सामाजिक सशक्तिकरण के लिए जिम्मेदार आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानी रेज के सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इससे पहले कि नॉन स्टेट एक्टर्स यानी आतंकवादी संगठन या दूसरी आपराधिक प्रवृत्ति के लोग इस तकनीक को हथियार बना कर समाज और देश के खिलाफ इस्तेमाल करने लगें उससे पहले इसे ठीक करने की जरूरत है। उन्होंने अलगोरिदम की पारदर्शिता और तकनीक पर नियंत्रण के उपायों को लेकर चर्चा की। प्रधानमंत्री की बात दो तात्कालिक घटनाओं के संदर्भ में देखें तो पता चलेगा कि यह कितना बड़ा खतरा बनता जा रहा है।
मानवता की सबसे बेहतरीन सेवा के लिए जिस तकनीक का इस्तेमाल हो सकता है, उसे किस तरह से विध्वंस या निगेटिव एजेंडे के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। यह सिर्फ आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का मामला नहीं है, बल्कि बिग डाटा एनालिसिस और अलगोरिदम आधारित जो भी तकनीक है वह कई तरह से इंसानों को और समाज को प्रभावित कर रही है।
पहली घटना देश की वित्तीय राजधानी मुंबई की है। हिंदी फिल्मों के एक अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद उन्हें न्याय दिलाने का एक अभियान चला था। अब हाल में कई तरह की रिसर्च और खोजबीन के बाद पता चला है कि अकेले एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर पर 80 हजार फर्जी एकाउंट बनाए गए थे, जिनसे जस्टिस फॉर सुशांत का अभियान चला। राज्य सरकार इसकी जांच करा रही है और उसका कहना है कि महाराष्ट्र को बदनाम करने के लिए यह काम किया गया था। सवाल है कि महाराष्ट्र को बदनाम करने में किसकी रूचि हो सकती है? क्या यह कोई बाहरी साजिश है या अंदरूनी राजनीति से जुड़ा खेल है?
इसी तरह उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक दलित युवती के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना हुई। बाद में उस युवती ने इलाज के दौरान दिल्ली के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया। उसे न्याय दिलाने के लिए भी बड़ा अभियान चला हुआ है। उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि यह अभियान राज्य सरकार को और उत्तर प्रदेश को बदनाम करने के लिए चलाया गया और इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय साजिश है। राज्य सरकार जातीय व धार्मिक दंगे फैलाने के पहलू से इस घटना की जांच कर रही है। उसका कहना है कि इसके लिए फर्जी वेबसाइट बनाई गई और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया गया। उत्तर प्रदेश सरकार तो इस पूरे मामले की जांच सांप्रदायिक नजरिए से करती दिख रही है पर यह खतरा उससे बहुत बड़ा है।
याद करें कैसे थोड़े दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र का निजी ट्विटर हैंडल हैक हो गया था। दुनिया की कई और मशहूर हस्तियों के ट्विटर एकाउंट हैक हुए थे। सोचें, अगर इन एकाउंट्स को हैक करके उनसे भड़काऊ बातें पोस्ट होने लगें या दंगा भड़काने की साजिश हो तो वह काम कितना आसान हो जाएगा? इन दिनों हर दूसरा आदमी फेसबुक पर लिख कर यह बता रहा है कि उसके नाम की फर्जी प्रोफाइल बना कर लोगों को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी जा रही है या ऑनलाइन पैसे ठगने की कोशिश हो रही है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से डाटा चोरी होने का पुराना इतिहास है, चुनाव को प्रभावित करने के लिए इनका इस्तेमाल भी पुरानी बात है और दंगे भड़काने में भी इनका इस्तेमाल प्रमाणित हो चुका है।
इसका मतलब है कि अपनी तमाम अच्छी और उपयोगी बातों के अलावा सोशल मीडिया की तकनीक, बिग डाटा एनालिसिस और अलगोरिद्म आधारित तकनीक का शस्त्रीकरण यानी उन्हें हथियार बनाने की प्रक्रिया पूरी दुनिया में चल रही है। यह परमाणु और जैविक हथियार से कम खतरनाक नहीं है। यह लोगों की निजता को प्रभावित करने वाला है और इंसान के निजी व सामूहिक व्यवहार को भी मनमाने तरीके से मोड़ने में सक्षम है। तभी इससे समाज या देश को ज्यादा नुकसान पहुंचाया जा सकता है। अब बड़ा सवाल है कि इससे कैसे बचा जाए या इससे कैसे रोका जाए?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जवाबदेही तय करने की बात कही है। उन्होंने कहा है कि अलगोरिदम की पारदर्शिता जरूरी है ताकि जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके। हालांकि इस काम में अपनी बाधाएं हैं। इन दिनों सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स और डिजिटल पेमेंट के जितने गेटवे हैं उनका काम अलगोरिद्म से ही चल रहा है। सो, सबके लिए उसे पारदर्शी करना या ओपन कर देना संभव नहीं होगा। तभी इसके लिए एक ऐसा निकाय जरूरी है, जो इन पर निगरानी रखे। इनकी तकनीक के दुरुपयोग की संभावना को कम करे।
अमेरिका वर्ल्ड वाइड वेब की दुनिया में हर हरकत पर नजर रखता है, हर दिन लाखों संदिग्ध सोशल मीडिया एकाउंट्स की पहचान करता है, लाखों संदिग्ध आईपी एड्रेसेज को मॉनिटर करता है ताकि उनकी संदिग्ध गतिविधियों को रोका जा सके। तकनीकी रूप से सक्षम दुनिया के कुछ और देश इस तरह के काम करते हैं। पर इतने से दुनिया सुरक्षित नहीं होनी है। इस तरह का सिस्टम दुनिया के हर देश को बनाना होगा या अमेरिका व दूसरे विकसित देशों के साथ ऐसी साझेदारी करनी होगी, जिससे रियल टाइम में इस खतरे को कम किया जा सके। यह काम आतंकवाद रोकने के लिए ही जरूरी नहीं है, बल्कि तमाम किस्म के आर्थिक अपराध रोकने के लिए भी जरूरी है, राजनीति को प्रभावित करने के प्रयासों को रोकने के लिए जरूरी है और सामाजिक सद्भाव न भंग हो उसके लिए भी जरूरी है।

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