गुरुवार, 1 अक्टूबर 2020

अयोध्या का श्रेय अकेले मोदी को!

 


अब अयोध्या आंदोलन की विरासत का क्या होगा? यह आंदोलन इतिहास में किस रूप में दर्ज होगा? इसका जवाब यह है कि बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को तोड़े जाने के मामले में लखनऊ में सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले के बाद अब इस आंदोलन की स्मृतियां धीरे धीरे लोगों के जेहन से खत्म हो जाएंगी। अगर विशेष अदालत मस्जिद का विवादित ढांचा तोड़े जाने को अपराध मानते हुए कुछ आरोपियों को सजा करती तो इतिहास अलग होता। उमा भारती, विनय कटियार, जयभगवान गोयल जैसे कई आरोपी थे, जिनकी दिली इच्छा रही होगी कि इस मामले में सजा हो ताकि वे अपने को शहीद की तरह पेश कर सकें और राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के इतिहास में नाम दर्ज हो। पर अफसोस की ऐसा नहीं हुआ।


पता नहीं बाबरी विध्वंस के सभी आरोपियों का बरी होना संयोग है या कोई प्रयोग? पर ऐसा लग रहा है कि भगवान राम भी चाहते हैं कि इसका पूरा श्रेय अकेले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिले। अदालत के फैसले के बाद यह बात स्थापित हो गई कि विवादित ढांचा तोड़ने में लालकृष्ण आडवाणी या मुरली मनोहर जोशी या उमा भारती किसी का हाथ नहीं है। देश भर से आए निराकार कारसेवकों ने ढांचा गिराया था। ढांचा गिराए जाने और रामलला की जन्मभूमि को सपाट बनाने का श्रेय निराकार कारसेवकों को जाएगा और सुप्रीम कोर्ट से मुकदमा जीतने से लेकर शिलान्यास तक का श्रेय नरेंद्र मोदी को जाएगा। मंदिर आंदोलन से जुड़े किसी भी चेहरे का शिलान्यास की पूजा में मौजूद नहीं रहना भी इस बात का संकेत है कि मंदिर निर्माण का पूरा आंदोलन अब सिर्फ नरेंद्र मोदी के नाम से दर्ज होगा।


सोचें, उमा भारती, विनय कटियार या जयभगवान गोयल जैसे लोग क्या सोच रहे होंगे? विवादित ढांचा टूटने के मामले की जांच के लिए बने लिबरहान आयोग के सामने उमा भारती ने कबूल किया था कि पूरी योजना के साथ मस्जिद का ढांचा गिराया गया। यह बात खुद जस्टिस मनमोहन सिंह लिबरहान ने कही है। यानी आरोपी ने खुद योजनाबद्ध तरीके से काम करना कबूल किया है पर लखनऊ की विशेष अदालत ने कहा कि विवादित ढांचे का टूटना पूर्व नियोजित नहीं था, स्वंयस्फूर्त था। जाहिर है कि अगर योजनाबद्ध तरीके से ढांचा गिराने की बात उमा भारती ने कबूल की थी तो वे चाहती होंगी कि इस मामले में उन्हें दोषी ठहरा कर दो-एक साल की सजा हो ताकि वे शहीद के रूप में अपना नाम मंदिर आंदोलन से जोड़ें।


इसी तरह विशेष अदालत से सारे आरोपियों को बरी किए जाने के तुरंत बाद अदालत के बाहर ही जयभगवान गोयल ने कहा कि सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से हुआ था। जाहिर है कि कुछ और आरोपी भी चाह रहे होंगे कि उन्हें दोषी ठहरा कर छोटी-मोटी सजा हो ताकि मंदिर आंदोलन के प्रतिनिधि चेहरे के तौर पर उनका नाम इतिहास में दर्ज हो। सुप्रीम कोर्ट ने भी मंदिर के भूमि विवाद पर दिए गए फैसले में विवादित ढांचे के टूटने को गलत बताया था। इसके बावजूद निचली अदालत ने किसी को दोषी नहीं ठहराया। किसी आरोपी की मंशा पूरी नहीं हुई। हुआ वह जिससे नरेंद्र मोदी को अकेले श्रेय मिलने और इतिहास में अकेले उनका नाम दर्ज होने का रास्ता बना। 




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