शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

नाम बदलने से क्या काम बदलेगा?



भाजपा ने एक और मंत्रालय का नाम बदल दिया। अब मानव संसाधन विकास मंत्रालय को शिक्षा मंत्रालय कहा जाएगा। पहले वैसे इसे शिक्षा मंत्रालय की कहते थे पर बाद में जब शिक्षा का क्षेत्र संश्लिष्ट होता गया और कई क्षेत्र इसके साथ जुड़ते गए तो इसका नाम मानव संसाधन विकास मंत्रालय कर दिया गया। हालांकि इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता है कि इसे मानव संसाधन विकास मंत्रालय कहें या शिक्षा मंत्रालय। वैसे ही जैसे फॉरेन मिनिस्ट्री को मिनिस्टरी ऑफ एक्सटर्नल अफेयर कहने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। कुल मिला कर नाम बदल कर उसे एक उपलब्धि बताने की बरसों से चल रही राजनीति का ही यह भी एक हिस्सा है। नाम बदलने से भी लोगों को लगता है कि सरकार कुछ काम कर रही है। दूसरी बार नरेंद्र मोदी की सरकार बनी तो उन्होंने जल संसाधन मंत्रालय का नाम बदल कर जल शक्ति मंत्रालय कर दिया। इसका नाम बदल देने से पिछले एक साल में भारत में कोई जल क्रांति हुई हो, इसकी कोई मिसाल नहीं है।  

इसी तरह से अपनी पहली सरकार में केंद्र ने कृषि मंत्रालय का नाम बदल कर उसे कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय कर दिया था। हालांकि उसके बाद भी ऐसी कोई खबर नहीं है कि देश में कृषि सेक्टर का कोई भला हो गया या किसानों की स्थिति में कोई बड़ा गुणात्मक परिवर्तन आ गया। इसी कड़ी में अब सरकार ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम शिक्षा मंत्रालय कर दिया है। ध्यान रहे इस मंत्रालय में पिछले छह साल से सबसे ज्यादा प्रयोग हुए हैं और तीन अलग अलग इलाके के और अलग अलग पृष्ठभूमि के लोगों ने यह मंत्रालय संभाला है। बहरहाल, केंद्र में सरकार बनाते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योजना आयोग का नाम नीति आयोग कर दिया था। जब से इस संस्था का नाम बदला है और इसमें रिटायर सरकारी बाबुओं का वर्चस्व हुआ है तब से देश में योजना और नीति दोनों का हाल बिगड़ा हुआ दिख रहा है। इसी तरह सरकार ने विकलांग की जगह दिव्यांग शब्द का इस्तेमाल शुरू कराया। यह अलग बात बात है कि इन दिव्यांगो को अब भी बसों या ट्रेनों में चढ़ने जैसे छोटे से काम में उतनी ही दिक्कत आती है, जितनी पहले आती थी। सरकार ने शहरों, सड़कों और ट्रेन स्टेशनों के तो इतने नाम बदले हैं, सब यहां लिखे भी नहीं जा सकते है। उनकी संख्या बहुत बड़ी है।

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