रविवार, 18 अक्टूबर 2020

भूखे भारत को आखिर क्या चाहिए?

 


भारत भूखा और कुपोषित है। यह एक सत्य है, जो वैसे तो हर दिन हमारी नजरों के सामने उद्घाटित होता है लेकिन साल में एक बार ग्लोबल हंगर इंडेक्स बनाने वाले यह सत्य दुनिया की नजरों में लाते हैं। इस साल ग्लोबल हंगर इंडेक्स की जो रिपोर्ट आई है उसमें बताया गया है कि दुनिया के भूखे और कुपोषित देशों की श्रेणी में भारत 94वें स्थान पर है। यह रिपोर्ट 107 देशों की है। इसका मतलब है कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स में जिन देशों का सर्वेक्षण किया गया है उनमें से सिर्फ 13 देश ऐसे हैं, जो भारत से नीचे हैं। बाकी सबकी स्थिति बेहतर है। भारत से बेहतर स्थिति वाले देशों की सूची में पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार आदि भी हैं। सोचें, इन देशों के नेता अपने देश के विश्वगुरू बनाने या दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना देने का दावा नहीं कर रहे हैं पर अपने लोगों का पेट भर रहे हैं, बच्चों को पोषण मुहैया करा रहे हैं और उनकी सेहत का ख्याल रख रहे हैं।


सवाल है कि क्या भारत के लोगों को ये चीजें नहीं चाहिएं? उनको पोषण और स्वास्थ्य की सुरक्षा नहीं चाहिए? या वे सिर्फ पांच किलो गेहूं या चावल और एक किलो चना लेकर खुश हैं? उन्हें इतने से ज्यादा कुछ नहीं चाहिए! ‘संतोषम परम सुखम’ में जीने वाले भारतीयों को भौतिक वस्तुओं का मोह नहीं है। उन्हें भौतिक वस्तुएं नहीं चाहिए इसलिए आध्यात्मिक चीजें मुहैया कराई जा रही हैं। जगह जगह भव्य मंदिर बन रहे हैं और ऊंची-ऊंची मूर्तियां स्थापित की जा रही हैं। आखिर लोगों को अनाज कितना चाहिए, मन की शांति भी तो कोई चीज होती है! वह मुहैया कराया जा रहा है इसलिए लोगों को ग्लोबल हंगर इंडेक्स में ऊंचे स्थान पर बने रहने को गंभीरता से या शर्मिंदगी के साथ नहीं लेना चाहिए।


ध्यान रहे इस साल ग्लोबल हंगर इंडेक्स में सिर्फ 107 देशों का सर्वेक्षण किया गया, जिसमें भारत को 94वां स्थान मिला। सिर्फ 107 देश इसलिए शामिल हैं क्योंकि विकसित देशों को इसमें शामिल नहीं किया जाता है। तीसरी दुनिया के और विकासशील देशों में ही यह सर्वेक्षण होता है। सोचें, अगर विकसित देश भी इसमें शामिल होते तो भारत की क्या रैंकिंग होती। बहरहाल, कुछ लोग बता रहे हैं कि पिछले साल 102वां स्थान है और इस साल 94वां है, इसका मतलब है कि आठ स्थान का सुधार हुआ है। पर यह हकीकत नहीं है। 2019 में कुल 117 देशों को सर्वेक्षण में शामिल किया गया था। पिछले साल 117 देशों में से हम 102वें स्थान पर थे। यानी 15 देश हमलोगों से पीछे थे। इस बार सिर्फ 13 देश हमलोगों से पीछे रह गए हैं।


भारत के लिए चिंता की बात यह है कि छह साल पहले 2014 में जब मनमोहन सिंह सत्ता में हटे थे उस समय ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 55वें स्थान पर था। उसके अगले ही साल 2015 में भारत गिर कर 80वें स्थान पर पहुंच गया। 2016 में भारत की रैकिंग 97 थी, 2017 में भारत 100वें स्थान पर, 2018 में 103 और 2019 में 102वें स्थान पर था। सवाल है कि आखिर 2014 के बाद ऐसा क्या हुआ, जिससे भारत के लोगों में भूख बढ़ती गई और पोषण कम होता गया? भारत में अनाज की उपज लगातार बढ़ती गई है, सरकार के गोदाम अनाज से भरे हुए हैं इसके बावजूद लोगों को भरपेट खाना नहीं मिल पा रहा है तो इसका मतलब है कि कहीं कोई बड़ी कमी है।


यह कमी दो बातों की ओर इशारा करती है। पहली बात सरकार की मंशा की है। सरकार की प्राथमिकता में समाज का गरीब, वंचित वर्ग नहीं है इसलिए भूख और पोषण के मामले में एक बड़ा वर्ग बुनियादी जरूरतों से महरूम हो जा रहा है और दूसरी बात लोगों की खरीद करने की क्षमता का है। पिछले पांच-छह साल में लोगों की खरीद करने की क्षमता लगातार कम होती जा रही है। यह कमी हर वर्ग के लोगों में दिखी है। यह अलग बात है कि सरकार और सत्तारूढ़ दल के समर्थक किसी न किसी कुतर्क से इस बात को ढकते रहे हैं। जैसे भारत में गाड़ियों की खरीद कम हुई तो वित्त मंत्री ने खुद कहा कि भारत में नौजवान अब ओला, उबर का ज्यादा इस्तेमाल करने लगे हैं इसलिए गाड़ियों की खरीद कम हो गई है। यानी इस बेसिक तथ्य को दबा दिया गया कि लोगों की गाड़ी खरीदने की क्षमता कम हो गई है या खत्म हो गई है। तभी हैरानी नहीं होगी अगर सरकार और सत्तारूढ़ दल की ओर से कहा जाए कि लोग वजन कम करने के लिए कम खाने लगे हैं इसलिए भूखे और कुपोषितों की संख्या बढ़ रही है। वैसे गुजरात के एक नेता प्रति व्यक्ति अनाज की खपत कम होने के आंकड़े को न्यायसंगत ठहराने के लिए यह तर्क दे चुके हैं।


बहरहाल, इस ग्लोबल इंडेक्स की रिपोर्ट के बाद पहली जरूरत यह है कि सरकार समस्या को समझे। जब तक सरकार समस्या को नहीं समझेगी तब तक उसका समाधान संभव नहीं है। भारत सरकार के साथ दिक्कत यह है कि वह चुनिंदा सर्वेक्षणों को स्वीकार करती है। जैसे दुनिया की किसी संस्था ने कहा कि भारत की कारोबार सुगमता रैंकिंग में सुधार हो गया तो तुरंत इसका प्रचार शुरू हो जाएगा। लेकिन किसी दूसरी संस्था ने कहा कि मानवाधिकारों की हालत खराब है, गरीबी बहुत बढ़ रही है, भूखे व कुपोषितों की संख्या बढ़ रही है या धार्मिक असहिष्णुता बढ़ रही है तो तत्काल उस रिपोर्ट को खारिज कर दिया जाएगा। सरकार को यह एप्रोच बदलनी होगी। रोटी के बदले चांद दिखाने से काम नहीं चलेगा। यह समझना होगा कि एक भूखा और कुपोषित समाज मजबूत और समृद्ध देश नहीं बना सकता है।  

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