछे उनको बचाने के लिये इन संरक्षकों के अलावा भी और हिंसक आका मौजूद हों, निश्चित ही वह अपराधी तत्व होंगे, हिस्ट्रीशीटर होंगे या अपराध जगत के सरगना, सवाल यह भी है कि वह कहाँ बैॅठे हैं, देश में, या दुश्मन देश में, या दुबई में, सच कुछ भी हो सकता है, जांच एजेंसियों को सर्तकता की जरूरत है। हो सकता है कि आज का पिद्दी न पिद्दी का शोरबा कल का कसाब बन जाये मैं यह तो नहीं कहूंगा, क्योंकि यह जाँच का विषय है, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि ताज के इन पदाधिकारियों द्वारा न जाने किन-किनको टांगे काट देने या जान से मारने की धमकी देकर डराया जा रहा होगा, सरकार को तुरन्त ताज को रद़्द करने की सामान्य प्रक्रिया न अपनाकर विशेषाधिकारों का प्रयोग करते हुए ताज का पंजीकरण तुरन्त रद्द कर देना चाहिये, हालांकि सरकार पर इसके संरक्षकों द्वारा परदे के पीछे से दबाव भी बहुत पडेंगे लेकिन सरकार को यह करना ही चाहिये क्योंकि अब ताज बन चुकी है दुश्मन देश के पाले हुए अपराधियों का गढ़ । 


इस सारी लड़ाई में रवीन्द्र मंच प्रबंधक सोविला माथुर को सावचेत रहने की आवश्यकता है क्योंकि जिसने अपनी कूटनीति के जरिये रवीन्द्र मंच के 4 कर्मचारियों का अपने पद से पदच्युत करवाया, कहीं अब उसका अगला निशाना प्रबंधक सोविला माथुर तो नहीं, क्योंकि हो सकता है कि दो बंदरों की लड़ाई में मौकेे की ताक में बैठी बिल्ली इसका फायदा उठा ले जाये और हिमांशु झांकल को भी स्वंय ही विधिवत तरीके से ताज का रजिस्ट्रेशन रद्द करवा देना चाहिये, उनके ऐसा करते ही परदे के पीछे काम कर रहे कई दिग्गजों के जोड़-बाकी-गुणा-भाग का पूरा गणित बिगड़ जायेगा, और हिमांशु झांकल अपने आपको बेदाग भी साबित कर पायेंगे कि अगर वह गलत होते तो स्वंय ही ताज का पंजीकरण रद्द नहीं कराते ।

जरूरी है चुनावी जागरूकता

आपराधिक मामलों में फंसे नेताओं के चुनाव लड़ने पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे संसद के विवेक पर छोड़ दिया है. अब समस्या यह है कि क्या संसद खुद कोई ऐसा कानून बनायेगी, जिससे कि संसद को दागदार छवि वाले नेताओं से मुक्त बनाया जा सके? क्योंकि, आज एक भी ऐसी पार्टी नहीं है, जिसमें ऐसे नेता न हों, जिनके खिलाफ कोई गंभीर आपराधिक मामले न हो. इस फैसले के मद्देनजर कुछ बातें अहम हैं, जिन्हें समझना जरूरी है. पहली बात तो यह है कि 'पीपुल्स रिप्रजेंटेशन एक्ट' में चुनाव लड़ने के लिए क्वालिफिकेशन और डिसक्वालिफिकेशन, दोनों से संबंधित प्रावधान हैं. 

लिली थामस के एक फैसले में यह बात कही गयी थी कि जब किसी व्यक्ति पर आरोप साबित हो जाये, तो वह चुनाव नहीं लड़ सकेगा. यह अरसा पहले की बात है. यही वजह है कि चारा मामले में फंसे लालू प्रसाद यादव को चुनाव लड़ने से वंचित कर दिया गया था. 

अब सुप्रीम कोर्ट का यह कहना है कि संसद को कानून बनाना चाहिए, ताकि राजनीति में अपराधी व्यक्तियों का आगमन न होने पाये. लेकिन, अगर कानून बना देने से राजनीतिक या चुनावी प्रक्रिया साफ हो जाती, तो यह राजनीति बहुत पहले स्वच्छ हो गयी होती. 

एक कानून तो है ही कि संसदीय चुनाव में एक प्रत्याशी 75 लाख रुपये खर्च कर सकता है, लेकिन इससे कहीं ज्यादा ही खर्च होता है. इससे यह बात साफ है कि सिर्फ कानून बना देने से किसी समस्या का हल नहीं हो सकता है. कानून तो यह भी कहता है कि आदमी तब तक निर्दोष होता है, जब तक उस पर अपराध सिद्ध न हो जाये और जब तक वह निर्दोष है, तब तक तो वह चुनाव लड़ ही सकता है. 

