बुधवार, 8 जुलाई 2020

तीसरी बार चीन के पीछे हटने का प्रचार

पुराने अनुभवों को छोड़ दें। डोकलाम से चीन के कथित तौर पर पीछे हटने के प्रचार को भी याद न करें तब भी पिछले दो महीने में तीसरी बार चीन के पीछे हटने की खबर आई है। हो सकता है कि तीसरी बार की खबर पहली दो खबरों के मुकाबले ज्यादा प्रमाणिक हो। संभव है कि चीन के दो किलोमीटर पीछे हटने की बात सही भी हो क्योंकि इसका दावा इस आधार पर किया जा रहा है कि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद सुलझाने के लिए बने विशेष तंत्र की बैठक हुई। ध्यान रहे इस तंत्र की अब तक 22 बार वार्ता हो चुकी है। इसमें भारत के प्रतिनिधि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल हैं और चीन की ओर से वहां के स्टेट काउंसलर और विदेश मंत्री वांग यी वार्ता करते हैं। सवाल है कि अगर दोनों देशों के बीच किसी किस्म का विवाद सुलझाने के लिए यहीं तंत्र रामबाण उपाय है तो पहले ही क्यों नहीं इनकी बात कराई गई?

पहले कहा गया है कि गलवान की झड़प के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन के विदेश मंत्री वांग यी से बात की। यह वार्ता हिंसक झड़प के तुरंत बाद हुई थी और उसके बाद फिर चीन के कई नई जगहों पर कब्जा करने की खबर आई। अगर उसी समय वांग यी के साथ अजित डोवाल की बात कराई गई होती तो हो सकता है कि उसी समय कोई हल निकलता। पर ऐसा लग रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लद्दाख दौरे का इंतजार किया गया और उसके बाद सीमा विवाद सुलझाने वाले तंत्र की वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए वार्ता हुई। इसका मकसद यह मैसेज देना भी होगा कि देखो, प्रधानमंत्री सीमा पर गए और चीन दुम दबा कर पीछे हट गया। व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में पढ़े-लिखे कई टेलीविजन चैनलों के एंकर और यहां तक कि संपादक भी इस तरह की खबरें चला रहे हैं कि चीन डर कर पीछे हट गया।  असलियत का पता अभी तुरंत नहीं चलेगा क्योंकि अभी यहीं बताया जा रहा है कि चीन पीछे हट रहा है। तभी यह याद दिलाना जरूरी है कि चीन डोकलाम में भी कथित तौर पर पीछे हटा था। तब भी बड़ी वाहवाही की गई थी। लेकिन बाद में पता चला कि वह भारत, भूटान और चीन की सीमा पर वाई जंक्शन को कब्जा किए बैठा है और अब उसने भूटान के पूर्वी हिस्से पर ही अपनी दावेदारी कर दी है। ध्यान रहे जिस तरह से भारत और चीन के बीच 22 बार वार्ता हुई है उसी तरह का एक तंत्र भूटान और चीन के बीच भी है और उसकी वार्ता 40 बार से ज्यादा हो चुकी है। उसके बावजूद चीन छोटे से भूटान के एक हिस्से पर अपना दावा कर रहा है।

इसी तरह पिछले दो महीने में तीसरी बार खबर आई है कि चीन पीछे हट रहा है। पहली बार छह जून को जब दोनों देशों के बीच लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की वार्ता हुई थी तब कहा गया था कि चीन पीछे हट रहा है। लेकिन उसका अंत नतीजा क्या निकला? उसका अंत नतीजा यह था कि 15 जून की रात को गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई, जिसमें एक कर्नल सहित 20 भारतीय जवान शहीद हुए। इसके तुरंत बाद कूटनीतिक और सैन्य स्तर की वार्ता शुरू हुई। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन के विदेश मंत्री से बात की और फिर भारत, रूस और चीन के विदेश मंत्रियों की त्रिपक्षीय वार्ता हुई। फिर 11-11 घंटे की वार्ता सैन्य कमांडरों के बीच हुई, जिसके बाद 22 जून को फिर चीन के सैनिकों के पीछे हटने की खबर आई। उसके बाद क्या हुआ? उसके बाद यह हुआ कि चीन ने पेट्रोलिंग प्वाइंट 14 तक भारतीय सैनिकों की गश्त रोक दी और इस तरह उसने नए इलाकों पर कब्जा किया और नए इलाकों पर अपनी दावेदारी कर दी।  अब तीसरी बार उसके पीछे हटने की खबर आ रही है। चीन के पिछले रिकार्ड को देखते हुए और भारत को अपने अनुभव से सबक लेते हुए चीन की बात पर भरोसा नहीं करना चाहिए और तब तक आश्वस्त नहीं होना चाहिए, जब तक अप्रैल से पहले की यथास्थिति बहाल नहीं होती है। इसका कारण यह है कि चीन के बारे में यह सब जानते हैं कि वह एक एक इंच जमीन पर कब्जे के लिए लड़ता है, खास कर भारत के साथ। इसलिए यह समझना थोड़ा मुश्किल है कि वह जिस पूरी गलवान घाटी पर अपना दावा कर रहा था उसे छोड़ कर क्यों जा रहा है या वह पैंगोंग से लेकर देपसांग तक से इतनी जल्दी वापसी के लिए तैयार हो गया। 

एक सवाल यह भी है कि जब भारत उसकी सीमा में नहीं गया तो भारत किस जगह से पीछे हट रहा है? खबर है कि दोनों देशों ने चार किलोमीटर का नोमेंस लैंड बनाया है। सवाल है कि जब चीन दो किलोमीटर पीछे हटा है तो चार किलोमीटर का नोमेंस लैंड कैसे बना? भारत पीछे हटा तो कहां से हटा, जबकि वह आगे बढ़ा ही नहीं था? यह भी सवाल है कि जब फिंगर 4 और फिंगर 8 के बीच पहले से नो मेंस लैंड पहले से है तो यह क्या नया बना है?

इसके बाद चीन की मंशा का सवाल है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस दिन कहा कि विस्तारवाद का युग चला गया उसके दो दिन बाद ही चीन ने भूटान पर दावा कर दिया। तभी यह सोचना मुश्किल है कि वह भारत की जमीन पर अपना दावा छोड़ रहा है। यह बात उसकी ओर से जारी बयान में भी दिखती है। डोवाल और वांग यी की वार्ता के बाद भारत और चीन के विदेश मंत्रालयों की ओर से जारी बयान में साफ अंतर है। चीन ने अपने बयान में लिखा है- चीन-भारत के पश्चिमी सेक्टर में गलवान घाटी में हाल में जो सही या गलत हुआ वह बहुत स्पष्ट है।  चीन पूरी मजबूती के साथ अपनी क्षेत्रीय संप्रभुता की सुरक्षा जारी रखेगा और सीमा के इलाके में शांति बनाने का प्रयास जारी रखेगा। उसने आगे लिखा है- हम उम्मीद करते हैं कि लोगों की धारणा को सही दिशा में ले जाने के लिए भारत चीन के साथ काम करेगा, दोपक्षीय विनिमय और सहयोग जारी रखेगा और साथ ही किसी किस्म के विवाद को जटिल नहीं होने देगा।

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