गुरुवार, 29 अक्टूबर 2020

दुनिया में आंदोलन और भारत में…!

 


पूरी दुनिया में किसी न किसी किस्म का आंदोलन चल रहा है। इन आंदोलनों की तात्कालिक वजह चाहे जो हो पर बुनियादी बात लोकतंत्र की बहाली और मानवाधिकारों के सम्मान की रक्षा है। पड़ोसी देश पाकिस्तान से लेकर अमेरिका तक, थाईलैंड से लेकर ब्राजील तक और चीन, हांगकांग से लेकर बेलारूस व फ्रांस तक आंदोलन चल रहे हैं। लोग सड़कों पर उतरे हैं। दुनिया के कई शहरों में सार्वजनिक स्पेस आंदोलन की जगह में तब्दील हो गए हैं। कहीं गलत तरीके से चुनाव कराने के विरोध में आंदोलन है तो कहीं सेना की ज्यादतियों को लेकर आंदोलन हो रहे हैं। लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में क्या हो रहा है? भारत में लगातार आंदोलन की जगह सिमटती जा रही है, असहमति को अपराध और प्रतिरोध को देशद्रोह बनाया जा रहा है, जिसकी वजह से अंततः लोकतंत्र की बुनियाद कमजोर हो रही है।


पाकिस्तान जैसे देश में आंदोलन हो रहा है और वह भी सेना के खिलाफ! पाकिस्तान में सेना की जो हैसियत है और जिस तरह से अपनी प्रॉक्सी सरकार बनवा कर सेना वहां काम कर रही है, उसे देखते हुए यह सोचना भी मुश्किल है वहां कोई आंदोलन हो सकता है। लेकिन पाकिस्तान की राजनीतिक पार्टियां और बहुत हद तक आवाम भी आंदोलित है। पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बेटी मरियम नवाज आंदोलन का नेतृत्व कर रही हैं। इस आंदोलन का नाम पाकिस्तानी डेमोक्रेटिक मूवमेंट यानी पीडीएम है। पाकिस्तान के कई शहरों में पीडीएम से जुड़े सदस्यों ने आंदोलन किया है और खुल कर सेना के खिलाफ टिप्पणी की है। आंदोलनकारियों ने आरोप लगाया है कि चुनी हुई सरकार के नाम पर सेना की तानाशाही चल रही है और राजनीतिक विरोधियों को किसी न किसी मामले उलझा कर उन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया से दूर किया जा रहा है। सोचें, पाकिस्तान जैसे देश में, जहां सेना का लौह कानून चलता है वहां लोकतांत्रिक आंदोलन हो रहे हैं। और हां, आंदोलन करने वालों की फोटो खींच कर उन पर कार्रवाई नहीं हो रही है और न आंदोलन को नियंत्रित करने के लिए हुई पुलिसिया कार्रवाई का खर्च उनसे वसूला जा रहा है!


थाईलैंड में प्रधानमंत्री प्रयुथ चनोका की सरकार के खिलाफ आंदोलन चल रहे हैं। बैंकॉक में हजारों लोगों ने सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन किया। वे इस बात का विरोध कर रहे हैं कि आखिर कैसे सरकार ने एक प्रकाशन समूह पर छापा डाला? उनका आरोप है कि सरकार न्यूज कवरेज सेंसर करने का प्रयास कर रही है और आंदोलनकारियों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे टेलीग्राम ऐप पर पाबंदी लगाने की कोशिश कर रही है। असल में पिछले साल हुए चुनाव के बाद सत्ता में आए सैनिक तानाशाह के ऊपर आरोप है कि उसने गलत तरीके से चुनाव जीता और राजशाही के नियमों को गलत तरीके से बदल रहा है। सोचें, वहां भी सैन्य तानाशाही के खिलाफ लोग सड़कों पर उतरे हैं।


