प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' के जरिये देश को संबोधित कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि मन की बात के तीन साल की यात्रा देशवासियों के भावनाओं की अनुभूति है।अपने संबोधन में पीएम ने कहा, 'मन की बात को राजनीति को दूर रखा। एक जन-मन में जो भाव उमड़ते रहते हैं ‘मन की बात’ ने उन सब भावों से मुझे जुड़ने का एक बड़ा अद्भुत अवसर दिया। समाज के विभिन्न वर्गों के लोग मन की बात के सकारात्मक और नकारात्मक पक्षों पर बात करेंगे. हमेशा मन की बात में जनता को केंद्र में रखा।'मन की बात के मुख्य बिंदु
मैंने मन की बात में कहा था, हमें भोजन करते समय चिंता करनी चाहिये कि जितनी ज़रूरत है उतना ही लें, हम उसको बर्बाद न करें। एक बार मैंने हरियाणा के एक सरपंच की सेल्फी विथ डॉटर को देखा और मैंने ‘मन की बात’ में सबके सामने रखा।
देश सही दिशा में जाने के लिए हर पल अग्रसर है। मैंने एक बार मन की बात में खादी के विषय में चर्चा की थी| खादी एक वस्त्र नहीं, एक विचार है। मैंने देखा कि इन दिनों खादी के प्रति काफी रूचि बढ़ी है। खादी की ब्रिक्री बढ़ी है और उसके कारण गरीब के घर में सीधा-सीधा रोजगारी का संबंध जुड़ गया है।
खादी का जो अभियान चला है उसे हम और आगे चलाएं, और बढ़ाएं, खादी खरीदकर ग़रीब के घर में दिवाली का दीया जलाएं। उत्तर प्रदेश, वाराणसी सेवापुर में, सेवापुरी का खादी आश्रम 26 साल से बंद पड़ा था लेकिन आज पुनर्जीवित हो गया।
पिछले महीने हमने एक संकल्प किया था और तय किया था कि गाँधी-जयंती से पहले 15 दिन देश-भर में स्वच्छता का उत्सव मनायेंगे। हमारे राष्ट्रपति जी ने इस कार्य की शुरूआत की और देश इससे जुड़ गया।
ढ़ाई करोड़ से ज्यादा बच्चों ने स्वच्छता के निबंध स्पर्धा में भाग लिया हजारों बच्चों ने पेंटिंग बनाई बहुत से लोगों ने कविताएं बनाई और इन दिनों तो सोशल मीडिया पर ऐसे जो हमारे नन्हे साथियों ने छोटे-छोटे बालकों ने चित्र भेजे हैं वो मैं पोस्ट भी करता हूं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया ने देश की कितनी बड़ी सेवा कर सकता है ये स्वच्छता ही सेवा आंदोलन में हम देख पाते हैं। श्रीनगर नगर निगम ने उस 18 साल के नौजवान बिलाल डार को स्वच्छता के लिए अपना ब्रांड अम्बेसडर बनाया है जो 12-13 साल की उम्र से स्वच्छता में लग गया।
इस बात को हमें स्वीकार करना होगा कि भावी इतिहास, इतिहास की कोख में जन्म लेता है। गाँधी जी, जयप्रकाश जी, दीनदयाल जी ये ऐसे महापुरुष हैं जो सत्ता के गलियारों से कोसो दूर रहे हैं।
भारत के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी जब नौजवानों से बात करते थे तो हमेशा नानाजी देशमुख के ग्रामीण विकास की बातें किया करते थे। दीनदयाल उपाध्याय समाज के आखिरी छोर पर बैठे हुए ग़रीब, पीड़ित, शोषित, वंचित की ही चर्चा करते थे।
हम लोग बहुत स्वाभाविक रूप से कहते हैं - विविधता में एकता, भारत की विशेषता। हम अपने देश को तो देखते नहीं हैं, देश की विविधताओं को जानते नहीं हैं लेकिन विदेशों की सैर करना पसंद करते हैं। महात्मा गाँधी, लोकमान्य तिलक, स्वामी विवेकानंद, अब्दुल कलाम जी ने जब भारत-भ्रमण किया तब उनको उसके लिए जीने-मरने की नई प्रेरणा मिली।
इन छुट्टियों में आप सिर्फ बदलाव के लिए या घूमने के लिए निकलें ऐसा नहीं होना चाहिए, कुछ जानने-समझने के इरादे से घूमने जायें। भारत को अपने भीतर आत्मसात् कीजिये, आपकी सोच का दायरा विशाल हो जायेगा| अनुभव से बड़ा शिक्षक कोई नहीं होता।
पिछले दिनों एक घटना है जो शायद आपके भी ध्यान में आयी होगी - महिला-शक्ति और देशभक्ति की अनूठी मिसाल हम देशवासियों ने देखी है। भारतीय सेना को लेफ्टिनेंट स्वाति और निधि के रूप में दो वीरांगनाएँ मिली हैं और वे असामान्य वीरांगनाएँ है। असामान्य इसलिए हैं कि स्वाति और निधि माँ-भारती की सेवा करते-करते उनके पति शहीद हो गए थे।
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