बिहार में लोकसभा की एक सीट खाली हुई है। अररिया के सांसद मोहम्मद तस्लीमुद्दीन के निधन से यह सीट खाली हुई है। अभी दो दिन पहले 19 सितंबर को उनका अंतिम संस्कार हुआ है। इस सीट पर भी गुजरात और हिमाचल विधानसभा के साथ चुनाव होगा। पिछली बार इस सीट पर राष्ट्रीय जनता दल के तस्लीमुद्दीन को चार लाख से ज्यादा वोट मिले थे और उन्होंने भाजपा के उस समय के सांसद प्रदीप कुमार सिंह को हराया था। तीसरे नंबर पर जदयू के विजय कुमार मंडल रहे थे। सो, कायदे से भाजपा को यह सीट मिलनी चाहिए।
पर बिहार में एनडीए के नेताओं का मानना है कि अगर यह सीट एनडीए को जीतनी है तो उसे अलग तरह से रणनीति बनानी होगी। इस समय तस्लीमुद्दीन के प्रति पूरे इलाके में सहानुभूति है। इसलिए उम्मीदवार तय करने में सबसे ज्यादा सावधानी बरतनी होगी। वैसे इस सीट का रिकार्ड रहा है कि 1962 में यह सीट बनने के बाद पहली बार 2014 में कोई मुस्लिम इस सीट से जीता। इस आधार पर भाजपा नेताओं का कहना है कि अगर उसका उम्मीदवार लड़ेगा तो ध्रुवीकरण का फायदा उसे होगा। कुछ जानकार नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री सैयद शाहनवाज को भी उम्मीदवार बनाने की बात कर रहे हैं। वे बगल के क्षेत्र किशनगंज से सांसद रहे हैं। तस्लीमुद्दीन के अंतिम संस्कार में भी वे वहां गए थे।
दूसरी ओर इस बात को लेकर अटकलें लगाई जाने लगी हैं कि तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम क्या करेंगे? वे जोकीहाट से जनता दल यू के विधायक हैं। लेकिन 2016 में उनके ऊपर ट्रेन में एक महिला से छेड़छाड़ का आरोप लगा था, जिसके बाद जदयू ने उनको निलंबित कर दिया था। अगर जदयू उनको लोकसभा का उपचुनाव लड़ने के लिए तैयार कर ले तो यह उसकी बड़ी सफलता होगी। लेकिन कहा जा रहा है कि राजद की ओर से उनको अपने पिता की जगह खड़ा करने की बात हो रही है। सो, इस एक सीट पर पहला घमासान उम्मीदवार चुनने का है और दूसरा चुनाव का होगा। इस सीट के नतीजे से एनडीए और विपक्ष के भविष्य की तस्वीर उभरेगी।
पर बिहार में एनडीए के नेताओं का मानना है कि अगर यह सीट एनडीए को जीतनी है तो उसे अलग तरह से रणनीति बनानी होगी। इस समय तस्लीमुद्दीन के प्रति पूरे इलाके में सहानुभूति है। इसलिए उम्मीदवार तय करने में सबसे ज्यादा सावधानी बरतनी होगी। वैसे इस सीट का रिकार्ड रहा है कि 1962 में यह सीट बनने के बाद पहली बार 2014 में कोई मुस्लिम इस सीट से जीता। इस आधार पर भाजपा नेताओं का कहना है कि अगर उसका उम्मीदवार लड़ेगा तो ध्रुवीकरण का फायदा उसे होगा। कुछ जानकार नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री सैयद शाहनवाज को भी उम्मीदवार बनाने की बात कर रहे हैं। वे बगल के क्षेत्र किशनगंज से सांसद रहे हैं। तस्लीमुद्दीन के अंतिम संस्कार में भी वे वहां गए थे।
दूसरी ओर इस बात को लेकर अटकलें लगाई जाने लगी हैं कि तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम क्या करेंगे? वे जोकीहाट से जनता दल यू के विधायक हैं। लेकिन 2016 में उनके ऊपर ट्रेन में एक महिला से छेड़छाड़ का आरोप लगा था, जिसके बाद जदयू ने उनको निलंबित कर दिया था। अगर जदयू उनको लोकसभा का उपचुनाव लड़ने के लिए तैयार कर ले तो यह उसकी बड़ी सफलता होगी। लेकिन कहा जा रहा है कि राजद की ओर से उनको अपने पिता की जगह खड़ा करने की बात हो रही है। सो, इस एक सीट पर पहला घमासान उम्मीदवार चुनने का है और दूसरा चुनाव का होगा। इस सीट के नतीजे से एनडीए और विपक्ष के भविष्य की तस्वीर उभरेगी।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें