जयपुर। राजस्थान सरकार भी केन्द्रीय कृषि कानूनों में बदलाव करने के लिए पंजाब की तर्ज पर विधानसभा सत्र बुलाकर विधेयक लाने की तैयारी कर रही है। राज्य सरकार केन्द्रीय कृषि कानूनों में 4 बड़े बदलाव की तैयारी में है। इसके लिये कृषि विधेयकों के ड्राफ्ट को अंतिम रूप दिया जा रहा है। सरकार विधेयक तो ले आएगी, लेकिन इनके लागू होने में बहुत सी व्यवहारिक और वैधानिक बाधायें हैं। उनसे पार पाना राज्य सरकार के लिये बड़ी चुनौती होगी।
केन्द्रीय कानून में एमएसपी का यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद का प्रावधान नहीं है। लेकिन राज्य में इसके लिए विधेयक लाकर प्रावधान किया जाएगा. एमएसपी पर खरीद का राज्य सरकार कानून में तो प्रावधान कर रही है। लेकिन इसके लिए बजट की व्यवस्था करना सबसे बड़ी चुनौती होगी। अभी केंद्र सरकार ही एमएसपी पर खरीद करने का पैसा देती है।
ये तीन बड़े बदलाव भी राज्य सरकार करना चाह रही है
केन्द्रीय कानून में कृषि जिंसों के भंडारण की कोई स्टॉक लिमिट भी नहीं है. राज्य सरकार प्रस्तावित विधेयक में कृषि जिंसों पर स्टॉक सीमा का प्रावधान करेगी। तय सीमा से ज्यादा कोई भी अनाज या कृषि जिंसों का स्टॉक नहीं कर सकेगा. तीसरा बड़ा बदलाव संविदा खेती को लेकर है। राज्य सरकार संविदा खेती के तहत भी एमएसपी का रायडर जोड़ रही है। मतलब किसान की जमीन पर संविदा खेती करने वाली कंपनी या व्यक्ति को कम से कम एमएसपी जितनी रकम किसान को देनी होगी। यह प्रावधान भी केन्द्र के कानून में नहीं है। नये केन्द्रीय कानून में किसान और व्यापारी में विवाद होने पर एसडीएम या कलक्टर के पास अपील का प्रावधान है। किसान के लिये सिविल कोर्ट जाने का प्रावधान नहीं है। लेकिन राज्य सरकार मौजूदा कानून के अनुसार किसान के सिविल कोर्ट जाने के अधिकार को सुरक्षित रखने के साथ ही मंडी व्यवस्था को कायम रखने पर जोर दे रही है।
ये व्यवहारिक बाधायें भी हैं सामने
राज्य सरकार केंद्रीय कृषि कानूनों में बदलाव के लिए विधेयक तो विधानसभा में आसानी से पारित करवा लेगी, लेकिन इनके सामने बहुत सी कानूनी, राजनीतिक और व्यवहारिक बाधाएं आएंगी। क्योंकि केन्द्रीय कानून में राज्य बदलाव करता है तो उस विधेयक को एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना होता है। सबसे पहले विधेयक को राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजना होगा। राज्यपाल के स्तर पर विधिक राय लेने के बाद विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजना होगा। पहली बाधा तो यही है कि राज्यपाल ही इस विधेयक को रोक ले। राज्यपाल ने नहीं रोका और राष्ट्रपति के पास भेज दिया तो वहां से मंजूरी मिलना आसान नहीं होगा। राष्ट्रपति के लिए इस तरह के विधेयकों को मंजूरी देने के लिए कोई समय सीमा नहीं है। संविधान के प्रावधानों का हवाला देकर राष्ट्रपति चाहे तो इन विधेयकों को मंजूरी देने से इनकार कर सकते हैं। या विधेयकों पर कई तरह के क्वेरीज करते हुए राज्य को फिर लौटा सकते हैं।

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