बुधवार, 8 जुलाई 2020

बिहार ही अब राष्ट्र है!

अब जब तक बिहार में विधानसभा का चुनाव नहीं हो जाता है, तब तक बिहार ही राष्ट्र है। लिट्टी-चोखा देश का राष्ट्रीय भोजन है, छठ राष्ट्रीय पर्व है और बिहार रेजिमेंट ही राष्ट्र की सेना है! रोजगार की भी जरूरत सिर्फ बिहार के लोगों को है क्योंकि बिहार के मजदूर ही राष्ट्रीय मजदूर हैं, जिनका राष्ट्र निर्माण में योगदान अप्रतिम है। तभी गरीब कल्याण रोजगार अभियान की योजना बनी तो उसकी शुरुआत के लिए बिहार को चुना गया। छह राज्यों के 116 जिलों के लिए 20 जून को खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अभियान की शुरुआत की और इस मौके पर उन्होंने बिहार के मजदूरों का जैसा महिमागान किया वह अद्वितीय था। बिहारी मजदूरों को भी उसी दिन पता चला कि वे इतना महान काम करते हैं!

यह मौका वैसे तो रोजगार अभियान की शुरुआत का था पर उससे पांच दिन पहले ही 15 जून की रात को लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों की झड़प हुई थी, जिसमें भारतीय सेना के एक कर्नल सहित 20 जवान शहीद हो गए थे इसलिए प्रधानमंत्री का भाषण जवानों की श्रद्धांजलि सभा में तब्दील हो गया था। चूंकि चीनी सेना के साथ बिहार रेजिमेंट की झड़प हुई थी और बिहार के पांच जवान शहीद हुए थे इसलिए रोजगार अभियान के भाषण के दौरान बिहार के जवानों के बहाने बिहार रेजिमेंट की जैसी तारीफ हुई, वह भी अभूतपूर्व ही थी। हालांकि बिहार रेजिमेंट के शहीद हुए जवानों में तेलंगाना से लेकर पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे कई राज्यों के जवान थे पर चूंकि चुनाव बिहार में हैं इसलिए ज्यादा तारीफ तो उन्हीं की बनती थी। 

यह अलग बात है कि सेना के शहीद कर्नल को सबसे बड़ा सम्मान तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने दिया। तेलंगाना के रहने वाले बिहार रेजिमेंट के कमांडिग ऑफिसर कर्नल संतोष बाबू की शहादत के तुरंत बाद मुख्यमंत्री उनकी पत्नी से मिलने गए। उन्हें क्लास वन ऑफिसर की नौकरी का पत्र दिया, पांच करोड़ रुपए का एक चेक और एक आवासीय भूखंड के कागज दिए। यह संतोष बाबू की शहादत की कीमत नहीं थी। सीमा पर हुए सर्वोच्च बलिदान की कोई कीमत दी भी नहीं जा सकती है। यह एक राज्य के मुख्यमंत्री का शहीद के परिवार के प्रति कृतज्ञताज्ञापन था। ऐसा कुछ बिहार के जवानों के साथ नहीं हुआ पर उनकी तारीफ में कोई कमी नहीं रखी गई। इसी के लिए कहा गया है वचनम् किम् दरिद्रम्!

बहरहाल, बिहार से रोजगार अभियान की शुरुआत करने और बिहार रेजिमेंट के जवानों की तारीफ के बाद दूसरा मौका भी तुरंत आ गया। चुनाव तक ऐसे मौके आते ही रहेंगे। प्रधानमंत्री 30 जून को राष्ट्र को संबोधित करने आए और उन्होंने गरीब कल्याण योजना के तहत गरीबों और मजदूरों के लिए मुफ्त अनाज की योजना को पांच महीने के लिए बढ़ाने का ऐलान किया। राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में उन्होंने दो बार छठ पूजा का नाम लिया। पांच महीने यानी नवंबर तक इस योजना का विस्तार इस बात को ध्यान में रख कर किया गया कि नवंबर में बिहार में चुनाव होने हैं, इसमें कोई संदेह नहीं था। पर दो बार छठ का जिक्र करके उन्होंने खुद भी कोई संशय नहीं रहने दिया कि किसके लिए इस योजना का विस्तार किया जा रहा है।

