शनिवार, 16 सितंबर 2017

लड़कियां कब से ससुराल जा रही हैं?

क्या‍ शादी के बाद लड़कियों के ससुराल जाने की प्रथा दुनिया भर में रही है? जर्मनी में हुए एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि ज्यादातर समाजों में ऐसा होता आया है। उस अध्ययन के मुताबिक जर्मनी में चार हजारसाल पहले भी ऐसा होता था। इस बात का पता बवेरिया में खुदाई में मिले कंकालों के विश्लेषण से चला। चार हजारसाल पहले जर्मनी में प्रथा ऐसी थी कि महिलाएं खुद चलकर अपने भावी पतियों के पास पहुंचती थीं। कई संस्थानों में काम कर चुके जर्मन शोधकर्ताओं के शोध के नतीजे अमेरिकी विज्ञान अकादमी पीएनएएस के जर्नल में प्रकाशित हुए हैं।शोधकर्ताओं ने बवेरिया प्रांत के लेषथाल में मिले 84 कंकालों का अध्ययन किया है। लाशों को 2500 से 1700 साल ईसा पूर्व दफनाया गया था। यह समय पाषण युग और कांसा युग के बीच का समय माना जाता है।
इस अध्ययन के प्रमुख म्यूनिख के लुडविष मक्सिमिलियान यूनिवर्सिटी के फिलिप स्टॉकहामर का कहना है कि उस समय जानकारी और ज्ञान के आदान-प्रदान में पुरुषों की नहीं बल्कि संभवतः महिलाओं की प्रमुख भूमिका हुआ करती थी। रिसर्चरों के अनुसार जांच में शामिल करीब दो तिहाई महिलाएं हाले और लाइपजिग के इलाके से करीब 17 साल की उम्र में संभवतः परिवार बसाने के लिए लेषथाल आईं। स्टॉकहामर कहते हैं- "हर चीज इस बात का संकेत देती है कि कांसा युग में महिलाएं बहुत ही गतिशील थीं। पुरुषों के बारे में ऐसे कोई सबूत नहीं हैं।"कांसा युग में एल्बे और साले नदी के इलाकों में धातु के इस्तेमाल की तकनीक अत्यंत विकसित थी। महिलाएं उन दिनों घुमंतू ज्ञान प्रचारक थीं संभवतः उन्होंने ज्ञान के प्रसार में योगदान दिया। कंकालों के वैज्ञानिक विश्लेषण से पता चला कि कंकालों में भारी जेनेटिक विविधता है। यह इस बात का संकेत देता है कि उस समय बहुत सारी महिलाएं दूसरी जगहों से वहां आईं।
शोधकर्ताओं ने सात जगहों पर मिले हड्डियों और दांतों की जांच की। ये हड्डियां और दांत उस समय के हैं जब दक्षिणी जर्मनी में किसान और पशुपालक रहा करते थे।ये साबित हो चुका है कि महिलाओं का उस इलाके में आना सदियों तक चलता रहा। ऐसेसंकेत हैं कि यह परंपरा कई सौ साल तक चलती रही। नई जानकारी ने कई सवाल खड़े किए हैं।क्या17 साल की लड़कियां पति की खोज में अकेले निकलती थीं? वे यातायात के किस साधन का इस्तेमाल करती थीं? लोगों के बीच आपसी संपर्क का क्या तरीका था?
यह भी रहस्यमय है कि लेषथाल के इलाके में उन महिलाओं के वंशज नहीं पाए गए हैं। ऐसे नहीं हो सकता कि उनके बच्चे नहीं हुए होंगे। उन्हें दफनाने का तरीका स्थानीय लोगों से अलग नहीं था, इसलिए ये संभावना भी नहीं है कि उन्हें सिर्फ कामगारों के रूप में इस्तेमाल किया जाता होगा।2016 में प्लोस वन पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट में स्वीडिश वैज्ञानिकों ने कहा था कि बवेरिया और बाडेन वुर्टेमबु्र्ग में हुई खुदाई में पता चला कि 2800 से 2200 ईसा पूर्व के काल में दफानाए गए लोगों में बड़ी तादाद वहां नहीं जन्मे लोगों की थी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें