बुधवार, 15 जुलाई 2020

बिहार में लॉकडाउन चुनाव की चिंता से

बिहार के मुख्यमंत्री बुरी तरह से बेचैन हैं। अगर डेस्पेरेट शब्द का किसी के लिए सही इस्तेमाल हो सकता है तो वो नीतीश कुमार हैं। उनको लग रहा है कि अगर इसी तरह कोरोना वायरस के मामले बढ़ते गए तो अक्टूबर-नवंबर में चुनाव नहीं हो पाएगा। अगर ऐसा हुआ तो राष्ट्रपति शासन लगेगा और गेंद भाजपा के पाले में चली जाएगी। फिर टिकट बंटवारे से लेकर चुनाव बाद की राजनीति में मोलभाव करते हुए भाजपा का पलड़ा भारी रहेगा। तभी नीतीश कुमार और उनकी सरकार किसी हाल में समय पर चुनाव कराने के प्रयास में है। इसी प्रयास के तहत बिहार में दो हफ्ते का कंपलीट लॉकडाउन लगाया गया है।

इसी प्रयास के तहत पिछले कई महीनों से तमाम लोगों की सलाह के बावजूद बिहार में टेस्टिंग नहीं बढ़ाई जा रही है ताकि संक्रमण के कम मामले आएंगे। कम टेस्टिंग के बावजूद संक्रमण के मामले लगातार बढ़ते गए और तीन दिन तक हर दिन 11 सौ से ज्यादा मामले आए। भाजपा कार्यालय से लेकर मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री आवास तक दर्जनों लोगों के संक्रमित होने की खबर है। अनेक आईएएस अधिकारी संक्रमित हुए और इस घबराहट में सरकार ने लॉकडाउन लगा दिया। पर मुख्यमंत्री और उनके प्रशासन को अंदाजा नहीं है कि संक्रमण रोकने के लिए लॉकडाउन कोई बड़ा समाधान नहीं हैं। आखिर राष्ट्रीय स्तर पर चार बार हुआ लॉकडाउन कितना विफल रहा है यह सब जानते हैं। इसलिए लॉकडाउन की बजाय टेस्टिंग करने, कांटेक्ट ट्रेसिंग करने और इलाज करने की सुविधा में सुधार करना चाहिए। संक्रमण के मामले को कारपेट के नीचे दबा कर चुनाव करा लेने की सोच बिहार के करोड़ों लोगो का जीवन संकट में डालेगी। सरकार को हर हाल में चुनाव कराने की जिद छोड़नी चाहिए। विपक्ष से लेकर सत्तारूढ़ गठबंधन तक की पार्टियां इसके पक्ष में हैं।

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