असल में बिहार के चुनाव प्रचार की शुरुआत तो फरवरी में ही हो गई थी, जब इंडिया गेट के लॉन में आयोजित हुनर हाट मेले में प्रधानमंत्री शामिल हुए और उन्होंने लिट्टी-चोखा खाते हुए अपनी फोटो ट्विट की। प्रधानमंत्री 19 फरवरी को हुनर हाट मेले में गए थे, जहां उन्होंने लिट्टी-चोखा का आनंद लिया था। बाद में 23 फरवरी को रेडियो पर प्रसारित मन की बात कार्यक्रम में भी उन्होंने इसका जिक्र किया और कहा कि बिहार के स्वादिष्ट लिट्टी-चोखे का आनंद लिया। भरपूर आनंद लिया। उसी दिन से बिहार के लोग लहालोट होने लगे। उनको लगा कि प्रधानमंत्री ने उनके खाने को राष्ट्रीय भोजन बना दिया। बाद में तो खैर बिहार का सब कुछ ही राष्ट्रीय हो गया।

अब अगले कुछ दिन तक बिहार ही राष्ट्र रहने वाला है। ऐसा नहीं है कि पहली बार ऐसा हो रहा है या सिर्फ बिहार के साथ ऐसा हो रहा है। याद करें कैसे लोकसभा चुनाव के समय पश्चिम बंगाल में ईश्वरचंद विद्यासागर याद किए गए थे या उससे पहले कैसे बंगाल के चुनाव के समय नेताजी सुभाष चंद्र बोस और उनका पूरा परिवार याद किया गया था। कर्नाटक के चुनाव से पहले वहां के लिंगायत साधु-संत याद किए जाते हैं तो हरियाणा के चुनाव से पहले वहां के लोगों की वीरता याद आती है। जिसने भी पिछले छह साल के राजनीतिक दांव-पेंचों को ध्यान से देखा है वह भाषणों से, ट्विट से अंदाजा लगा सकता है कि अगले कुछ दिन में कहां चुनाव होने वाले हैं।

हालांकि बिहार का मामला दूसरे राज्यों से थोड़ा अलग इसलिए है क्योंकि नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उनके राष्ट्रीय राजनीति में आने के विरोध और समर्थन की राजनीति सबसे पहले बिहार में शुरू हुई थी। एक तरफ जहां नीतीश कुमार उनको प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाने का विरोध कर रहे थे वहीं दूसरी ओर भाजपा के कई बड़े नेता खुल कर इसकी मांग कर रहे थे। बिहार ने उन्हें दो लोकसभा चुनावों में भरपूर समर्थन दिया तो एक विधानसभा चुनाव में जोर का झटका भी दिया, जबकि उस चुनाव में प्रधानमंत्री ने बिहार को सवा लाख करोड़ रुपए का पैकेज देने की घोषणा की थी। बिहार का चुनाव इसलिए भी अहम है क्योंकि बिहार एकमात्र हिंदी भाषी प्रदेश है, जहां आज तक भाजपा का मुख्यमंत्री नहीं बना है। इस बार भी भाजपा वैसे तो जदयू के साथ है और नीतीश कुमार को चेहरा बना कर लड़ने की घोषणा की है। पर चुनाव नतीजों के बाद क्या होगा, कोई नहीं जानता। सो, बिहार का चुनाव बेहद खास है और इसलिए नवंबर में संभावित चुनाव के लिए फरवरी से ही प्रचार शुरू हो गया। आगे भी देखते, सुनते रहिए चुनाव तक बिहार की गौरवशाली सभ्यता, संस्कृति और बिहारी लोगों की महानता, मेहनत और बौद्धिक ज्ञान की तारीफ होती रहेगी।

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