ऐसे में यही लगता है कि अगर संसद कोई ऐसा कानून बनाती भी है, जिसमें किसी पर कोई आरोप होने पर वह चुनाव लड़ने से वंचित हो सकता है, तो इससे होगा यह कि चुनाव से पहले ही दूसरी पार्टियों के प्रत्याशियों पर कोई नेता केस करके उसे फंसा सकता है, ताकि वे चुनाव न लड़ सकें. यही बुनियादी दिक्कत है, जिसे समझने की जरूरत है. 

अगर हमें अपनी राजनीति में अच्छे लोगों को लाना है, तो सिर्फ कानून बनाना ही काफी नहीं है. ऐसी बहुत-सी बुनियादी बातें हैं, जिन्हें समझने की जरूरत है. सबसे पहले हमें चुनाव सुधार के बारे में सोचना होगा और देखना होगा कि हम किस तरह से चुनावी सुधार करें, जिससे कि उसमें कोई लूप होल न नजर आये.

जब तक चुनाव में मनी-मसल (पैसा और पावर) का मसला बना रहेगा, तब तक चुनाव सुधार हो ही नहीं सकता. जिस दिन मनी-मसल का मसला खत्म हो जायेगा, उस दिन एक ईमानदार व्यक्ति भी चुनाव लड़ सकेगा और वह दिन हमारे लोकतंत्र के लिए बहुत ही शुभ होगा. 

देश की जनता अपने नेताओं को इसलिए वोट देती है, ताकि वे नेता उनके लिए काम कर सकें. यानी सड़क-बिजली-पानी से लेकर तमाम जमीनी कामों और जरूरतों को जनता तक मुहैया करा सकें. यही सबसे बड़ी समस्या है जागरूकता न होने की. हमें यह बात समझनी होगी कि हमारे जनप्रतिनिधियों का काम जनता का प्रतिनिधित्व करना तो है, लेकिन अच्छे कानून लाकर और संसद एवं विधानसभाओं में बजट पास करके ही प्रतिनिधित्व करना है. 

संसद सदस्यों या विधानसभा सदस्यों का काम जमीनी काम करवाना नहीं है, बल्कि यह काम सरकार का है. हां, उस सरकार में भले कुछ जनप्रतिनिधि हो सकते हैं. जनता जिस दिन यह बात समझ जायेगी, उस दिन वह वोट बैंक नहीं बनेगी और न ही वह किसी बाहुबली को वोट देगी. इस जागरूकता से ही जनता द्वारा विधायकों या सांसदों के चुनाव में बदलाव आयेगा.

फिलहाल जो चुनावी प्रक्रिया है, उसमें सिर्फ क्वालिफिकेशन या डिसक्वालिफिकेशन से काम नहीं चलेगा. इस प्रक्रिया को इको-कैंपेन बनाना होगा. 

मसलन कि प्रचार-प्रसार का तरीका ठीक करना होगा. दूसरी बात यह कि लोगों को यह बताया जाना चाहिए कि वे लोगों को चुनते ही क्यों हैं? वहीं, पार्टियों पर भी यह दबाव होना चाहिए कि वे खराब छवि के लोगों को टिकट ही न दें.हमारी शिक्षा प्रणाली यह नहीं सिखाती है कि हम संसद और विधानसभा सदस्यों को क्यों चुनते हैं. यह जागरूकता का विषय है. सिर्फ यही प्रचार किया जाता है कि वोट देना जनता का अधिकार है और जनता को लगता है कि उसका अधिकार यही है कि वह पांच साल में सिर्फ एक दिन या एक बार वोट दे दे. 
इसलिए उस वक्त उसे जो ठीक लगता है, उसे वोट देकर पांच साल के लिए चुप हो जाती है. जनता को यह सोचना चाहिए कि वह उन लोगों को चुनकर भेजे, जो उनका नेतृत्व कर सकें. जनता को हमेशा यह सोचना चाहिए कि वह अपने प्रतिनिधि से पूछे कि वह देश का नेतृत्व कैसे कर रहा है. सिर्फ अपना काम कराने के लिए जनता को अपने प्रतिनिधि के पास नहीं जाना चाहिए. 

बीते दो दशक में हमारी चुनावी प्रक्रिया में काफी सारे बदलाव आये हैं. साल 2000 के शुरू में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था कि चुनाव लड़ने जानेवाले प्रत्याशियों को यह बताना होगा कि उस पर कोई केस तो नहीं चल रहा है, अगर चल रहा है, तो उस पर कार्रवाई हो रही है या नहीं. अब हमें यह देखना है कि इस प्रक्रिया को हम आगे कैसे सुधार के तौर पर ले आते हैं. यानी चुनाव के पूरे इको-सिस्टम को सुधारना होगा, ताकि जनप्रतिनिधियों की गुणवत्ता बेहतर हो सके.