अश्विनी बताते हैं, ‘चूंकि राजघाट धौलपुर शहर के नजदीक स्थित है इसलिए यह नगरपालिका के अंतर्गत आता है यानि एक तरह से शहर का ही हिस्सा है. प्रशासन गांव में किसी भी विकास कार्य से बचने के लिए घड़ियाल अभयारण्य का हवाला देता है. लेकिन यदि ऐसा है तो गांव में सरकारी स्कूल कैसे बन गया? इसके अलावा चंबल के किनारे स्थित दूसरे कई गांवों में बिजली-पानी समेत सारी सुविधाएं मौजूद हैं. एक बार प्रशासन का तर्क मान लिया जाए तो भी कुछ टैंकर भिजवाकर कम से कम साफ पानी और सोलर पैनल लगाकर बिजली तो उपलब्ध करवाई ही जा सकती है.’
राजघाट के इन स्थितियों को लेकर हमने धौलपुर जिला कलेक्टर शुचि त्यागी से बात करने की कोशिश की थी. फोन पर हुई बातचीत में वे कुछ देर तो सहज रहीं लेकिन राजघाट का नाम सुनते ही सवालों को टाल गईं. तब लगा कि शायद विधायक शोभारानी इस बारे में कुछ जवाब दे पाएंगी, लिहाजा हमने उनसे बात करने की कोशिश की. हमारे सवालों के बदले उन्होंने हम से ही ऐसा कुछ पूछ लिया, जिसके बाद उनसे कहने के लिए हमारे पास कुछ नहीं था. उनका सवाल था, ‘राजघाट! क्या यह गांव धौलपुर में है…?’