हांगकांग में लंबे समय से लोकतंत्र बहाली का आंदोलन चल रहा है और प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे तीन युवाओं ने चीन की सर्वशक्तिशाली कम्युनिस्ट पार्टी और शी जिनफिंग की तानाशाह सरकार को नाको चने चबवाया हुआ है। प्रदर्शनकारी सैन्य कानून लागू करने का विरोध कर रहे हैं। बेलारूस में राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेन्को के खिलाफ आंदोलन चल रहा है। इस साल अगस्त में यह आंदोलन शुरू हुआ। लोगों का आरोप है कि लुकाशेन्को ने धांधली करके चुनाव जीता है। अगस्त के बाद लगातार हर रविवार को हजारों लोग सड़कों पर उतरते रहे हैं। कई दिन तो प्रदर्शनकारियों की संख्या एक लाख तक पहुंच गई। लुकाशेन्को यूरोप के किसी भी देश में सबसे लंबे समय तक राज करने वाले शासक हैं और उनको यूरोप का आखिरी तानाशाह कहा जाता है। उनके खिलाफ पिछले तीन महीने से आंदोलन चल रहा है।


अमेरिका में ब्लैक लाइव्स मैटर का आंदोलन थमा नहीं है। इस आंदोलन की वजह से अमेरिका के कई शहर प्रभावित हुए। मिनियापोलिस से लेकर केनोसा तक आंदोलन हुए और इसके समर्थन में दुनिया के अनेक देशों में लोगों ने प्रदर्शन किया। कोरोना वायरस को संभालने में विफल होने पर कई देशों की सरकारों के खिलाफ आंदोलन हुआ। ब्राजील से लेकर बर्लिन तक लोगों ने सड़कों पर उतर कर अपनी सरकार का विरोध किया। याद करें दस साल पहले ट्यूनीशिया से जो अरब क्रांति शुरू हुई थी। ट्यूनीशिया के एक फल बेचने वाले बौजूजी की खुदकुशी की घटना से इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी और पूरा अरब जगत इसकी चपेट में आया था। भारत में भी दस साल पहले इंडिया अगेंस्ट करप्शन का आंदोलन हुआ था। उसकी तुलना मौजूदा समय से करें, तब पता चलता है कि दस साल में भारत कितना बदल गया है।


भारत में दिन प्रतिदिन आंदोलन मुश्किल होता जा रहा है। असहमति का इजहार अपराध बन रहा है। लोकतांत्रिक आंदोलनों को दबाया जा रहा है। आंदोलन में शामिल लोगों की फोटो सीसीटीवी से निकाल कर उनको नोटिस भेजे जा रहे हैं। आंदोलन के दौरान सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप लगा कर उनसे उसकी कीमत वसूली जा रही है। आंदोलन और प्रदर्शन करने की जगह लगातार सिकुड़ती जा रही है। किसी न किसी तरीके से आंदोलन को दबाने या उसकी साख बिगाड़ने का प्रयास किया जा रहा है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से लेकर कोलकाता और लखनऊ से लेकर बेंगलुरू तक एक जैसे हालात दिख रहे हैं।


सरकारें यह भूल रही हैं कि ऐसे ही आंदोलनों से देश को आजादी मिली थी, देश को दूसरी आजादी भी ऐसे ही आंदोलन से मिली थी और पिछले 73 साल में भारत का लोकतंत्र ऐसे ही आंदोलनों से मजबूत हुआ है। आजादी के बाद सात दशक में जल, जंगल, जमीन पर आदिवासियों के अधिकारों से लेकर महिलाओं व बच्चों के अधिकार, इंसानों से लेकर पशुओं तक के अधिकार, सूचना के अधिकार और भोजन व रोजगार के अधिकार आंदोलनों के जरिए ही हासिल किए गए हैं। लेकिन अब हर आंदोलन को सरकार के विरूद्ध जंग का ऐलान माना जाने लगा है। हर आंदोलनकारी को सरकार का और फिर देश का दुश्मन बताया जाने लगा है। आज किसान आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन कोई उनकी बात नहीं सुन रहा है। नागरिकता कानून को लेकर इसी देश के नागरिकों ने महीनों तक आंदोलन किया लेकिन एक बार भी सरकार ने आंदोलनकारियों से बात करने की पहल नहीं की। उलटे आंदोलनकारियों के समर्थन में भाषण देने वालों को दंगाई बता कर उनके खिलाफ पुलिस कार्रवाई शुरू कर दी गई। देश के कुछ बेहतरीन मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्ता नक्सलियों से मिले होने के आरोप में महीनों से जेल में बंद हैं। न सरकार उनकी बात सुन रही है और न अदालतें! यह 21वीं सदी का भारत है!


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