जयपुर। नगर निगम चुनावों में फतेह हासिल करने को लेकर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां रणनीति में जुटी हुई है। वहीं, प्रत्याशियों के चयन और चुनावी रणनीति को लेकर बीजेपी मुख्यालय में अहम बैठक हुई। केंद्रीय मंत्री और निगम चुनाव में जयपुर के समन्वयक लगाए गए अर्जुनराम मेघवाल ने यह बैठक ली।
बैठक में शहर के विधायक, सांसद, पूर्व विधायक, शहर अध्यक्ष और प्रदेश पदाधिकारी मौजूद रहे। इस दौरान बैठक में पार्षद प्रत्याशी के लिए पैरामीटर तय करने को लेकर चर्चा हुई। बैठक में तय हुआ की किसी भी दावेदार को वार्ड बदलकर चुनाव लड़ने अनुमति नही दी जाएगी।
साथ ही सामान्य वर्ग की सीट पर अन्य वर्ग का प्रत्याशी नहीं उतारा जाएगा। अर्जुनराम मेघवाल ने कहा की दोनों ही निगमों में बीजेपी अपने 250 प्रत्याशी मैदान में उत्तारेगी और दोनों जगह बीजेपी अपना बोर्ड बनाएगी। बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा कि हर सीट पर कई दावेदार हैं। काबिल और सक्षम लोगों के चलते उम्मीदवारों की कमी दिखती नहीं, ऐसे में जिताऊ और टिकाऊ पर दाव लगाएंगे।
वार्ड बदलकर चुनाव लड़ने की किसी को नहीं मिलेगी अनुमति
वहीं, इस दौरान साल 2019 में मेयर के उप चुनाव में हुई बगावत का मुद्दा भी बैठक में उठा। चुनावों में बगावत करने वाले पार्षदों को पार्टी मौका नहीं देगी। भले ही वह प्रत्याशी जीतने वाला ही क्यों न हो? उप चुनाव में बगावत करने वाले पार्षदों के नाम अनुशासन समिति के पास रिकॉर्ड में है। बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष ने कहा की अनुशासन भंग करने वालों को टिकट नहीं मिलेगा चाहे कोई कितना भी जोर लगा ले।
बीजेपी हेरिटेज में अल्पसंख्यक वर्ग के उम्मीदवारों पर खेलेगी दांव
वहीं, इस बार जयपुर नगर निगम को दो हिस्सों में विभाजित करने के बाद अब चुनावों में बीजेपी ने भी अपनी रणनीति बदल दी है। हेरिटेज निगम में पार्टी इस बार अल्पसंख्य समुदाय और उसमें भी खासतौर पर मुस्लिम वर्ग के प्रत्याशियों पर भी दांव खेलने की रणनीति बना रही है। हेरिटेज नगर निगम में कांग्रेस को कमजोर करने के लिए बीजेपी मुस्लिम बहुल सीटों पर पार्टी मुस्लिम वर्ग के प्रत्याशियों कों मैदान में उतारने की तैयारी कर रही है।
बीजेपी ने निगम चुनाव में प्रत्याशियों को टिकट देने के मापदण्ड तो तय कर दिए लेकिन ऐसा भी नहीं है कि यह पैरामीटर अन्तिम सत्य हों क्योंकि पार्टी पहले ही कह चुकी है कि जिताऊ होना। किसी भी प्रत्याशी की सबसे बड़ी योग्यता होगी लेकिन इस मामले में इतना ज़रूर है कि अगर विशेष परिस्थिति में किसी मापदण्ड में कोई छूट देनी पड़ी तो वह प्रदेश नेतृत्व के स्तर पर ही तय होगा।

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