वकील नेताओं की अजब कहानी है, चाहे वे कांग्रेस के साथ हों या भाजपा के या बसपा और राजद जैसी छोटी पार्टियों में हों, उनकी पूछ कम नहीं होती है। हालांकि यह अलग मसला है कि वे कितने उपयोगी हैं। लालू प्रसाद ने कपिल सिब्बल से लेकर राम जेठमलानी तक को राज्यसभा में भेजा पर उनकी कानूनी मुश्किलें कम नहीं हुईं और वे अंततः जेल काट रहे हैं। बहरहाल, अभी राजस्थान को लेकर चल रही राजनीतिक उठापटक में ही वकीलों की कई कहानियां सामने आ रही हैं। कांग्रेस से बागी हुए सचिन पायलट ने जब मुकुल रोहतगी और हरीश साल्वे की सेवा ली तो कांग्रेस के नेताओं ने इस पर हल्ला मचाया कि भाजपा सचिन पायलट की मदद कर रही है। ध्यान रहे ये दोनों वकील भाजपा के करीबी हैं। केंद्र सरकार ने रोहतगी को पहले अटॉर्नी जनरल बनाया था और खबर है कि हरीश साल्वे अगले अटॉर्नी जनरल होने वाले हैं। यानी पायलट की मदद पूर्व और भावी अटॉर्नी जनरल कर रहे हैं।
जब इस बात पर कयास लगे तो अचानक यह खबर भी चर्चा में आई कि हाल ही में रोहतगी ने कर्नाटक के कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार का मुकदमा लड़ा है। शिवकुमार के खिलाफ टैक्स और धन शोधन के कई मामले चल रहे हैं। उन मामलों में रोहतगी उनके वकील हैं। इसी तरह रोहतगी और साल्वे को लेकर जो अटकलें लगीं उसे स्पष्ट करने के लिए सचिन पायलट खेमे की ओर से यह बताया गया कि पायलट ने सबसे पहले अभिषेक मनु सिंघवी से संपर्क किया था पर सिंघवी ने कहा कि वे दूसरे पक्ष से यह मुकदमा लड़ने जा रहे हैं इसलिए उनका मुकदमा नहीं लड़ सकते हैं। हालांकि सिंघवी ने यह भी कह दिया कि पायलट का कोई दूसरा मामला होगा तो वे लड़ने के लिए तैयार हैं। इस बीच कांग्रेस के वकीलों के बीच इस बात को लेकर घमासान शुरू हो गया है कि किसने नोटिस जारी करने की सलाह दी, किसने हाई कोर्ट में जाने को कहा, किसने एसएलपी फाइल की, आदि-आदि। कांग्रेस का राजनीतिक विवाद सुलझने की बजाय वकीलों का अलग विवाद शुरू हो गया है। ऐसी स्थिति के लिए ही यह कहावत बनी है कि ज्यादा जोगी मठ उजाड़।

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