बिहार में कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों की वजह से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने और चुनाव टालने की मांग तेज हो गई है। और इसकी वजह से गेंद अब भाजपा के पाले में चली गई है। भाजपा को तय करना है कि चुनाव समय पर होगा या नहीं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समय पर चुनाव चाहते हैं। लेकिन उनके चाहने से चुनाव नहीं होगा। भाजपा चाहेगी तभी चुनाव होगा। भाजपा अभी तक यह दिखा रही है कि वह चुनाव की पूरी तैयारी में लगी है। उसने विधानसभा क्षेत्र के हिसाब से वर्चुअल रैलियां शुरू कर दी हैं। इससे जनता दल यू को लग रहा है कि भाजपा चुनाव कराने को लेकर सीरियस है। पर असल में भाजपा सिर्फ यह दिखा रही है कि वह अपनी ओर से चुनाव की तैयारी में है और चुनाव टालने का उसका कोई इरादा नहीं है। अगर चुनाव किसी वजह से टलता है तो इसके पीछे भाजपा में नहीं होगी।
यह भी कहा जा रहा है कि यह भाजपा की दबाव की राजनीति का हिस्सा है। ध्यान रहे बिहार में सीट बंटवारे का मामला उलझा है। नीतीश कुमार किसी हाल में भाजपा ने 20-25 सीटें ज्यादा लड़ना चाहते हैं। उनको लग रहा है कि अगर बराबर सीटों पर लड़े तो उन्हें कम सीट आएगी। ध्यान रहे लोकसभा चुनाव में भाजपा, जदयू और लोजपा 17-17-6 सीटों पर लड़े थे, जिनमे से जनता दल यू ही एक सीट पर हारी थी। गठबंधन में उसकी स्ट्राइक रेट कम होती है। दूसरी ओर भाजपा बराबर सीटों पर लड़ना चाहती है क्योंकि चुनाव बाद की राजनीति उसकी अलग हो सकती है। अगर नीतीश उसे बराबर सीट देने पर राजी नहीं होते हैं या समझौता उसके मन लायक नहीं होता है तो चुनाव टल जाना कोई बड़ी बात नहीं होगी। ऐसा हुआ तो नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ेंगी।

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